भाषा सम्मान

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भाषा सम्मान
साहित्य अकादमी का प्रतीक चिह्न
साहित्य अकादमी का प्रतीक चिह्न
विवरण बिना-मान्यता प्राप्त भाषाओं में भी सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ शैक्षिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए साहित्य अकादमी ने सन् 1996 में भाषा सम्मान की स्थापना की, ताकि लेखकों, विद्वानों, संपादकों, संग्रहकर्ताओं, प्रस्तोताओं या उन अनुवादकों को, जिन्होंने संबंधित भाषाओं के प्रचार, आधुनिकीकरण या उसके संवर्धन के लिए यथेष्ट योगदान दिया हो, इस सम्मान से विभूषित किया जा सके।
प्रथम पुरस्कार सन् 1996
अंतिम पुरस्कार सन् 2013
पुरस्कार राशि 50,000/- रुपए[1]
संबंधित लेख साहित्य अकादमी, साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी
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साहित्य अकादमी अपने द्वारा मान्य 24 भाषाओं में उत्कृष्ट पुस्तकों तथा उत्कृष्ट अनुवादों के लिए वार्षिक पुरस्कार प्रदान करती है। फिर भी, अकादेमी यह महसूस करती है कि भारत जैसे बहुभाषाई देश में जहाँ कई सौ भाषाएँ और उपभाषाएँ हैं, उसको अपनी गतिविधियों की परिसीमा मान्यता प्राप्त भाषाओं से परे बढ़ानी चाहिए और बिना-मान्यता प्राप्त भाषाओं में भी सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ शैक्षिक अनुसंधान को प्रोत्साहित करना चाहिए। अकादेमी ने इसलिए सन् 1996 में भाषा सम्मान की स्थापना की, ताकि लेखकों, विद्वानों, संपादकों, संग्रहकर्ताओं, प्रस्तोताओं या उन अनुवादकों को, जिन्होंने संबंधित भाषाओं के प्रचार, आधुनिकीकरण या उसके संवर्धन के लिए यथेष्ट योगदान दिया हो, इस सम्मान से विभूषित किया जा सके। सम्मान स्वरूप एक फलक के साथ सृजनात्मक साहित्य के लिए दी जाने वाली पुरस्कार राशि 50,000/-रु. प्रदान की जाती है। (वर्ष 2001 में इसकी पुरस्कार राशि 25,000/-रु. से बढ़ाकर 40,000/-रु. कर दी गई थी तथा वर्ष 2003 से 40,000/-रु. की राशि को बढ़ाकर 50,000/-रु. कर दिया गया है, जोकि इस उद्देश्य की सिद्धी में प्रथम चरण है। इस उद्देश्य के लिए गठित विशेषज्ञों की समिति की अनुंशासाओं के आधार पर प्रत्येक वर्ष यह सम्मान 3-4 व्यक्तियों को विभिन्न भाषाओं के लिए दिया जाता है।

प्रथम भाषा सम्मान

प्रथम भाषा सम्मान वर्ष 1996 में प्रदान किया गया, जिनमें श्री धारीक्षण मिश्र (भोजपुरी), श्री बंशी राम शर्मा और श्री एम. आर. ठाकुर (हिमाचली), श्री के. जतप्पा राय और श्री मंदार केशव भट्ट (तुलु) के लिए तथा श्री चंद्रकांत मुरा सिंह (काकबरोक) को अपनी-अपनी भाषाओं के विकास में योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

वर्ष 1999 में अकादेमी ने महसूस किया कि यह तो ठीक है कि उन भाषाओं के लेखकों और विद्वानों को प्रोत्साहित किया जाए जिन्हें अकादेमी से मान्यता प्राप्त नहीं है, साथ ही उन विद्वानों को भी सम्मानित किया जाना चाहिए, जिन्होंने कालजयी और मध्यकालीन साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया हो। चूँकि उन लेखकों/विद्वानों ने राष्ट्र की धरोहर को जीवंत रखने तथा आने वाली पीढियों को इससे परिचित कराने का प्रयास किया है इसलिए वह इस सम्मान के हकदार हैं। अत: यह निर्णय लिया गया कि चार वार्षिक भाषा सम्मानों में से दो बिना-मान्यता प्राप्त भाषाओं तथा दो सम्मान उन विद्वानों को दिए जाएँगे जिन्होंने कालजयी और मध्यकालीन साहित्य में योगदान दिया हो।


इन्हें भी देखें: साहित्य अकादमी, साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुरस्कार की स्थापना के समय पुरस्कार राशि 5,000/- रुपए थी, जो सन् 1983 में बढ़ाकर 10,000/- रुपए कर दी गई और सन् 1988 में बढ़ाकर 25,000/- रुपए कर दिया गया। सन् 2001 से यह राशि 40,000/- रुपए की गई थी। सन् 2003 से यह राशि 50,000/- रुपए कर दी गई है।

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