सौराष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति, राजकोट
सौराष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति गुजरात राज्य के राजकोट नगर में स्थित एक हिंदी सेवी संस्था है।
इतिहास
सन् 1937 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा महात्मा गांधी जी ने जब विधिवत हिन्दी प्रचार का काम शुरू किया तब आचार्य काका कालेलकर की प्रेरणा से भावनगर में बजुभाईशाह में हिन्दी प्रचार का श्रीगणेश किया। सरदार बल्लभभाई पटेल ने मई, 1939 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा संचालित परीक्षाओं के वर्गों का भावनगर में उद्घाटन किया था। उन दिनों सौराष्ट्र ‘काठियावाड़’ कहलाता था। हिन्दी प्रचार का काम ‘काठियावाड़’ राष्ट्रभाषा प्रचार नामक संस्था नाम से लगा। सन् 1946 में गुजरात में हिन्दुस्तानी प्रचार सभा की नीति के अनुसार गुजरात विद्यापीठ ने राष्ट्रभाषा प्रचार का काम शुरू किया। इसलिए स्वभावत: काठियावाड़ राष्ट्रभाषा प्रचार ने गुजरात विद्यापीठ के साथ संबंध स्थापित करके हिन्दुस्तानी प्रचार का काम चलाया। स्वतंत्रता के बाद सौराष्ट्र की रियासतों का अंगीकरण हुआ। नए सौराष्ट्र राज्य का जन्म हुआ। सौराष्ट्र में चल रहे विविध रचनात्मक कामों को सुव्यवस्थित रूप से चलाने तथा गति देने के लिए ‘सौराष्ट्र रचनात्मक समिति’ की स्थापना की गई। हिन्दी के कार्य को बढ़ाने के लिए तथा नई गति देने लिए गुजरात विद्यापीठ ने सौराष्ट्र कच्छ का हिन्दी प्रचार का सारा काम सौराष्ट्र रचनात्मक समिति को सौंपा। काठियावाड़ राष्ट्रभाषा प्रचार ने ‘सौराष्ट्र हिन्दी समिति’ में परिवर्तित होकर और सौराष्ट्र रचनात्मक समिति तथा गुजरात विद्यापीठ से संबद्ध हो कर हिन्दी के प्रचार कार्यों का नया रूप दिया। [1]
विशेषताएँ
- सौराष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति ‘हिन्दी विनीत’ तथा ‘हिन्दी सेवक’ परीक्षाओं का संचालन कर रही है।
- अब तक सौराष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति द्वारा लगभग 5 लाख लोगों ने हिन्दी सीखी।
- इसके अलावा समिति उर्दू लिपि की तीन क्रमिक परीक्षाओं का संचालन करती है। जो प्रोढ़ वर्ग हिन्दी नहीं सीखा है, उसके लिए ‘हिन्दी बातचीत’ की एक मौखिक परीक्षा का संचालन भी यह समिति करती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लोंढे, शंकरराव। हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाएँ (हिंदी) भारतकोश। अभिगमन तिथि: 29 मार्च, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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