कुमारगुप्त द्वितीय

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कुमारगुप्त द्वितीय (473-474 ई.) गुप्त वंशीय सम्राट था। वह नरसिंह गुप्त के बाद पाटलिपुत्र के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ था। इसके अस्तित्व का परिचय सारनाथ से प्राप्त गुप्त संबत 154 के एक अभिलेख से होता है।

  • कुमारगुप्त द्वितीय के कुछ सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। उनमें यह अवश्य ज्ञात होता है कि उसने 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की थी।
  • अन्य गुप्त सम्राटों के समान ही कुमारगुप्त द्वितीय वैष्णव धर्म का अनुयायी था और उसे भी 'परम भागवत्' लिखा गया है।
  • सम्राट स्कन्दगुप्त के बाद दस वर्षों में गुप्त वंश के तीन राजा हुए थे। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि यह काल अव्यवस्था और अशान्ति का था।
  • अपने चार वर्ष के शासन काल में कुमारगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य' ने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए।
  • वाकाटक राजा से कुमारगुप्त द्वितीय ने कई युद्ध किए और मालवा के प्रदेश को जीतकर फिर से अपने साम्राज्य में मिला लिया। वाकाटकों की शक्ति अब फिर से क्षीण होने लगी।
  • कुमारगुप्त द्वितीय ने मात्र एक वर्ष ही राज्य किया। 474 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
  • उसका उत्तराधिकारी बुधगुप्त हुआ, जिसकी अद्यतम ज्ञात तिथि 477 ई. है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुमारगुप्त द्वितीय (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 22 सितम्बर, 2014।

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