अंतर्वेद
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अंतर्वेद अथवा 'अंतर्वेदी' से अभिप्राय उस विस्तृत भू-खंड से है, जो गंगा और यमुना के बीच हरिद्वार से प्रयाग तक फैला हुआ था। यह एक समृद्ध दोआब प्रदेश था।[1] 'अंतर्वेदी' नाम प्राचीन संस्कृत अभिलेखों में प्राप्त है।
- वैदिक काल से बहुत पीछे तक इस दोआब में निरंतर यज्ञादि होते आए थे।
- अंतर्वेद में वैदिक काल से ही उशीनर, पंचाल तथा वत्स अथवा वंश बसते थे।
- यहाँ से पूर्व की ओर लगे कोसल तथा काशी जनपद थे।
- अंतर्वेद की पश्चिमी तथा दक्षिणी सीमाओं पर 'कुरु', 'शूरसेन' तथा 'चेदि' आदि का आवास था।
- ऐतिहासिक युग में इस प्रदेश में कई 'अश्वमेध यज्ञ' सम्पन्न हुए थे, जिनमें समुद्रगुप्त का यज्ञ बड़े महत्व का था।
- गुप्त काल की शासन व्यवस्था के अनुसार अंतर्वेद गुप्त साम्राज्य का 'विषय' या 'ज़िला' था।
- स्कंदगुप्त के समय अंतर्वेद का विषयपति शर्वनाग स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किया गया था। स्कंदगुप्त के इंदौर से प्राप्त अभिलेख में अंतर्वेदिविषय (ज़िला) के शासक शर्वनाग का उल्लेख है।
इन्हें भी देखें: गुप्त वंश, गुप्त काल एवं गुप्तकालीन कला और स्थापत्य
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