शकटासुर वध
एक दिन कृष्ण को निंद्रामग्न देखकर माता यशोदा उनको एक छकड़े के नीचे लिटा गयीं ताकि बाहर आंगन में हवा लगती रहे और छकड़े की छाया के कारण बालक का धूप से बचाव भी होता रहे। वह यमुना स्नान के लिये चली गयी। वहां उनका मन न लगा। वह तत्काल स्नान करके वापस आ गयी। जैसे ही वह वापिस आयी, देखा कि छकड़ा उलटा पड़ा हुआ है। उसका प्रत्येक भाग टूटा पड़ा है। पहिया अलग, जुआ अलग...वह घबराकर दौड़ी। उनको भय लगा। शायद किसी कारणवश छकड़ा उलट गया है उनका लाल उसमें दब गया होगा। माता यशोदा के प्राण कंठ में आ गये। दौड़कर भंग हो गये छकड़े के पास आयी। हठात अपने लाल को उसी प्रकार निंद्रामग्न देखकर लपककर उठा लिया और छाती से लगा लिया। उनकी आंखों से प्रसन्नता के कारण अश्रुधार फूट पड़े। वह अपना भाग्य को सराहने लगी। अगर बालक को कुछ हो जाता, वह बालक को इस प्रकार छकड़े के नीचे अकेला सुलाकर यमुना स्नान के लिये क्यों गयी। वह पश्चाताप करने लगी। कितनी बड़ी भूल कर दी है, उन्होंने ऐसा उनको न करना था। बालक को कुछ हो गया होता तो ? अभी वह अपने को संभाल भी नहीं पायी थी कि काषाय वस्त्रधारी नंद आ गये। छकड़े की दशा देखकर चौंक गये। पूछा अरे छकड़ा इस प्रकार टुकड़े-टुकडे होकर कैसे पडा है। अतएव दोनों भगवान की लीला को न जान सके।
वास्तव में कृष्ण का वध करने के लिये कंस द्घारा भेजा गया असुर शकटासुर आया था। वह सदा छकड़ों में प्रवेशकर अपने शत्रु की हत्या करने में निपुण था। निद्रामग्न कृष्ण को एकदम उपयुक्त स्थान पर पाकर उसने अपने कौशल का प्रदर्शन किया। वह तत्काल छकड़े में प्रवेश कर गया। वह टूटकर कृष्ण के ऊपर गिरकर उसके प्राण हरण करने वाला था कि कृष्ण ने अपना पैर मारकर उसको उछाल दिया। जब वह धरती पर गिरा तो चूर-चूर हो गया। शकटासुर की हड़डी-पसली बराबर हो गयी। भगवान कृष्ण के हाथों उसके जीवन का अंत होने के कारण यमराज ससम्मान उसको स्वर्ग ले गया। उसे मोक्ष पद प्राप्त हो गया। भगवान पापियों का नाश करते हैं, भगवान के हाथों मारे जाने पर तमाम पापी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं।
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