वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
शब्दहीन, भावहीन ,स्पंदनहीन हृदय को
और दिमाग को कुंद औ मूढ बना दिया
सांवरे तूने ये क्या किया , ये क्या किया
न रसधारा बहती है
न नामोच्चार होता है
बस ये विग्रह निर्लेप सा रहता है
अब कौन दिशा है जाना
सबको भ्रमित बना दिया
सांवरे तूने ये क्या किया, ये क्या किया
न हृदय द्रवित होता है
न अश्रु नैनो से ढलते हैं
बस निर्विकारता छा जाती है
निर्जीव इस विग्रह पर
ये कैसा कुहासा छा दिया
सांवरे तूने ये क्या किया, ये क्या किया
न मै अब मै रही
न तू ही मुझे मिला
एक तत्व भी अज्ञात रहा
ये कैसा द्वंद समा गया
जो मुझे प्रश्नसूचक बना दिया
सांवरे तूने ये क्या किया, ये क्या किया
न प्रेम का छोर मिला
न कोई उस ओर मिला
बस प्रेमाभक्ति का ह्रास रहा
ये कैसा रोग लगा दिया
भरा, पूजा का थाल लौटा दिया
सांवरे तूने ये क्या किया, ये क्या किया
न दिशा का बोध रहा
न अपना ही होश रहा
जब से तुझमे खुद को मिला दिया
तेरी चाह को परवान चढा दिया
और खुद को भी मिटा दिया
फिर भी ना तेरा दरस हुआ
और चौखट से जो अपनी
तूने खाली हाथ लौटा दिया
सांवरे तूने ये क्या किया, ये क्या किया
तेरे हाथ बिके बेमोल
अब किधर जायेंगे
जो तूने हमे रुसवा किया
तेरे कूचे मे ही न मर जायेंगे
मगर न कहीं कोई ठौर पायेंगे