राजस्थान का भूगोल

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भूमि
थार मरुस्थल, राजस्थान

अरावली पहाड़ियाँ राज्य के दक्षिण-पश्चिम में 1,722 मीटर ऊँचे गुरु शिखर[1] से पूर्वोत्तर में खेतड़ी तक एक रेखा बनाती हुई गुज़रती हैं। राज्य का लगभग 3/5 भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में व शेष 2/5 भाग दक्षिण-पूर्व में स्थित है। राजस्थान के ये दो प्राकृतिक विभाजन हैं। बेहद कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूभाग रेतीला और अनुत्पादक है। इस क्षेत्र में विशाल भारतीय रेगिस्तान (थार) नज़र आता है। सुदूर पश्चिम और पश्चिमोत्तर के रेगिस्तानी क्षेत्रों से पूर्व की ओर बढ़ने पर अपेक्षाकृत उत्पादक व निवास योग्य भूमि है।

विविधतापूर्ण स्थलाकृति वाला दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र अपेक्षाकृत ऊँचा[2] व अधिक उपजाऊ है। दक्षिण में मेवाड़ का पहाड़ी क्षेत्र है। दक्षिण-पूर्व में कोटा व बूँदी ज़िले का एक बड़ा क्षेत्र पठारी भूमि का निर्माण करता है और इन ज़िलों के पूर्वोत्तर भाग मे चम्बल नदी के प्रवाह के साथ-साथ ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र[3] है। आगे उत्तर की ओर का क्षेत्र समतल होता जाता है। पूर्वोत्तर भरतपुर ज़िले की समतल भूमि यमुना नदी के जलोढ़ बेसिन का हिस्सा है।

अरावली राजस्थान के सबसे महत्त्वपूर्ण जल विभाजक का निर्माण करती है। इस पर्वत शृंखला के पूर्व में जल अपवाह की दिशा पूर्वोत्तर की ओर है, जैसा की राज्य की एकमात्र बड़ी व बारहमासी नदी चम्बल का प्रवाह है। इसकी प्रमुख सहायक नदी बनास है, जो कुम्भलगढ़ के निकट अरावली से निकलती है व मेवाड़ पठार के समस्त जल प्रवाह को संग्रहीत करती है। आगे उत्तर में, बाणगंगा जयपुर के निकट से निकलने के बाद विलुप्त होने से पहले तक पूर्व दिशा में यमुना की ओर बहती है। अरावली के पश्चिम में लूनी ही एकमात्र उल्लेखनीय नदी है। यह अजमेर की पुष्कर घाटी से निकलती है और 302 किमी. पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई कच्छ के रण तक जाती है। शेखावाटी क्षेत्र में लूनी बेसिन का पूर्वोत्तर हिस्सा आंतरिक अपवाह व खारे पानी की झीलों के लिए जाना जाता है, जिसमें सांभर सॉल्ट लेक सबसे बड़ी है। सुदूर पश्चिम में वास्तविक मरुस्थल, बंजर भूमि व रेत के टीलों के क्षेत्र हैं, जो विशाल भारतीय रेगिस्तान की हृदयस्थली का निर्माण करते हैं।

जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर, झुंझुनू, सीकर, पाली व नागौर ज़िलों में विस्तारित पश्चिमोत्तर के रेतीले मैदानों में मुख्यत: लवणीय या क्षारीय मिट्टी पाई जाती है। पानी दुर्लभ है, लेकिन 30-61 मीटर की गहराई पर मिल जाता है। मिट्टी की रेत कैल्शियमयुक्त है। मिट्टी में नाइट्रेट इसकी उर्वरकता को बढ़ाते हैं, जैसा कि इंदिरा गांधी नहर (भूतपूर्व राजस्थान नहर) के क्षेत्र में देखा गया है, पानी की पर्याप्त आपूर्ति से खेतीबाड़ी प्राय: सम्भव हुई है। मध्य राजस्थान के अजमेर ज़िले में मिट्टी रेतीली है; चिकनी मिट्टी की मात्रा 3-9% के बीच तक मिलती है। पूर्व में जयपुरअलवर ज़िलों में बलुआ दोमट से रेतीली चिकनी मिट्टी तक पाई जाती है। कोटा, बूँदीझालावाड़ क्षेत्र में मिट्टी सामान्यत: काली, गहरी और अधिक समय तक नम रहती है। उदयपुर, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ाभीलवाड़ा ज़िलों के पूर्वी क्षेत्रों में मिश्रित लाल और काली मिट्टी है, जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में लाल से पीली मिट्टी पाई जाती है।

जलवायु

  • राजस्थान की जलवायु विविधता लिए हुए है, एक ओर अति शुष्क तो दूसरी ओर आर्द्र क्षेत्र हैं। आर्द्र क्षेत्रों में दक्षिण-पूर्व व पूर्वी ज़िले आते हैं।
  • अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापमान, निम्न आर्द्रता तथा तीव्र हवाओं से युक्त शुष्क जलवायु है।
  • दूसरी ओर अरावली के पूर्व में अर्द्ध-शुष्क एवं उप-आर्द्र जलवायु है, जहाँ वर्षा की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, तापमान अपेक्षाकृत कम, उच्च तथा वायु में आर्द्रता की वृद्धि हो जाती है साथ में वायु की गति में भी कमी रहती है।

वन्य एवं प्राणी जीवन

यहाँ की प्रमुख वानस्पतिक विशेषता झाड़ीदार जंगल हैं। पश्चिमी क्षेत्र में झाउ और झाउ जैसे शुष्क क्षेत्र के पौधे पाए जाते हैं। पेड़ विरल हैं और ये अरावली पहाड़ियों व दक्षिण राजस्थान में ही थोड़े-बहुत मिलते हैं।

अरावली व अनेक ज़िलों में बाघ पाए जाते हैं। पर्वतों व जंगलों में तेंदुआ, रीछ, सांभर और चीतल पाए जाते हैं। नीलगाय भी कुछ हिस्सों में पाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में काले हिरन व जंगली हिरन बहुतायत में हैं। रेगिस्तान को छोड़कर चाहा, बटेर, तीतर और जंगली बत्तख़ हर जगह पाए जाते हैं। बीकानेर क्षेत्र रेगिस्तानी तीतर की अनेक प्रजातियों के लिए विख्यात है।

वन जीव अभयारण्य

राज्य में अनेक अभयारण्य व वन्य जीव पार्कों की स्थापना की गई है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण अलवर के निकट सरिस्का वन जीव अभयारण्यजैसलमेर के निकट डेज़र्ट नेशनल पार्क है।  

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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. माउंट आबू
  2. समुद्रतल से 100-350 मीटर ऊपर
  3. बंजर भूमि

बाहरी कड़ियाँ

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