शीतलाष्टमी
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शीतलाष्टमी का व्रत चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर किया जाता है। इस दिन माँ शीतला की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और पूरे परिवार को बासी भोजन करना होता है।
मुख्य लेख : शीतला अष्टमी व्रत
- शीतलाष्टमी हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर यह व्रत किया जाता है।
- हिन्दू धर्म में माँ शीतला को 'माता माई' (चेचक की देवी) कहा जाता है।
- इस दिन रात-दिन आठ घृत दीपों से पूजा तथा गाय के दूध एवं उशीर (एक प्रकार की सुगन्धित जड़, खस) से सुगन्धित जल छिड़कना, गदहा, झाड़ु एवं सूप का पृथक-पृथक् दान दिया जाता है।[1]
- 'गदहा' (गधा) माँ शीतला का वाहन है।
- शीतला नंगी दर्शायी गयी हैं, उनके हाथ में झाड़ु एवं घट तथा सिर पर सूप रहता है।[2]
इन्हें भी देखें: शीतला चालीसा, शीतला माता की आरती एवं शीतला मन्दिर गुड़गाँव
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यतत्त्व (462); अहल्याकामधेनु (पाण्डुलिपि, 558बी-561ए);
- ↑ देखिए फार्बेस रसमाला (जिल्द 2, पृ0 322-325) एवं ए. सी. सेन कृत 'बंगाली लैंग्वेज एण्ड लिटरेचर' (शीतला मंगल कविता, पृ0 365-367)।
अन्य संबंधित लिंक
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