ग्रेनाइट
ग्रेनाइट (अंग्रेज़ी: Granite) एक प्रकार की मणिभीय दानेदार शिला है। इसके प्रमुख अवयव स्फटिक[1] और फेल्स्पार[2] हैं। ग्रेनाइट पृथ्वी के प्रत्येक भाग में पाया जाता है। भारत में भी यह प्रचुरता से मिलता है। मैसूर, उत्तर अर्काट, मद्रास, राजपूताना, सलेम, बुंदेलखंड और सिंहभूमि में यह पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है। हिमालय प्रदेशों में भी ग्रेनाइट शिलाएँ विद्यमान हैं।
अवयव
'ग्रेनाइट' शब्द का सर्वप्रथम उपयोग प्राचीन इटालियन संग्रहकर्ताओं ने किया था। रोम के शिल्पकार फ्लेमिनियस वेका के एक वर्णन में इसका प्रथम संदर्भ मिलता है। साधारणत: ग्रेनाइट मणिभीय दानेदार शिला है, जिसके प्रमुख अवयव 'स्फटिक' और 'फेल्स्पार' हैं। फेल्स्पार साधारणत: पोटाश किस्म का ऑर्थोक्लेस और माइक्रोक्लाइन[3] होती है, अथवा सोडियम किस्म का प्लैगिओक्लेस[4] ऐल्बाइट[5] या औलिगोक्लेस।[6] स्फटिक साधारणत: वर्ण रहित रूप में ही रहता है, पर कभी-कभी कुछ नीली आभा रहती है, जिससे ग्रेनाइट का रंग कुछ नीलापन लिए होता है। इसमें अभ्रक, मस्कोवाइट[7] और बायोटाइट[8] भी अल्प मात्रा में रहते हैं।[9]
मैग्निटाइट[10], ऐपैटाइट[11], जरकन[12] तथा स्फीन[13] भी बड़े सूक्ष्म मणिभों के रूप में ग्रेनाइट में रहते हैं। किसी किसी नमूने में हॉर्नब्लेंड [14], गार्नेट[15] और तुरमली[16] भी पाए गए हैं। इन खनिजों की उपस्थिति के कारण ऐसे ग्रेनाइटों को क्रमश: हौर्नब्लेंड ग्रेनाइट, मस्कावाइट ग्रेनाइट और बयोटाइट ग्रेनाइट भी कहते हैं।
रंग
ग्रेनाइट अनेक रंगों का पाया जाता है। पोटाश ग्रेनाइट गुलाबी या लाल रंग का होता है तथ चूना ग्रेनाइट धूसर या श्वेत रंग का। ग्रेनाइट का विशिष्ट घनत्व 2.51 से 2.73 तक होता है।
उद्भव
इसके के उद्भव के संबंध में वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इसका उद्भव द्रव पत्थरों या 'मैग्मा'[17] के धीरे-धीरे ठंढा होकर ठोस बनने से हुआ है। इनमें से कुछ इसका निर्माण ग्रेनाइट मैग्मा से और कुछ बैसाल्टीय मैग्मा से मानते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का यह विचार है कि पूर्वस्थित शिलाओं के ग्रेनाइट बनाने वाले निर्गमों[18] की प्रवरण [19] क्रिया से, अथवा ग्रेनाइट बनाने वाले अभिकर्मकों द्वारा, जिनको सेडेरहोम[20] ने आयकरी नाम दिया है, ग्रेनाइट बने हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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