तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-5
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- तैत्तिरीयोपनिषद के ब्रह्मानन्दवल्ली का यह पांचवाँ अनुवाक है।
मुख्य लेख : तैत्तिरीयोपनिषद
- इस अनुवाक में शरीर के 'विज्ञानमय कोश' का वर्णन है।
- विज्ञान के द्वारा ही यज्ञों और कर्मों की वृद्धि होती है।
- समस्त देवगण विज्ञान को ब्रह्म-रूप में मानकर उसकी उपासना करते हैं।
- विज्ञानमय शरीर में 'आत्मा' ही ब्रह्म-रूप है।
- 'प्रेम' उस विज्ञानमय शरीर का सिर है, 'आमोद' दाहिना पंख है, 'प्रमोद' बायां पंख है, 'आनन्द' मध्य भाग है और 'ब्रह्म' ही उसकी पूंछ, अर्थात् आधार है।
- उसे जानने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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