धनतेरस

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धनतेरस
महालक्ष्मी देवी
महालक्ष्मी देवी
अन्य नाम धन्वन्तरि जयन्ती
अनुयायी हिंदू, भारतीय
उद्देश्य घरों में दीपावली की सजावट भी आज ही से प्रारम्भ हो जाती है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, लीप-पोतकर, चौक, रंगोली बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
धार्मिक मान्यता इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है।
अन्य जानकारी इस दिन से कोई किसी को अपनी वस्तु उधार नहीं देता। इसके उपलक्ष्य में बाज़ारों से नए बर्तन, वस्त्र, दीपावली पूजन हेतु लक्ष्मी-गणेश, खिलौने, खील-बताशे तथा सोने-चांदी के जेवर आदि भी ख़रीदे जाते हैं।

धनतेरस (अंग्रेज़ी: Dhanteras) हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्योहार है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को 'धनतेरस' या 'धनत्रयोदशी' के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को 'राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। धनतेरस दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। हमारे देश में सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली का प्रारंभ धनतेरस से हो जाता है। इसी दिन से घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ कर देते हैं। दीपावली के लिए विविध वस्तुओं की ख़रीद आज की जाती है। इस दिन से कोई किसी को अपनी वस्तु उधार नहीं देता। इसके उपलक्ष्य में बाज़ारों से नए बर्तन, वस्त्र, दीपावली पूजन हेतु लक्ष्मी-गणेश, खिलौने, खील-बताशे तथा सोने-चांदी के जेवर आदि भी ख़रीदे जाते हैं।

आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती भी कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है।

महत्त्व

धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों में इस बारे में कहा है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती। घरों में दीपावली की सजावट भी आज ही से प्रारम्भ हो जाती है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, लीप-पोतकर, चौक, रंगोली बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन ख़रीदना शुभ माना गया है। इस दिन चांदी के बर्तन ख़रीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर लगातार तीन बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुंकुम लगाना चाहिए। कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए। तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी व अमावस्या की सन्ध्या को जलती लकड़ी की मशाल से पितरों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

पूजन विधि

  • इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती अपितु रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है।
  • इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता हैं इस दीप को जमदीवा अर्थात् यमराज का दीपक कहा जाता है।
  • रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं। दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए।
  • जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित दीपक जलाकर स्त्रियां यम का पूजन करती हैं। चूंकि यह दीपक मृत्यु के नियन्त्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, अत: दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन तो करें ही, साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।

धन्वन्तरि जयन्ती

आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को 'धन्वन्तरि जयन्ती' भी कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर 'धन्वन्तरि जयन्ती' मनाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन ख़रीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है।

धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।

इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती अपितु रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है।

धनतेरस की कथा

एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे, लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। विष्णु जी बोले- 'यदि मैं जो बात कहूं, वैसे ही मानो, तो चलो।' लक्ष्मी जी ने स्वीकार किया और भगवान विष्णु, लक्ष्मी जी सहित भूमण्डल पर आए। कुछ देर बाद एक स्थान पर भगवान विष्णु लक्ष्मी से बोले-'जब तक मैं न आऊं, तुम यहाँ ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत देखना।' विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी को कौतुक उत्पन्न हुआ कि आख़िर दक्षिण दिशा में क्या है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं दक्षिण में क्यों गए, कोई रहस्य ज़रूर है। लक्ष्मी जी से रहा न गया, ज्योंही भगवान ने राह पकड़ी, त्योंही लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही दूर पर सरसों का खेत दिखाई दिया। वह ख़ूब फूला था। वे उधर ही चलीं। सरसों की शोभा से वे मुग्ध हो गईं और उसके फूल तोड़कर अपना श्रृंगार किया और आगे चलीं। आगे गन्ने (ईख) का खेत खड़ा था। लक्ष्मी जी ने चार गन्ने लिए और रस चूसने लगीं। उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज़ होकर शाप दिया- 'मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानीं और यह किसान की चोरी का अपराध कर बैठीं। अब तुम उस किसान की 12 वर्ष तक इस अपराध की सज़ा के रूप में सेवा करो।' ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। लक्ष्मी किसान के घर रहने लगीं।

वह किसान अति दरिद्र था। लक्ष्मीजी ने किसान की पत्नी से कहा- 'तुम स्नान कर पहले इस मेरी बनाई देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तुम जो मांगोगी मिलेगा।' किसान की पत्नी ने लक्ष्मी के आदेशानुसार ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया और लक्ष्मी से जगमग होने लगा। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनन्द से कट गए। तत्पश्चात् 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं। विष्णुजी, लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। लक्ष्मी भी बिना किसान की मर्जी वहाँ से जाने को तैयार न थीं। तब विष्णुजी ने एक चतुराई की। विष्णुजी जिस दिन लक्ष्मी को लेने आए थे, उस दिन वारुणी पर्व था। अत: किसान को वारुणी पर्व का महत्त्व समझाते हुए भगवान ने कहा- 'तुम परिवार सहित गंगा में जाकर स्नान करो और इन कौड़ियों को भी जल में छोड़ देना। जब तक तुम नहीं लौटोगे, तब तक मैं लक्ष्मी को नहीं ले जाऊंगा।' लक्ष्मीजी ने किसान को चार कौड़ियां गंगा के देने को दी। किसान ने वैसा ही किया। वह सपरिवार गंगा स्नान करने के लिए चला। जैसे ही उसने गंगा में कौड़ियां डालीं, वैसे ही चार हाथ गंगा में से निकले और वे कौड़ियां ले लीं। तब किसान को आश्चर्य हुआ कि वह तो कोई देवी है। तब किसान ने गंगाजी से पूछा-'माता! ये चार भुजाएं किसकी हैं?' गंगाजी बोलीं- 'हे किसान! वे चारों हाथ मेरे ही थे। तूने जो कौड़ियां भेंट दी हैं, वे किसकी दी हुई हैं?' किसान ने कहा- 'मेरे घर जो स्त्री आई है, उन्होंने ही दी हैं।'

इस पर गंगाजी बोलीं- 'तुम्हारे घर जो स्त्री आई है वह साक्षात लक्ष्मी हैं और पुरुष विष्णु भगवान हैं। तुम लक्ष्मी को जाने मत देना, नहीं तो पुन: निर्धन हो जाआगे।' यह सुन किसान घर लौट आया। वहां लक्ष्मी और विष्णु भगवान जाने को तैयार बैठे थे। किसान ने लक्ष्मीजी का आंचल पकड़ा और बोला- 'मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा। तब भगवान ने किसान से कहा- 'इन्हें कौन जाने देता है, परन्तु ये तो चंचला हैं, कहीं ठहरती ही नहीं, इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था, जो कि 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है।' किसान हठपूर्वक बोला- 'नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा। तुम कोई दूसरी स्त्री यहाँ से ले जाओ।' तब लक्ष्मीजी ने कहा-'हे किसान! तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं जैसा करो। कल तेरस है, मैं तुम्हारे लिए धनतेरस मनाऊंगी। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सांयकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपया भरकर मेरे निमित्त रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। मैं इस दिन की पूजा करने से वर्ष भर तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। मुझे रखना है तो इसी तरह प्रतिवर्ष मेरी पूजा करना।' यह कहकर वे दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं और भगवान देखते ही रह गए। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी भांति वह हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा।

सावधानियाँ

  • सावधान और सजग रहें। असावधानी और लापरवाही से मनुष्य बहुत कुछ खो बैठता है। विजयादशमी और दीपावली के आगमन पर इस त्योहार का आनंद, ख़ुशी और उत्साह बनाये रखने के लिए सावधानीपूर्वक रहें।
  • पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें। उचित दूरी से पटाखे चलाएँ।
  • मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें ।
  • भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत् का अंधानुकरण ना करें।
  • पटाखे घर से दूर चलायें और आस-पास के लोगों की असुविधा के प्रति सजग रहें।
  • स्वच्छ्ता और पर्यावरण का ध्यान रखें।
  • पटाखों से बच्चों को उचित दूरी बनाये रखने और सावधानियों को प्रयोग करने का सहज ज्ञान दें।


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