सरस्वती महल पुस्तकालय, तंजौर
सरस्वती महल पुस्तकालय, तंजौर
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विवरण | 'सरस्वती महल पुस्तकालय' एशिया में सबसे प्राचीनतम पुस्तकालयों में से एक है। इस पुस्तकालय में ताड़ के पत्तों की पाण्डुलिपियों के दुर्लभ संग्रहों को दिखाया गया है |
ज़िला | तंजौर |
राज्य | तमिलनाडु |
स्थिति | तंजावुर महल के कैम्पस के अन्दर |
अन्य जानकारी | इस पुस्तकालय में खजूर के पत्तों पर तमिल, मराठी, तेलुगु, मराठी और अंग्रेज़ी सहित अनेक भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों व पुस्तकों का असाधारण संग्रह मौजूद है। |
सरस्वती महल पुस्तकालय (अंग्रेज़ी: Saraswathi Mahal Library, Thanjavur) तंजौर (तंजावुर), तमिलनाडु में स्थित है। यह एशिया में सबसे प्राचीनतम पुस्तकालयों में से एक है। सरस्वती पुस्तकालय तंजावुर पैलेस के कैम्पस के अन्तर्गत स्थित है। आगन्तुक संरक्षित पुस्तकों का अवलोकन कर सकते हैं और पुस्तकालय परिसर में बैठकर पढ़ सकते हैं। यह पुस्तकालय आम लोगों के लिए खुला है। पहले इस पुस्तकालय का नाम 'तंजावुर महाराजा शेरोफजी सरस्वती महल' था। यहाँ खजूर के पत्तों पर तमिल, मराठी, तेलुगु, मराठी और अंग्रेज़ी सहित अनेक भाषाओं में लिखी पांडुलिपियों व पुस्तकों का असाधारण संग्रह मौजूद है।
इतिहास
तंजावुर स्थित यह पुस्तकालय विश्व के चुनिंदा मध्यकालीन पुस्तकालयों में से एक है। मद्रास सरकार ने 1918 में इसे सार्वजनिक रूप दे दिया था। 'तमिलनाडु पंजीयन अधिनियम, 1975' के अंतर्गत इसका एक समुदाय के रूप में पंजीकरण 1986 में हुआ था।[1]
सरस्वती महल पुस्तकालय को तंजावुर के शासक के लिए 'रॉयल लाइब्रेरी' के रूप में प्रारम्भ किया गया था, जिसने 1535-1675 ईसा पश्चात् शासन किया था। मराठा शासक जिन्होंने तंजावुर पर 1675 ई. में कब्जा किया था, स्थानीय संस्कृति को संरक्षित किया और 1855 ई. तक रॉयल पैलेस लाइब्रेरी का विकास किया। मराठा शासक के मध्य शैरोफजी द्वितीय (1798-1832 ई.) सबसे अधिक प्रभावशाली थे, जो शिक्षण तथा कला की कई शाखाओं में एक प्रतिष्ठित दार्शनिक थे। अपनी प्रारम्भिक आयु में शैरोफजी ने जर्मन रेवरेंट शावर्तज के अधीन अध्ययन किया और अंग्रेज़ी, फ्रैंच, इतालवी तथा लातीन सहित कई भाषाओं का अध्ययन किया। उन्होंने पुस्तकालय की समृद्धि के लिए अत्यधिक रुचि प्रदर्शित की और उत्तर भारत तथा अन्य दूर-दराज के इलाकों में संस्कृत शिक्षण के सभी ख्याति प्राप्त शिक्षण केन्द्रों से कई कार्यों के संग्रहण, खरीद तथा प्रति प्राप्त करने के लिए कई पंडितों को नियोजित किया। 1918 से सरस्वती महल पुस्तकालय तमिलनाडु राज्य की सम्पत्ति बन गया। पुस्तकालय का सरकारी नाम महान रॉयल मराठा संरक्षक के सम्मान में रखा गया।
दुर्लभ संग्रह
इस पुस्तकालय में ताड़ के पत्तों की पाण्डुलिपियों के दुर्लभ संग्रहों को दिखाया गया है और तमिल, हिन्दी, तेलुगु, मराठी, अंग्रेज़ी तथा भारत की अन्य कुछ स्वदेशी भाषाओं में पेपर लिखे गए हैं। यह संग्रह 60,000 से अधिक खण्डों में है। यह पुस्तकालय संग्रहण से दुर्लभ पाण्डुलिपियों के प्रकाशन में किए जाने वाले प्रयासों को सहायता प्रदान करता है और साथ ही सभी खण्डों को माइक्रोफिल्म में संरक्षित रखने का सुनिश्चय करता है। इस पुस्तकालय ने पुस्तकालय गतिविधियों का कम्प्यूटरीकरण किया है। पाण्डुलिपियों की भारी मात्रा (39,300) संस्कृत में है जो ग्रन्थ, देवनागरी, नन्दीनगरी, तेलुगु तथा तमिल जैसी लिपियों में लिखी गयी है और जिसके शीर्षक साहित्य, संगीत तथा औषधि में हैं।
इस पुस्तकालय में 17वीं, 18वीं तथा 19वीं शताब्दियों के दक्षिण भारत, महाराष्ट्र से 3076 मराठी पाण्डुलिपियों का संग्रहण है। मराठी पाण्डुलिपियां मुख्यत: पेपर में हैं, लेकिन कुछ ही ताड़ पत्तों पर तेलुगु लिपि में लिखी गयी हैं। स्वामित्व में केवल 846 तेलुगु पाण्डुलिपियां हैं, जिनमें से अधिकतर ताड़ पत्तों में हैं। संग्रहण में 22 फ़ारसी तथा उर्दू पाण्डुलिपियां अधिकांशत: 19वीं शताब्दी की हैं। यह पुस्तकालय आयुर्वेद स्कॉलरों के मेडिकल रिकार्ड भी रखता है, जिसमें धनवंतरी खण्ड के अन्तर्गत वर्गीकृत पाण्डुलिपियों में रोगियों के मामलों के अध्ययन तथा साक्षात्कार शामिल हैं। इन पाण्डुलिपियों के अलावा पुस्तकालय में मराठा राज के 1342 बंडलों का रिकार्ड्स भी शामिल है। राज रिकार्ड मोदी लिपि[2] में मराठी भाषा में लिखे गए हैं।
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