पत्तम थानु पिल्लई

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
पत्तम थानु पिल्लई
पत्तम थानु पिल्लई
पत्तम थानु पिल्लई
पूरा नाम पत्तम थानु पिल्लई
जन्म 15 जुलाई, 1885
जन्म भूमि त्रिवेन्द्रम
मृत्यु 27 जुलाई, 1970
नागरिकता भारतीय
पार्टी कांग्रेस, प्रजा समाजवादी पार्टी
पद केरल के मुख्यमंत्री (तीन बार), पंजाब एवं आंध्र प्रदेश के राज्यपाल
कार्य काल मुख्यमंत्री (केरल)- 22 फ़रवरी 1960 से 25 सितम्बर 1962 तक

राज्यपाल (पंजाब)- सन् 1962 से सन् 1964 तक
राज्यपाल (आंध्र प्रदेश)- सन् 1964 से सन् 1968 तक

शिक्षा स्नातक, वकालत
विद्यालय महाराजा कालेज, त्रिवेंद्रम

पत्तम थानु पिल्लई (अंग्रेज़ी: Pattom Thanu Pillai, जन्म: 15 जुलाई, 1885; मृत्यु: 27 जुलाई, 1970) आधुनिक केरल प्रदेश के प्रमुख नेता थे। वह 22 फ़रवरी 1960 से 26 सितंबर 1962 तक केरल के मुख्यमंत्री रहे। स्वतंत्रता सेनानी और वकील रहे पिल्लई पहले कांग्रेस और बाद में प्रजा समाजवादी पार्टी यानी प्रसपा से जुड़े थे। वे पंजाब और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रहे।

जीवन परिचय

पत्तम थानु पिल्लई का जन्म 15 जुलाई, 1885 ई. को त्रिवेन्द्रम के एक 'नायर' परिवार में हुआ था। क़ानून की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक लिपिक और अध्यापक का काम किया। फिर 1915 से वे वकालत करने लगे। साथ ही सार्वजनिक कार्यों में भी भाग लेना शुरू किया। त्रावनकोर देशी रियासत थी। शेष भारत की भांति जनता वहां भी सत्ता में भागीदारी की मांग कर रही थी। इसके लिए वहां पत्तम थानु के नेतृत्व में कांग्रेस संगठन बना। उन्होंने वकालत छोड़ दी और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए 'सत्याग्रह' आरंभ कर दिया। पिल्लई गिरफ्तार कर लिए गए। 1939 में गांधी जी के समर्थन के साथ फिर आंदोलन हुआ और गिरफ्तारियां हुई। पत्तम थानु ने जब त्रावनकोर की मांग का विरोध किया, तब तो उनका एक पैर जेल के अंदर और एक बाहर रहने लगा।

राम मनोहर लोहिया से मतभेद

पिल्लई ने त्रावणकोर कांग्रेस पार्टी की स्थापना की और लोकप्रिय सरकार की स्थापना की मांग के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया। 1928 में ही पिल्लई त्रावणकोर विधानसभा के लिए चुन लिये गये थे। 1948 में वे त्रावणकोर के मुख्यमंत्री बने, पर उनका कुछ कांग्रेसियों से मतभेद हो गया और उन्होंने इस्तीफा दे दिया। वे प्रसपा में शामिल हो गये। पिल्लई 16 मार्च 1954 को दोबारा मुख्यमंत्री बने। प्रसपा सरकार कांग्रेस के समर्थन पर टिकी हुई थी। कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और 11 महीने में ही सरकार गिर गयी। इस बीच राम मनोहर लोहिया के साथ पिल्लई का विवाद हुआ। 1960 में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव के बाद पिल्लई फिर कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री बने, पर प्रसपा हाईकमान से पूछे बिना उन्होंने 1962 में पंजाब का राज्यपाल बनना स्वीकार कर लिया।

1954 में जब वे मुख्यमंत्री बने थे, तब उनके इस्तीफे की मांग को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई थी। इस्तीफे की मांग प्रसपा के महासचिव डॉ. लोहिया ने की थी। 11 अगस्त 1954 को त्रावणकोर कोचीन में पुलिस ने गोलियां चलायीं, जिससे चार व्यक्ति मारे गये। तब आचार्य जेबी कृपलानी प्रसपा के अध्यक्ष थे। डॉ लोहिया ने मांग की कि गोलीकांड के कारण पिल्लई मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दें। डॉ लोहिया की राय थी कि इस्तीफे के जरिये प्रसपा और जनता को व्यवहार और आचरण में प्रशिक्षित करना है। इस तरह का इस्तीफा अन्य पार्टियों को अपने व्यवहार में प्रभावित करता और पुलिस को अपने आचरण में इस गोलीकांड को लेकर प्रसपा में उच्चतम स्तर पर काफ़ी चिंतन और आत्ममंथन हुआ, पर इस्तीफे के पक्ष में राय नहीं बनी। अत: डॉ लोहिया ने अगस्त में ही प्रसपा की कार्यसमिति की सदस्यता और दल के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया। उनके समर्थकों ने भी पार्टी के पदों से इस्तीफा दे दिया। पार्टी ने कहा कि पार्टी इस गोलीकांड के लिए जनता से माफी मांगती है, पर मुख्यमंत्री का इस्तीफा नहीं होगा। उधर, मुख्यमंत्री पिल्लई ने कहा कि सरकार के बारे में राय बनाने के लिए जनता सबसे सक्षम न्यायाधीश है। उनकी सरकार काफ़ी लोकप्रिय है और सरकार के इस्तीफे का कोई कारण नहीं है।

जे.बी. कृपलानी ने कहा कि गांधीजी तक ने पुलिस गोलीबारी के औचित्य की संभावना से इनकार नहीं किया। कांग्रेसी सरकार में जब पुलिस गोलीबारी हुई, तो उन्होंने उस सरकार से इस्तीफा नहीं मांगा। डॉ लोहिया के बारे में कृपलानी ने कहा कि हम लोगों के बीच एक नयी प्रतिभा का उदय हुआ है, लेकिन इसकी भी एक सीमा होनी चाहिए। जयप्रकाश नारायण ने भी इस गोली कांड पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस शासित राज्यों में पुलिस गोलीकांड होने पर क्या कांग्रेस ने इस तरह का प्रस्ताव पारित किया, जैसा प्रस्ताव प्रसपा ने पास किया है?

जब एक समाजवादी सरकार के अंदर गोलीबारी हुई, तो पूरी पार्टी टूट गयी और मुद्दे पर विचार के लिए पार्टी का अधिवेशन बुलाया गया। पर इन तर्को से लोहिया सहमत नहीं थे। उन्होंने एक जनसभा में कहा कि कोई भी सरकार, जो अपनी पुलिस की राइफल पर निर्भर करती है, जनता का भला नहीं कर सकती। बाद में डॉ लोहिया ने नयी पार्टी बनायी और उसे एक सिद्धांतनिष्ठ पार्टी के रूप में चलाया। उनके गैरकांग्रेसवाद के नारे के कारण 1967 के चुनाव में नौ राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं रही। ऐसा बहुतों का मानना है कि 1967 में डॉ लोहिया का निधन नहीं हुआ होता, तो वे यह दिखा देते कि कैसे किसी सरकार को सिद्धांतनिष्ठ ढंग से चलाया जा सकता है।[1]

पदभार

  • 1947 में जिस समय रियासत ने 'भारतीय संघ' में विलय का फैसला किया पत्तम थानु जेल के अंदर ही थे। वे रिहा हुए और 1948 में हुए निर्वाचन के बाद उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला। लेकिन मतभेद के कारण उन्हें शीघ्र ही इस्तीफा देना पड़ा।
  • 1954 में 'प्रजा सोशलिस्ट पार्टी' के टिकट पर चुन कर वे कांग्रेस के सहयोग से फिर मुख्यमंत्री बने। लेकिन वर्ष भर में ही कांग्रेस ने सहयोग वापस ले लिया और मंत्रिमण्डल गिर गया।
  • 1960 में नवगठित केरल राज्य के वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। इस प्रकार उन्हें आधुनिक केरल का निर्माता कहा जा सकता है।
  • 1962 में पत्तम थानु को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया।
  • 1964 से 1968 तक वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे।

निधन

27 जुलाई, 1970 में पत्तम थानु पिल्लई का देहांत हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पिल्लई बनाम लोहिया (हिंदी) प्रभात ख़बर। अभिगमन तिथि: 15 जुलाई, 2013।

लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 453।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

भारतीय राज्यों में पदस्थ मुख्यमंत्री
क्रमांक राज्य मुख्यमंत्री तस्वीर पार्टी पदभार ग्रहण
1. अरुणाचल प्रदेश पेमा खांडू
भाजपा 17 जुलाई, 2016
2. असम हिमंता बिस्वा सरमा
भाजपा 10 मई, 2021
3. आंध्र प्रदेश वाई एस जगनमोहन रेड्डी
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 30 मई, 2019
4. उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ
भाजपा 19 मार्च, 2017
5. उत्तराखण्ड पुष्कर सिंह धामी
भाजपा 4 जुलाई, 2021
6. ओडिशा नवीन पटनायक
बीजू जनता दल 5 मार्च, 2000
7. कर्नाटक सिद्धारमैया
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 20 मई, 2023
8. केरल पिनाराई विजयन
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी 25 मई, 2016
9. गुजरात भूपेन्द्र पटेल
भाजपा 12 सितम्बर, 2021
10. गोवा प्रमोद सावंत
भाजपा 19 मार्च, 2019
11. छत्तीसगढ़ विष्णु देव साय
भारतीय जनता पार्टी 13 दिसम्बर, 2023
12. जम्मू-कश्मीर रिक्त (राज्यपाल शासन) लागू नहीं 20 जून, 2018
13. झारखण्ड हेमन्त सोरेन
झारखंड मुक्ति मोर्चा 29 दिसम्बर, 2019
14. तमिल नाडु एम. के. स्टालिन
द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम 7 मई, 2021
15. त्रिपुरा माणिक साहा
भाजपा 15 मई, 2022
16. तेलंगाना अनुमुला रेवंत रेड्डी
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस 7 दिसंबर, 2023
17. दिल्ली अरविन्द केजरीवाल
आप 14 फ़रवरी, 2015
18. नागालैण्ड नेफियू रियो
एनडीपीपी 8 मार्च, 2018
19. पंजाब भगवंत मान
आम आदमी पार्टी 16 मार्च, 2022
20. पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी
तृणमूल कांग्रेस 20 मई, 2011
21. पुदुचेरी एन. रंगास्वामी
कांग्रेस 7 मई, 2021
22. बिहार नितीश कुमार
जदयू 27 जुलाई, 2017
23. मणिपुर एन. बीरेन सिंह
भाजपा 15 मार्च, 2017
24. मध्य प्रदेश मोहन यादव
भाजपा 13 दिसंबर, 2023
25. महाराष्ट्र एकनाथ शिंदे
शिव सेना 30 जून, 2022
26. मिज़ोरम लालदुहोमा
जोरम पीपल्स मूवमेंट 8 दिसम्बर, 2023
27. मेघालय कॉनराड संगमा
एनपीपी 6 मार्च, 2018
28. राजस्थान भजन लाल शर्मा
भारतीय जनता पार्टी 15 दिसम्बर, 2023
29. सिक्किम प्रेम सिंह तमांग
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा 27 मई, 2019
30. हरियाणा नायब सिंह सैनी
भाजपा 12 मार्च, 2024
31. हिमाचल प्रदेश सुखविंदर सिंह सुक्खू
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 11 दिसम्बर, 2022