सौभाग्यशयन व्रत
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- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- सौभाग्यशयन व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया पर पंचगव्य एवं सुगन्धित जल से गौरी एवं शिव की प्रतिमाओं का स्नान कराना चाहिए।
- सौभाग्यशयन व्रत के दिन पर गौरी का जन्म हुआ था।
- देवी एवं शिव के आपाद मस्तक एवं केश को प्रणाम करना चाहिए।
- प्रतिमाओं के समक्ष सौभाग्याष्टक करना चाहिए।
- दूसरे दिन प्रात: स्वर्णिम प्रतिमाओं का दान करना चाहिए।
- एक वर्ष तक प्रत्येक तृतीया पर यही विधि करनी चाहिए।
- चैत्र से आगे प्रत्येक मास में विभिन्न पदार्थों का सेवन, विभिन्न मंत्रों का प्रयोग, देवी के विभिन्न नामों का उपयोग, विभिन्न पुष्पों का प्रयोग करना चाहिए।
- एक वर्ष तक एक फल का त्याग करना चाहिए।
- अन्त में सामग्री के साथ एक पलंग, एक स्वर्णिम गाय एवं बैल का दान करना चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि सौभाग्यशयन व्रत से सौभाग्य, स्वास्थ्य, सौन्दर्य, दीर्घायु की प्राप्ति होती है।[1]
- ये श्लोक पद्मपुराण[2] एवं भविष्योत्तरपुराण[3] में भी पाये जाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मत्स्य पुराण (60|1-49); कृत्यकल्पतरु (व्रत खण्ड 56-60), मत्स्यपुराण (60|14-48 का उद्धरण); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 444-449, मत्स्यपुराण 60|14-48 का उद्धरण)
- ↑ (पद्मपुराण 5|24|222-278)
- ↑ (भविष्योत्तरपुराण 25|1-42)
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