नामकरण
शांखायन श्रौतसूत्र का ग्रन्थ नाम प्रत्येक अध्याय के अन्त में लिखी गई पुष्पिका से निर्धारित किया गया है। शांखायन श्रौतसूत्र की आनर्तीयकृत टीका के अनुसार इस ग्रन्थ के कर्त्ता सुयज्ञाचार्य हैं।[1]
संस्करण
वरदत्त-सुत आनर्तीय की टीका सहित शांखायन श्रौतसूत्र का हिल्लेब्राण्ड्ट् ने सम्पादन किया है जो कलकत्ता से चार भागों में 1888-1899 में प्रकाशित है। इसमें 17 और 18 अध्यायों पर गोविन्द की टीका है। इस ग्रन्थ का अंग्रेज़ी में अनुवाद कालन्द ने किया जिसे लोकेश चन्द्र ने सम्पादित किया। यह नागपुर से 1953 में प्रकाशित है। इस संस्करण में शांखायन श्रौतसूत्र के विषय में एक प्रस्तावना भी है।
ब्राह्मणगत आधार
अनेक स्थानों पर शांखायन श्रौतसूत्र कौषीतकि ब्राह्मण का अनुसरण करता है; उदाहरणार्थ शांखायन श्रौतसूत्र[2] में आया 'वार्त्रघ्न: पूर्व आज्य भाग:' वाक्य कौषीतकि ब्राह्मण[3] पर आधृत है। इसी तरह शांखायन श्रौतसूत्र[4] गत 'नवानुयाजा:' वाक्य कौषीतकि ब्राह्मण[5] पर आधृत है, शांखायन श्रौतसूत्र में कभी-कभी शतपथ ब्राह्मण का अनुसरण किया गया है। जैसे कि शांखायन श्रौत सूत्रगत 'असाविति ज्येष्ठस्य पुत्रस्य नामाभिव्यावृत्य यावन्तो वा भवन्ति। आत्मनोऽजातपुत्र:'[6] का आधार शतपथ ब्राह्मण[7] गत 'अथ पुत्रस्य नाम ग्रह्णाति। इदं मेऽयंपूत्रोऽनुसंतनवदिति। यदि पुत्रा न स्यादथात्मन एव नाम ग्रह्णीयात्' शांखायन श्रौतसूत्र[8] 'सुब्रह्मण्याप्रतीकं त्रिरूपांश्वभिव्याहृत्य वाचं विसृजन्ते।' शांखायन श्रौतसूत्र[9] गत 'यदि सत्राय दीक्षितोऽथ साम्युत्तिष्ठेत् सोममपभज्य राजानं विश्वजितातिरात्रेण यजेत सर्वस्तोमेन सर्वपृष्ठेन सर्ववेदसदक्षिणेन' ताण्ड्यमहाब्राह्मण[10] में 'यदि सत्राय दीक्षेरन अथ साम्युत्तिष्ठेत सोममपभज्य विश्वजितातिरात्रेण यजेत सर्ववेदसेन' रूप में प्राप्य है।
ऐसे कुछ स्थल हैं जिनसे अनुमान किया जा सकता है कि कौषीतकि ब्राह्मण शांखायन श्रौतसूत्र को गृहीत मानकर चलता है। उदाहरणार्थ शांखायन श्रौतसूत्र[11] में आया है 'अयाज्ययज्ञं जातवेदा अन्तर: पूर्वो अस्मिन्निषद्य। सन्वन्सनिं सुविमुचा विमुञ्चधेह्यस्मभ्यं द्रविणं जातवेद:।' कौषीतकि ब्राह्मण में यह मन्त्र आधा ही उद्धृत है लेकिन शांखायन श्रौतसूत्र में यह मन्त्र पूर्ण रूप से दिया गया है, इससे कालन्द ने[12] यह अनुमान किया है कि शांखायन श्रौतसूत्र कौषीतकि ब्राह्मण से भी अधिक प्राचीन हो सकता है। उसी तरह शांखायन श्रौतसूत्र[13] में यह मन्त्र आया है कि− 'भद्रादभि श्रेय: प्रेहि बृहस्पति: पुरएता ते अस्तु। अथेमवस्य वर आ पृथिव्या आरेशत्रून्कृणुहि सर्ववीर:।।' शांखायन श्रौतसूत्र में यह मन्त्र पूर्ण रूप से दिया गया है जब कि कौषीतकि ब्राह्मण[14] में इस मन्त्र के केवल प्रथम दो पाद ही दिए गए हैं। शांखायन श्रौतसूत्र[15] में जो निगद मिलता है वह कौषीतकि ब्राह्मण[16] में पूर्ण रूप से उपलब्ध है। यदि शांखायन श्रौतसूत्र कौषीतकि ब्राह्मण से प्राचीन होता तो वह यह निगद पूर्ण रूप से कैसे उद्धृत करता? इससे भी यह सूचित होता है कि शांखायन श्रौतसूत्र कौषीतकि ब्राह्मण से प्राचीन है। खोन्दा का इस सन्दर्भ में अनुमान है कि ये दोनों ग्रन्थ समकालीन हैं, अथवा शब्द रचना और कल्पना−विन्यास दोनों पारस्परिक होंगे और ब्राह्मण ग्रन्थ का प्रवक्ता उससे प्रभावित होगा।[17]
विषय−वस्तु और कौषीतकि ब्राह्मण से सम्बन्ध
शांखायन श्रौतसूत्र दर्शपूर्णमास (कौषीतकि ब्राह्मण 4) शांखायन श्रौतसूत्र[18] अग्न्याधेय, पुनराधेय (कौषीतकि ब्राह्मण) शांखायन श्रौतसूत्र[19] अग्निहोत्र (कौषीतकि ब्राह्मण 2) शांखायन श्रौतसूत्र[20] विविध इष्टियाँ (कौषीतकि ब्राह्मण 3) शांखायन श्रौतसूत्र[21] −चातुर्मास्य (कौषीतकि ब्राह्मण 5) शांखायन श्रौतसूत्र[22] प्रायश्चित्त[23], शांखायन श्रौतसूत्र 4 − पिण्डपितृयज्ञ, शूलगव इत्यादि शांखायन श्रौतसूत्र 5−8 अग्निष्टोम[24] शांखायन श्रौतसूत्र 9 − उक्थ्य, षोडशिन्, अतिरात्र[25] शांखायन श्रौतसूत्र 10 − द्वादशाह[26], शांखायन श्रौतसूत्र चतुर्विंश अभिप्लव षडह, अभिजित, स्वर सामन, विषुवत, विश्वजित[27], शांखायन श्रौतसूत्र 12 − होत्रक के शस्त्र[28] शांखायन श्रौतसूत्र[29] प्रायश्चित्त इत्यादि 3.14−29 सत्रयागगवामयन इत्यादि।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.2.18 स्वमतस्थापनार्थं सुयज्ञाचार्य: श्रुतिमुदाजहार
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र, 2.5.12
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण, 1.4
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र, 3.13.25
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण, 5.1
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र 2.12.10-11
- ↑ शतपथ ब्राह्मण, 1.9.3.21
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र, 10.21.17
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र, 13.13.1
- ↑ ताण्ड्यमहाब्राह्मण, 9.3.1
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र, 1.15.17
- ↑ अनुवाद पृ. 21
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र, 5.6.2
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण, 7.10
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र, 7.6.2
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण, 28.5.6
- ↑ Ritual Sutras, पृष्ठ 530−531
- ↑ 2.1.5
- ↑ 2.6.7
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र 23.1.12
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र 3.13−18
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र 3.19−21
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण 26−3−6
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण 7−16−18−14
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण 16.11−17−17.9, 18−1−5
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण 20, 21, 26−7−17, 27
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण, 19, 22, 23, 24, 25
- ↑ कौषीतकि ब्राह्मण, 28−30
- ↑ शांखायन श्रौतसूत्र 13.1−13
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