शमी पूजा
शमी पूजा (अंग्रेज़ी: Shami Puja) हिंदू धर्म में कई वृक्षों को साक्षात देवताओं का अवतार माना गया है। शमी भी एक ऐसा ही पेड़ है। विजयादशमी (आश्विन माह में शुक्ल दशमी) पर शमी वृक्ष की पूजा की परंपरा है। मान्यता है कि श्रीराम ने भी रावण का वध करने से पहले शमी वृक्ष की पूजा की थी। मान्यता के अनुसार, शमी वृक्ष में शिव का वास होता है, वहीं शनि देव की कृपा पाने के लिए भी शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। शमी वृक्ष पूजा की परंपरा आज भी अनेक घरों में निभाई जाती है।
महत्त्व
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। दशहरे के पर्व को अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था। इसी कारण इस दिन को काफी शुभ माना जाता है। इस दिन सुख-समृद्धि के साथ मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शास्त्रों के अनुसार, दशहरा के दिन जिस तरह से नीलकंठ देखना शुभ माना जाता है। उसी तरह इस शमी के पेड़ और अपराजिता के फूल की पूजा करना शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के समय पांडवों ने अपने अस्त्र और शस्त्र शमी के वृक्ष पर छिपाए थे, जिसके बाद उन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। ऐसे में दशहरे के दिन प्रदोष काल के दौरान शमी के पेड़ की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है।
भगवान शिव को शमी के फूल अति प्रिय माने जाते हैं। रोजाना पूजा के वक्त उन्हें यह फूल अर्पित करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। शमी के पेड़ की रोजाना पूजा करने से जीवन के संकटों से मुक्ति मिलती है और सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि
- सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ कपड़े धारण कर लें।
- शमी वृक्ष की जड़ में गंगाजल, नर्मदा जल या शुद्ध जल अर्पित करें।
- उसके बाद तेल या घी का दीपक जलाकर उसके नीचे अपने शस्त्र रख दें।
- अब धूप, दीप, मिठाई अर्पित कर आरती करें।
पूजा करने के बाद अगर पेड़ के पास कुछ पत्ते मिले तो उसे प्रसाद के रूप में लें। साथ ही बचे हुए पत्तों को लाल कपड़े में बांधकर हमेशा के लिए अपने पास रख लें। इससे आपके जीवन की परेशानियां दूर होंगी और शत्रुओं से छुटकारा मिलेगा।[1]
मंत्र
‘शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।’
इसका अर्थ है- हे शमी वृक्ष आप पापों को नाश और दुश्मनों को हराने वाले है। आपने ही शक्तिशाली अर्जुन का धनुश धारण किया था। साथ ही आप प्रभु श्रीराम के अतिप्रिय है। ऐसे में आज हम भी आपकी पूजा कर रहे हैं। हम पर कृपा कर हमें सच्च व जीत के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दें। साथ ही हमारी जीत के रास्ते पर आने वाली सभी बांधाओं को दूर कर हमें जीत दिलाए। प्रार्थना करने के बाद शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखें और फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड़ के पास मिट्टी व कुछ पत्ते घर लेकर आये।
लाभ
- दशहरे के दिन इसकी पूजा करने से व्यक्ति कई तरह के कष्टों से बच जाता है और हर क्षेत्र में विजयी रहता है।
- शमी वृक्ष की पूजा करने से शनि ग्रह से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं। जैसे- शनि का अर्धशतक, ढैया आदि।
- विजयादशमी के दिन शमी के पेड़ की पूजा करने से घर में तंत्र-मंत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
- शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्रों का भी प्रयोग करें। इससे सभी प्रकार की परेशानी दूर होती है और सुख, शांति और समृद्धि आती है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1
दशहरे पर जरूर करें शमी वृक्ष की पूजा (हिंदी) zeenews.india.com। अभिगमन तिथि: 05 अक्टूबर, 2022। सन्दर्भ त्रुटि:
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