सर्वकामावाप्ति व्रत
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- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- सर्वकामावाप्तिव्रत में कार्तिक से 12 मालाएँ (सरणियाँ) होती हैं।
- कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ने वाली कृत्तिका पर उपवास एवं एक वर्ष तक गंध, पुष्पों आदि से नरसिंह पूजा करनी चाहिए।
- वर्ष के अन्त में श्वेत बछड़े के साथ एक श्वेत गाय एवं चाँदी का दान देना चाहिए।
- शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
- मार्गशीर्ष से आगे आश्विन तक सर्वकामावाप्तिव्रत किया जाता है।
- उस नक्षत्र पर उपवास जिसके उपरान्त पूर्णिमाएँ ज्ञापित होती हैं तथा कृष्ण, उनके रूपों एवं अवतारों की विभिन्न नामों से जैसे- मार्गशीर्ष में अनन्त, पौष में बलदेव, माघ में वराह की पूजा करनी चाहिए।
- वर्ष के अन्त में किये गये दान विभिन्न होते हैं।
- इससे सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
- पाप नष्ट हो जाते हैं और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 655-659, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)
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