श्रेणी:उत्तरकाण्ड
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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- अंगद बचन बिनीत सुनि
- अंडकोस प्रति प्रति निज रूपा
- अखिल बिस्व यह मोर उपाया
- अग जग जीव नाग नर देवा
- अग जगमय जग मम उपराजा
- अगुन अदभ्र गिरा गोतीता
- अति आदर खगपति कर कीन्हा
- अति दीन मलीन दुखी नितहीं
- अति दुर्लभ कैवल्य परम पद
- अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी
- अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई
- अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं
- अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई
- अब गृह जाहु सखा
- अब जाना मैं अवध प्रभावा
- अब श्रीराम कथा अति पावनि
- अब सुनु परम बिमल मम बानी
- अबला कच भूषन भूरि छुधा
- अबिरल भगति बिसुद्ध
- अब्यक्तमूलमनादि तरु त्वच
- अमित रूप प्रगटे तेहि काला
- अरुन पानि नख करज मनोहर
- अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा
- अवगुन सिंधु मंदमति कामी
- अवध प्रभाव जान तब प्रानी
- अवधपुरी अति रुचिर बनाई
- अवधपुरी प्रभु आवत जानी
- अवधपुरी बासिन्ह कर
- अस कहि चले देवरिषि
- अस कहि चलेउ बालिसुत
- अस कहि मुनि बसिष्ट गृह आए
- अस बिचारि जोइ कर सतसंगा
- अस बिचारि मतिधीर
- अस बिचारि हरि भगत सयाने
- अस बिबेक राखेहु मन माहीं
- असरन सरन बिरदु संभारी
- असि रघुपति लीला उरगारी
- असुभ बेष भूषन धरें
- अहंकार अति दुखद डमरुआ
- अहनिसि बिधिहि मनावत रहहीं
- अहह धन्य लछिमन बड़भागी
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- ए सब लच्छन बसहिं जासु उर
- एक एक ब्रह्मांड महुँ
- एक पिता के बिपुल कुमारा
- एक बार अतिसय सब
- एक बार गुर लीन्ह बोलाई
- एक बार बसिष्ट मुनि आए
- एक बार रघुनाथ बोलाए
- एक बार हर मंदिर
- एक ब्याधि बस नर
- एतना मन आनत खगराया
- एवमस्तु कहि रघुकुलनायक
- एहि कर होइ परम कल्याना
- एहि तन कर फल बिषय न भाई
- एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ
- एहि बिधि नगर नारि नर
- एहि बिधि लेसै दीप तेज
- एहि बिधि सकल जीव जग रोगी
- एहि महँ रुचिर सप्त सोपाना
- एहि संदेस सरिस जग माहीं
- एहिं कलिकाल न साधन दूजा
- एहिं तन राम भगति मैं पाई
क
- कंचन कलस बिचित्र सँवारे
- कछु तेहि ते पुनि मैं नहिं राखा
- कछुक राम गुन कहेउँ बखानी
- कथा अरंभ करै सोइ चाहा
- कथा सकल मैं तुम्हहि सुनाई
- कथा समस्त भुसुंड बखानी
- कपि तव दरस सकल दुख बीते
- कपिहि तिलक करि प्रभु
- कबहुँ कि दुःख सब कर हित ताकें
- कबहूँ काल न ब्यापिहि तोही
- कबि बृंद उदार दुनी न सुनी
- कमठ पीठ जामहिं बरु बारा
- करउँ कृपानिधि एक ढिठाई
- करउँ बिचार बहोरि बहोरी
- करउँ सदा रघुपति गुन गाना
- करहिं आरती आरतिहर कें
- करि तड़ाग मज्जन जलपाना
- करि दंडवत सप्रेम द्विज
- करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ
- कलबल बचन अधर अरुनारे
- कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
- कलि मल मथन नाम ममताहन
- कलिकाल बिहाल किए मनुजा
- कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना
- कलिजुग सम जुग आन
- कलिमल ग्रसे धर्म सब
- कहइ भसुंड सुनहु खगनायक
- कहत कठिन समुझत कठिन
- कहहिं बचन मृदु बिप्र अनेका
- कहहिं संत मुनि बेद पुराना
- कहहु कवन बिधि भा संबादा
- कहहु भगति पथ कवन प्रयासा
- कहि दंडक बन पावनताई
- कहि बिराध बध जेहि
- कहु खगेस अस कवन अभागी
- कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी
- कहेउँ ग्यान सिद्धांत बुझाई
- कहेउँ नाथ हरि चरित अनूपा
- कहेउँ परम पुनीत इतिहासा
- कहेहु दंडवत प्रभु सैं
- काकभसुंडि मागु बर
- काम क्रोध मद लोभ परायन
- काम क्रोध मद लोभ रत
- कामिहि नारि पिआरि जिमि
- कारन कवन देह यह पाई
- काल कराल ब्याल खगराजहि
- काल कर्म गुन दोष सुभाऊ
- काल कोटि सत सरिस
- काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही
- कालरूप तिन्ह कहँ मैं भ्राता
- कीट मनोरथ दारु सरीरा
- कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई
- कीन्ह राम मोहि बिगत बिमोहा
- कुलवंति निकारहिं नारि सती
- कुलिसहु चाहि कठोर अति
- कूजहिं खग मृग नाना बृंदा
- कृतजुग त्रेताँ द्वापर
- कृतजुग सब जोगी बिग्यानी
- कृपासिंधु जब मंदिर गए
- को तुम्ह तात कहाँ ते आए
- को हम कहाँ बिसरि तन गए
- कोउ बिश्राम कि पाव
- कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई
- कोटि बिरक्त मध्य श्रुति कहई
- कोटिन्ह चतुरानन गौरीसा
- कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे
- कोमलचित दीनन्ह पर दाया
- कौसल्या के चरनन्हि पुनि
- कौसल्यादि मातु सब
- कौसल्यादि मातु सब धाई
- क्रोध कि द्वैतबुद्धि बिनु
ग
- गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा
- गयउ मोर संदेह सुनेउँ
- गयउँ उजेनी सुनु उरगारी
- गरल सुधासम अरि हित होई
- गरुड़ गिरा सुनि हरषेउ कागा
- गरुड़ महाग्यानी गुन रासी
- गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी
- गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा
- गिरिजा संत समागम सम
- गिरिजा सुनहु बिसद यह कथा
- गुंजत मधुकर मुखर मनोहर
- गुन कृत सन्यपात नहिं केही
- गुन सील कृपा परमायतनं
- गुर के बचन सुरति करि
- गुर नित मोहि प्रबोध दुखित
- गुर पद प्रीति नीति रत जेई
- गुर बिनु भव निध तरइ न कोई
- ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका
- ग्यान गिरा गोतीत अज
- ग्यान निधान अमान मानप्रद
- ग्यान पंथ कृपान कै धारा
- ग्यान बिबेक बिरति बिग्याना
- ग्यान बिराग जोग बिग्याना
- ग्यानहि भगतिहि अंतर केता
- ग्यानी तापस सूर कबि
- ग्यानी भगत सिरोमनि