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'''लैटेराइट मिट्टी''' उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में पायी जाती है। यह [[मिट्टी]] प्राय: उन उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में पायी जाती हैं, जहाँ ऋतुनिष्ठ [[वर्षा]] होती है।
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*इस मिट्टी का [[रंग]] [[लाल रंग|लाल]] होता है, लेकिय यह 'लाल मिट्टी' से अलग होती है।
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==स्थिति==
*लैटेराइट मिट्टी भारी [[वर्षा]] और ऊँचे [[तापमान]] वाले इलाकों में पाई जाती है।
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लैटेराइट मिट्टी भारी [[वर्षा]] और ऊँचे [[तापमान]] वाले इलाकों में पाई जाती है। इस मिट्टी का विस्तार मुख्यतः दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र के उच्च भागों में हुआ है। इसके प्रमुख क्षेत्र हैं - [[मध्य प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]], पूर्वी तथा पश्चिमी घाट पहाड़ों के समीपवर्ती क्षेत्र, [[बिहार]] में [[राजमहल पहाड़ियाँ|राजमहल की पहाड़ियाँ]], [[कर्नाटक]], [[केरल]], [[उड़ीसा]] तथा [[असम]] राज्य के कुछ भाग। इस मिट्टी का सर्वाधिक विस्तार केरल राज्य में पाया जाता हे।
*यह मिट्टी अम्लीय होती है, जिसका PH मान 4.0-5.0 तक होता है।
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==संरचन==
*यह [[कर्नाटक]], [[केरल]], [[तमिलनाडु]], [[असम]], [[मेघालय]] सहित देश के अन्य भागों में भी पाई जाती है।
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देश के 1.5 लाख वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र पर विस्तृत लैटराइट मिट्टी का निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता एवं शुष्कता के क्रमिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है। इस विभिन्नता से निक्षालन के प्रक्रिया अधिक क्रियाशील रहने के कारण शैलों में सिलिका की मात्रा कम पायी जाती है।  
*लैटेराइट मिट्टी '[[कहवा]]' एवं 'काजू' उत्पादन के लिए उपयोगी है।
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शैलें की टूट-फूट से निर्मित होने वाली इस मिट्टी को गहरी लाल लैटराइट तथा भूमिगत जल वाली लैटराइट के रूप में वर्गीकत किया जाता है। गहरी लाल लैटराइट में लौह आक्साइडों तथा पोटाश की मात्रा अत्यधिक मिलती है। इसमें उर्वरता कम होती है किन्तु निचलें भागों में कुछ खेती की जाती है। सफेद लैटराइट की उर्वरता सबसे कम होती है और केओलिन की अधिकता के कारण इसका [[रंग]] [[सफेद रंग|सफेद]] हो जाता है। भूमिगत जल वाली लैटराइट मिट्टी काफी उपजाऊ होती है, क्योंकि वर्षाकाल में मिट्टी के ऊपरी भाग में स्थित लौट-आक्साइड जल के साथ घुलकर नीचे चले जाते हैं।
  
 
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06:34, 23 अप्रैल 2012 का अवतरण

लैटेराइट मिट्टी उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में पायी जाती है। यह मिट्टी प्राय: उन उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में पायी जाती हैं, जहाँ ऋतुनिष्ठ वर्षा होती है। इस मिट्टी का रंग लाल होता है, लेकिय यह 'लाल मिट्टी' से अलग होती है। यह मिट्टी अम्लीय होती है, जिसका PH मान 4.0-5.0 तक होता है। लैटेराइट मिट्टी 'कहवा' एवं 'काजू' उत्पादन के लिए उपयोगी है। लैटेराइट मिट्टी में चावल, कपास, मोटे अनाज, गेहूँ, चाय, कहवा, रबड़ तथा सिनकोना आदि पैदा होते हैं।

स्थिति

लैटेराइट मिट्टी भारी वर्षा और ऊँचे तापमान वाले इलाकों में पाई जाती है। इस मिट्टी का विस्तार मुख्यतः दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र के उच्च भागों में हुआ है। इसके प्रमुख क्षेत्र हैं - मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पूर्वी तथा पश्चिमी घाट पहाड़ों के समीपवर्ती क्षेत्र, बिहार में राजमहल की पहाड़ियाँ, कर्नाटक, केरल, उड़ीसा तथा असम राज्य के कुछ भाग। इस मिट्टी का सर्वाधिक विस्तार केरल राज्य में पाया जाता हे।

संरचन

देश के 1.5 लाख वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र पर विस्तृत लैटराइट मिट्टी का निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता एवं शुष्कता के क्रमिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है। इस विभिन्नता से निक्षालन के प्रक्रिया अधिक क्रियाशील रहने के कारण शैलों में सिलिका की मात्रा कम पायी जाती है।

शैलें की टूट-फूट से निर्मित होने वाली इस मिट्टी को गहरी लाल लैटराइट तथा भूमिगत जल वाली लैटराइट के रूप में वर्गीकत किया जाता है। गहरी लाल लैटराइट में लौह आक्साइडों तथा पोटाश की मात्रा अत्यधिक मिलती है। इसमें उर्वरता कम होती है किन्तु निचलें भागों में कुछ खेती की जाती है। सफेद लैटराइट की उर्वरता सबसे कम होती है और केओलिन की अधिकता के कारण इसका रंग सफेद हो जाता है। भूमिगत जल वाली लैटराइट मिट्टी काफी उपजाऊ होती है, क्योंकि वर्षाकाल में मिट्टी के ऊपरी भाग में स्थित लौट-आक्साइड जल के साथ घुलकर नीचे चले जाते हैं।


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