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प्राचीन काल से चली आ रही यहाँ की एक स्थापित परंपरा के अनुसार माँ वाराही धाम में श्रावणी [[पूणिमा]] ([[रक्षाबंधन]] के दिन) को यहाँ के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर (जिन्हे खाम कहा जाता है, क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल,) दो समूहों में बंट जाते हैं और इसके बाद होता है एक युद्ध जो पत्थरों को [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] के रूप में उपयोग करते हुये खेला जाता है।
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प्राचीन काल से चली आ रही यहाँ की एक स्थापित परंपरा के अनुसार माँ वाराही धाम में श्रावणी [[पूर्णिमा]] ([[रक्षाबंधन]] के दिन) को यहाँ के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर (जिन्हे खाम कहा जाता है, क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल,) दो समूहों में बंट जाते हैं और इसके बाद होता है एक युद्ध जो पत्थरों को [[अस्त्र शस्त्र|अस्त्र]] के रूप में उपयोग करते हुये खेला जाता है।
 
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==बग्वाल दिवस==
 
==बग्वाल दिवस==
इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल [[कुमाऊँ]] की [[संस्कृति]] का अभिन्न अंग है। [[श्रावण]] [[मास]] में पूरे पखवाडे तक यहाँ मेला लगता है। जहाँ सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात बग्वाल का दिवस होता है। बढती व्यवसायिकता ने कुमाऊँ की संस्कृति की इस प्रमुख परंपरा ने अपनी चपेट में ले लिया है जिसका जीता जागता उदाहरण मुख्य बग्वाल स्थल (पत्थर मार युद्ध स्थल) के ठीक बीचों बीच लगा एक होर्डिग है जिसे लगाया तो गया है, [[देवीधुरा मेला|देवीधुरा मेले]] में आने वाले दर्शनार्थियों के स्वागत पट के रूप मे परन्तु इस होर्डिग पर प्रायोजकों के विज्ञापन के साथ यह स्वागत संदेश छोटे छोटे शब्दों में ठीक उसी तरह लिखा हुआ प्रतीत होता है जैसा सिगरेट की डिब्बियों पर लिखा हुआ चेतावनी संदेश।
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इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल [[कुमाऊँ]] की [[संस्कृति]] का अभिन्न अंग है। [[श्रावण]] [[मास]] में पूरे पखवाड़े तक यहाँ मेला लगता है। जहाँ सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात 'बग्वाल का दिवस' होता है। बढती व्यवसायिकता ने कुमाऊँ की संस्कृति की इस प्रमुख परंपरा ने अपनी चपेट में ले लिया है जिसका जीता जागता उदाहरण मुख्य बग्वाल स्थल (पत्थर मार युद्ध स्थल) के ठीक बीचों बीच लगा एक होर्डिग है जिसे लगाया तो गया है, [[देवीधुरा मेला|देवीधुरा मेले]] में आने वाले दर्शनार्थियों के स्वागत पट के रूप मे परन्तु इस होर्डिग पर प्रायोजकों के विज्ञापन के साथ यह स्वागत संदेश छोटे छोटे शब्दों में ठीक उसी तरह लिखा हुआ प्रतीत होता है जैसा सिगरेट की डिब्बियों पर लिखा हुआ चेतावनी संदेश।
  
  

11:43, 25 सितम्बर 2012 का अवतरण

बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) का स्थल

प्राचीन काल से चली आ रही यहाँ की एक स्थापित परंपरा के अनुसार माँ वाराही धाम में श्रावणी पूर्णिमा (रक्षाबंधन के दिन) को यहाँ के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर (जिन्हे खाम कहा जाता है, क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल,) दो समूहों में बंट जाते हैं और इसके बाद होता है एक युद्ध जो पत्थरों को अस्त्र के रूप में उपयोग करते हुये खेला जाता है।

बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) में बचाव के उपयोग में लायी जाने वाली ढालें

बग्वाल दिवस

इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल कुमाऊँ की संस्कृति का अभिन्न अंग है। श्रावण मास में पूरे पखवाड़े तक यहाँ मेला लगता है। जहाँ सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात 'बग्वाल का दिवस' होता है। बढती व्यवसायिकता ने कुमाऊँ की संस्कृति की इस प्रमुख परंपरा ने अपनी चपेट में ले लिया है जिसका जीता जागता उदाहरण मुख्य बग्वाल स्थल (पत्थर मार युद्ध स्थल) के ठीक बीचों बीच लगा एक होर्डिग है जिसे लगाया तो गया है, देवीधुरा मेले में आने वाले दर्शनार्थियों के स्वागत पट के रूप मे परन्तु इस होर्डिग पर प्रायोजकों के विज्ञापन के साथ यह स्वागत संदेश छोटे छोटे शब्दों में ठीक उसी तरह लिखा हुआ प्रतीत होता है जैसा सिगरेट की डिब्बियों पर लिखा हुआ चेतावनी संदेश।


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