रक्षाबन्धन
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अन्य नाम | राखी, सलूनो, सावनी |
अनुयायी | हिन्दू और लगभग हर भारतीय |
उद्देश्य | भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार |
प्रारम्भ | पौराणिक काल |
तिथि | श्रावण मास की पूर्णिमा |
उत्सव | घरों को लीप-पोत कर दरवाज़ों पर आम तथा केले के पत्तों के बन्दनवार लगाते हैं। आज के दिन बहनें स्नान करके अपने घर में दीवारों पर सोन रखती हैं और फिर सेवइयों, चावल की खीर और मिठाई से इनकी पूजा करती है। सोनों (श्रवण) के ऊपर खीर या मिठाई की सहायता से राखी के धागे चिपकाए जाते हैं। अगरबत्ती व धूप जलायी जाती है। तरह-तरह के स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं। |
धार्मिक मान्यता | प्रातः शीघ्र उठकर बहनें स्नान के पश्चात् भाइयों को तिलक लगाती हैं तथा उसकी दाहिने कलाई पर राखी बाँधती हैं। इसके पश्चात् भाइयों को कुछ मीठा खिलाया जाता है। भाई अपनी बहन को भेंट देता है। |
संबंधित लेख | राखी, श्रावण, पूर्णिमा, भैया दूज |
तिथि | 30 अगस्त व 31 अगस्त, 2023 |
अन्य जानकारी | मुंबई में रक्षाबंधन पर्व को नारली (नारियल) पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। जल के देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिए समुद्र को (नारियल) अर्पित किए जाते हैं। वरुणदेव ही पूजा के मुख्य देवता होते हैं। |
अद्यतन | 11:12, 26 अगस्त 2023 (IST)
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रक्षाबन्धन (अंग्रेज़ी: Raksha Bandhan) हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है जो श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह भाई-बहन को स्नेह की डोर से बांधने वाला त्योहार है। यह त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।
रक्षाबन्धन का अर्थ
रक्षाबंधन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। इसीलिए राखी बांधते समय बहन कहती है- 'भैया! मैं तुम्हारी शरण में हूँ, मेरी सब प्रकार से रक्षा करना।' आज के दिन बहन अपने भाई के हाथ में राखी बांधती है और उन्हें मिठाई खिलाती है। फलस्वरूप भाई भी अपनी बहन को रुपये या उपहार आदि देते हैं। रक्षाबंधन स्नेह का वह अमूल्य बंधन है जिसका बदला धन तो क्या सर्वस्व देकर भी नहीं चुकाया जा सकता।
वर्ष 2023 में रक्षाबन्धन
ज्योतिषों और पंचांग के अनुसार सावन महीने की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त 2023 को सुबह 10 बजकर 58 मिनट से प्रारम्भ हो रही है और इसका समापन 31 अगस्त को सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर होगा। 30 अगस्त को पूर्णिमा तिथि के साथ ही यानी सुबह 10 बजकर 58 मिनट से ही भद्रा काल की शुरूआत हो रही है जो रात 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगा। शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना गया है। इसलिए इस समय राखी नही बांधनी चाहिये। इस कारण वर्ष 2023 में 30 अगस्त को रात 09 बजकर 03 मिनट से 31 अगस्त को प्रात:काल 7 बजकर 05 मिनट तक राखी बाँधने का सबसे उपयुक्त समय है। इसलिए इस बार राखी का त्यौहार दो दिन 30 अगस्त व 31 अगस्त को मनाया जायेगा; लेकिन भद्रा काल का ध्यान रखना होगा। पौराणिक मान्यतों के अनुसार राखी बाँधने का सबसे उपयुक्त समय दोपहर का होता है लेकिन इस बार भद्राकाल के कारण 30 अगस्त को दिन में राखी बाँधने का मुहूर्त नही है।
हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि रात के समय राखी बांधना शुभ नहीं होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार 31 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा की तिथि 07 बजकर 05 मिनट तक रहेगी और इस दौरान भद्रा का साया नहीं रहेगा। इस कारण 31 अगस्त को सुबह-सुबह राखी बांधना शुभ होगा।
शुभ मुहूर्त
रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा तिथि : 30 अगस्त 2023
राखी बांधने का समय : 30 अगस्त 2023 की रात 09 बजकर 03 मिनट के बाद
रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा तिथि समाप्ति - 31 अगस्त सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक
रक्षाबंधन भद्रा समाप्ति समय : 30 अगस्त 2023 की रात 09 बजकर 03 मिनट पर
रक्षाबंधन भद्रा पूंछ : 30 अगस्त की शाम 05:30 बजे से शाम 06:31 बजे तक
रक्षाबंधन भद्रा मुख : 30 अगस्त 2023 की शाम 06:31 बजे से रात 08:11 बजे तक
रक्षासूत्र
भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। गीता में ही लिखा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब ज्योतिर्लिंगम भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बाँधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दु:ख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।[1]
अन्य नाम
श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा को भारतवर्ष में भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता है। सावन में मनाए जाने के कारण इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं। भातृप्रेम को प्रगाढ़ बनाता रक्षाबंधन का पर्व भाई व बहन के अनकहे स्नेह शपथ का परिचायक है। रक्षाबंधन श्रावण की पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष अमूमन अगस्त के महीने में मनाया जाता है। इसी दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी का कोमल धागा बाँधती हैं। यह धागा उनके बीच प्रेम व स्नेह का प्रतीक होता है। यही धागा भाई को प्रतिबद्ध करता है कि वह अपनी बहन की हर कठिनाई व कष्ट में रक्षा करेगा।
रक्षाबंधन की अमर कथाएँ
इतिहास में इस पर्व से जुड़ी अनेक अमर कथाएँ मिलती हैं।
शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन
श्रावण की पूर्णिमा को अपरान्ह में एक कृत्य होता है, जिसे 'रक्षाबन्धन' कहते हैं। श्रावण की पूर्णिमा को सूर्योदय के पूर्व उठकर देवों, ब्राह्मणों एवं पितरों का तर्पण करने के उपरान्त अक्षत, तिल, धागों से युक्त रक्षा बनाकर धारण करना चाहिए। राजा के लिए महल के एक वर्गाकार भूमि-स्थल पर जल-पात्र रखा जाना चाहिए, राजा को मन्त्रियों के साथ आसन ग्रहण करना चाहिए, वेश्याओं से घिरे रहने पर गानों एवं आर्शीवचनों का ताँता लगा रहना चाहिए; देवों ब्राह्मणों एवं अस्त्र-वस्त्र का सम्मान किया जाना चाहिए, तत्पश्चात् राजपुरोहित को चाहिए कि वह मन्त्र के साथ 'रक्षा' बाँधे' और कहे– 'आपको वह रक्षा बाँधता हूँ, जिससे दानवों के राजा बलि बाँधे गये थे, हे रक्षा, तुम (यहाँ से) न हटो, न हटो।'[2] सभी लोगों को यहाँ तक शूद्रों को भी, यथाशक्ति पुरोहितों को प्रसन्न करके रक्षा-बन्धन बँधवाना चाहिए। जब ऐसा कर दिया जाता है तो व्यक्ति वर्ष भर प्रसन्नता के साथ रहता है।
हेमाद्रि ने भविष्योत्तर पुराण का उद्धरण देते हुए लिखा है कि इन्द्राणी ने इन्द्र के दाहिने हाथ में रक्षा बाँधकर उसे इतना योग्य बना दिया कि उसने असुरों को हरा दिया। जब पूर्णिमा चतुर्दशी या आने वाली प्रतिपदा से युक्त हो तो रक्षा-बन्धन नहीं होना चाहिए। इन दोनों से बचने के लिए रात्रि में ही यह कृत्य कर लेना चाहिए। यह कृत्य अब भी होता है और पुरोहित लोग दाहिनी कलाई में रक्षा बाँधते हैं और दक्षिणा प्राप्त करते हैं। गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं अन्य स्थानों में नारियाँ अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा बाँधती हैं और भेंट लेती-देती हैं। श्रावण की पूर्णिमा को पश्चिमी भारत (विशेषतः कोंकण एवं मलाबार में) न केवल हिन्दू, प्रत्युत मुसलमान एवं व्यवसायी पारसी भी, समुद्र तट पर जाते हैं और समुद्र को पुष्प एवं नारियल चढ़ाते हैं। श्रावण की पूर्णिमा को समुद्र में तूफ़ान कम उठते हैं और नारियल इसीलिए समुद्र-देव (वरुण) को चढ़ाया जाता है कि वे व्यापारी जहाज़ों को सुविधा दे सकें।[3]
पौराणिक कथा
भविष्य पुराण में एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक बार बारह वर्षों तक देवासुर-संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं की हार हो रही थी। दुःखी और पराजित इन्द्र, गुरु बृहस्पति के पास गए। वहाँ इन्द्र पत्नी शचि भी थीं। इन्द्र की व्यथा जानकर इन्द्राणी ने कहा - 'कल ब्राह्मण शुक्ल पूर्णिमा है। मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करुंगी। उसे आप स्वस्तिवाचनपूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा। आप अवश्य ही विजयी होंगे।' दूसरे दिन इन्द्र ने इन्द्राणी द्वारा बनाए रक्षाविधान का स्वस्तिवाचनपूर्वक बृहस्पति से रक्षाबंधन कराया, जिसके प्रभाव से इन्द्र सहित देवताओं की विजय हुई। तभी से यह 'रक्षाबंधन' पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा। इस दिन बहनें भी भाइयों की कलाई में रक्षासूत्र बाँधती हैं और उनके सुखद जीवन की कामना करती हैं।
ग्रीक नरेश सिकन्दर की कथा
ऐसा कहा जाता है कि ग्रीक नरेश सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति की रक्षा के लिए उसके शत्रु पुरुराज को राखी बाँधी थी। कथानुसार युद्ध के समय पुरु ने जैसे ही सिकन्दर पर प्राण घातक आक्रमण किया, उसे उसकी कलाई पर बंधी रक्षा दिखाई दी, जिसके कारण उसने सिकन्दर को अभय प्रदान किया और युद्ध में अनेक बार सिकन्दर को प्राणदान दिया।[4]
रानी कर्णावती और हमायूँ की कथा
मध्यकालीन इतिहास में भी ऐसी ही एक घटना मिलती है। चित्तौड़ की हिन्दू रानी कर्णावती ने दिल्ली के मुग़ल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मानकर उसके पास राखी भेजी थी। हुमायूँ ने उसकी राखी स्वीकार कर ली और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह बहादुरशाह से युद्ध किया। महारानी कर्णावती की कथा इसके लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है, जिसने हुमायूँ को राखी भेजकर रक्षा के लिए आमंत्रित किया था। राखी के पवित्र बन्धन ने दोनों को बहन-भाई के पवित्र रिश्ते में बाँध दिया था। मर्मस्पर्शी कथानुसार, राजपूत राजकुमारी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट हुमायूँ को गुजरात के सुल्तान द्वारा हो रहे आक्रमण से रक्षा के लिए राखी भेजी थी। यद्यपि हुमायूँ किसी अन्य कार्य में व्यस्त था, वह शीघ्र ही बहन की रक्षा के लिए चल पड़ा। परन्तु जब वह पहुँचा, तो उसे यह जानकर बहुत दु:ख हुआ कि राजकुमारी के राज्य को हड़प लिया गया था तथा अपने सम्मान की रक्षा हेतु रानी कर्णावती ने 'जौहर' कर लिया था।[5]
महाभारत की कथा
इस त्योहार का इतिहास हिन्दू पुराण कथाओं में मिलता है। महाभारत में कृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस कृष्ण के पास आया तो उस समय कृष्ण की उंगली कट गई तो भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर कृष्ण की उंगली में बांधा था, जिसको लेकर कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। इसी ऋण को चुकाने के लिए दु:शासन द्वारा चीरहरण करते समय कृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी। तब से 'रक्षाबंधन' का पर्व मनाने का चलन चला आ रहा है।
महाभारत से अन्य कथा
एक बार युधिष्ठिर ने कृष्ण भगवान से पूछा- 'हे अच्युत! मुझे रक्षाबन्धन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा और दु:ख दूर होता है। इस पर भगवान बोले- 'हे पाण्डव श्रेष्ठ! प्राचीन समय में एक बार देवों तथा असुरों में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ। संग्राम में देवराज इंद्र की पराजय हुई। देवता कान्तिविहीन हो गए। इंद्र रणभूमि छोड़कर विजय की आशा को तिलांजलि देकर देवताओं सहित अमरावती चले गये। विजेता दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया और राजपद में घोषित कर दिया कि इंद्रदेव सभा में न आएं तथा देवता एवं मनुष्य यज्ञ कर्म न करें। सब लोग मेरी पूजा करें, जिसको इसमें आपत्ति हो वह राज्य छोड़कर चला जाए। दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ, वेद, पठन, पाठन तथा उत्सव समाप्त कर दिए गए। धर्म का नाश होने से देवों का बल घटने लगा। इधर इंद्र दानवों से भयभीत होकर देवगुरु बृहस्पति को बुलाकर कहने लगे- 'हे गुरु! मैं शत्रुओं से घिरा हुआ प्राणान्त संग्राम करना चाहता हूँ। होनी बलवान होती है, जो होना है, होकर रहेगा। पहले तो बृहस्पति ने समझाया कि क्रोध करना व्यर्थ है। परंतु इंद्र की हठधर्मिता तथा उत्साह देखकर रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रात:काल ही रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
'येनवद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाममिवध्नामि रक्षे माचल माचल।।'
उक्त मन्त्रोच्चारण से देवगुरु ने श्रावणी के ही दिन रक्षा विधान किया। सहधर्मिणी इंद्राणी के साथ वृत्त संहारक इंद्र ने बृहस्पति की उस वाणी का अक्षरश: पालन किया और दानवों पर विजय प्राप्त की।
राजा बलि की कथा
एक अन्य कथानुसार राजा बलि को दिये गये वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुण्ठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिये चले गये। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बाँधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो बलि ने देवी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खायी। तत्पश्चात् देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गयीं और उनके कहने से बलि ने भगवान विष्णु से बैकुण्ठ वापस लौटने की विनती की।
साहित्यिक संदर्भ
अनेक साहित्यिक ग्रंथ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबंधन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है- हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक 'रक्षाबंधन' जिसका 1991 में 98वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिंदे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक लिखा है जिसका शीर्षक है राखी उर्फ रक्षाबंधन।
त्योहार की तैयारी
इस दिन भाई बहनों के घर जाते हैं। बहनें अपने भाई के आने की खुशी में अपने घरों को सजाती हैं। घरों को लीप - पोत कर दरवाज़ों पर आम तथा केले के पत्तों के बन्दनवार लगाती हैं। स्नान - ध्यान करके अगरबत्ती व धूप जलाती हैं। तरह - तरह के स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं। जब तक भाई नहीं आते हैं तब तक खाना नहीं खातीं और अपने भाई के आने की प्रतीक्षा में बैठी रहती हैं। भाई के आने पर बहनें थालों में फल, फूल, मिठाइयाँ, रोली, चावल तथा राखियाँ रखकर भाई का स्वागत करती हैं। रोली - चावल से भाई का तिलक करती हैं और उसके दाएँ हाथ में राखी बाँधती हैं। राखी बहन के पवित्र प्रेम और रक्षा की डोरी है। राखी की डोरी में ऐसी शक्ति है जो हर मुसीबत से भाई की रक्षा करती है। बहनें भाइयों को राखी बाँधकर परमेश्वर से दुआ माँगती हैं कि उनके भाई सदा सुरक्षित रहें। इस मायावी संसार में अच्छे कर्म करते हुए नैतिक जीवन बिताएं। भाई भी राखी बँधवाकर बहन से यह प्रतिज्ञा करते हैं कि अगर बहन पर कोई संकट या मुसीबत आए, वह उस संकट का निवारण करने में बहन की सहायता करने के लिए अपनी जान की भी बाज़ी लगा देंगे। कई भाई जो बहुत दूर रहते हैं और वह बहन के घर नहीं जा पाते, वह मनीऑर्डर के द्वारा अपनी बहनों के पास रुपये भेज देते हैं और बहनें डाक के द्वारा अपने भाई के पास राखियाँ भेज देती हैं। कई जगह बहनें ही अपने भाई के घर जाकर उन्हें राखी बाँधती हैं। भाई बहनों को मिठाई, कपड़े, नक़द रुपये तथा बहुमूल्य उपहार देते हैं। भाई-बहन का हार्दिक प्रेम और भावना ही इस त्योहार का वास्तविक महत्त्व है। राखी का त्योहार पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। आज के दिन बहनें स्नान करके अपने घर में दीवारों पर सोन रखती हैं और फिर सेवइयों, चावल की खीर और मिठाई से इनकी पूजा करती है। सोनों (श्रवण) के ऊपर खीर या मिठाई की सहायता से राखी के धागे चिपकाए जाते हैं। जो स्त्रियां नागपंचमी को गेहूँ आदि बोती हैं, वे इन छोटे-पौधों को पूजा में रखती हैं और भाइयों के हाथों में राखी बांधने के बाद इन पौधों को भाइयों के कानों में लगा देती हैं।
रक्षाबंधन के विभिन्न स्वरूप
- मुम्बई के कई समुद्री इलाकों में इसे 'नारियल-पूर्णिमा' या 'कोकोनट-फुलमून' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से समुद्र देवता पर नारियल चढ़ाकर उपासना की जाती है और नारियल की तीन आँखों को शिव के तीन नेत्रों की उपमा दी जाती है।
- बुन्देलखण्ड में राखी को 'कजरी-पूर्णिमा' भी कहा जाता है। इस दिन कटोरे में जौ व धान बोया जाता है तथा सात दिन तक पानी देते हुए माँ भगवती की वन्दना की जाती है।
- उत्तरांचल के चम्पावत ज़िले के देवीधूरा मेले में राखी-पर्व पर बाराही देवी को प्रसन्न करने के लिए पाषाणकाल से ही पत्थर युद्ध का आयोजन किया जाता रहा है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहते हैं।
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्त्व
रक्षाबंधन का पर्व प्रत्येक भारतीय घर में उल्लासपूर्ण वातावरण से प्रारम्भ होता है। राखी, पर्व के दिन या एक दिन पूर्व ख़रीदी जाती है। पारम्परिक भोजन व व्यंजन प्रातः ही बनाए जाते हैं। प्रातः शीघ्र उठकर बहनें स्नान के पश्चात् भाइयों को तिलक लगाती हैं तथा उसकी दाहिने कलाई पर राखी बाँधती हैं। इसके पश्चात् भाइयों को कुछ मीठा खिलाया जाता है। भाई अपनी बहन को भेंट देता है। बहन अपने भाइयों को राखी बाँधते समय सौ-सौ मनौतियाँ मनाती हैं।
उपाकर्म संस्कार
इसके अतिरिक्त इस दिन ऋषि-महर्षि उपाकर्म कराकर व्यक्तियों को विद्या-अध्ययन कराना आरम्भ करते हैं। दूध, दही, घी, गोबर और गऊ मूत्र मिलाकर पंचगव्य बनाते हैं और उसे पान करते हैं तथा हवन करते हैं। इसे उपाकर्म कहते हैं। उपाकर्म संस्कार कराकर जब व्यक्ति अपने घर लौटते हैं तब बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दाएँ हाथ में राखी बाँधती हैं। इस विधान से भी श्रावणी शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबन्धन का त्योहार मनाया जाता है।
उत्सर्ज क्रिया
श्रावणी शुक्ल पूर्णिमा को सूर्य को जल चढ़ाकर सूर्य की स्तुति करते हैं तथा अरुन्धती सहित सप्त ऋषियों की पूजा करते हैं और दही-सत्तू की आहुतियाँ देते हैं। इस क्रिया को उत्सर्ज कहते हैं। यह उत्सर्ज क्रिया भी श्रावणी शुक्ल की पूर्णिमा को होती है।
बहिनों की रक्षा का महोत्सव
रक्षाबंधन बहन और भाई के स्नेह का त्योहार है। पूरा दिन उल्लास व हर्षपूर्ण होता है। घरों की सफाई होती है तथा बहनें सुबह स्नानादि के पश्चात् अधीरता से अपने भाई की प्रतीक्षा करती हैं कि वे आएँ, ताकि उन्हें राखी का पवित्र धागा बाँधा जा सके। जब तक भाई को राखी न बाँधें तब तक बहनें व्रत रखती हैं। राखी बाँधने के बाद ही खाना खाती हैं। राखी बँधवा कर भाई अपनी बहनों को अनेक प्रकार की भेंट प्रदान करते हैं। विगत समय में यह त्योहार पति-पत्नी के आपसी प्रेम और स्त्री की सौभाग्य रक्षा का प्रतीक था।
ब्राह्मण, पुरोहित और यजमान
रक्षाबंधन के दिन देश में कई स्थानों पर ब्राह्मण, पुरोहित भी अपने यजमान की समृद्धि हेतु उन्हें रक्षा बाँधते हैं, जिसकी उन्हें दक्षिणा भी मिलती है। रक्षा बाँधते समय ब्राह्मण यह मंत्र पढ़ता जाता है —
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल! माँ चल!!
अर्थ- जिस प्रकार के उद्देश्य पूर्ति हेतु दानव - सम्राट महाबली, रक्षा - सूत्र से बाँधा गया था (रक्षा सूत्र के प्रभाव से वह वामन भगवान को अपना सर्वस्व दान करते समय विचलित नहीं हुआ), उसी प्रकार हे रक्षा सूत्र! आज मैं तुम्हें बाँधता हूँ। तू भी अपने उद्देश्य से विचलित न हो, दृढ़ बना रहे।
रक्षाबन्धन पर विशेष
एक रोचक घटनाक्रम में हरियाणा राज्य में अवस्थित कैथल जनपद के फतेहपुर गाँव में सन् 1857 में एक युवक गिरधर लाल को रक्षाबन्धन के दिन अंग्रेज़ों ने तोप से बाँधकर उड़ा दिया, इसके बाद से गाँव के लोगों ने गिरधर लाल को शहीद का दर्जा देते हुए रक्षाबन्धन पर्व मनाना ही बंद कर दिया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 150 वर्ष पूरे होने पर सन् 2006 में जाकर इस गाँव के लोगों ने इस पर्व को पुन: मनाने का संकल्प लिया।
महाराष्ट्र में नारियल पूजन
मुंबई में रक्षाबंधन पर्व को 'नारली (नारियल) पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। जल के देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिए समुद्र को (नारियल) अर्पित किए जाते हैं। वरुणदेव ही पूजा के मुख्य देवता होते हैं। नारियल की 'तीन आँखें' होती हैं। इस बारे में ऐसा विश्वास किया जाता है कि ये भगवान शिव के त्रिनेत्रों की प्रतीक हैं। इसीलिए इस पर्व पर नारियल या गोले के पूजन की विशेष धार्मिक महत्ता है। घर में बहनें भाइयों को राखी बाँधती हैं और उसका पूजन करके, मिठाई खिलाकर उनसे उपहार भी प्राप्त करती हैं। इसी दिन महाराष्ट्रियों में कृष्ण यजुर्वेदी शाखा की श्रावणी का भी विधान है। पुरुष किसी बड़े घर में विभिन्न मंत्रोच्चार के साथ भगवान का पूजन हवन करते हैं। फिर नये यज्ञोपवीत को प्रतिष्ठित अभिमंत्रित करके पहनते हैं।
दक्षिण भारत में अवनि अवित्तम
इस त्योहार को दक्षिण भारत में 'अवनि अवित्तम' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन ब्राह्मण नया पवित्र यज्ञोपवीत धारण करते हैं तथा प्राचीन ऋषियों को जल अर्पित करते हैं।[6]
डाक विभाग की तैयारी
भारत सरकार के डाक-तार विभाग द्वारा इस अवसर पर दस रुपए वाले आकर्षण लिफ़ाफ़ों की बिक्री की जाती हैं। लिफ़ाफ़े की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी पर बहनें, भाई को मात्र पांच रुपए में एक साथ तीन-चार राखियाँ भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिए इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफ़ाफ़ा पांच रुपए में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफ़ाफ़े में एक राखी ही भेजी जा सकती है। यह सुविधा रक्षाबंधन तक ही उपलब्ध रहती हैं। रक्षाबंधन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने बारिश से ख़राब न होने वाले वाटरप्रूफ लिफ़ाफ़े उपलब्ध कराए जाते हैं। ये लिफ़ाफ़े अन्य लिफ़ाफ़ों से भिन्न हैं। इसका आकार और डिज़ाइन भी अलग है और इसके अलग डिज़ाइन के कारण राखी इसमें ज़्यादा सुरक्षित रहती है। डाक-तार विभाग पर रक्षाबंधन के अवसर पर 20 प्रतिशत अधिक काम का बोझ पड़ता है। अतः राखी को सुरक्षित और तेज़ीसे पहुँचाने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं और काम के हिसाब से इसमें सेवानिवृत्त डाककर्मियों की भी सेवा ली जाती है। कुछ बड़े शहरों के बड़े डाकघरों में राखी के लिए अलग से बॉक्स भी लगाए जाते हैं। इसके साथ ही चुनिन्दा डाकघरों में सम्पर्क करने वाले लोगों को राखी बेचने की भी इजाज़त दी जाती है, ताकि लोग वहीं से राखी ख़रीद कर निर्धारित स्थान को भेज सकें।
आधुनिक तकनीक और राखी
आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना संप्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। कई सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एव उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इंटरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गई हैं जो ऑनलाइन आर्डर मंजूर करती हैं एवं राखी दिये गये पते पर पहुँचा दी जाती है। इसके अतिरिक्त भारत में राखी के अवसर पर इस पर्व से संबंधित एनीमेटेड सीडी भी आई है, जिसमें एक बहन द्वारा भाई को टीका करने व राखी बाँधने का चलचित्र है। यह सीडी राखी के अवसर पर अनेक बहनों ने दूर रहने वाले अपने भाइयों को भेजी।
फ़िल्मों में रक्षाबंधन
- पचास और साठ के दशक में रक्षाबंधन हिन्दी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ ‘राखी’ नाम से बल्कि ‘रक्षाबंधन’ नाम से भी फ़िल्म बनाई गई।
- 'राखी' नाम से दो बार फ़िल्म बनी है। एक बार सन् 1949 में दूसरी बार सन् 1962 में आई फ़िल्म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्म में राजेंद्र कृष्ण ने शीर्षक गीत लिखा था- 'राखी धागों का त्योहार'।
- सन 1972 में एस. एम. सागर ने फ़िल्म बनाई थी 'राखी और हथकड़ी' जिसमें आर. डी. बर्मन का संगीत था ।
- सन 1972 में राधाकांत शर्मा ने फ़िल्म बनाई 'राखी और राइफल'। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्म थी।
- सन 1976 में 'रक्षाबंधन' नाम से फ़िल्म बनी। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सचिन और सारिका।[7]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मानवीय रिश्तों को एक धागे में बाँधता रक्षाबन्धन पर्व (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2010।
- ↑ देवद्विजातिशस्ता सुस्त्रीरर्घ्येः समर्चयेत् प्रथमम्। तदनु पुरोघा नृपतेः रक्षां वघ्नीत मन्त्रेण।। येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षा मा चल मा चल।। भिविष्योत्तर पुराण (137|19-20)।
- ↑ पुस्तक "धर्मकोश का इतिहास-भाग 4" से) पृष्ठ संख्या 52 पर
- ↑ Raksha Bandhan in History (English) (एच.टी.एम.एल) raksha-bandhan.com। अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2010।
- ↑ रानी कर्णावती (हिंदी) भारतकोश। अभिगमन तिथि: 17 जुलाई, 2014।
- ↑ Raksha Bandhan in History (English) (एच.टी.एम.एल) raksha-bandhan.com। अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2010।
- ↑ रक्षाबंधन से जुड़ी 5 रोचक बातें (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) तरकश। अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2010।
बाहरी कड़ियाँ
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