"प्रयोग:कविता बघेल 9" के अवतरणों में अंतर
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{हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को कौन-कौन से अधिकार सौंपे थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न- 12 | {हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को कौन-कौन से अधिकार सौंपे थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न- 12 | ||
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− | -केवल विद्रोह का अधिकार | + | -केवल विद्रोह का अधिकार |
− | -केवल धार्मिक अधिकार | + | -केवल धार्मिक अधिकार |
− | +लगभग सभी अधिकार | + | +लगभग सभी अधिकार |
− | -केवल राजनैतिक अधिकार | + | -केवल राजनैतिक अधिकार |
− | ||हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को लगभग सभी अधिकार सौंप दिए। हॉब्स सामाजिक समझौता सिद्धांत में | + | ||हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को लगभग सभी अधिकार सौंप दिए। हॉब्स सामाजिक समझौता सिद्धांत में कहता है कि मैं व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह को अपना शासन स्वयं कर सकने का अधिकार एवं शक्ति इस शर्त पर समर्पित करता हूं कि तुम भी अपने अधिकार इसी तरह (व्यक्ति या व्यक्ति समूह को) समर्पित कर दो। इस तरह समझौते के परिणामस्वरूप समुदाय संयुक्त होता है और राज्य का निर्माण होता है। हॉब्स के अनुसार यहीं उस महान देवता लेवियाथन का जन्म होता है जिसकी कृपा पर अविनाशी ईश्वर की छत्रछाया में हमारी शांति एवं सुरक्षा निर्भर है। |
{राजनीतिक न्याय किसके द्वारा सुनिश्चित होता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-2 | {राजनीतिक न्याय किसके द्वारा सुनिश्चित होता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-2 | ||
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− | -विधायिका | + | -विधायिका |
− | +संविधान | + | +[[संविधान]] |
− | -राजनीतिक | + | -राजनीतिक दल |
− | -निर्वाचन सत्ता | + | -निर्वाचन सत्ता |
− | ||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने | + | ||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने चाहिए तथा राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सभी व्यक्तियों की लाभ प्राप्ति भी सुनिश्चित होनी चाहिए, यही राजनीतिक न्याय है। इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत ही की जा सकती है, जिसका आधार (स्त्रोत) [[संविधान]] होता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) राजनीतिक न्याय प्राप्ति के मुख्य साधन हैं- वयस्क मताधिकार, सभी व्यक्तियों को भाषण-विचार, सम्मेलन, संगठन आदि नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की स्वतंत्रता, [[न्यायपालिका]] की स्वतंत्रता, भेद-भाव के बिना सार्वजनिक पदों हेतु सभी को समान अवसर आदि। (2) राजनीतिक न्याय की धारणा में यह तथ्य निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा। |
{'योग्यत्तम की अतिजीविता' का सिद्धांत किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-12 | {'योग्यत्तम की अतिजीविता' का सिद्धांत किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-12 | ||
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-रूसो | -रूसो | ||
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− | ||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1903]]) उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक और सिद्धांतकार हैं। इन्होंने योग्यतम की अतिजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। स्पेंसर की पहली | + | ||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1903]]) उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक और सिद्धांतकार हैं। इन्होंने योग्यतम की अतिजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। स्पेंसर की पहली महत्त्वपूर्ण कृति 'सोशल स्टेटिक्स' (1850) चार्ल्स डार्विन की 'ओरजिन ऑफ़ स्पसीज' ([[1857]]) से 9 वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी। इस तरह स्पेंसर ने अपना विकासवादी सिद्धांत डार्विन से भी पहले रखा था। योग्यता की विजय या योग्यता की अतिजीविता शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम स्पेंसर ने ही किया था। यद्यपि यह डार्विन के नाम के साथ जुड़कर प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार स्पेंसर ही योग्यतम की अतिजीविता के सिद्धांत का प्रतिपादक है। |
− | {"अनियंत्रित | + | {"अनियंत्रित बाज़ार आधारित पूंजीवाद का परिणाम होगा- कार्यकुशलता, उत्पादन वृद्धि तथा व्यापक संपन्नता।" यह विश्वास किसके साथ जुड़ा है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-2 |
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+नव उदारवाद | +नव उदारवाद | ||
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-नव मार्क्सवाद | -नव मार्क्सवाद | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
− | ||"अनियंत्रित | + | ||"अनियंत्रित बाज़ार आधारित पूंजीवाद का परिणाम होगा- कार्यकुशलता, उत्पादन वृद्धि तथा व्यापक संपन्नता।" यह विश्वास नव उदारवाद के साथ जुड़ा हुआ है। नव उदारवाद वास्तव में शास्त्रीय उदारवाद की नकारात्मक उदारवादी धारा को पुनर्स्थापित करता है। यह राज्य के हस्तक्षेप को न्यूनतम करते हुए बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था का समर्थन करता है। फ्रेडरिक हेयक व मिल्टन फ्रीडमैन प्रमुख नव उदारवादी सिद्धांतकार हैं। हेयक ने अपनी कृति 'रोड टू सर्फडम' (दासता के पथ पर) में लिखा है कि निर्देशित अर्थव्यवस्था व्यक्तियों के अव्यक्त ज्ञान का उतना उपयोग नहीं कर सकती जितना बाज़ार अर्थव्यवस्था कर सकती है। इसके अनुसार आर्थिक नियोजन का रास्ता सर्वाधिकारवाद की ओर ले जाता है। मिल्टन फ्रीडमैन ने 'कैपटिलिज्म एवं फ्रीडम' में लिखा है कि 'पूंजीवाद स्वतंत्रता की आवश्यक शर्त है। पूंजीवाद जिसमें निजी उद्यम को स्वतंत्र विनियम का पूरा अवसर हो व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अनिवार्य है। |
{लोकतंत्र में 'गुटतंत्र के लौह नियम' का प्रतिपादन किसने किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-3 | {लोकतंत्र में 'गुटतंत्र के लौह नियम' का प्रतिपादन किसने किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-3 | ||
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-गेतानो मोस्का | -गेतानो मोस्का | ||
-रेमों आरों | -रेमों आरों | ||
− | ||'गुटतंत्र का लौह नियम' जर्मन समाजशास्त्री 'राबर्ट मिशेल्स' द्वारा वर्ष [[1911]] में अपनी पुस्तक 'पॉलिटिकल पार्टीज' में दिया गया। मिशेल्स ने लोकतंत्र में अभिजनों के शासन को 'गुटतंत्र' की संज्ञा दी है। इनके अनुसार, किसी भी तरह का मानव संगठन स्थापित कर देने पर उसका नियंत्रण अंतत: एक छोटे से गुट के हाथों में आ जाता है और यह बात लोकतंत्रीय प्रणाली पर भी लागू होती है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) [[इटली]] के समाजशास्त्री पैरेटो ने लोकतंत्र के अभिजन वर्गीय सिद्धांत के अंतर्गत 'अभिजनों के संचरण' का सिद्धांत दिया। (2) सी. | + | ||'गुटतंत्र का लौह नियम' जर्मन समाजशास्त्री 'राबर्ट मिशेल्स' द्वारा वर्ष [[1911]] में अपनी पुस्तक 'पॉलिटिकल पार्टीज' में दिया गया। मिशेल्स ने लोकतंत्र में अभिजनों के शासन को 'गुटतंत्र' की संज्ञा दी है। इनके अनुसार, किसी भी तरह का मानव संगठन स्थापित कर देने पर उसका नियंत्रण अंतत: एक छोटे से गुट के हाथों में आ जाता है और यह बात लोकतंत्रीय प्रणाली पर भी लागू होती है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) [[इटली]] के समाजशास्त्री पैरेटो ने लोकतंत्र के अभिजन वर्गीय सिद्धांत के अंतर्गत 'अभिजनों के संचरण' का सिद्धांत दिया। (2) सी. राइट्स मिल्स ने अपनी कृति पॉवर इलीट में अमेरिकी राजव्यवस्था का वर्णन किया है। उसके अनुसार तीन प्रकार के अभिजन वर्ग होते हैं- 1.सैन्य बल अभिजन, 2.राजनीतिक वर्ग अभिजन, 3.औद्योगिक वर्ग अभिजन। (3) मोस्का ने अपनी पुस्तक 'द रूलिंग क्लास' में कहा है कि सभी समाजों में केवल दो वर्ग पाए जाते हैं- पहला वर्ग जो शासन करता है, दूसरा वर्ग जिस पर शासन किया जाता है। |
{सतत क्रांति का सिद्धांत किसने दिया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-52,प्रश्न-12 | {सतत क्रांति का सिद्धांत किसने दिया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-52,प्रश्न-12 | ||
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− | -मार्क्स | + | -[[कार्ल मार्क्स]] |
-लेनिन | -लेनिन | ||
+माओ | +माओ | ||
-हो-ची मिन्ह | -हो-ची मिन्ह | ||
− | ||'सतत क्रांति' या 'निरंतर क्रांति' का सिद्धांत | + | ||'सतत क्रांति' या 'निरंतर क्रांति' का सिद्धांत माओ ने दिया। माओ के अनुसार, क्रांति कोई अंतिम समाधन नहीं है, बल्कि वह केवल अभीष्ट दिशा में प्रगति का एक चरण है। आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने के बाद समाजवादी व्यवस्था अपने आप सुदृढ़ नहीं हो जाएगी; इसके लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और विचारधारात्मक मोर्चों पर समाजवाद को बढ़ावा देना ज़रूरी होगा, जिसमें लंबा समय लगेगा अत: समाजवादी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया 'निरंतर क्रांति' की प्रक्रिया है जिसमें कभी कोई ढील नहीं दी जा सकती। |
− | {मूने के अनुसार | + | {मूने के अनुसार स्टाफ़ कार्य के तीन पक्ष कौन-कौन से हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-12 |
|type="()"} | |type="()"} | ||
-सूचनात्मक | -सूचनात्मक | ||
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-पर्यवेक्षणात्मक | -पर्यवेक्षणात्मक | ||
+उपुर्युक्त सभी | +उपुर्युक्त सभी | ||
− | || | + | ||स्टाफ़ से तात्पर्य ऐसे प्रमुख कार्यकारी प्रशासनिक संरचना से है जिसमें एक सर्वोच्च अधिकारी होता है जो अपने सहायता से कार्य का सम्पादन करता है। मूने के अनुसार स्टाफ़ कार्य के तीन क्षेत्र पक्ष है-(1) '''सूचनात्मक'''- स्टाफ़ का सूचना संबंधी कार्य यह है कि वह प्रमुख कार्यकारी के लिए उन समस्त सूचनाओं का संग्रह करता है जिसके आधार पर वह निर्णय करता है। (2) '''परामर्शकारी'''- आवश्यक सूचना देने के साथ-साथ यह प्रमुख कार्यकारी को परामर्श भी देता है कि उसके राय में क्या निर्णय किये जाने चाहिए। यद्यपि प्रमुख कार्यकारी इनके सिफ़ारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। (3) '''अधीक्षणात्मक'''- स्टाफ़ को यह भी देखना होता है कि प्रमुख कार्यकारी ने जो निर्णय लिए हैं, वे उपयुक्त सूत्र या व्यवसाय अभिकरणों तक पहुंचा दिए गए हैं और उनका ठीक प्रकार से क्रियान्वयन हो रहा है या नहीं। |
{निम्नलिखित में से कौन [[खेल]] सिद्धांत से नहीं जुड़े हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-91 | {निम्नलिखित में से कौन [[खेल]] सिद्धांत से नहीं जुड़े हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-91 | ||
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− | + | + | +आरगान्सकी |
-स्नाइडर | -स्नाइडर | ||
-हर्सेन्यि | -हर्सेन्यि | ||
− | - | + | -थॉमस शेलिंग |
− | ||आरगांसकी खेल सिद्धांत से नहीं जुड़े हैं बल्कि शक्ति की अवधारणा के विचारक हैं, जबकि खेल सिद्धांत के महत्त्व को प्रतिपादित करने वालों में मार्टिन शुविक, कार्ल, ड्वाइच, ऑस्कर मॉर्गेस्टर्न, जॉन न्यूमैन, हर्सेन्यि तथा | + | ||आरगांसकी खेल सिद्धांत से नहीं जुड़े हैं बल्कि शक्ति की अवधारणा के विचारक हैं, जबकि खेल सिद्धांत के महत्त्व को प्रतिपादित करने वालों में मार्टिन शुविक, कार्ल, ड्वाइच, ऑस्कर मॉर्गेस्टर्न, जॉन न्यूमैन, हर्सेन्यि तथा थॉमस शेलिंग के नाम उल्लेखनीय हैं। |
{"स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-82,प्रश्न-2 | {"स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-82,प्रश्न-2 | ||
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-बार्कर | -बार्कर | ||
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− | ||''स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय | + | ||''स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्त्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नव उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। |
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{समाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से किस प्रकार के कार्य करने का प्रयत्न करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न-13 | {समाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से किस प्रकार के कार्य करने का प्रयत्न करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न-13 | ||
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− | -[[राज्य]] के | + | -[[राज्य]] के ऐतिहासिक उद्गम का पता लगाना |
+राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करना | +राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करना | ||
-यथास्थिति का औचित्य स्थापित करना | -यथास्थिति का औचित्य स्थापित करना |
13:05, 11 अप्रैल 2017 का अवतरण
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