"प्रयोग:कविता बघेल 9" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
-गृह युद्धों का अंत हो सके
 
-गृह युद्धों का अंत हो सके
 
-शासकीय चर्च की स्थापना हो सके
 
-शासकीय चर्च की स्थापना हो सके
||लॉक के अनुसार लोगों ने समझौता इसलिए किया था ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके। लॉक समझौता सिद्धांत में अपनी बाधाओं से संबंधित कुछ अधिकार व्यक्तियों ने समाज को इसलिए अर्पित कर दिए ताकि उसकी सामूहिक संतुलित बुद्धि से असुविधा, में बदल जाए। इस समझौता का उद्देश्य जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की आंतरिक तथा वाह्य संकटों से रक्षा करना था।
+
||जॉन लॉक के अनुसार लोगों ने समझौता इसलिए किया था ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके। जॉन लॉक समझौता सिद्धांत में अपनी बाधाओं से संबंधित कुछ अधिकार व्यक्तियों ने समाज को इसलिए अर्पित कर दिए ताकि उसकी सामूहिक संतुलित बुद्धि से असुविधा, में बदल जाए। इस समझौता का उद्देश्य जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की आंतरिक तथा वाह्य संकटों से रक्षा करना था।
  
 
{निम्न में से न्याय का क्या अर्थ है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-1
 
{निम्न में से न्याय का क्या अर्थ है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-1
पंक्ति 117: पंक्ति 117:
 
+[[हर्बर्ट स्पेंसर]]
 
+[[हर्बर्ट स्पेंसर]]
 
-रूसो
 
-रूसो
-लॉक
+
-जॉन लॉक
 
||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1903]]) उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक और सिद्धांतकार हैं। इन्होंने योग्यतम की अतिजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। स्पेंसर की पहली महत्त्वपूर्ण कृति 'सोशल स्टेटिक्स' (1850) चार्ल्स डार्विन की 'ओरजिन ऑफ़ स्पसीज' ([[1857]]) से 9 वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी। इस तरह स्पेंसर ने अपना विकासवादी सिद्धांत डार्विन से भी पहले रखा था। योग्यता की विजय या योग्यता की अतिजीविता शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम स्पेंसर ने ही किया था। यद्यपि यह डार्विन के नाम के साथ जुड़कर प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार स्पेंसर ही योग्यतम की अतिजीविता के सिद्धांत का प्रतिपादक है।
 
||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1903]]) उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक और सिद्धांतकार हैं। इन्होंने योग्यतम की अतिजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। स्पेंसर की पहली महत्त्वपूर्ण कृति 'सोशल स्टेटिक्स' (1850) चार्ल्स डार्विन की 'ओरजिन ऑफ़ स्पसीज' ([[1857]]) से 9 वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी। इस तरह स्पेंसर ने अपना विकासवादी सिद्धांत डार्विन से भी पहले रखा था। योग्यता की विजय या योग्यता की अतिजीविता शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम स्पेंसर ने ही किया था। यद्यपि यह डार्विन के नाम के साथ जुड़कर प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार स्पेंसर ही योग्यतम की अतिजीविता के सिद्धांत का प्रतिपादक है।
  
पंक्ति 140: पंक्ति 140:
 
-[[कार्ल मार्क्स]]
 
-[[कार्ल मार्क्स]]
 
-लेनिन
 
-लेनिन
+माओ
+
+माओ से-तुंग
 
-हो-ची मिन्ह
 
-हो-ची मिन्ह
||'सतत क्रांति' या 'निरंतर क्रांति' का सिद्धांत माओ ने दिया। माओ के अनुसार, क्रांति कोई अंतिम समाधन नहीं है, बल्कि वह केवल अभीष्ट दिशा में प्रगति का एक चरण है। आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने के बाद समाजवादी व्यवस्था अपने आप सुदृढ़ नहीं हो जाएगी; इसके लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और विचारधारात्मक मोर्चों पर समाजवाद को बढ़ावा देना ज़रूरी होगा, जिसमें लंबा समय लगेगा अत: समाजवादी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया 'निरंतर क्रांति' की प्रक्रिया है जिसमें कभी कोई ढील नहीं दी जा सकती।
+
||'सतत क्रांति' या 'निरंतर क्रांति' का सिद्धांत माओ से-तुंग ने दिया। माओ से-तुंग के अनुसार, क्रांति कोई अंतिम समाधन नहीं है, बल्कि वह केवल अभीष्ट दिशा में प्रगति का एक चरण है। आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने के बाद समाजवादी व्यवस्था अपने आप सुदृढ़ नहीं हो जाएगी; इसके लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और विचारधारात्मक मोर्चों पर समाजवाद को बढ़ावा देना ज़रूरी होगा, जिसमें लंबा समय लगेगा अत: समाजवादी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया 'निरंतर क्रांति' की प्रक्रिया है जिसमें कभी कोई ढील नहीं दी जा सकती।
  
 
{मूने के अनुसार स्टाफ़ कार्य के तीन पक्ष कौन-कौन से हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-12
 
{मूने के अनुसार स्टाफ़ कार्य के तीन पक्ष कौन-कौन से हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-12
पंक्ति 166: पंक्ति 166:
 
-बार्कर
 
-बार्कर
 
+सीले
 
+सीले
||''स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्त्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नव उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
+
||''स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्त्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, जॉन लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नव उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
  
  
पंक्ति 176: पंक्ति 176:
 
|type="()"}
 
|type="()"}
 
-बेथम
 
-बेथम
-जे.एस. मिल
+
-जे. एस. मिल
 
-[[कार्ल मार्क्स]]
 
-[[कार्ल मार्क्स]]
 
+हीगल
 
+हीगल
पंक्ति 195: पंक्ति 195:
 
-सभी को समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो
 
-सभी को समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो
 
-सभी को हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो।
 
-सभी को हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो।
||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने चाहिएं तथा राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सभी व्यक्तियों की लाभ प्राप्त भी सुनिश्चित होनी चाहिए, यही राजनीतिक न्याय है। इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत ही की जा सकती है, जिसका आधार (स्त्रोत) संविधान होता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) राजनीतिक न्याय प्राप्ति के मुख्य साधन हैं- वयस्क मताधिकार, सभी व्यक्तियों को भाषण- विचार, सम्मेलन, संगठन आदि नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की स्वतंत्रता, [[न्यायपालिका]] की स्वतंत्रता, भेद-भाव के बिना सार्वजनिक पदों हेतु सभी को समान अवसर आदि। (2) राजनीतिक न्याय की धारणा में यह तथ्य निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा।
+
||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने चाहिए तथा राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सभी व्यक्तियों की लाभ प्राप्ति भी सुनिश्चित होनी चाहिए, यही राजनीतिक न्याय है। इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत ही की जा सकती है, जिसका आधार (स्त्रोत) [[संविधान]] होता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) राजनीतिक न्याय प्राप्ति के मुख्य साधन हैं- वयस्क मताधिकार, सभी व्यक्तियों को भाषण-विचार, सम्मेलन, संगठन आदि नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की स्वतंत्रता, [[न्यायपालिका]] की स्वतंत्रता, भेद-भाव के बिना सार्वजनिक पदों हेतु सभी को समान अवसर आदि। (2) राजनीतिक न्याय की धारणा में यह तथ्य निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा।
  
 
{लेसेज़ फेयर का क्या अभिप्राय है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-13
 
{लेसेज़ फेयर का क्या अभिप्राय है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-13
पंक्ति 202: पंक्ति 202:
 
-समाजवाद
 
-समाजवाद
 
+व्यक्ति को अकेला छोड़ दो
 
+व्यक्ति को अकेला छोड़ दो
-इनमें से सभी
+
-उपरोक्त सभी
||आमतौर पर समझा जाता है कि यह पद 18वीं शताब्दी में [[फ्रांस]] के एक व्यक्ति जी.सी.एम. बिसेट द गोर्ने की देन है। व्यापार पर लगी अनेक पाबंदियों से तंग आकर एक दिन उनके मुंह से 'लेसेज़ फेर' अर्थात 'चीजों को अपने हाल पर छोड़ दो' निकल पड़ा। व्यक्ति- वादियों ने राज्य के हस्तक्षेप से बचने के लिए 'व्यक्ति को अकेला छोड़ दो' के रूप में इसका प्रयोग किया।
+
||आमतौर पर समझा जाता है कि यह पद 18वीं शताब्दी में [[फ्रांस]] के एक व्यक्ति जी. सी. एम. बिसेट द गोर्ने की देन है। व्यापार पर लगी अनेक पाबंदियों से तंग आकर एक दिन उनके मुंह से 'लेसेज़ फेर' अर्थात 'चीजों को अपने हाल पर छोड़ दो' निकल पड़ा। व्यक्ति- वादियों ने राज्य के हस्तक्षेप से बचने के लिए 'व्यक्ति को अकेला छोड़ दो' के रूप में इसका प्रयोग किया।
  
 
{किसने कहा था कि [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3
 
{किसने कहा था कि [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3
पंक्ति 211: पंक्ति 211:
 
+[[एडम स्मिथ]]
 
+[[एडम स्मिथ]]
 
-जॉन लॉक
 
-जॉन लॉक
||नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक/विचारक [[एडम स्मिथ]] ने [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का समर्थन किया। एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में निजी स्वामित्त्व के सिद्धांत का समर्थन करते हुए 'अहस्तक्षेप का सिद्धांत' प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप न होने पर मनुष्य में कार्य करने की प्रेरणा अधिक होगी जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अधिक से अधिक संपदा उत्पन्न करेगा और वह अंतत: समाज के हित में होगी। स्मिथ के अनुसार "सच्ची स्वतंत्रता वाणिज्य से ही संभव है।"
+
||नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक/विचारक [[एडम स्मिथ]] ने [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का समर्थन किया। एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में निजी स्वामित्त्व के सिद्धांत का समर्थन करते हुए 'अहस्तक्षेप का सिद्धांत' प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप न होने पर मनुष्य में कार्य करने की प्रेरणा अधिक होगी जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अधिक-से-अधिक संपदा उत्पन्न करेगा और वह अंतत: समाज के हित में होगी। स्मिथ के अनुसार "सच्ची स्वतंत्रता वाणिज्य से ही संभव है।"
  
 
{निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4
 
{निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4
पंक्ति 219: पंक्ति 219:
 
-प्रौंधा
 
-प्रौंधा
 
+टेलीरैंड
 
+टेलीरैंड
||टेलीरैंड के अनुसार, "लोकतंत्र स्वीकृत पागलपन है।" उन्होंने लोकतंत्र को 'दुष्ट लोगों का कुलीनतंत्र' भी कहा है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-लोकतंत्र की आलोचना करने वाले अन्य विद्वानों के कथन निम्नलिखित हैं- (1) [[प्लेटो]], [[अरस्तू]] के अनुसार, "लोकतंत्र, भीड़तंत्र या मूर्खतंत्र या विकृत व्यवस्था है।" (2) कार्लाइल के अनुसार, "लोकतंत्र लाखों मूर्खों की सरकार है।" (3) लुडोविसी के अनुसार, "लोकतंत्र का अर्थ है [[मृत्यु]]।" (3) वाल्टर वेल के अनुसार, "लोकतंत्र भ्रष्ट प्लेटोवाद है।" (4) एंथनी गिडिन्स के अनुसार, "लोकतंत्र में भावनात्मकता एवं बहुमत अत्याधिकता देखी जाती है।" (4) वार्कर के अनुसार, "लोकतंत्र जुगाड़ों का शासन है।"
+
||टेलीरैंड के अनुसार, "लोकतंत्र स्वीकृत पागलपन है।" उन्होंने लोकतंत्र को 'दुष्ट लोगों का कुलीनतंत्र' भी कहा है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- लोकतंत्र की आलोचना करने वाले अन्य विद्वानों के कथन निम्नलिखित हैं- (1) [[प्लेटो]], [[अरस्तू]] के अनुसार, "लोकतंत्र, भीड़तंत्र या मूर्खतंत्र या विकृत व्यवस्था है।" (2) कार्लाइल के अनुसार, "लोकतंत्र लाखों मूर्खों की सरकार है।" (3) लुडोविसी के अनुसार, "लोकतंत्र का अर्थ है [[मृत्यु]]।" (3) वाल्टर वेल के अनुसार, "लोकतंत्र भ्रष्ट प्लेटोवाद है।" (4) एंथनी गिडिन्स के अनुसार, "लोकतंत्र में भावनात्मकता एवं बहुमत अत्याधिकता देखी जाती है।" (4) वार्कर के अनुसार, "लोकतंत्र जुगाड़ों का शासन है।"
  
{माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका कैसी होगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-13
+
{माओ से-तुंग के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका कैसी होगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-13
 
|type="()"}
 
|type="()"}
 
-प्रतिक्रियात्मक  
 
-प्रतिक्रियात्मक  
पंक्ति 227: पंक्ति 227:
 
+महत्त्वपूर्ण  
 
+महत्त्वपूर्ण  
 
-महत्त्वहीन  
 
-महत्त्वहीन  
||माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ किसानों को साथ लेकर मार्क्सवदी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। [[चीन]] के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव रखी।
+
||माओ से-तुंग के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ से-तुंग किसानों को साथ लेकर मार्क्सवदी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। [[चीन]] के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव रखी।
  
 
{"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13
 
{"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13
पंक्ति 251: पंक्ति 251:
 
-[[अरस्तू]]  
 
-[[अरस्तू]]  
 
-जॉन लॉक  
 
-जॉन लॉक  
||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
+
||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, जॉन लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
  
  
पंक्ति 278: पंक्ति 278:
 
-समुदायवादी
 
-समुदायवादी
 
+उदारवादी
 
+उदारवादी
||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता हैं इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करना नहीं है बल्कि सबसे अधिक जरुरत मंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बना कर मूल पदार्थों (वेतन, संपत्ति, अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता, तथा स्वास्थ्य, शक्ति, क्षमता) को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है। राल्स के अनुसार न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है।
+
||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, जॉन लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता हैं इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करना नहीं है बल्कि सबसे अधिक जरुरत मंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बना कर मूल पदार्थों (वेतन, संपत्ति, अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता, तथा स्वास्थ्य, शक्ति, क्षमता) को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है। राल्स के अनुसार न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है।
  
 
{"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14
 
{"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14
पंक्ति 309: पंक्ति 309:
 
-रूसो  
 
-रूसो  
 
-ग्राम्सी  
 
-ग्राम्सी  
+माओत्से-तुंग  
+
+माओ से-तुंगत्से-तुंग  
||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओत्से-तुंग की अपनी विशिष्ट एवं मौलिक संकल्पना है। इसके अंतर्गत माओ ने सेना व हथियारों की तुलना में जनता को अधिक महत्त्व प्रदान किया। माओ के अनुसार, युद्ध में हथियारों का अपना महत्त्व है पर वे निर्णायक तत्त्व नहीं हैं। निर्णय मनुष्यों द्वारा किया जाना है, जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। लोक युद्ध को सफल बनाने के लिए वह [[गुरिल्ला युद्ध]] या छापामार युद्ध पर अत्यधिक बल देता है।
+
||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओ से-तुंगत्से-तुंग की अपनी विशिष्ट एवं मौलिक संकल्पना है। इसके अंतर्गत माओ से-तुंग ने सेना व हथियारों की तुलना में जनता को अधिक महत्त्व प्रदान किया। माओ से-तुंग के अनुसार, युद्ध में हथियारों का अपना महत्त्व है पर वे निर्णायक तत्त्व नहीं हैं। निर्णय मनुष्यों द्वारा किया जाना है, जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। लोक युद्ध को सफल बनाने के लिए वह [[गुरिल्ला युद्ध]] या छापामार युद्ध पर अत्यधिक बल देता है।
  
 
{मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14
 
{मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14
पंक्ति 335: पंक्ति 335:
 
-कांट
 
-कांट
 
+सीले
 
+सीले
||''स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
+
||''स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक  हॉब्स, जॉन लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है।
  
  
पंक्ति 618: पंक्ति 618:
 
+सेंट ऑगस्टाइन
 
+सेंट ऑगस्टाइन
 
-जॉन लॉक
 
-जॉन लॉक
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है।
+
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओ से-तुंगं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है।
  
 
{किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18
 
{किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18
पंक्ति 700: पंक्ति 700:
 
-कांट  
 
-कांट  
 
-बेंथम  
 
-बेंथम  
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है।
+
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओ से-तुंगं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है।
  
 
{आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19
 
{आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19
पंक्ति 785: पंक्ति 785:
 
-[[सुकरात]]
 
-[[सुकरात]]
 
+सेंट ऑगस्टाइन
 
+सेंट ऑगस्टाइन
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है।
+
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओ से-तुंगं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है।
  
 
{कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20
 
{कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20

12:55, 12 अप्रैल 2017 का अवतरण

1 यह कथन किसका है कि "बिना भू-भाग के भी राज्य का अस्तित्व रह सकता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-11

गार्नर
मैकाइवर
सीले
विलोबी

2 लॉक के अनुसार लोगों ने समझौता किस कारण किया था?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न-11

उनके अधिकारों की रक्षा हो सके
पोपतंत्र का दमन किया जा सके
गृह युद्धों का अंत हो सके
शासकीय चर्च की स्थापना हो सके

3 निम्न में से न्याय का क्या अर्थ है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-1

कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
भेदभाव किया जा सकता है।
राजा की बुद्धि के अनुसार भेदभाव किया जा सकता है।
बहुमत के अनुसार भेदभाव किया जा सकता है।

4 निम्नलिखित में से व्यक्तिवादी विचारक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-11

हेराल्ड लास्की
जेम्स मिल
हर्बर्ट स्पेंसर
अरस्तू

5 निम्न में से कौन नव-उदारवाद का प्रमुख तर्क नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-1

बाज़ार संसाधनों का सर्वोत्तम इस्तेमाल करता है।
वरण के परास को मज़बूत करने के लिए सक्षमकार संसाधन व्यक्तियों और समूहों को प्रदान किए जाने चाहिए।
एक योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था अकुशल और अपव्ययी होती है।
निजी क्षेत्र के प्रभुत्व वाली किसी अर्थव्यवस्था का उत्पादन और प्रयोग में ज्ञान और प्रौद्योगिकी का विनियोजन अव्यवहित और अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी होता है।

6 लोकतंत्र के बारे में निम्नलिखित कथन किस विचारक का है? "इस बात से कोई इंकार नहीं करता कि वर्तमान प्रतिनिधि सभाओं में अनेक त्रुटियां हैं। पर यदि मोटरगाड़ी खराब हो जाए तो उसकी जगह बैलगाड़ी का इस्तेमाल करने लगना मूर्खता होगी, चाहे इसकी अल्पना कितनी मधुर क्यों न लगे।" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-43,प्रश्न-2

सी. डी. बर्न्स
लॉर्ड ब्राइस
हेरल्ड जे.लास्की
वाल्टर बेजहाट

7 कार्ल मार्क्स ने पॅट्रीशियन- प्लेबियन और गिल्ड मास्टर जार्नीमेन का उल्लेख किस संदर्भ में किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-52,प्रश्न-11

वर्ग संघर्ष के संदर्भ में
वर्ग सहयोग एवं विवाह के संदर्भ में
नस्लीय संघर्ष के संदर्भ में
नस्लीय सहयोग के संदर्भ में

8 अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में यथार्थवादियों को तामस-पुत्र और आदर्शवादियों को प्रकाश-पुत्र की संज्ञा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-65,प्रश्न-11

मार्गेथाउ
पामर एवं पार्किंस
नाइबहर
स्प्राउट

9 हॉब्स के 'लेवियाथन' में प्रयुक्त 'कॉमनवेल्थ' शब्द का क्या अर्थ है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-90

सम्प्रभु
समाज, राज्य एवं सरकार के लिए सामूहिक नाम
प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले लोगों का वर्ग
उपर्युक्त में से कोई नहीं

10 "सतत जागरुकता ही स्वतंत्रता का मूल्य है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-82,प्रश्न-1

ब्राइस
मैकाइवर
वाशिंगटन
कार्ल मार्क्स

11 निम्न में से कौन-सा विद्वान 'भूमि को राज्य का आवश्यक तत्त्व' नहीं मानता है? (नागरिक शास्त्र,पृ.सं-6,प्रश्न-12

हॉल
डुग्वी
उपर्युक्त दोनों
उपर्युक्त में दे कोई नहीं

12 हॉब्स के सामाजिक समझौते में लोगों ने लेवियाथन को कौन-कौन से अधिकार सौंपे थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न- 12

केवल विद्रोह का अधिकार
केवल धार्मिक अधिकार
लगभग सभी अधिकार
केवल राजनैतिक अधिकार

13 राजनीतिक न्याय किसके द्वारा सुनिश्चित होता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-2

विधायिका
संविधान
राजनीतिक दल
निर्वाचन सत्ता

14 'योग्यत्तम की अतिजीविता' का सिद्धांत किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-12

प्लेटो
हर्बर्ट स्पेंसर
रूसो
जॉन लॉक

15 "अनियंत्रित बाज़ार आधारित पूंजीवाद का परिणाम होगा- कार्यकुशलता, उत्पादन वृद्धि तथा व्यापक संपन्नता।" यह विश्वास किसके साथ जुड़ा है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-2

नव उदारवाद
नव अनुदारवाद
नव मार्क्सवाद
उपर्युक्त में से कोई नहीं

16 लोकतंत्र में 'गुटतंत्र के लौह नियम' का प्रतिपादन किसने किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-3

राबर्ट मिशेल्स
विल्फ्रेटो पैरेटो
गेतानो मोस्का
रेमों आरों

17 सतत क्रांति का सिद्धांत किसने दिया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-52,प्रश्न-12

कार्ल मार्क्स
लेनिन
माओ से-तुंग
हो-ची मिन्ह

18 मूने के अनुसार स्टाफ़ कार्य के तीन पक्ष कौन-कौन से हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-12

सूचनात्मक
परामर्शकारी
पर्यवेक्षणात्मक
उपुर्युक्त सभी

19 निम्नलिखित में से कौन खेल सिद्धांत से नहीं जुड़े हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-91

आरगान्सकी
स्नाइडर
हर्सेन्यि
थॉमस शेलिंग

20 "स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-82,प्रश्न-2

मिल
लास्की
बार्कर
सीले

21 किसने कहा "राज्य पृथ्वी पर ईश्वर की गति है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-13

बेथम
जे. एस. मिल
कार्ल मार्क्स
हीगल

22 समाजिक संविदा का सिद्धांत मुख्य रूप से किस प्रकार के कार्य करने का प्रयत्न करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-18,प्रश्न-13

राज्य के ऐतिहासिक उद्गम का पता लगाना
राजनीतिक बाध्यता के आधार की व्याख्या करना
यथास्थिति का औचित्य स्थापित करना
क्रांति द्वारा समाज में आमूल परिवर्तन लाना

23 राजनीतिक न्याय से क्या तात्पर्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-3

सभी को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों
सभी को समान आर्थिक अधिकार प्राप्त हों
सभी को समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो
सभी को हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो।

24 लेसेज़ फेयर का क्या अभिप्राय है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-13

धर्मनिरपेक्ष
समाजवाद
व्यक्ति को अकेला छोड़ दो
उपरोक्त सभी

25 किसने कहा था कि राज्य को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3

प्लेटो
कार्ल मार्क्स
एडम स्मिथ
जॉन लॉक

26 निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4

ल्यूडोविकी
कार्ल मार्क्स
प्रौंधा
टेलीरैंड

27 माओ से-तुंग के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका कैसी होगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-13

प्रतिक्रियात्मक
शून्य
महत्त्वपूर्ण
महत्त्वहीन

28 "किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13

डायसी
लास्की
मेटलैंड
लॉर्ड ब्राइस

29 हेगेल ने सभ्य समाज को किस रूप में देखा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-78,प्रश्न-92

विशिष्टता के साकार रूप में
एकता के साकार रूप में
सार्वभौमिकता के साकार रूप में
समुदाय के साकार रूप में

30 "स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-3

सीले
प्लेटो
अरस्तू
जॉन लॉक

31 "राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का पदक्षेप है" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-14

काण्ट
हीगल
रूसो
बोसांके

32 निम्न वक्तव्यों में से कौन-सा वक्तव्य राज्य की उत्पत्ति के विषय में मार्क्सवादी सिद्धांत को स्पष्ट करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-14

राज्य की उत्पत्ति साधनों का विकास करने के उद्धेश्य से हुई
राज्य की उत्पत्ति उत्पादन की विधि में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से हुई
राज्य की उत्पत्ति उत्पादन के शोषणपरक संबंधों के रक्षार्थ हुई
राज्य की उत्पत्ति वर्गविहीन समाज के उद्देश्य से हुई

33 जॉन राल्स के की न्याय की धारणा क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-4

समाजवादी
उपयोगितावादी
समुदायवादी
उदारवादी

34 "राजनीति के बिना इतिहास निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14

सेबाइन
सीले
बार्कर
वेपर

35 संपत्ति के अधिकार की मांग किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-4

मार्क्सवाद
उदारवाद
समाजवाद
गांधीवाद

36 निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन रैली' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-5

एडम स्मिथ
इ. बर्क
हेरोल्ड लास्की
टी.वी. स्मिथ

37 'लोक युद्ध' की संकल्पना विकसित करने का श्रेय किसको जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-14

व्लादिमीर लेनिन
रूसो
ग्राम्सी
माओ से-तुंगत्से-तुंग

38 मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14

शक्ति संतुलन की व्यवस्था
उत्तर परमाणु युद्ध मॉडल
शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था
दृढ़ द्विध्रुवीय व्यवस्था

39 राजनीतिक संस्कृति का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-93

फाइनर
सिडनी वेब
आमंड
लासवेल

40 किसने कहा स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-4

बैंथम
जॉन लॉक
कांट
सीले

41 निम्न में किस विद्वान ने 'समाज को ईंट तथा राज्य को सीमेंट' कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-6,प्रश्न-15

आशीर्वादम
गिलक्रिस्ट
गेटेल
गार्नर

42 वर्तमान समय में राज्य की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत सबसे अधिक मान्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-15

ऐतिहासिक
आर्थिक
दैवी
शक्ति

43 "एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धांत का भौतिक अंग है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-5

जॉन राल्स
लॉर्ड एक्टन
टॉनी
जे.एस. मिल

44 "इतिहास का राजनीति विज्ञान के बिना फल नहीं तथा राजनीति विज्ञान का इतिहास के बिना जड़ नहीं" यह किसने कहा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-15

गार्नर
ब्लण्टशली
सीले
पॉल जेनेट

45 'सामाजिक अभियांत्रिकी' का सिद्धांत' प्रस्तुत करने वाले उदारवादी विचारक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-5

सी.बी. मैक्फर्सन
कार्ल जे. पॉपर
जॉन राल्स
एल.टी. हॉब हाऊस

46 प्रतिनिधित्व का कौन-सा सिद्धांत प्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिष्ठा देता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-6

प्रतिक्रियावादी सिद्धांत
अनुदारवादी सिद्धांत
उदारवादी सिद्धांत
क्रांतिकारी सिद्धांत

47 'श्रमिकों की तानाशाही' के सिद्धांत को किसने सुपरिष्कृत किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-15

कार्ल मार्क्स ने 'दास-कैपिटल' में
कार्ल मार्क्स एव ऐंजिल्स ने 'कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो' में
ऐंजिल्स ने 'आरिजिन ऑफ़ फैमिली प्राइवेट प्रॉपर्टी एंड स्टेट' में
लेनिन ने 'स्टे एंड रिवोल्यूशन' में

48 संरचनात्मक-प्रकार्यात्म क उपागम किसके नाम से जुड़ा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-15

आमंड और पावेल
डेविड ईस्टन
राबर्ट डाउल
ओ.आर. यंग

49 कौन-सी सत्ता प्रत्यायोजित नहीं की जानी चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-94

वित्त संबंधी शक्ति
नियम बनाने की शक्ति
नीति निर्धारित करने की शक्ति
इनमें से कोई नहीं

50 नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा निम्नलिखित में से किस एक पर बल देती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-5

समानता
स्वायत्तता
हस्तक्षेप की अनुपस्थिति
पसंद की स्वतंत्रता

51 किसने कहा "राजनीति शास्त्र का राज्य से प्रारंभ और राज्य के साथ ही अंत होता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-16

कोकर
सैबाइन
गार्नर
अरस्तू

52 राज्य की उत्पत्ति के संबंध में कौन-सा सिद्धांत सर्वमान्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-16

दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत
शक्ति का सिद्धांत
विकासवादी सिद्धांत
सामाजिक समझौता सिद्धांत

53 जॉन राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को क्या संज्ञा दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-6

वितरणात्मक न्याय
सर्वसुलभ न्याय
प्रत्ययात्मक न्याय
शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय

54 "शक्ति की राजनीति, लोक कल्याण की राजनीति, तकनीकी राजनीति तथा दलीय राजनीति की प्रवृत्ति केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति का मुख्य कारण रहा है"- किसने कहा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-16

प्रो.सी.एफ. स्ट्रांग
प्रो.के.सी ह्वीयर
प्रो. लास्की
जेम्स वाइस

55 निम्नलिखित में से किसका उदारवाद से मेल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-6

बुर्जुआ राज्य
प्रतिनिधि सरकार
लोक कल्याणकारी राज्य
सीमित सरकार

56 किसने कहा था- "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-7

गिलक्राइस्ट
प्रो. लास्की
गैटेल
गार्नर

57 लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-16

पूंजीवाद की निम्नतम अवस्था है।
पूंजीवाद का संकुचन है।
पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है।
पूंजीवाद का समाजवाद में विलय है।

58 निम्नलिखित में से कौन आमण्ड के हित-अभिव्यक्त करने वाली संरचनाओं के वर्गीकरण में शामिल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-16

संस्थात्मक संरचनाएं
समुदायात्मक संरचनाएं
प्रजातीय संरचनाएं
प्रदर्शनात्मक संरचनाएं

59 'मूल्य तटस्थता' निम्न में से किसकी विशेषता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-95

अराजकतावादियों की
बहुलवादियों की
मार्क्सवादियों की
व्यवहारवादियों की

60 "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-6

ग्रीन
जे.एस. मिल
जी.डी.एच. कोल
लास्की

61 "राजनीति शास्त्र का 'प्रारंभ और अंत' राज्य के साथ ही होता है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-17

लीकॉक
गिलक्राइस्ट
गार्नर
लास्की

62 राज्य की उत्पत्ति का सबसे सही सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-17

दैवी उत्पत्ति सिद्धांत
शक्ति सिद्धांत
पैतृक सिद्धांत
विकासकारी सिद्धांत

63 जॉन राल्स के अनुसार न्याय के क्या लक्षण हैं?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-7

न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है
प्रक्रियात्मक न्याय की प्रधानता
सामाजिक न्याय से सरोकार
उपर्युक्त सभी

64 "राजनीति विज्ञान शक्ति की रचना और भागीदारी का अध्ययन है।" यह परिभाषा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-17

आलमंड एंड पावेल
लासवेल व काप्लान
राबर्ट ए. डहल
गिलक्राइस्ट

65 उदारवाद का मौलिक सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-7

वैयक्तिक स्वतंत्रता
सामाजिक न्याय
समानता
राष्ट्रवाद

66 "सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन अभी मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।" यह किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-8

ब्राइस
अब्राहम लिंकन
लास्की
लॉवेल

67 राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर किस विचारक का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-17

प्लेटो
अरस्तू
कार्ल मार्क्स
जान लॉक

68 इनमें से किसे 'वैज्ञानिक प्रबंध का' पिता कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-17

एल्टन मेयो
बर्नार्ड
मैक्सवेबर
एफ.डब्ल्यू. टेलर

69 राजनीतिक चेतना का क्या अर्थ है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-96

समाज के प्रति प्रेम
धर्म के प्रति प्रेम
राज्य के प्रति प्रेम
सभ्यता/संस्कृति के प्रति प्रेम

70 "राजनीतिक समानता कभी वास्तविक नहीं हो सकती, यदि उसके साथ वास्तविक आर्थिक समानता न हो।' यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-7

कार्ल मार्क्स
जे.एस. मिल
लास्की
जी.डी.एच. कोल

71 शक्ति की अवधारणा सर्वप्रथम किसने दी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-18

मैकियावेली
कार्ल मार्क्स
लासवेल
बेकर

72 राज्य की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत काल्पनिक नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-18

दैवी सिद्धांत
शक्ति सिद्धांत
ऐतिहासिक सिद्धांत
सामाजिक समझौते का सिद्धांत

73 निम्नलिखित में से किसने यह विचार व्यक्त किया है- "यदि न्याय व्यवस्था न हो तो राज्य लुटेरों की टोली बन जाता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-8

प्लेटो
अरस्तू
सेंट ऑगस्टाइन
जॉन लॉक

74 किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18

कैटलिन
हैंस मार्गेन्थो
चार्ल्स हैगन
हेराल्ड लैसवेल तथा अब्राहम कैपलन

75 उदारवाद का मूल तत्व क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-8

वैयक्तिक स्वतंत्रता
मिश्रित अर्थव्यवस्था
पंथ निरपेक्षता
समानता

76 'मतों को गिना नहीं, तौला जाना चाहिए"- यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-9

ऑग
रेन
जे.एस. मिल
फाइनर

77 निम्न में विचारकों का कौन-सा युग्म वैज्ञानिक समाजवाद के संस्थापकों में माना जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-19

चार्ल्स फूरिये तथा सेंट साइमन
सिडनी वेब तथा बिएट्रिस वेब
कार्ल मार्क्स तथा ऐंजिल्स
आर. एच. टावनी तथा विलियम एबेंसटीन

78 इनमें से कौन यथार्थवादी नहीं था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-18

हॉब्स
थूसीडाइड्स
इमानुएल कांट
मैकियावेली

79 निम्न में से कौन अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राज्य के केंद्रीय महत्त्व पर सहमत नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-97

बहुलवादी
यथार्थवादी
नव-यथार्थवादी
संरचनात्मक यथार्थवादी

80 "आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता एक भ्रम है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-8

कोल
लॉर्ड एक्टन
मेटरलैंड
बार्कर

81 राज्य शब्द का पहली बार प्रयोग किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-19

प्लेटो
अरस्तू
मैकियावेली
हॉब्स

82 निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-19

राज्य का दैवी सिद्धांत
समझौता सिद्धांत
विकासवादी सिद्धांत
उपर्युक्त सभी

83 "यदि न्याय को पृथक कर दिया जाए तो राज्य एक लुटेरे की संपत्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-9

सालमंड
सेंट ऑगस्टाइन
कांट
बेंथम

84 आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19

डेविड ईस्टन
राबर्ट डाल
लासवेल
आर्थर बेंटलें

85 उदारवाद किसका हित चाहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-10

अभिजात्य वर्ग का
धनवानों का
निर्धनों का
सब का

86 किसने कहा "प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक शक्ति की हिस्सेदारी होती है?" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-10

ब्राइस
डायसी
सीले
डा. बेनी प्रसाद

87 "हरेक से अपनी क्षमता के अनुसार, हरेक को अपनी आवश्यकता के अनुसार।" यह सूत्र किस व्यवस्था का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-20

पूंजीवादी
समाजवादी
साम्यवादी
राष्ट्रवादी

88 इनमें से किसने कहा था कि 'ज्ञान शक्ति है'? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-19

अरस्तू
फ़्रांसिस बेकन
मिल
हीगल

89 अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में यर्थाथवादी सिद्धांत तीन मान्यताओं पर आधारित है। निम्न में से कौन-सी एक आधारभूत मान्यता नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-98

राजनेता अपने राष्ट्र-हितों की आकांक्षा करता है और उन्हें आगे बढ़ाता है।
राष्ट्रीय हितों के लक्ष्यों को पूरा करने में राजनेता नैतिक सिद्धांतों को ध्यान मे रखते हैं।
प्रत्येक राज्य का बहुराष्ट्रीय हित उसके प्रभाव के विस्तार में निहित है।
राज्य अपने हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपनी शक्ति अथवा प्रभाव का प्रयोग करता है।

90 निम्नलिखित में से किस एक विचारक ने स्वतंत्रता तथा समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-9

लॉर्ड एक्टन
मैकाइवर
मैकियावेली
डी. टाकविल

91 किस राजनीतिक विचारक ने आधुनिक काल में 'राज्य' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-20

प्लेटो
बोदां
मैकियावेली
हॉब्स

92 'सामाजिक संविदा' का लेखक कौन था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-20

बोदां
गार्नर
जवाहरलाल नेहरू
रूसो

93 "जिन राज्यों में न्याय नहीं होता, वह डाकुओं का समूह है।" यह शब्द निम्न में से किनके हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-10

प्लेटो
अरस्तू
सुकरात
सेंट ऑगस्टाइन

94 कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20

शक्ति का अध्ययन
सार्वजनिक सहमति का अध्ययन
संघर्ष का तनाव का अध्ययन
मानव-स्वभाव का अध्ययन

95 निम्नलिखित में से कौन-सा सही सुमेलित है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-11

उदारवाद मिश्रण है लोकतंत्र व व्यक्तिवाद का
उदारवाद मिश्रण है साम्यवाद व व्यक्तिवाद का
उदारवाद मिश्रण है समाजवाद व बाहुलवाद का
उदारवाद मिश्रण है व्यक्तिवाद व मार्क्सवाद का

96 "यदि अतिसमानता से प्रजातंत्र भ्रष्ट होता है तो साथ ही अतिसमानता की भावना से भी वह नष्ट हो जाएग।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-46,प्रश्न-11

मान्टेस्क्यू
अरस्तू
मैकियावेली
जे.एस. मिल

97 "राज्य के लुप्त हो जाने का विचार" निम्न में से किससे संबंधित है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-21

उदारवाद
समाजवाद
साम्यवाद
श्रेणी समाजवाद

98 'शासकीय विचारधारा' की संकल्पना इनमें से किसकी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-20

परेटो
माइकल्स
मोस्का
रॉबर्ट डाहल

99 'सामुदायिकतावाद' एक किसकी प्रमुख धारा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-80,प्रश्न-100

उदारवाद
मार्क्सवाद
सर्वाधिकारवाद
प्रत्ययवाद

100 जॉन स्टुअर्ड मिल के स्वतंत्रता के सिद्धांत के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-10

जॉन स्टुअर्ड मिल की स्वतंत्रता की अवधारणा उपयोगितावाद से तार्किक रूप से सुसंगत है।
मिल की स्वतंत्रता की अवधारणा उपयोगितावाद से विसंगत है।
अधिकतम लोगों के अधिकतम हित की प्राप्ति में मिल स्वतंत्रता को अपरिहार्य साधन मानता है।
जॉन स्टुअर्ड मिल का विचार है कि स्वतंत्रता के बिना मनुष्य वौद्धिक और नैतिक पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता तथा विकास और एक आदर्श मनुष्य नहीं बन सकता।