हेमन्त ऋतु

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हेमन्त ऋतु भारत की 6 ऋतुओं में से एक ऋतु है। विक्रमी संवत के अनुसार हेमंत ऋतु में कार्तिक, अगहन और पौष मास पड़ते हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है। शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर। दोनों ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है।

साहित्यिक उल्लेख

ऋतुसंहारम्‌ में महाकवि कालिदास ने हेमंत ऋतु का वर्णन कुछ यूँ किया है-
नवप्रवालोद्रमसस्यरम्यः प्रफुल्लोध्रः परिपक्वशालिः।
विलीनपद्म प्रपतत्तुषारोः हेमंतकालः समुपागता-यम्‌॥
अर्थात बीज अंकुरित हो जाते हैं, लोध्र पर फूल आ चुके हैं, धान पक गया और कटने को तैयार है, लेकिन कमल नहीं दिखाई देते हैं और स्त्रियों को श्रृंगार के लिए अन्य पुष्पों का उपयोग करना पड़ता है। ओस की बूँदें गिरने लगी हैं और यह समय पूर्व शीतकाल है। महिलाएँ चंदन का उबटन और सुगंध उपयोग करती हैं। खेत और सरोवर देख लोगों के दिल हर्षित हो जाते हैं। राजस्थान में तो लोक मानस जाड़े की अनेक मधुर कल्पनाओं से सुरूचित साहित्य रचता रहा है। राजस्थानी में शीतकाल को सियाला कहते हैं। नायिका सियाले में अकेले नहीं रहना चाहती। वह नायक को परदेश जाने से रोकती है "अकेले मत छोड़ोजी सियाला में।" रचनाकार मलिक मुहम्मद जायसी ने षट् ऋतु वर्णन खंड में कुछ यूँ कहा है-

ऋतु हेमंत संग पिएउ पियाला।
अगहन पूस सीत सुख-काला॥
धनि औ पिउ महँ सीउ सोहागा।
दुहुँन्ह अंग एकै मिलि लागा।

आयुर्वेद में हेमंत ऋतु को सेहत बनाने की ऋतु कहा गया है। हेमंत में शरीर के दोष शांत स्थिति में होते हैं। अग्नि उच्च होती है इसलिए वर्ष का यह सबसे स्वास्थ्यप्रद मौसम होता है, जिसमें भरपूर ऊर्जा, शरीर की उच्च प्रतिरक्षा शक्ति तथा अग्नि चिकित्सकों को छुट्टी पर भेज देती है। इस ऋतु में शरीर की तेल मालिश और गर्म जल से स्नान की आवश्यकता महसूस होती है। कसरत और अच्छी मात्रा में खठ्ठा-मीठा और नमकीन खाद्य शरीर की अग्नि को बढ़ाते हैं। हेमंत ऋतु में शीत वायु के लगने से अग्नि वृद्घि होती है। चरक ने कहा है- "शीते शीतानिलस्पर्शसंरुद्घो बलिनां बलीः।
पक्ता भवति..."
शरद के बाद इस ऋतु में मौसम सुहावना होता है। जलवायु अच्छी होती है। तेज धूप से कीड़े-मकोड़ों का संहार हो जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह उत्तम समय होता है। छः-छः मास के दो अयन होते हैं। दक्षिणायन में पावस, शरद और हेमंत ऋतु तथा शिशिर, बसंत तथा ग्रीष्म उत्तरायन की ऋतुएँ हैं।[1]

धार्मिक महत्त्व

हेमंत ऋतु अर्थात् मार्गशीष और पौष मास में वृश्चिक और धनु राशियाँ संक्रमण करती हैं। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। कार्तिक मास में करवा चौथ, धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज आदि तीज-त्योहार आते हैं, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होता है। इस माह में उज्जैन में महाकालेश्वर की दो सवारी कार्तिक और दो सवारी अगहन मास में निकलती हैं। कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह होता है और चातुर्मास की समाप्ति होती है, तो बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन भी इसी मास में हो जाता है। अगहन अर्थात् मार्गशीर्ष मास में गीता जयंती, सोमवती अमावस्या के अलावा काल भैरव तथा आताल-पाताल भैरव की सवारी भी निकलती है। पौष मास में हनुमान अष्टमी, पार्श्वनाथ जयंती आदि के अलावा रविवार को सूर्य उपासना का विशेष महत्व है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत की ऋतुएं (हिंदी) अनुष एक्टीविटी (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2018।
  2. हेमंत की सुंदर ऋतु और धर्म (हिंदी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 23 जनवरी, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

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