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'''असीघाट''' [[भारत]] की प्राचीन नगरी [[वाराणसी]] ([[काशी]], बनारस) में [[गंगा नदी]] के तट पर स्थित है। यह दक्षिण की ओर स्थित अंतिम घाट है। इस घाट के पास कई मंदिर ओर अखाड़े हैं। असीघाट के उत्तर में 'जगन्नाथ मंदिर' है, जहाँ प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।
 
'''असीघाट''' [[भारत]] की प्राचीन नगरी [[वाराणसी]] ([[काशी]], बनारस) में [[गंगा नदी]] के तट पर स्थित है। यह दक्षिण की ओर स्थित अंतिम घाट है। इस घाट के पास कई मंदिर ओर अखाड़े हैं। असीघाट के उत्तर में 'जगन्नाथ मंदिर' है, जहाँ प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
इस घाट का निर्माण महाराजा, बनारस ने करवाया था। इस घाट पर स्थित मंदिर 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के हैं, लक्ष्मीनारायण मंदिर पंचायतन शैली का है, यह मंदिर न केवल तीन अलग-अलग देवताओं से सम्बन्धित है बल्कि नागर स्थापत्य शैलियों को भी दर्शाते हैं। असिसंगमेश्वर मंदिर काशीखण्ड में वर्णित शिव मंदिरों में से एक है, जिसके दर्शन-पूजन का विशेष महात्मय है। जगन्नाथ मंदिर [[पुरी]] के [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मंदिर]] का प्रतीक रूप है, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इस मन्दिर का निर्माण जगन्नाथपुरी ([[उड़ीसा]]) के महन्त ने करवाया था, [[ब्रह्मवैवर्तपुराण]] में काशी के सात पुरियों कि स्थिति के संदर्भ में इसे काशी का [[हरिद्वार]] क्षेत्र माना गया है। इसके अतिरिक्त नृसिंह, मयूरेश्वर तथा बाणेश्वर मंदिर इस घाट क्षेत्र में स्थित है। काशीखण्ड के अनुसार संसार के अन्य सभी तीर्थ इसके सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं, अतः इस घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। पूर्व में इस घाट का सम्पूर्ण क्षेत्र वर्तमान भदैनीघाट तक था, तुलसीदास जी ने इसी घाट पर एक गुफा में निवास कर ‘[[रामचरितमानस]]’ की रचना की और [[संवत्]] 1680 में इसी घाट पर उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। 19वीं शताब्दी के बाद यह घाट पाँच घाटों अस्सी, [[गंगामहल घाट वाराणसी|गंगामहल (प्रथम)]], [[रीवां घाट वाराणसी|रीवां]], [[तुलसीघाट वाराणसी|तुलसी]] तथा [[भदैनी घाट वाराणसी|भदैनी घाटों]] में विभाजित हो गया। सन् [[1902]] में [[बिहार]] राज्य के सुरसण्ड स्टेट की महारानी दुलहिन राधा दुलारी कुंवर ने तत्कालीन काशी नरेश प्रभुनारायण सिंह से घाट तथा मंदिर निर्माण हेतु जमीन को क्रय कर लिया, [[जून]] [[1927]] ई. को महारानी की आकस्मिक मृत्यु के कारण घाट का निर्माण नहीं हो पाया लेकिन उनके द्वारा निर्मित लक्ष्मीनारायण पंचरत्न मंदिर उनकी धार्मिकता एवं कलाप्रियता का प्रतीक है। सन् [[1988]] में राज्य सरकार के सहयोग से इस घाट का पक्का निर्माण कराया गया।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F/ |title=प्राचीन घाट |accessmonthday=10 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=काशी कथा |language=हिंदी }}</ref>
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इस घाट का निर्माण महाराजा, बनारस ने करवाया था। इस घाट पर स्थित मंदिर 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के हैं, लक्ष्मीनारायण मंदिर पंचायतन शैली का है, यह मंदिर न केवल तीन अलग-अलग देवताओं से सम्बन्धित है बल्कि नागर स्थापत्य शैलियों को भी दर्शाते हैं। असिसंगमेश्वर मंदिर काशीखण्ड में वर्णित शिव मंदिरों में से एक है, जिसके दर्शन-पूजन का विशेष महात्मय है। जगन्नाथ मंदिर [[पुरी]] के [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मंदिर]] का प्रतीक रूप है, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इस मन्दिर का निर्माण जगन्नाथपुरी ([[उड़ीसा]]) के महन्त ने करवाया था, [[ब्रह्मवैवर्तपुराण]] में काशी के सात पुरियों कि स्थिति के संदर्भ में इसे काशी का [[हरिद्वार]] क्षेत्र माना गया है। इसके अतिरिक्त नृसिंह, मयूरेश्वर तथा बाणेश्वर मंदिर इस घाट क्षेत्र में स्थित है। काशीखण्ड के अनुसार संसार के अन्य सभी तीर्थ इसके सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं, अतः इस घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। पूर्व में इस घाट का सम्पूर्ण क्षेत्र वर्तमान भदैनीघाट तक था, तुलसीदास जी ने इसी घाट पर एक गुफा में निवास कर ‘[[रामचरितमानस]]’ की रचना की और [[संवत्]] 1680 में इसी घाट पर उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। 19वीं शताब्दी के बाद यह घाट पाँच घाटों अस्सी, [[गंगामहल घाट वाराणसी|गंगामहल (प्रथम)]], [[रीवां घाट वाराणसी|रीवां]], [[तुलसीघाट वाराणसी|तुलसी]] तथा [[भदैनी घाट वाराणसी|भदैनी घाटों]] में विभाजित हो गया। सन् [[1902]] में [[बिहार]] राज्य के सुरसण्ड स्टेट की महारानी दुलहिन राधा दुलारी कुंवर ने तत्कालीन काशी नरेश प्रभुनारायण सिंह से घाट तथा मंदिर निर्माण हेतु जमीन को क्रय कर लिया, [[जून]] [[1927]] ई. को महारानी की आकस्मिक मृत्यु के कारण घाट का निर्माण नहीं हो पाया लेकिन उनके द्वारा निर्मित लक्ष्मीनारायण पंचरत्न मंदिर उनकी धार्मिकता एवं कलाप्रियता का प्रतीक है। सन् [[1988]] में राज्य सरकार के सहयोग से इस घाट का पक्का निर्माण कराया गया।<ref>{{cite web |url=http://www.kashikatha.com/%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A5%80%E0%A4%A8-%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F/ |title=प्राचीन घाट |accessmonthday=10 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=काशी कथा |language=हिंदी }}</ref>
 
==भौगोलिक विश्लेषण==
 
==भौगोलिक विश्लेषण==
 
असीघाट [[वाराणसी]] के दक्षिणी छोर पर गंगा व [[असि नदी]] के संगम पर स्थित है। असी घाट-अस्सी घाट के नाम से भी जाना जाता है जो संख्या सूचक एवं असि का अपभ्रंश मालूम पड़ता है। अस्सी घाट काशी के महत्वपूर्ण प्राचीन घाटों में से एक है, यदि गंगा के धारा के साथ-साथ चलें तो यह वाराणसी का प्रथम घाट तथा काशी की दक्षिण सीमा पर गंगा और असि (वर्तमान में विलुप्त) नदियों के संगम पर स्थित है।  
 
असीघाट [[वाराणसी]] के दक्षिणी छोर पर गंगा व [[असि नदी]] के संगम पर स्थित है। असी घाट-अस्सी घाट के नाम से भी जाना जाता है जो संख्या सूचक एवं असि का अपभ्रंश मालूम पड़ता है। अस्सी घाट काशी के महत्वपूर्ण प्राचीन घाटों में से एक है, यदि गंगा के धारा के साथ-साथ चलें तो यह वाराणसी का प्रथम घाट तथा काशी की दक्षिण सीमा पर गंगा और असि (वर्तमान में विलुप्त) नदियों के संगम पर स्थित है।  
 
==आस्था एवं आकर्षण का केन्द्र==  
 
==आस्था एवं आकर्षण का केन्द्र==  
यह घाट सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक मस्ती के स्वरूप में वाराणसी का केन्द्र है, इस घाट पर दैनिक स्नानार्थियों की भीड़ सर्वाधिक होती है। प्रातः चार बजे से ही लोग इस घाट पर जमघट लगाना आरम्भ कर देते हैं और यह क्रिया कलाप पूरे दिन इसी तरह से चलता रहता है, सूर्यास्त के पश्चात इस घाट पर प्रशिक्षित पण्डों द्वारा मंत्रों एवं घण्ट-घड़ियालों के गूंज के साथ गंगा आरती का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। जन्म, मुण्डन संस्कार, [[उपनयन संस्कार|उपनयन]], [[विवाह]], गंगा पुजईया आदि मांगलिक कार्य, उत्सव इस घाट पर साक्षी के रूप में सम्पन्न किये जाते हैं। यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। वाराणसी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी में लगभग 84 घाट हैं। ये घाट लगभग 4 मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं। [[वाराणसी के घाट|वाराणसी के 84 घाटों]] में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्‍हें सामूहिक रूप से 'पंचतीर्थ' कहा जाता है। ये पाँच निम्नलिखित हैं-
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यह घाट सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक मस्ती के स्वरूप में वाराणसी का केन्द्र है, इस घाट पर दैनिक स्नानार्थियों की भीड़ सर्वाधिक होती है। प्रातः चार बजे से ही लोग इस घाट पर जमघट लगाना आरम्भ कर देते हैं और यह क्रिया कलाप पूरे दिन इसी तरह से चलता रहता है, सूर्यास्त के पश्चात् इस घाट पर प्रशिक्षित पण्डों द्वारा मंत्रों एवं घण्ट-घड़ियालों के गूंज के साथ गंगा आरती का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। जन्म, मुण्डन संस्कार, [[उपनयन संस्कार|उपनयन]], [[विवाह]], गंगा पुजईया आदि मांगलिक कार्य, उत्सव इस घाट पर साक्षी के रूप में सम्पन्न किये जाते हैं। यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। वाराणसी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी में लगभग 84 घाट हैं। ये घाट लगभग 4 मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं। [[वाराणसी के घाट|वाराणसी के 84 घाटों]] में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्‍हें सामूहिक रूप से 'पंचतीर्थ' कहा जाता है। ये पाँच निम्नलिखित हैं-
 
#असी घाट
 
#असी घाट
 
#[[दशाश्वमेध घाट वाराणसी|दशाश्वमेध घाट]]
 
#[[दशाश्वमेध घाट वाराणसी|दशाश्वमेध घाट]]
 
#[[आदिकेशव घाट वाराणसी|आदिकेशव घाट]]
 
#[[आदिकेशव घाट वाराणसी|आदिकेशव घाट]]
 
#[[पंचगंगा घाट वाराणसी|पंचगंगा घाट]]
 
#[[पंचगंगा घाट वाराणसी|पंचगंगा घाट]]
#[[मणिकार्णिका घाट वाराणसी|मणिकार्णिका घाट]]
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07:42, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

असी घाट वाराणसी
असी घाट, वाराणसी
विवरण असीघाट भारत की प्राचीन नगरी वाराणसी (काशी, बनारस) में गंगा नदी के तट पर स्थित है।
नगर वाराणसी
राज्य उत्तर प्रदेश
निर्माता महाराजा बनारस
विशेष जन्म, मुण्डन संस्कार, उपनयन, विवाह, गंगापूजा आदि मांगलिक कार्य, उत्सव इस घाट पर साक्षी के रूप में सम्पन्न किये जाते हैं।
अन्य जानकारी असीघाट के उत्तर में 'जगन्नाथ मंदिर' है, जहाँ प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है।

असीघाट भारत की प्राचीन नगरी वाराणसी (काशी, बनारस) में गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह दक्षिण की ओर स्थित अंतिम घाट है। इस घाट के पास कई मंदिर ओर अखाड़े हैं। असीघाट के उत्तर में 'जगन्नाथ मंदिर' है, जहाँ प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।

इतिहास

इस घाट का निर्माण महाराजा, बनारस ने करवाया था। इस घाट पर स्थित मंदिर 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के हैं, लक्ष्मीनारायण मंदिर पंचायतन शैली का है, यह मंदिर न केवल तीन अलग-अलग देवताओं से सम्बन्धित है बल्कि नागर स्थापत्य शैलियों को भी दर्शाते हैं। असिसंगमेश्वर मंदिर काशीखण्ड में वर्णित शिव मंदिरों में से एक है, जिसके दर्शन-पूजन का विशेष महात्मय है। जगन्नाथ मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर का प्रतीक रूप है, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इस मन्दिर का निर्माण जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) के महन्त ने करवाया था, ब्रह्मवैवर्तपुराण में काशी के सात पुरियों कि स्थिति के संदर्भ में इसे काशी का हरिद्वार क्षेत्र माना गया है। इसके अतिरिक्त नृसिंह, मयूरेश्वर तथा बाणेश्वर मंदिर इस घाट क्षेत्र में स्थित है। काशीखण्ड के अनुसार संसार के अन्य सभी तीर्थ इसके सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं, अतः इस घाट पर स्नान करने से सभी तीर्थों में स्नान करने का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। पूर्व में इस घाट का सम्पूर्ण क्षेत्र वर्तमान भदैनीघाट तक था, तुलसीदास जी ने इसी घाट पर एक गुफा में निवास कर ‘रामचरितमानस’ की रचना की और संवत् 1680 में इसी घाट पर उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया। 19वीं शताब्दी के बाद यह घाट पाँच घाटों अस्सी, गंगामहल (प्रथम), रीवां, तुलसी तथा भदैनी घाटों में विभाजित हो गया। सन् 1902 में बिहार राज्य के सुरसण्ड स्टेट की महारानी दुलहिन राधा दुलारी कुंवर ने तत्कालीन काशी नरेश प्रभुनारायण सिंह से घाट तथा मंदिर निर्माण हेतु जमीन को क्रय कर लिया, जून 1927 ई. को महारानी की आकस्मिक मृत्यु के कारण घाट का निर्माण नहीं हो पाया लेकिन उनके द्वारा निर्मित लक्ष्मीनारायण पंचरत्न मंदिर उनकी धार्मिकता एवं कलाप्रियता का प्रतीक है। सन् 1988 में राज्य सरकार के सहयोग से इस घाट का पक्का निर्माण कराया गया।[1]

भौगोलिक विश्लेषण

असीघाट वाराणसी के दक्षिणी छोर पर गंगा व असि नदी के संगम पर स्थित है। असी घाट-अस्सी घाट के नाम से भी जाना जाता है जो संख्या सूचक एवं असि का अपभ्रंश मालूम पड़ता है। अस्सी घाट काशी के महत्वपूर्ण प्राचीन घाटों में से एक है, यदि गंगा के धारा के साथ-साथ चलें तो यह वाराणसी का प्रथम घाट तथा काशी की दक्षिण सीमा पर गंगा और असि (वर्तमान में विलुप्त) नदियों के संगम पर स्थित है।

आस्था एवं आकर्षण का केन्द्र

यह घाट सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक मस्ती के स्वरूप में वाराणसी का केन्द्र है, इस घाट पर दैनिक स्नानार्थियों की भीड़ सर्वाधिक होती है। प्रातः चार बजे से ही लोग इस घाट पर जमघट लगाना आरम्भ कर देते हैं और यह क्रिया कलाप पूरे दिन इसी तरह से चलता रहता है, सूर्यास्त के पश्चात् इस घाट पर प्रशिक्षित पण्डों द्वारा मंत्रों एवं घण्ट-घड़ियालों के गूंज के साथ गंगा आरती का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। जन्म, मुण्डन संस्कार, उपनयन, विवाह, गंगा पुजईया आदि मांगलिक कार्य, उत्सव इस घाट पर साक्षी के रूप में सम्पन्न किये जाते हैं। यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। वाराणसी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी में लगभग 84 घाट हैं। ये घाट लगभग 4 मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं। वाराणसी के 84 घाटों में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्‍हें सामूहिक रूप से 'पंचतीर्थ' कहा जाता है। ये पाँच निम्नलिखित हैं-

  1. असी घाट
  2. दशाश्वमेध घाट
  3. आदिकेशव घाट
  4. पंचगंगा घाट
  5. मणिकर्णिका घाट


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्राचीन घाट (हिंदी) काशी कथा। अभिगमन तिथि: 10 जनवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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