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हाल में हुए शोध ने गाँधी जी की भूमिका महान मध्यस्थ और संधि कराने वाले के रूप में स्थापित की है। यह तो होना ही था कि जनमानस में उनकी राजनेता-छवि अधिक विशाल हो, किन्तु उनके जीवन का मूल राजनीति नहीं, धर्म में निहित था और उनके लिए धर्म का अर्थ औपचारिकता, रूढ़ि, रस्म-रिवाज और साम्प्रदायिकता नहीं था। उन्होंने अपनी [[आत्मकथा]] में लिखा है-
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हाल में हुए शोध ने गाँधी जी की भूमिका महान् मध्यस्थ और संधि कराने वाले के रूप में स्थापित की है। यह तो होना ही था कि जनमानस में उनकी राजनेता-छवि अधिक विशाल हो, किन्तु उनके जीवन का मूल राजनीति नहीं, धर्म में निहित था और उनके लिए धर्म का अर्थ औपचारिकता, रूढ़ि, रस्म-रिवाज और साम्प्रदायिकता नहीं था। उन्होंने अपनी [[आत्मकथा]] में लिखा है-
  
 
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देश की राजधानी [[नई दिल्ली]] में 'तीस जनवरी मार्ग' पर स्थित 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' का सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, पर्यटकीय महत्व भी है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों में यह बेहद लोकप्रिय है। इसे देखे बिना वे [[दिल्ली]] या देश के पर्यटन को अधूरा मानते हैं। गाँधीवादियों के लिए तो यह तीर्थ स्थल ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी अंतिम सांसें यहीं ली थीं। आज जो स्थान 'गाँधी स्मृति' के नाम से जाना जाता है, वह कभी 'बिड़ला हाउस' कहलाता था। जिस श्रद्धा से लोग यहाँ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े स्मृति चिह्नों को देखते हैं, उतने ही शौक और शिद्दत से 'बिड़ला हाउस' के प्रांगण में घूमते भी हैं। 'बिड़ला हाउस' के बारे में कहा जाता है कि 'बापू' जब भी दिल्ली आते थे, अपने अनुयायी [[घनश्याम दास बिरला]] के इसी आलीशान घर में ठहरते थे। शाम को पांच बजे प्रार्थना सभा के दौरान वह लोगों से यहीं मिलते थे और उनसे बातें करते थे। 'बिड़ला हाउस' का भारत सरकार द्वारा [[1971]] में अधिग्रहण किया गया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। [[15 अगस्त]], [[1973]] को इसे [[भारत]] की आम जनता के लिए खोल दिया गया।
 
देश की राजधानी [[नई दिल्ली]] में 'तीस जनवरी मार्ग' पर स्थित 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' का सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, पर्यटकीय महत्व भी है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों में यह बेहद लोकप्रिय है। इसे देखे बिना वे [[दिल्ली]] या देश के पर्यटन को अधूरा मानते हैं। गाँधीवादियों के लिए तो यह तीर्थ स्थल ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी अंतिम सांसें यहीं ली थीं। आज जो स्थान 'गाँधी स्मृति' के नाम से जाना जाता है, वह कभी 'बिड़ला हाउस' कहलाता था। जिस श्रद्धा से लोग यहाँ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े स्मृति चिह्नों को देखते हैं, उतने ही शौक और शिद्दत से 'बिड़ला हाउस' के प्रांगण में घूमते भी हैं। 'बिड़ला हाउस' के बारे में कहा जाता है कि 'बापू' जब भी दिल्ली आते थे, अपने अनुयायी [[घनश्याम दास बिरला]] के इसी आलीशान घर में ठहरते थे। शाम को पांच बजे प्रार्थना सभा के दौरान वह लोगों से यहीं मिलते थे और उनसे बातें करते थे। 'बिड़ला हाउस' का भारत सरकार द्वारा [[1971]] में अधिग्रहण किया गया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। [[15 अगस्त]], [[1973]] को इसे [[भारत]] की आम जनता के लिए खोल दिया गया।
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[[महात्मा गाँधी]] सिर्फ़ एक नाम ही नहीं, एक पूरी विचाराधारा है। जितना ज़्यादा समझने की कोशिश होती है, उतनी ही नई बातें सामने आती हैं। साबरमती के संत महात्मा गाँधी से सम्बंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं-
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|महात्मा गाँधी जीवन भर हर दिन 18 कि.मी. की पदयात्रा करते रहे। बताया जाता है कि वह रोज़ लगभग 800 शब्द लिखते थे। इनमें राजनीति, आज़ादी और समानता से जुड़े तमाम विषयों पर लिखे गए उनके लेख शामिल हैं।
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|[[दक्षिण अफ़्रीका]] में उन्हें सालाना 15,000 डॉलर की तनख्याह मिलती थी। यह उस समय के हिसाब से काफ़ी बड़ी रकम थी, लेकिन गाँधी जी वह सब छोड़कर भारत लौटे और सत्याग्रही बन गए।
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|गाँधी जी पहले ऐसे भारतीय थे, जिसे [[अमेरिका]] की साप्ताहिक [[पत्रिका]] द्वारा हर साल दिया जाने वाला 'टाइम पर्सन ऑफ़ द ईयर' टाइटल दिया गया।
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|[[तमिलनाडु]] के [[मदुरई]] में जब गाँधी जी का कुछ ग़रीब लोगों से सामना हुआ, तब उन्होंने जीवन भर के लिए वस्त्र त्याग कर सिर्फ़ धोती पहनने का निर्णय लिया।<ref>अनादि से अंत तक, गाँधी के लिए जगह -अमर उजाला, 22 जनवरी, 2017</ref>
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11:20, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

महात्मा गाँधी विषय सूची
महात्मा गाँधी का इतिहास में स्थान
Mahatma-Gandhi-2.jpg
पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी
अन्य नाम बापू, महात्मा जी
जन्म 2 अक्तूबर, 1869
जन्म भूमि पोरबंदर, गुजरात
मृत्यु 30 जनवरी, 1948
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
मृत्यु कारण हत्या
अभिभावक करमचंद गाँधी, पुतलीबाई
पति/पत्नी कस्तूरबा गाँधी
संतान हरिलाल, मनिलाल, रामदास, देवदास
स्मारक राजघाट (दिल्ली), बिरला हाउस (दिल्ली) आदि।
पार्टी काँग्रेस
शिक्षा बैरिस्टर
विद्यालय बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
संबंधित लेख गाँधी युग, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन, दांडी मार्च, व्यक्तिगत सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, ख़िलाफ़त आन्दोलन

गाँधी जी के प्रति अंग्रेज़ों का रुख़ प्रशंसा, कौतुक, हैरानी, शंका और आक्रोश का मिला-जुला रूप था। गाँधी जी के अपने ही देश में, उनकी अपनी ही पार्टी में, उनके आलोचक थे। नरमपंथी नेता यह कहते हुए विरोध करते थे कि वह बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। युवा गरमपंथियों की शिकायत यह थी कि वे तेज़ी से नहीं हैं। वामपंथी नेता आरोप लगाते थे कि वह अंग्रेज़ों को बाहर निकालने या रजवाड़ों और सामंतों का समाप्त करने के प्रति गम्भीर नहीं हैं। दलितों के नेता समाज सुधारक के रूप में उनके सदभाव पर शंका करते थे और मुसलमान नेता उन पर अपने समुदाय के साथ भेदभाव का आरोप लगाते थे।

मेरी मान्यता है कि कोई भी राष्ट्र धर्म के बिना वास्तविक प्रगति नहीं कर सकता। -महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी पर शोध

गाँधी कुल का वंश वृक्ष

हाल में हुए शोध ने गाँधी जी की भूमिका महान् मध्यस्थ और संधि कराने वाले के रूप में स्थापित की है। यह तो होना ही था कि जनमानस में उनकी राजनेता-छवि अधिक विशाल हो, किन्तु उनके जीवन का मूल राजनीति नहीं, धर्म में निहित था और उनके लिए धर्म का अर्थ औपचारिकता, रूढ़ि, रस्म-रिवाज और साम्प्रदायिकता नहीं था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है-

"मैं इन तीस वर्षों में ईश्वर को आमने-सामने देखने का प्रयत्न और प्रार्थना करता हूँ।"

उनके महानतम प्रयास आध्यात्मिक थे। लेकिन अपने अनेक ऐसे ही इच्छुक देशवासियों के समान उन्होंने ध्यान लगाने के लिए हिमालय की गुफ़ाओं में शरण नहीं ली। उनकी राय में वह अपनी गुफ़ा अपने भीतर ही साथ लिए चलते थे। उनके लिए सच्चाई ऐसी वस्तु नहीं थी, जिसे निजी जीवन के एकांत में ढूँढा जा सके। वह सामजिक और राजनीतिक जीवन के चुनौतीपूर्ण क्षणों में क़ायम रखने की चीज़ थी। अपने लाखों देशवासियों की नज़रों में वह 'महात्मा' थे। उनके आने-जाने के मार्ग पर उन्हें देखने के लिए एकत्र भीड़ द्वारा अंधश्रद्धा से उनकी यात्राएँ कठिन हो जाती थीं। वह मुश्किल से दिन में काम कर पाते थे या रात को विश्राम। उन्होंने लिखा है कि- "महात्माओं के कष्ट सिर्फ़ महात्मा ही जानते हैं।"

गाँधी के प्रशंसक

गाँधी जी के सबसे बड़े प्रशंसकों में अलबर्ट आइंस्टाइन भी थे, जिन्होंने गाँधी जी के अहिंसा के सिद्धांत को अणु के विखण्डन से पैदा होने वाली दानवाकार हिंसा की प्रतिकारी औषधि के रूप में देखा। स्वीडन के अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल ने अविकसित विश्व खंड की समस्याओं के सामाजिक, आर्थिक सर्वेक्षण के बाद गाँधी जी को लगभग सभी क्षेत्रों में एक ज्ञानवार उदार व्यक्ति की संज्ञा दी।

गाँधी स्मृति संग्रहालय

देश की राजधानी नई दिल्ली में 'तीस जनवरी मार्ग' पर स्थित 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' का सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, पर्यटकीय महत्व भी है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों में यह बेहद लोकप्रिय है। इसे देखे बिना वे दिल्ली या देश के पर्यटन को अधूरा मानते हैं। गाँधीवादियों के लिए तो यह तीर्थ स्थल ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी अंतिम सांसें यहीं ली थीं। आज जो स्थान 'गाँधी स्मृति' के नाम से जाना जाता है, वह कभी 'बिड़ला हाउस' कहलाता था। जिस श्रद्धा से लोग यहाँ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े स्मृति चिह्नों को देखते हैं, उतने ही शौक और शिद्दत से 'बिड़ला हाउस' के प्रांगण में घूमते भी हैं। 'बिड़ला हाउस' के बारे में कहा जाता है कि 'बापू' जब भी दिल्ली आते थे, अपने अनुयायी घनश्याम दास बिरला के इसी आलीशान घर में ठहरते थे। शाम को पांच बजे प्रार्थना सभा के दौरान वह लोगों से यहीं मिलते थे और उनसे बातें करते थे। 'बिड़ला हाउस' का भारत सरकार द्वारा 1971 में अधिग्रहण किया गया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। 15 अगस्त, 1973 को इसे भारत की आम जनता के लिए खोल दिया गया।

विशेष तथ्य

महात्मा गाँधी सिर्फ़ एक नाम ही नहीं, एक पूरी विचाराधारा है। जितना ज़्यादा समझने की कोशिश होती है, उतनी ही नई बातें सामने आती हैं। साबरमती के संत महात्मा गाँधी से सम्बंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं-

गाँधी जी से सम्बंधित विशेष तथ्य
1. ब्रिटेन यानी वह देश जिसके विरुद्ध गाँधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत की, वहीं से उनकी मृत्यु के 21 साल बाद उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था।
2. महात्मा गाँधी जीवन भर हर दिन 18 कि.मी. की पदयात्रा करते रहे। बताया जाता है कि वह रोज़ लगभग 800 शब्द लिखते थे। इनमें राजनीति, आज़ादी और समानता से जुड़े तमाम विषयों पर लिखे गए उनके लेख शामिल हैं।
3. टॉल्सटॉय, अल्बर्ट आइंस्टाइन और एडोल्फ़ हिटलर जैसी शख्सियतों के साथ महात्मा गाँधी का जीवन भर पत्र व्यवहार चलता रहा।
4. महात्मा गाँधी की अंतिम यात्रा का काफ़िला आठ किलोमीटर लम्बा था।
5. जब भारत की आज़ादी की घोषणा हुई, तब गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे। वह कोलकाता में धार्मिक सद्भाव के लिए अनशन पर बैठे थे।
6. दुनिया भर में अपने नेतृत्व के लिए चर्चा में रहे महात्मा गाँधी अपने जीवन काल में कभी भी किसी राजनीतिक दल में किसी आधिकारिक पद पर नहीं रहे।
7. महात्मा गाँधी को नोबेल पुरस्कार के लिए भी पाँच बार नामांकित किया गया था।
8. दक्षिण अफ़्रीका में उन्हें सालाना 15,000 डॉलर की तनख्याह मिलती थी। यह उस समय के हिसाब से काफ़ी बड़ी रकम थी, लेकिन गाँधी जी वह सब छोड़कर भारत लौटे और सत्याग्रही बन गए।
9. अफ़्रीका में नस्लीय भेदभाव मिटाने की कोशिश में महात्मा गाँधी ने फ़ुटबॉल क्लब भी बनवाए।
10. गाँधी जी पहले ऐसे भारतीय थे, जिसे अमेरिका की साप्ताहिक पत्रिका द्वारा हर साल दिया जाने वाला 'टाइम पर्सन ऑफ़ द ईयर' टाइटल दिया गया।
11. तमिलनाडु के मदुरई में जब गाँधी जी का कुछ ग़रीब लोगों से सामना हुआ, तब उन्होंने जीवन भर के लिए वस्त्र त्याग कर सिर्फ़ धोती पहनने का निर्णय लिया।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनादि से अंत तक, गाँधी के लिए जगह -अमर उजाला, 22 जनवरी, 2017

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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