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'''चार्ल्स फ़्रीयर एंड्रयूज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Charles Freer Andrews'', जन्म- [[12 फ़रवरी]], [[1871]]; मृत्यु- [[5 अप्रॅल]], [[1940]]) [[इंग्लैंड]] के पादरी थे। वह एक ईसाई मिशनरी, शिक्षक और समाज सुधारक थे। [[महात्मा गाँधी]] के करीबी मित्रों में से सी. एफ़. एंड्रयूज भी एक थे। वह गाँधीजी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनके साथ बराबर रहे। नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक करने व गाँधीजी को अफ्रीका से लौटकर [[भारत]] आकर आंदोलन करने के लिए भी सी. एफ़. एंड्रयूज ने ही मनाया था। शायद वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो गांधीजी को 'मोहन' कहकर संबोधित करते थे। सी. एफ़. एंड्रयूज ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव-सेवा को
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अर्पित किया। उन्होंने ब्रिटिश नागरिक होते हुए भी जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के लिए ब्रिटिश सरकार को दोषी ठहराया और जरनल ओ डायर के कुकृत्य को "जानबूझ कर किया गया जघन्य हत्याकांड" बताया। सी. एफ़. एंड्रयूज [[भारतीय स्वाधीनता संग्राम] के बारे में समय-समय पर 'मैंचेस्टर गार्जियन', 'द हिन्दू', 'माडर्न रिव्यू', 'द नैटाल आबजर्वर' और 'द टोरोन्टो स्टार' में लगातार आलेख लिखते रहे।
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}}'''चार्ल्स फ़्रीयर एंड्रयूज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Charles Freer Andrews'', जन्म- [[12 फ़रवरी]], [[1871]]; मृत्यु- [[5 अप्रॅल]], [[1940]]) [[इंग्लैंड]] के पादरी थे। वह एक ईसाई मिशनरी, शिक्षक और समाज सुधारक थे। [[महात्मा गाँधी]] के करीबी मित्रों में से सी. एफ़. एंड्रयूज भी एक थे। वह गाँधीजी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनके साथ बराबर रहे। नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक करने व गाँधीजी को अफ्रीका से लौटकर [[भारत]] आकर आंदोलन करने के लिए भी सी. एफ़. एंड्रयूज ने ही मनाया था। शायद वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो गांधीजी को 'मोहन' कहकर संबोधित करते थे।<br />
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सी. एफ़. एंड्रयूज ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव-सेवा को अर्पित किया। उन्होंने ब्रिटिश नागरिक होते हुए भी जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के लिए ब्रिटिश सरकार को दोषी ठहराया और जरनल ओ डायर के कुकृत्य को "जानबूझ कर किया गया जघन्य हत्याकांड" बताया। सी. एफ़. एंड्रयूज [[भारतीय स्वाधीनता संग्राम]] के बारे में समय-समय पर 'मैंचेस्टर गार्जियन', 'द हिन्दू', 'माडर्न रिव्यू', 'द नैटाल आबजर्वर' और 'द टोरोन्टो स्टार' में लगातार आलेख लिखते रहे।
 
==परिचय==
 
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सी. एफ़. एंड्रयूज का जन्म 12 फ़रवरी, 1871 को [[इंग्लैंड]], न्यूकैसल में हुआ था। [[1893]] में उन्होंने पैमब्रोक कॉलेज, कैम्ब्रिज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और [[1897]] में इंग्लैंड के चर्च मंत्रालय में कम करने लगे। बाद में उन्होंने पैमब्रोक कॉलेज के पादरी और व्याख्याता के रूप में काम किया। सन् [[1903]] में उन्हें [[दिल्ली]] में कैम्ब्रिज ब्रदरहुड के एक सदस्य के रूप में धर्म के प्रचार के लिए सोसायटी द्वारा नियुक्त किया गया। [[मार्च]] [[1904]] में एंड्रयूज सेंट स्टीफन कॉलेज में शिक्षण का कार्यभार ग्रहण करने के लिए [[भारत]] आ गये।
 
सी. एफ़. एंड्रयूज का जन्म 12 फ़रवरी, 1871 को [[इंग्लैंड]], न्यूकैसल में हुआ था। [[1893]] में उन्होंने पैमब्रोक कॉलेज, कैम्ब्रिज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और [[1897]] में इंग्लैंड के चर्च मंत्रालय में कम करने लगे। बाद में उन्होंने पैमब्रोक कॉलेज के पादरी और व्याख्याता के रूप में काम किया। सन् [[1903]] में उन्हें [[दिल्ली]] में कैम्ब्रिज ब्रदरहुड के एक सदस्य के रूप में धर्म के प्रचार के लिए सोसायटी द्वारा नियुक्त किया गया। [[मार्च]] [[1904]] में एंड्रयूज सेंट स्टीफन कॉलेज में शिक्षण का कार्यभार ग्रहण करने के लिए [[भारत]] आ गये।
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सी. एफ़. एंड्रयूज, रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ [[दक्षिण भारत]] के आध्यात्मिक गुरु [[नारायण गुरु]] से मिले। इसके बाद उन्होंने रोमेन रोल्लैंड (फ्रेंच नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार) को लिखा ‘मैने ईसा मसीह को एक [[हिन्दू]] सन्यासी की पोशाक में [[अरब सागर]] के तट पर चलते हुए देखा है। सी. एफ़. एंड्रयूज ने [[इंग्लैंड]] के चर्च को कभी छोड़ा नहीं था, परंतु उन्होने कैम्ब्रिज मिशन के ब्रदरहुड से इस्तीफा दे दिया था।<ref name="aa"/>
 
सी. एफ़. एंड्रयूज, रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ [[दक्षिण भारत]] के आध्यात्मिक गुरु [[नारायण गुरु]] से मिले। इसके बाद उन्होंने रोमेन रोल्लैंड (फ्रेंच नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार) को लिखा ‘मैने ईसा मसीह को एक [[हिन्दू]] सन्यासी की पोशाक में [[अरब सागर]] के तट पर चलते हुए देखा है। सी. एफ़. एंड्रयूज ने [[इंग्लैंड]] के चर्च को कभी छोड़ा नहीं था, परंतु उन्होने कैम्ब्रिज मिशन के ब्रदरहुड से इस्तीफा दे दिया था।<ref name="aa"/>
 
==विभिन्न योगदान==
 
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*[[जुलाई]] [[1914]] में दक्षिण अफ्रीका छोड़ने के बाद सी. एफ़. एंड्रयूज ने ज्यादातर भारतीय मजदूरों का प्रतिनिधित्व करते हुए फ़िजी, [[जापान]], [[केन्या]] और सीलोन ([[श्रीलंका]]) सहित कई देशों की यात्रा की।
 
*[[जुलाई]] [[1914]] में दक्षिण अफ्रीका छोड़ने के बाद सी. एफ़. एंड्रयूज ने ज्यादातर भारतीय मजदूरों का प्रतिनिधित्व करते हुए फ़िजी, [[जापान]], [[केन्या]] और सीलोन ([[श्रीलंका]]) सहित कई देशों की यात्रा की।
 
*[[1920]] से वह 'आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के साथ जुड़ गये और सन् [[1925]] में उसके अध्यक्ष भी बने।
 
*[[1920]] से वह 'आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के साथ जुड़ गये और सन् [[1925]] में उसके अध्यक्ष भी बने।

07:55, 3 मई 2020 का अवतरण

सी. एफ़. एंड्रयूज
सी. एफ़. एंड्रयूज
पूरा नाम चार्ल्स फ़्रीयर एंड्रयूज
अन्य नाम 'दीनबन्धु' एंड्रयूज
जन्म 12 फ़रवरी, 1871
जन्म भूमि न्यूकैसल, इंग्लैंड
मृत्यु 5 अप्रॅल, 1940
मृत्यु स्थान भारत
कर्म-क्षेत्र पादरी, शिक्षण तथा समाज सुधार
शिक्षा स्नातक
विद्यालय पैमब्रोक कॉलेज, कैम्ब्रिज
प्रसिद्धि समाज सुधारक
संबंधित लेख महात्मा गाँधी, वायकोम सत्याग्रह, गोपाल कृष्ण गोखले, नटाल इंडियन कांग्रेस
आंदोलन 1925 में सी. एफ़. एंड्रयूज वायकोम सत्याग्रह में शामिल हुए।
अन्य जानकारी सी. एफ़. एंड्रयूज मार्च, 1904 में सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली में शिक्षण का कार्यभार ग्रहण करने के लिए भारत आ आये, जहाँ वह गोपाल कृष्ण गोखले के मित्र बने।

चार्ल्स फ़्रीयर एंड्रयूज (अंग्रेज़ी: Charles Freer Andrews, जन्म- 12 फ़रवरी, 1871; मृत्यु- 5 अप्रॅल, 1940) इंग्लैंड के पादरी थे। वह एक ईसाई मिशनरी, शिक्षक और समाज सुधारक थे। महात्मा गाँधी के करीबी मित्रों में से सी. एफ़. एंड्रयूज भी एक थे। वह गाँधीजी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी उनके साथ बराबर रहे। नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए जागरूक करने व गाँधीजी को अफ्रीका से लौटकर भारत आकर आंदोलन करने के लिए भी सी. एफ़. एंड्रयूज ने ही मनाया था। शायद वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो गांधीजी को 'मोहन' कहकर संबोधित करते थे।


सी. एफ़. एंड्रयूज ने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव-सेवा को अर्पित किया। उन्होंने ब्रिटिश नागरिक होते हुए भी जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के लिए ब्रिटिश सरकार को दोषी ठहराया और जरनल ओ डायर के कुकृत्य को "जानबूझ कर किया गया जघन्य हत्याकांड" बताया। सी. एफ़. एंड्रयूज भारतीय स्वाधीनता संग्राम के बारे में समय-समय पर 'मैंचेस्टर गार्जियन', 'द हिन्दू', 'माडर्न रिव्यू', 'द नैटाल आबजर्वर' और 'द टोरोन्टो स्टार' में लगातार आलेख लिखते रहे।

परिचय

सी. एफ़. एंड्रयूज का जन्म 12 फ़रवरी, 1871 को इंग्लैंड, न्यूकैसल में हुआ था। 1893 में उन्होंने पैमब्रोक कॉलेज, कैम्ब्रिज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1897 में इंग्लैंड के चर्च मंत्रालय में कम करने लगे। बाद में उन्होंने पैमब्रोक कॉलेज के पादरी और व्याख्याता के रूप में काम किया। सन् 1903 में उन्हें दिल्ली में कैम्ब्रिज ब्रदरहुड के एक सदस्य के रूप में धर्म के प्रचार के लिए सोसायटी द्वारा नियुक्त किया गया। मार्च 1904 में एंड्रयूज सेंट स्टीफन कॉलेज में शिक्षण का कार्यभार ग्रहण करने के लिए भारत आ गये।

गोपाल कृष्ण गोखले से मित्रता

भारत में एंड्रयूज और भारतीय शिक्षक गोपाल कृष्ण गोखले दोस्त बन गए और यहाँ गोखले ने पहली बार अनुबंधित श्रम की प्रणाली की खामियों और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के कष्टों के साथ एंड्रयूज को परिचित कराया। एंड्रयूज ने महात्मा गांधी और उनके अहिंसक प्रतिरोध आंदोलन या सत्याग्रह में सहायता के लिए 1913 के अंत में दक्षिण अफ्रीका जाने का फैसला किया। डरबन में महात्मा गाँधी के आगमन पर एंड्रयूज की मुलाकात गाँधीजी से हुई और एंड्रयूज ने झुककर गाँधीजी के पाँव छुए। इस मुलाकात के बारे में सी. एफ़. एंड्रयूज ने लिखा- "इस पहले पल की मुलाकात में हमारे दिलों ने एक दूसरे को देखा और और वो कभी न टूटने वाले प्यार के मजबूत संबंधों से एकजुट हो गये"।[1]

गाँधीजी के सहायक

दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी नागरिक अधिकारों का उल्लंघन, नस्लीय भेदभाव और पुलिस कानून के खिलाफ विरोध व्यक्त करने के लिए भारतीय समुदाय को संगठित करने और 'नेटाल इंडियन कांग्रेस' स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे। सी. एफ़. एंड्रयूज ने नटाल में एक आश्रम को संगठित करने और गाँधीजी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘द इंडियन ओपीनियन’ प्रकाशित करने में गांधीजी की मदद की।

आंदोलन में सहभागिता

रबींद्रनाथ टैगोर भी सी. एफ़. एंड्रयूज के मित्रों में से एक थे। सी. एफ़. एंड्रयूज सामाजिक सुधारों के प्रति टैगोरे की गहरी चिंता के प्रति आकर्षित थे। अंततः एंड्रयूज ने कलकत्ता (कोलकाता) के निकट टैगोर के प्रयोगात्मक स्कूल शांति निकेतन को ही अपना मुख्यालय बनाया। एंड्रयूज ने ईसाइयों और हिंदुओं के बीच एक संवाद विकसित किया। उन्होंने ‘बहिष्कृत की अस्पृश्यता’ पर प्रतिबंध लगाने के आंदोलन का समर्थन किया। 1925 में वह प्रसिद्ध वायकोम सत्याग्रह में शामिल हो गए और 1933 में दलितों की मांगों को तैयार करने में बी. आर. अम्बेडकर की सहायता की।

सी. एफ़. एंड्रयूज, रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ दक्षिण भारत के आध्यात्मिक गुरु नारायण गुरु से मिले। इसके बाद उन्होंने रोमेन रोल्लैंड (फ्रेंच नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार) को लिखा ‘मैने ईसा मसीह को एक हिन्दू सन्यासी की पोशाक में अरब सागर के तट पर चलते हुए देखा है। सी. एफ़. एंड्रयूज ने इंग्लैंड के चर्च को कभी छोड़ा नहीं था, परंतु उन्होने कैम्ब्रिज मिशन के ब्रदरहुड से इस्तीफा दे दिया था।[1]

विभिन्न योगदान

सी. एफ़. एंड्रयूज डाक टिकट
  • जुलाई 1914 में दक्षिण अफ्रीका छोड़ने के बाद सी. एफ़. एंड्रयूज ने ज्यादातर भारतीय मजदूरों का प्रतिनिधित्व करते हुए फ़िजी, जापान, केन्या और सीलोन (श्रीलंका) सहित कई देशों की यात्रा की।
  • 1920 से वह 'आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस' के साथ जुड़ गये और सन् 1925 में उसके अध्यक्ष भी बने।
  • सन् 1930 के प्रारंभ में सी. एफ़. एंड्रयूज ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन की तैयारियों में गांधीजी की सहायता की। स्वयं को भारतीय नेताओं और ब्रिटिश सरकार के बीच सुलह मंत्री के रूप में पेश करने का अनूठा विचार एंड्रयूज का ही था।
  • सी. एफ़. एंड्रयूज ने भारतीय राजनीतिक आकांक्षाओं का समर्थन किया और इन भावनाओं को व्यक्त करते हुए 1906 में सिविल और सैन्य राजपत्र में एक पत्र भी लिखा था।
  • वह जल्द ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियों में शामिल हो गये और उन्होंने मद्रास में सन् 1913 में कपास श्रमिकों की हड़ताल को हल करने में मदद की।

'दीनबन्धु' की उपाधि

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सी. एफ़. एंड्रयूज के योगदान को देखते हुए सेंट स्टीफन कॉलेज के उनके छात्रों और गाँधीजी ने उन्हें ‘दीनबन्धु’ (ग़रीबों का मित्र) की उपाधि दी।

मृत्यु

सी. एफ़. एंड्रयूज की कलकत्ता के लिए एक यात्रा के दौरान 5 अप्रैल, 1940 को मृत्यु हो गई। लोअर सर्कुलर रोड, कलकत्ता के ‘ईसाई कब्रिस्तान’ में उन्हें दफ़नाया गया। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके दोस्त महात्मा गांधी ने उनके पक्ष में भारत भर में यात्रा की।[1]

लेखन कार्य

सी. एफ़. एंड्रयूज ने कई किताबें भी लिखीं, जिसमें से प्रमुख हैं[1]-

  1. The Oppression of the Poor (1921)
  2. The Indian Problem (1922)
  3. The Rise and Growth of Congress in India (1938)
  4. The True India: A Plea for Understanding (1939)
  5. The Relation of Christianity to the Conflict between Capital and Labour (1896)
  6. The Renaissance in India: its Missionary Aspect (1912)
  7. Christ and Labour (1923)
  8. What I Owe to Christ (1932)
  9. The Sermon on the Mount (1942)
  10. Mahatma Gandhi His Life and Works (1930) republished by Starlight Paths Publishing (2007) with a forward by Arun Gandhi


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 ‘दीनबन्धु’ चार्ल्स फ्रीयर एंड्रयूज (हिंदी) vivacepanorama.com। अभिगमन तिथि: 03 मई, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

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