ऋत्विक घटक

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ऋत्विक घटक
ऋत्विक घटक
ऋत्विक घटक
पूरा नाम ऋत्विक घटक
जन्म 4 नवम्बर, 1925
जन्म भूमि ढाका, बांग्लादेश
मृत्यु 6 फ़रवरी, 1976
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
पति/पत्नी सुरमा घटक
संतान रिताबन घटक (पुत्र), संहिता घटक, सुचिस्मिता घटक (पुत्री)
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, नाट्य निर्देशक और पटकथा लेखक
मुख्य फ़िल्में 'नागोरिक' (1952), 'अजांत्रिक' (1958), 'मेघे ढाका तारा' (1960), 'कोमल गंधार' (1961) और 'सुबर्णरिखा' (1962) आदि।
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी नाटकों का लेखन, निर्देशन और अभिनय के अलावा उन्होंने बेर्टेल्ट ब्रोश्ट और गोगोल को बांग्ला में अनुवाद भी किया। 1957 में उन्होंने अपना अंतिम नाटक ज्वाला (द बर्निंग) लिखा और निर्देशित किया।

ऋत्विक घटक (अंग्रेज़ी: Ritwik Ghatak, बांग्ला: ঋত্বিক ঘটক, जन्म: 4 नवम्बर, 1925; मृत्यु: 6 फ़रवरी, 1976) एक बंगाली भारतीय फ़िल्म निर्माता-निर्देशक, नाट्य निर्देशक और पटकथा लेखक थे। भारतीय फ़िल्म निर्देशकों के बीच ऋत्विक घटक का स्थान सत्यजीत रे और मृणाल सेन के समान माना जाता है। ऋत्विक घटक ऐसे फ़िल्मकार हुए हैं जिनकी कला के हर स्तर पर बेचैनी दिखाई देती है। उनकी फ़िल्मों की पृष्ठभूमि में पैदा होने वाला विस्थापन दिल के किसी कोने से बार-बार आवाज़ देती नज़र आती है। भारतीय सिनेमा के उत्कृष्ट निर्देशकों से भी आगे की सोच रखने वाले ऋत्विक घटक का काम निर्देशक के रूप में इतना प्रभावशाली रहा है कि बाद के कई भारतीय फ़िल्म निर्माताओं पर इसका प्रभाव साफ़-साफ़ दिखाई देता है। उन्होंने हमेशा नाटकीय और साहित्यिक प्रधानता पर जोर दिया। वे पूरी तरह से भारतीय व्यावसायिक फ़िल्म की दुनिया के बाहर के व्यक्ति थे। व्यावसायिक सिनेमा की कोई भी विशेषता उनके काम में नज़र नहीं आती है।

जीवन परिचय

ऋत्विक घटक का जन्म 4 नवंबर, 1925 को तत्कालीन पूर्वी बंगाल के ढाका में हुआ। बाद में उनका परिवार कोलकाता आ गया। यही वह काल था जब कोलकाता शरणार्थियों का शरणस्थली बना हुआ था। चाहे 1943 में बंगाल का अकाल, चाहे 1947 में बंगाल के विभाजन हो या फिर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, इस दौर का विस्थापन ने ऋत्विक घटक के जीवन को काफ़ी प्रभावित किया। यही कारण है कि सांस्कृतिक विच्छेदन और निर्वासन उनकी फ़िल्मों में बखूबी दिखता है। 1948 में ऋत्विक घटक ने अपना पहला नाटक 'कालो सायार' (द डार्क लेक) लिखा और ऐतिहासिक नाटक ‘नाबन्ना के पुनरुद्धार” में हिस्सा लिया। 1951 में वे इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन के साथ जुड़ गए। नाटकों का लेखन, निर्देशन और अभिनय के अलावा उन्होंने बेर्टेल्ट ब्रोश्ट और गोगोल को बंगला में अनुवाद भी किया। 1957 में, उन्होंने अपना अंतिम नाटक ज्वाला (द बर्निंग) लिखा और निर्देशित किया। निमाई घोष के चिन्नामूल (1950) में बतौर अभिनेता और सहायक निर्देशक के रूप में ऋत्विक घटक ने फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश किया। उनकी पहली पूर्ण फ़िल्म नागरिक (1952) आई, दोनों ही फ़िल्में भारतीय सिनेमा के लिए मील का पत्थर थीं। अजांत्रिक (1958) ऋत्विक घटक की पहली व्यावसायिक फ़िल्म थी। फ़िल्म मधुमती (1958) के पटकथा लेखक के रूप में ऋत्विक घटक की सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता थी, जिसकी कहानी के लिए फ़िल्मफेयर पुरस्कार में नामांकित हुए। ऋत्विक घटक ने क़रीब आठ फ़िल्मों का निर्देशन किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध फ़िल्में, मेघे ढाका तारा (1960), कोमल गंधार (1961) और सुबर्णरिखा (1962) थीं। 1966 में ऋत्विक घटक पुणे चले गए जहां वे भारतीय फ़िल्म और टेलीविजन संस्थान में अध्यापन करने लगे। 1970 के दशक में ऋत्विक घटक फ़िल्म निर्माण में फिर वापस लौटे। लेकिन तब तक वे खुद को अत्यधिक शराब के सेवन में डुबो चुके थे। उनका स्वास्थ्य खराब हो चुका था। उनकी आख़िरी फ़िल्म आत्मकथात्मक थी जिसका नाम था ‘जुक्ति तोक्को आर गोप्पो” (1974) थी। 6 फ़रवरी 1976 को उनका निधन हो गया।[1]

प्रमुख फ़िल्में

बतौर निर्देशक और पटकथा लेखक
  • नागोरिक (नागरिक) (1952)
  • अजांत्रिक (अयान्त्रिक, दयनीय भ्रान्ति) (1958)
  • बाड़ी थेके पालिए (भगोड़ा) (1958)
  • मेघे ढाका तारा (बादलों से छाया हुआ सितारा) (1960)
  • कोमोल गंधार (ई-फ्लैट) (1961)
  • सुबर्णरेखा (1962/1965)
  • तिताश एक्टि नादिर नाम (तिताश एक नदी का नामक) (1973)
  • जुक्ति तोक्को आर गोप्पो (कारण, बहस और एक कहानी) (1974)
बतौर पटकथा लेखक
  • मुसाफिर (1957)
  • मधुमती (1958)
  • स्वरलिपि (1960)
  • कुमारी मोन (1962)
  • दीपेर नाम टिया रोंग (1963)
  • राजकन्या (1965)
बतौर अभिनेता
  • तोथापी (1950)
  • चिन्नामूल (1951)
  • कुमारी मोन (1962)
  • सुबर्णरिखा (1962)
  • तितस एक्टि नादिर नाम (1973)
  • जुक्ति, तोक्को, आर गोप्पो (1974)
लघु फ़िल्में और वृत्तचित्र
  • दी लाइफ ऑफ़ दी आदिवासिज़ (1955)
  • प्लेसेज ऑफ़ हिस्टोरिक इंटरेस्ट इन बिहार (1955)
  • सीजर (1962)
  • फीयर (1965)
  • रॉन्डेवूज़ (1965)
  • सिविल डिफेन्स (1965)
  • कल के वैज्ञानिक (1967)
  • ये क्यों (क्यों / एक प्रश्न) (1970)
  • आमार लेनिन (मेरा लेनिन) (1970)
  • पुरुलियर छाऊ (पुरुलिया का छाऊ नृत्य) (1970)
  • दुर्बार गाटी पद्मा (अशांत पद्म) (1971)

प्रमुख पुस्तकें

  • ऋत्विक घोटोकेर गॉलपो (जिसमें लघु कहानियां "गाच्टी", "शिखा", "रूपकोथा", "चोख", "कॉमरेड", "प्रेम", "मार" और "राजा" भी शामिल है)
  • गैलिलियो चोरित (ब्रेश्ट द्वारा लिखे लाइफ ऑफ़ गैलीलियो का बंगाली अनुवाद)
  • जाला (नाटक)
  • दोलिल (नाटक)
  • मेघे ढाका तारा (पटकथा)
  • चोलोचित्रो, मानुस एबोंग आरो किछु
  • सिनेमा एंड आई, ऋत्विक मेमोरियल ट्रस्ट, कोलकाता
  • ऑन कल्चरल फ्रंट
  • रोज़ एंड रोज़ ऑफ़ फेंसेज़: ऋत्विक घटक ऑन सिनेमा, सीगल पुस्तक प्राइवेट लिमिटेड, कोलकाता
  • ऋत्विक घटक कहानियां, बांग्ला से रानी रे द्वारा अनुवादित नई दिल्ली, सृष्टि प्रकाशक और वितरक

आदिवासी जीवन के पहले फ़िल्मकार

ऋत्विक घटक के सम्मान में जारी डाक टिकट

आदिवासी जीवन पर पहली बार ऋत्विक घटक ने डाक्यूमेंट्री बनायी थी। बिहार सरकार का यह प्रयास था। ऋत्विक की उम्र तब यही कोई 25 के आस-पास थी। इप्टा से जुड़ चुके थे और नाटक लिखना भी शुरू कर दिया था। झारखंड से उनका परिचय हो चुका था। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत ‘बेदिनी’ फ़िल्म से की थी। 1952 में फ़िल्म यूनिट को लेकर घाटशिला आये और स्वर्णरेखा नदी के किनारे 20 दिनों तक रहे और शूटिंग की। हालांकि यह फ़िल्म रिलीज नहीं हो सकी। ऋत्विक घटक आदिवासी समाज को सत्यजीत राय की तरह नहीं देखते थे। उन्होंने ‘आदिवासी जीवन के स्रोत’ एवं ‘उरांव’ बनायी, तो आदिवासी समाज को, उनकी संस्कृति को निकट से देखने की कोशिश की। फ़िल्मकार मेघनाथ के शब्दों में, “वे आई-लेवल से देख रहे थे।” यानी, यह दृष्टि समानता की थी, संवेदना की थी। दोनों डाक्यूमेंट्री की शूटिंग रांची और आस-पास और नेतरहाट क्षेत्र में की गयी थी। ‘आदिवासी जीवन के स्रोत’ की जब शूटिंग कर रहे थे, तो बीच में अपनी व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय निकालकर अपनी पत्‍नी को पत्र लिखते। एक पत्र 22 फ़रवरी 1955 का है। लिखा है, “उरांव-मुंडा के साथ सारा दिन बीत रहा है। इनके साथ रहकर मिट्टी की गंध मिल रही है। इनका अपूर्व गान हमें मदहोश कर दे रहा है।” आदिवासियों के सामाजिक जीवन की विसंगतियों की ओर भी ध्यान दिलाते हैं। लिखते हैं, “आदिवासियों में बचने की इच्छा है। यहां की सुंदरता भी इतनी अपार है कि इसका बूंद मात्र ही कैमरे में कैद कर पा रहा हूं।” वे उरांव नृत्य पर भी मोहित होते हैं।


इस अपूर्व सौंदर्य को कैद करने के लिए ऋत्विक घटक फिर रांची आये और अपनी ‘अजांत्रिक’ फ़िल्म की शूटिंग रांची, रामगढ़ रोड आदि क्षेत्रों में की। यह फ़िल्म बांग्ला में है, लेकिन पहली बार उरांव यानी कुड़ुख भाषा में संवाद और नृत्य को इस फीचर फ़िल्म में दिखाया गया है। उनके नृत्य से ऋत्विक घटक काफ़ी भाव-विभोर थे। इसलिए इसमें सरना झंडे भी लहरा रहे थे। आदिवासी जीवन की सरलता, लावण्यता का अनुभव किया। फ़िल्मकार मेघनाथ कहते हैं कि अजांत्रिक मानुष और मशीन के बीच संबंधों की कहानी हैं। हास्य का पुट है। लेकिन यह हंसी हूक भी पैदा करती है। बहरहाल, ऋत्विक घटक को झारखंड काफ़ी पसंद था। इसे वे कभी भूले नहीं। जब 1962 में सुबर्णरिखा बनायी, तब भी नहीं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. व्यावसायिकता से दूर थे ऋत्विक (हिन्दी) समय लाइव। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2014।
  2. आदिवासी जीवन के पहले फ़िल्मकार थे ऋत्विक घटक (हिन्दी) मोहल्ला लाइव। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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