जटाशंकर धाम, छतरपुर

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जटाशंकर धाम (अंग्रेज़ी: Jatashankar) बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में बिजावर तहसील से करीब 15 कि.मी. दूर चारों ओर सुंदर पहाड़ों से घिरा शिव का एक मंदिर है। इस अति प्राचीन मंदिर में विराजित भगवान शिव का हमेशा गौमुख से गिरती हुई धारा से जलाभिषेक होता रहता है। यह मंदिर धार्मिक आस्था का बड़ा केन्द्र है। यूं तो यहां हमेशा ही श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन अमावस्या के दिन यहां भारी भीड़ रहती है।

मान्यता व विशेषता

मान्यता है कि इस मंदिर के जल से कई लोगों की बीमारियां खत्म हुई हैं। प्राकृतिक दृष्टि से भी यह स्थान मनोरम है। चारों ओर इस स्थान को घेरे हुए पहाड़ इसके सौन्दर्य को चौगुना कर देते हैं। बंदरों के साथ ही यहां अन्य जंगली जानवर भी पाए जाते हैं। इस मंदिर पर तीन छोटे-छोटे जल कुंड हैं, जिनका जल कभी खत्म नहीं होता। सबसे खास बात यह है कि इन कुंडों के पानी का तापमान हमेशा मौसम के विपरीत होता है। ठंड में इनका पानी गर्म होता है, वहीं गर्मी में जल शीतल होता है। इन कुंडों का पानी कभी खराब भी नहीं होता। लोगों का मानना है कि यहां के पानी से स्नान करने से कई बीमारियां खत्म हो जाती हैं। यही कारण है कि जो भी श्रद्धालु यहां आता है, वह कुंड के पानी से स्नान जरूर करता है। लोग यहां के जल को अपने साथ घर भी ले जाते हैं।

कथा

माना जाता है कि यह मंदिर 14वीं शताब्दी का है। विवस्तु नाम के राजा को स्वयं जटाधारी भगवान शिव ने स्वप्न में आकर दर्शन दिए और अपने स्थान के बारे में बताया था। इसके बाद राजा ने सैनिकों के साथ जाकर उस स्थान को ढूंढा। इसी स्थान पर निकले शिवलिंग की विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा करवाई। राजा ने इसी स्थान पर हवन भी कराया। उन्होंने अपने कोढ़ से ग्रस्त मंत्री को भी हवन में बैठने के लिए कहा, लेकिन संकोचवश मंत्री ने इंकार ‍कर दिया। लेकिन, राजा के आदेश के कारण वह बैठ गया। कहा जाता है कि हवन की शुद्धिकरण प्रक्रिया में जब मंत्री को लेप किया गया तो चमत्कारिक रूप से मंत्री का कोढ़ ठीक हो गया। तब से ही ऐसी मान्यता है कि मंदिर के जल से लोगों की बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

इसके अलावा एक और कहानी है यहां प्रचलित है। बुंदेलखंड में खूंखार डाकू मूरत सिंह की काफी दहशत थी। वह क्षेत्र में लोगों को अगवा करता था और फिरौती की रकम वसूलता था। उस समय पूरे इलाके में उसका आतंक था। साहूकार और व्यापारी उसके नाम से ही घबराते थे। पुलिस की मुखबिरी करने वालों के मूरत नाक-कान काट लेता था। बाद में डकैत मूरत को सफेद दाग हो गए। एक बार डाकू मूरत प्यासा जंगलों में भटक रहा था। इसी दौरान उसने मंदिर के तीन कुंडों का पानी पिया जिससे उसके सफेद दाग एकदम ठीक हो गए। तभी उसको पास में भगवान शिव की प्रतिमा नजर आई। वो समझ गया कि ये चमत्कार शिव की कृपा से ही हुआ है। कहा जाता है कि इस घटना के बाद डाकू का हृदय परिवर्तन हो गया और उसने लूटपाट और डकैती छोड़ दी।

कैसे पहुंचे

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से यह स्थान करीब 330 कि.मी. पड़ता है। भोपाल से छतरपुर बस, ट्रेन से जा सकते हैं। छतरपुर जिला मुख्यालय से जटाशंकर 55 कि.मी. तथा बिजावर तहसील से 15 कि.मी. दूर है। यहां से बस एवं टैक्सी की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त भोपाल से खजुराहो तक विमान से भी पहुंचा जा सकता है। यहां से यह स्थान करीब 75 कि.मी. पड़ता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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