"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 खण्ड-7 से 15" के अवतरणों में अंतर
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12:49, 24 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 खण्ड-7 से 15
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विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | आठवाँ |
कुल खण्ड | 15 (पंद्रह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
'छान्दोग्य उपनिषद' के अध्याय आठवें का यह सातवें से पंद्रहवें तक का खण्ड है। इन खण्डों में इन्द्र और विरोचन को उपदेश देते हुए प्रजापति ब्रह्मा 'आत्मा' के वास्तविक स्वरूप का दिग्दर्शन कराते हैं।
एक बार देवराज इन्द्र और असुरराज विरोचन प्रजापति ब्रह्मा के पास 'आत्मा' व 'ब्रह्मज्ञान' के यथार्थ सत्य को जानने की जिज्ञासा से पहुंचते हैं और उनके पास रहकर बत्तीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं; क्योंकि ब्रह्मचर्य के बिना 'ब्रह्म' की प्राप्त नहीं की जा सकती।
बत्तीस वर्ष पूर्ण होने पर प्रजापति ब्रह्मा ने उनके आने का कारण पूछा। इस पर उन्होंने 'ब्रह्मरूप और 'आत्मा' के स्वरूप को जानने के लिए अपनी जिज्ञासा प्रकट की। इस पर ब्रह्मा ने कहा कि हम जो कुछ भी आँखों से देखते हैं, वह 'आत्मा' का ही रूप है। यह सुनकर दोनों ने दर्पण मं अपने स्वरूप को देखकर अपने प्रतिबिम्ब को ही 'आत्मा' मान लिया तथा दोनों अपने-अपने लोकों को लौट गये।
विरोचन ने असुरों के पास जाकर कहा कि यह अलंकृत शरीर ही 'आत्मा' है। इसे ही 'ब्रह्म' का स्वरूप समझो और इसी की उपासना करो।
उधर इन्द्र ने देवलोक पहुंचने से पहले सोचा कि यह नश्वर शरीर नष्ट हो जायेगा, तो क्या 'आत्मा' अथवा 'ब्रह्म' भी नष्ट हो जायेगा। उसे सन्तुष्टि नहीं हुई, तो वह पुन: ब्रह्मा के पास लौटकर आया और अपनी शंका प्रकट की। ब्रह्मा ने उसे पुन: बत्तीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कहा। बत्तीस वर्ष बाद ब्रह्मा ने इन्द्र से कहा कि पुरुष के जिस रूप का मनुष्य स्वप्न में दर्शन करता है, वही 'आत्मा' है। इन्द्र ऐसा सुनकर चला गया, किन्तु मार्ग में उसे फिर शंका ने आ घेरा कि स्वप्न में देखे गये पुरुष की आकृति जागने पर नष्ट हो जाती है, यह 'ब्रह्म' नहीं हो सकता। वह पुन: ब्रह्मा के पास लौट आया और अपनी शंका प्रकट की। तब ब्रह्मा ने उसे पुन: बत्तीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कहा। इन्द्र ने ऐसा ही किया और पुन: ब्रह्मा के पास जा पहंचा।
तब ब्रह्मा ने कहा कि जो प्रसुप्त अवस्था में सम्पूर्ण रूप से आनन्दित और शान्त रहता है और स्वप्न का अनुभव भी नहीं करता, वही 'आत्मा' है। वही अनश्वर, अभय और 'ब्रह्म' है।
इन्द्र सन्तुष्ट होकर चल दिया। उसने सोचा कि उस समय जीव को यह कैसे ज्ञान होगा कि वह कौन है और कहां से आया है? अत: यथार्थ ज्ञान शरीर से सम्बन्धित हुए बिना कैसे प्राप्त हो सकता है? शंका उत्पन्न होते ही वह पुन: ब्रह्मा के पास जा पहुंचा और अपने मन की शंका प्रकट की। इस पर ब्रह्मा ने उसे पांच वर्ष तक पुन: ब्रह्मचर्य धारण करने के लिए कहा। इस प्रकार इन्द्र ने कुल एक सौ एक वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन किया।
तब ब्रह्मा ने उससे कहा-'हे इन्द्र! यह शरीर मरणधर्मी है एवं सदैव मृत्यु से आच्छादित है। अविनाशी तथा अशरीरी 'आत्मा' इस शरीर में निवास करता है। जब तक यह शरीर में रहता है, तब तक प्रिय-अप्रिय से घिरा रहता है। शरीर से युक्त होने के कारण वह उनसे मुक्त नहीं हो पाता, किन्तु जब यह शरीर छोड़कर अशरीरी हो जाता है, तब प्रिय-अप्रिय कोई भी इसे स्पर्श नहीं कर पाता। तब वह 'आत्मा' आकाश में वायु की भांति ऊपर उठकर इस शरीर को छोड़ते हुए परमज्योति में केन्द्रित हो जाता है। इस प्रकार जो यथार्थ 'आत्मा' है, वह सूर्य की ज्योति से प्रकट होकर शरीर में प्रवेश करता है, किन्तु मृत्यु के समय शरीर के सभी सुख-दु:ख से मुक्त होकर यह पुन: उसी 'आदित्य' में समा जाता है। यही 'ब्रह्म है।' इन्द्र इस बार पूर्ण रूप से सन्तुष्ट होकर इन्द्रलोक को चला गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |