छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4
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विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | चौथा |
कुल खण्ड | 17 (सत्रह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
'छान्दोग्य उपनिषद' का चौथा अध्याय है। इस अध्याय में 17 खण्ड हैं।
- प्रथम तीन खण्डों में राजा जनश्रुति और गाड़ीवान रैक्व का संवाद है। उन संवादों के माध्यम से रैक्व राजा जनश्रुति को 'वायु' और 'प्राण' की श्रेष्ठता के विषय में बताता है।
- चतुर्थ से नवम खण्ड तक जाबाल-पुत्र सत्यकाम की कथा है, जिसमें वृषभ, अग्नि, हंस और जल पक्षी के माध्यम से 'ब्रह्म' का उपदेश दिया गया है और
- दशम से सत्रहवें खण्ड तक सत्यकाम जाबाल के शिष्य उपकोसल को विभिन्न अग्नियों द्वारा तथा अन्त में आचार्य सत्यकाम द्वारा 'ब्रह्मज्ञान' दिया गया है तथा यज्ञ का ब्रह्मा कौन है, इस ओर संकेत किया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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