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|मुख्य रचनाएँ=इन्द्रजित (1963), पगला घोड़ा (1967), राम श्याम जोदू (1961), कवि कहानी (1964), बाक़ी इतिहास (1965), तीसरी शताब्दी (1966) आदि
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|मुख्य रचनाएँ=इन्द्रजित ([[1963]]), पगला घोड़ा ([[1967]]), राम श्याम जोदू ([[1961]]), कवि कहानी ([[1964]]), बाक़ी इतिहास ([[1965]]), तीसरी शताब्दी ([[1966]]) आदि।
 
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|शिक्षा=बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डि‍प्‍लोमा
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|प्रसिद्धि=अभिनेता, नाटककार, निर्देशक
 
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|विशेष योगदान= नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
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|विशेष योगदान= नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे [[रंगमंच]] की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
 
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}}'''बादल सरकार''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Badal Sarakar'',  जन्म: [[15 जुलाई]],  [[1925]] - मृत्य: [[13 मई ]], [[2011]]) अभिनेता, नाटककार, निर्देशक और इन सबके अतिरिक्त [[रंगमंच]] के सिद्धांतकार थे। उन्होंने तीसरा रंगमंच का सैद्धांतिक प्रतिपादन किया, और उसे मंच पर भी उतारा। बादल सरकार ने 'बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डिप्‍लोमा की शिक्षा भारत और विदेशों में ली थी। वह भारत के बहुचर्चित नाटककारों में एक थे। सातवें दशक में पूरे देश में उनकी धूम मची थी। [[मोहन राकेश]], [[विजय तेंडुलकर]] और [[गिरीश कर्नाड]] के साथ बादल सरकार को मिलाने के बाद ही उस दौर का रंगपरिवेश संपूर्ण होता था। उनके नाटक भारी संख्या में [[हिन्दी]] में और अन्‍य भारतीय भाषाओं में मंचित हुए और वे बांग्‍ला की परिधि से बाहर निकल समग्रता में [[भारत]] के नाटककार और भारतीय रंगमंच के अगुआ बने। उन्‍होंने रंगमंच को प्रेक्षागृह की परिधि से बाहर निकाला। आंगन मंच का सिद्धांत रचा। कम से कम खर्च में नाटक मंचित करना और आमजन के लिए नाटक को नि:शुल्‍क उपलब्‍ध कराना उनका लक्ष्‍य बना। सन् 1956 में बादल सरकार ने अपना पहला नाटक 'सॉल्‍यूशन एक्‍स' लिखा।<ref>{{cite web |url=http://bargad.org/2011/05/14/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=जीवन की रूपकथा के नाटककार बादल सरकार|accessmonthday= 10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
*बादल सरकार अभिनेता, नाटककार, निर्देशक और इन सबके अतिरिक्त [[रंगमंच]] के सिद्धांतकार थे। उन्होंने तीसरा रंगमंच का सैद्धांतिक प्रतिपादन किया, और उसे मंच पर भी उतारा।  
 
*बादल सरकार का जन्म 15 जुलाई सन 1925 को [[कोलकाता]] में हुआ था। बादल सरकार ने 'बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डि‍प्‍लोमा की शि‍क्षा भारत और वि‍देशों में ली थी। वह भारत के बहुचर्चि‍त नाटककारों में एक थे। सातवें दशक में पूरे देश में उनकी धूम मची थी। [[मोहन राकेश]], [[वि‍जय तेंडुलकर]] और [[गि‍रीश कर्नाड]] के साथ बादल सरकार को मि‍लाने के बाद ही उस दौर का रंगपरि‍वेश संपूर्ण होता था। उनके नाटक भारी संख्या में [[हिन्दी]] में और अन्‍य भारतीय भाषाओं में मंचि‍त हुए और वे बांग्‍ला की परिधि से बाहर नि‍कल समग्रता में [[भारत]] के नाटककार और भारतीय रंगमंच के अगुआ बने। उन्‍होंने रंगमंच को प्रेक्षागृह की परि‍धि से बाहर नि‍काला। आंगन मंच का सिद्धांत रचा। कम से कम खर्च में नाटक मंचि‍त करना और आमजन के लि‍ए नाटक को नि‍:शुल्‍क उपलब्‍ध कराना उनका लक्ष्‍य बना। सन 1956 में बादल सरकार ने अपना पहला नाटक 'सॉल्‍यूशन एक्‍स' लि‍खा।<ref>{{cite web |url=http://bargad.org/2011/05/14/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%95%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0/ |title=जीवन की रूपकथा के नाटककार बादल सरकार|accessmonthday= 10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
;जन्म
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15 जुलाई, 1925 को कोलकाता के एक ईसाई परिवार में बादल उर्फ सुधीन्द्र सरकार का जन्म हुआ। पिता महेन्द्रलाल सरकार 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में पढ़ाते थे और विदेशियों द्वारा संचालित इस संस्था के वे पहले भारतीय प्रधानाचार्य बने थे। मां, सरलमना सरकार से बादल सरकार को साहित्य की प्रेरणा मिली। [[1941]] में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास करने के बाद वे 'शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज' में भर्ती हुए और [[1946]] में वे सिविल इंजीनियर बने। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते समय वे मार्क्‍सवादी विचारधारा और राजनीति से सघन रूप से जुड़ गए। कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रूप से कई वर्षों तक जुड़े रहने के बावजूद, बाद में वे पार्टी राजनीति से अलग हट गए।
15 जुलाई, 1925 को कोलकाता के एक ईसाई परिवार में बादल उर्फ सुधीन्द्र सरकार का जन्म हुआ। पिता महेन्द्रलाल सरकार 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में पढ़ाते थे और विदेशियों द्वारा संचालित इस संस्था के वे पहले भारतीय प्रधानाचार्य बने थे। मां, सरलमना सरकार से बादल सरकार को साहित्य की प्रेरणा मिली।
 
;शिक्षा
 
1941 में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास करने के बाद वे 'शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज' में भर्ती हुए और 1946 में वे सिविल इंजीनियर बने। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते समय वे मार्क्‍सवादी विचारधारा और राजनीति से सघन रूप से जुड़ गए। कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रूप से कई वर्षों तक जुड़े रहने के बावजूद, बाद में वे पार्टी राजनीति से अलग हट गए।
 
 
;नौकरी
 
;नौकरी
बादल सरकार ने 1947 में [[नागपुर]] के पास एक निर्माण संस्‍था में पहली नौकरी की। बाद में वे फिर कोलकाता लौट आए जहां उन्होंने जादवपुर और कोलकाता विश्वविद्यालय में इंजीनियर की नौकरी की। वे उन दिनों नौकरी के साथ-साथ शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में सायंकालीन कक्षाओं में 'टाउन प्‍लानिंग' डिप्‍लोमा के लिए पढ़ाई करते रहे। 1953 में दोमादर वैली कारपोरेशन की नौकरी लेकर माइथन गए। माइथन में बादल सरकार 1956 तक थे। इसी दौरान नाटक के प्रति उनका रुझान दिखने लगा। दफ्तर के सहकर्मियों के साथ मिलकर एक अभिनव रिहर्सल क्‍लब की शुरुआत की जहां, बादल सरकार के शब्‍दों में 'रिहर्सल होगा पर नाटक का मंचन कभी नहीं होगा।' जैसा अभिनव नियम लागू किया गया था, पर बाद में सदस्यों के उत्साह से इस नियम में तोड़कर नाटकों के मंचन की शुरुआत हुई।
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बादल सरकार ने [[1947]] में [[नागपुर]] के पास एक निर्माण संस्‍था में पहली नौकरी की। बाद में वे फिर कोलकाता लौट आए जहां उन्होंने जादवपुर और कोलकाता विश्वविद्यालय में इंजीनियर की नौकरी की। वे उन दिनों नौकरी के साथ-साथ शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में सायंकालीन कक्षाओं में 'टाउन प्‍लानिंग' डिप्‍लोमा के लिए पढ़ाई करते रहे। [[1953]] में दोमादर वैली कारपोरेशन की नौकरी लेकर माइथन गए। माइथन में बादल सरकार [[1956]] तक थे। इसी दौरान नाटक के प्रति उनका रुझान दिखने लगा। दफ़्तर के सहकर्मियों के साथ मिलकर एक अभिनव रिहर्सल क्‍लब की शुरुआत की जहां, बादल सरकार के शब्‍दों में 'रिहर्सल होगा पर नाटक का मंचन कभी नहीं होगा।' जैसा अभिनव नियम लागू किया गया था, पर बाद में सदस्यों के उत्साह से इस नियम में तोड़कर नाटकों के मंचन की शुरुआत हुई।
  
बचपन से ही बादल सरकार नाटकों के प्रति आकर्षित थे। उन्हें नाटकों में हास्य [[रस]] सबसे ज्यादा पसंद था, लिहाजा यह स्वाभाविक ही था कि उनके प्रारंभिक नाटकों में हमें यह तत्व ज्यादा मुखर दिखता है। वे इसे 'सिचुएशन कॉमेडी' कहते हैं। उनका 1956 में लिखा गया पहला नाटक 'सॉल्यूशन एक्स' था। यह नाटक एक विदेशी फिल्म, 'Monkey Business' की कहानी पर आधारित एक सिचुएशन कॉमेडी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
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बचपन से ही बादल सरकार नाटकों के प्रति आकर्षित थे। उन्हें नाटकों में हास्य [[रस]] सबसे ज़्यादा पसंद था, लिहाज़ा यह स्वाभाविक ही था कि उनके प्रारंभिक नाटकों में हमें यह तत्व ज़्यादा मुखर दिखता है। वे इसे 'सिचुएशन कॉमेडी' कहते हैं। उनका [[1956]] में लिखा गया पहला नाटक 'सॉल्यूशन एक्स' था। यह नाटक एक विदेशी फ़िल्म, 'Monkey Business' की कहानी पर आधारित एक सिचुएशन कॉमेडी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
 
;विदेशों में
 
;विदेशों में
1957 से 1958, इन दो वर्षों के दौरान उन्होंने इंग्लैंड में ‘टाउन-प्‍लानिंग’ का कोर्स करने के साथ-साथ नौकरी की। इसी समय उन्‍हें प्रसिद्ध अभिनेताओं का अभिनय देखने का मौका मिला। विवयन ली, चार्ल्स लैटन, माइकल रॉडरेथ, मार्गरेट कॉलिन्‍स आदि के अभिनय और वहां के रंगकर्म से वे बेहद प्रभावित हुए। पर शायद उनके ‘तीसरे रंगमंच’ की नींव की पहली ईंट के रूप में फ्रेंच कवि रॉसिन की कृति ‘फ्रिड्रे’ नाटक को देखने का अनुभव था। 21 फरवरी, 1958 को देखे गए 'थिएटर-इन-राउण्‍ड' में इस प्रस्तुति के बारे में अपने अनुभवों को डायरी के पन्नों में दर्ज करते हुए उन्होंने लिखा था, 'आज जो देखा उसे कभी भुला न पाऊंगा।' मुक्त मंच के इस अनुभव को हम वर्षों बाद उनके तीसरे रंगमंच की अवधारणाओं में विकसित होते देख पाते हैं।
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[[चित्र:Badal-Sarakar-1.jpg|thumb|200px|बादल सरकार]]
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1957 से 1958, इन दो वर्षों के दौरान उन्होंने इंग्लैंड में ‘टाउन-प्‍लानिंग’ का कोर्स करने के साथ-साथ नौकरी की। इसी समय उन्‍हें प्रसिद्ध अभिनेताओं का अभिनय देखने का मौक़ा मिला। विवयन ली, चार्ल्स लैटन, माइकल रॉडरेथ, मार्गरेट कॉलिन्‍स आदि के अभिनय और वहां के रंगकर्म से वे बेहद प्रभावित हुए। पर शायद उनके ‘तीसरे रंगमंच’ की नींव की पहली ईंट के रूप में फ्रेंच कवि रॉसिन की कृति ‘फ्रिड्रे’ नाटक को देखने का अनुभव था। [[21 फ़रवरी]], [[1958]] को देखे गए 'थिएटर-इन-राउण्‍ड' में इस प्रस्तुति के बारे में अपने अनुभवों को डायरी के पन्नों में दर्ज करते हुए उन्होंने लिखा था, 'आज जो देखा उसे कभी भुला न पाऊंगा।' मुक्त मंच के इस अनुभव को हम वर्षों बाद उनके तीसरे रंगमंच की अवधारणाओं में विकसित होते देख पाते हैं।
  
इंग्लैंड प्रवास के दिनों में ही उन्होंने 'बोड़ो पीशी मां' (बड़ी बूआजी) लिखा। इसी समय उन्‍होंने एक छोटा नाटक 'शनिवार' लिखा। यह नाटक जी.बी. प्रिस्‍टले के नाटक 'एन इन्स्पेक्टर कॉल्स' पर आधारित था। 1959 में वे इंग्लैंड से कोलकाता लौट आए और आते ही अपने उत्साही मित्रों के साथ 'चक्रगोष्ठी' नाम से एक 'नाट्य संस्था' की नींव रखी। हर शनिवार को इस गोष्ठी में नाटक के साथ-साथ संगीत, साहित्‍य, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर चर्चा होती थी। इसी 'चक्रगोष्ठी' के प्रयास से उनके कई आरंभिक नाटकों से दर्शक परिचित हुए। 'बोड़ो पीशीमां', 'शोनिबार', 'समावृत', 'रामश्यामजदु' आदि जिनमें प्रमुख हैं।
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इंग्लैंड प्रवास के दिनों में ही उन्होंने 'बोड़ो पीशी मां' (बड़ी बूआजी) लिखा। इसी समय उन्‍होंने एक छोटा नाटक 'शनिवार' लिखा। यह नाटक जी.बी. प्रिस्‍टले के नाटक 'एन इन्स्पेक्टर कॉल्स' पर आधारित था। [[1959]] में वे इंग्लैंड से कोलकाता लौट आए और आते ही अपने उत्साही मित्रों के साथ 'चक्रगोष्ठी' नाम से एक 'नाट्य संस्था' की नींव रखी। हर शनिवार को इस गोष्ठी में नाटक के साथ-साथ संगीत, साहित्‍य, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर चर्चा होती थी। इसी 'चक्रगोष्ठी' के प्रयास से उनके कई आरंभिक नाटकों से दर्शक परिचित हुए। 'बोड़ो पीशीमां', 'शोनिबार', 'समावृत', 'रामश्यामजदु' आदि जिनमें प्रमुख हैं।
  
इसके बाद बादल सरकार फ्रांस सरकार के आर्थिक अनुदान पर वहां गए और फिर तीन वर्षों तक नाइजीरिया में नौकरी की। इस विदेश प्रवास के दौरान उन्होंने 'एबों इन्द्रजित', 'सारा रात्तिर', 'बल्लभपुरेर रूपकथा', 'जोदी आर एकबार', 'त्रिंश शताब्दी', 'पागला घोड़ा', 'प्रलाप', 'पोरे कोनोदिन' जैसे महत्वपूर्ण नाटक लिखे।
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इसके बाद बादल सरकार फ्रांस सरकार के आर्थिक अनुदान पर वहां गए और फिर तीन वर्षों तक नाइजीरिया में नौकरी की। इस विदेश प्रवास के दौरान उन्होंने 'एबों इन्द्रजित', 'सारा रात्तिर', 'बल्लभपुरेर रूपकथा', 'जोदी आर एकबार', 'त्रिंश शताब्दी', 'पागला घोड़ा', 'प्रलाप', 'पोरे कोनोदिन' जैसे महत्त्वपूर्ण नाटक लिखे।
 
;भारत लौटने पर
 
;भारत लौटने पर
देश में लौटने के पहले ही 'एबों इन्द्रजित' बहुरूपी नाट्य पत्रिका में (अंक: 22, जुलाई, 1965)  प्रकाशित हुआ। इसके प्रकाशन के साथ ही बादल सरकार की ख्याति चारों ओर फैल गई। इसका पहला मंचन 'शौभनिक' नाट्यसंस्था ने 16 दिसंबर, 1965 को किया। नाटक के प्रकाशन और मंचन ने नाट्य जगत में मानों धूम मचा दी। 1968 को उन्हें इस नाटक के लिए [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] मिला। नाइज़ीरिया से [[भारत]] लौटने के तुरंत बाद उन्होंने 'बाकी इतिहास' लिखा। उन दिनों शंभु मित्र रंगमंच के शीर्षस्थ व्यक्तियों में थे। उनकी नाट्य संस्था 'बहुरूपी' ने 'बाकी इतिहास' का सफल मंचन किया। ये दोनों नाटक उनके 'सिचुएशनल कॉमेडी' वाले नाटकों से बिल्कुल भिन्न थे, जो भारतीय रंगमंच में एक नए युग का संकेत था।
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देश में लौटने के पहले ही 'एबों इन्द्रजित' बहुरूपी नाट्य पत्रिका में (अंक: [[22 जुलाई]], [[1965]])  प्रकाशित हुआ। इसके प्रकाशन के साथ ही बादल सरकार की ख्याति चारों ओर फैल गई। इसका पहला मंचन 'शौभनिक' नाट्यसंस्था ने [[16 दिसंबर]], [[1965]] को किया। नाटक के प्रकाशन और मंचन ने नाट्य जगत् में मानों धूम मचा दी। [[1968]] को उन्हें इस नाटक के लिए [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] मिला। नाइज़ीरिया से [[भारत]] लौटने के तुरंत बाद उन्होंने 'बाकी इतिहास' लिखा। उन दिनों शंभु मित्र रंगमंच के शीर्षस्थ व्यक्तियों में थे। उनकी नाट्य संस्था 'बहुरूपी' ने 'बाकी इतिहास' का सफल मंचन किया। ये दोनों नाटक उनके 'सिचुएशनल कॉमेडी' वाले नाटकों से बिल्कुल भिन्न थे, जो भारतीय रंगमंच में एक नए युग का संकेत था।
 
;'शताब्दी' नाट्य संस्था
 
;'शताब्दी' नाट्य संस्था
1967 में उन्होंने अपने साथियों के साथ 'शताब्दी' नाट्य संस्था की स्थापना की। 18 मार्च, 1967 को 'रवीन्द्र सरोवर मंच' से 'शताब्दी' ने अपनी रंगयात्रा शुरू की। 1956 से लेकर 1967 तक के सभी नाटक बादल सरकार ने 'प्रोसेनियम मंच' के लिए लिखे थे। लिहाजा 'शताब्दी' की आरंभिक प्रस्तुतियां 'प्रोसेनियम' ही थीं।
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1967 में उन्होंने अपने साथियों के साथ 'शताब्दी' नाट्य संस्था की स्थापना की। [[18 मार्च]], [[1967]] को 'रवीन्द्र सरोवर मंच' से 'शताब्दी' ने अपनी रंगयात्रा शुरू की। 1956 से लेकर 1967 तक के सभी नाटक बादल सरकार ने 'प्रोसेनियम मंच' के लिए लिखे थे। लिहाज़ा 'शताब्दी' की आरंभिक प्रस्तुतियां 'प्रोसेनियम' ही थीं।
1971 से रंगमंच को लेकर बादल सरकार की अवधारणाएं तेजी से बदलने लगी थीं और वे निरंतर प्रयोग कर रहे थे। प्रयोगों के इस दौर से गुजरते हुए वे 'तीसरे रंगमंच' तक जल्द ही पहुंच सके। वे मानने लगे थे कि 'नाटक एक जीवंत कला माध्यम है- Live show ! लोगों का दो समूह - एक ही वक्‍त, एक ही स्‍थान पर इकट्ठे होकर एक कला माध्‍यम के साथ जुड़ रहे हैं - अभिनेताओं और दर्शकों के दो समूह के रूप में। यह एक मानवीय क्रिया है - मनुष्‍य का मनुष्‍य के साथ जुड़ाव। सिनेमा हमें ऐसे प्रत्‍यक्ष जुड़ाव का मौका नहीं देता।' ऐसे ही विचारों से रंगमंच पर प्रयोग करते हुए, उन्‍होंने अन्‍तत: रंगमंच को सार्थक कला माध्‍यम के रूप में स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से, प्रोसेनियम रंगमंच को त्याग, तीसरे रंगमंच को आम जनता तक एक 'फ्री-थिएटर' के रूप में ले जाने में कामयाबी हासिल की।
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1971 से रंगमंच को लेकर बादल सरकार की अवधारणाएं तेज़ीसे बदलने लगी थीं और वे निरंतर प्रयोग कर रहे थे। प्रयोगों के इस दौर से गुजरते हुए वे 'तीसरे रंगमंच' तक जल्द ही पहुंच सके। वे मानने लगे थे कि 'नाटक एक जीवंत कला माध्यम है- Live show ! लोगों का दो समूह - एक ही वक्‍त, एक ही स्‍थान पर इकट्ठे होकर एक कला माध्‍यम के साथ जुड़ रहे हैं - अभिनेताओं और दर्शकों के दो समूह के रूप में। यह एक मानवीय क्रिया है - मनुष्‍य का मनुष्‍य के साथ जुड़ाव। सिनेमा हमें ऐसे प्रत्‍यक्ष जुड़ाव का मौक़ा नहीं देता।' ऐसे ही विचारों से रंगमंच पर प्रयोग करते हुए, उन्‍होंने अन्‍तत: रंगमंच को सार्थक कला माध्‍यम के रूप में स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से, प्रोसेनियम रंगमंच को त्याग, तीसरे रंगमंच को आम जनता तक एक 'फ्री-थिएटर' के रूप में ले जाने में कामयाबी हासिल की।
 
;1970 से 1993
 
;1970 से 1993
 
1970 से 1993 तक बादल सरकार के सभी नाटक तीसरे या विकल्प के रंगमंच को ध्यान में रखकर लिखे गए। 'शताब्दी' के अलावा पूरे देश में इन नाटकों को विभिन्न भाषाओं में, छोटे-बडे़ शहरों - कस्‍बों में विभिन्‍न नाट्य संस्‍थाओं द्वारा खेला गया। बादल सरकार के तीसरे रंगमंच ने भारत की भाषाई,  प्रांतीय और सांस्कृतिक दूरियों को खत्म कर पहली बार एक सार्थक भारतीय रंगमंच विकसित करने की दिशा में एक सफल प्रयास किया। [[मराठी भाषा|मराठी]],  [[हिन्दी]],  [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मलयालम भाषा|मलयाली]], [[कन्नड़]],  [[उड़िया भाषा|ओडिय़ा]] आदि भारतीय भाषाओं में उनके नाटक मंचित हुए और किसी न किसी रूप में देश के सभी प्रांतों के रंगकर्मियों को तीसरे रंगमंच ने अपनी ओर आकर्षित किया।
 
1970 से 1993 तक बादल सरकार के सभी नाटक तीसरे या विकल्प के रंगमंच को ध्यान में रखकर लिखे गए। 'शताब्दी' के अलावा पूरे देश में इन नाटकों को विभिन्न भाषाओं में, छोटे-बडे़ शहरों - कस्‍बों में विभिन्‍न नाट्य संस्‍थाओं द्वारा खेला गया। बादल सरकार के तीसरे रंगमंच ने भारत की भाषाई,  प्रांतीय और सांस्कृतिक दूरियों को खत्म कर पहली बार एक सार्थक भारतीय रंगमंच विकसित करने की दिशा में एक सफल प्रयास किया। [[मराठी भाषा|मराठी]],  [[हिन्दी]],  [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मलयालम भाषा|मलयाली]], [[कन्नड़]],  [[उड़िया भाषा|ओडिय़ा]] आदि भारतीय भाषाओं में उनके नाटक मंचित हुए और किसी न किसी रूप में देश के सभी प्रांतों के रंगकर्मियों को तीसरे रंगमंच ने अपनी ओर आकर्षित किया।
 
;साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा का कथन
 
;साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा का कथन
प्रसिद्ध कला और साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा ने बादल सरकार के जीवन और कृतित्व पर चर्चा करते हुए 'आनंद बाज़ार पत्रिका' <ref>18 जुलाई, 2008</ref> में लिखा है, जो बेहद गौरतलब है - 'आज से सौ वर्ष बाद शायद इस बात पर बहस हो कि क्या बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के संधि काल में, एक ही साथ तीन-तीन बादल सरकार हुए थे जिनमें से एक ने सरस पर बौद्धक रूप से प्रखर संवादों से भरे, कॉमिक स्थितियों की बारीकियों पर अपनी पैनी नज़र साधे, बेहद प्रभावशाली हास्य नाटक लिखे थे। दूसरे, जिन्होंने समाज में हिंसा के, विश्व राजनीतिक खींचातानी के चलते युद्ध की काली परछाई के, परमाणु अस्त्रों के, आतंक के और समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता के खिलाफ अपनी आवाज को अपने नाटकों में दर्ज किया था और तीसरे, जिन्होंने प्रेक्षागृहों के अंदर कैद मनोरंजन प्रधान रंगमंच को एक मुक्ताकाश के नीचे आम जनता तक पहुंचाने का सपना देखा था।'
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प्रसिद्ध कला और साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा ने बादल सरकार के जीवन और कृतित्व पर चर्चा करते हुए 'आनंद बाज़ार पत्रिका' <ref>18 जुलाई, 2008</ref> में लिखा है, जो बेहद गौरतलब है - 'आज से सौ वर्ष बाद शायद इस बात पर बहस हो कि क्या बीसवीं और इक्कीसवीं [[सदी]] के संधि काल में, एक ही साथ तीन-तीन बादल सरकार हुए थे जिनमें से एक ने सरस पर बौद्धक रूप से प्रखर संवादों से भरे, कॉमिक स्थितियों की बारीकियों पर अपनी पैनी नज़र साधे, बेहद प्रभावशाली हास्य नाटक लिखे थे। दूसरे, जिन्होंने समाज में हिंसा के, विश्व राजनीतिक खींचातानी के चलते युद्ध की काली परछाई के, परमाणु अस्त्रों के, आतंक के और समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ को अपने नाटकों में दर्ज किया था और तीसरे, जिन्होंने प्रेक्षागृहों के अंदर कैद मनोरंजन प्रधान रंगमंच को एक मुक्ताकाश के नीचे आम जनता तक पहुंचाने का सपना देखा था।'
 
;भारतीय रंगमंच का विकास
 
;भारतीय रंगमंच का विकास
 
आज से सौ वर्ष बाद के पाठकों को शायद इन तीनों बादल सरकार को एक ही व्यक्तित्व के रूप में चिह्नित करने में कठिनाई होगी। लेकिन राहत की बात कि भारतीय जनता के सुख-दुख, उनकी चिंताओं,  उनकी समस्याओं और सत्ता द्वारा उनके शोषण की समानता के चलते उनकी जो एक विशिष्ट  पहचान बनी थी- [[भाषा]], प्रांत और संस्कृति के बीच की दीवारों को तोड़े कर बनी थी। इसी विशिष्ट पहचान को आधार मानकर भारतीय रंगमंच का विकास संभव हुआ था।
 
आज से सौ वर्ष बाद के पाठकों को शायद इन तीनों बादल सरकार को एक ही व्यक्तित्व के रूप में चिह्नित करने में कठिनाई होगी। लेकिन राहत की बात कि भारतीय जनता के सुख-दुख, उनकी चिंताओं,  उनकी समस्याओं और सत्ता द्वारा उनके शोषण की समानता के चलते उनकी जो एक विशिष्ट  पहचान बनी थी- [[भाषा]], प्रांत और संस्कृति के बीच की दीवारों को तोड़े कर बनी थी। इसी विशिष्ट पहचान को आधार मानकर भारतीय रंगमंच का विकास संभव हुआ था।
सिनेमा-टेलीविजन और तमाम अन्य मनोरंजन के साधनों के जरिए जहां सत्ता की संस्कृति जन संस्‍कृति के खिलाफ व्यापक रूप से सक्रिय हो रही थी और जनता के सरोकारों और सवालों से उन्हें भ्रमित करने में लगी थी,  तब समाज परिवर्तन के उद्देश्य से न सही,  महज एक देशव्यापी प्रतिरोध की संस्कृति को जिंदा रखने के लिए, तीसरे रंगमंच ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बादल सरकार और उनके तीसरे रंगमंच को आने वाले कल के पाठक उसी तरह तरह से अपने क़रीब पाएंगे- जितने क़रीब और आत्‍मीय सरकार आज हमारे हैं।<ref> {{cite book | last =भौमिक| first =अशोक| title =बादल सरकार : व्‍यक्ति और रंगमंच| edition = | publisher =अंतिका प्रकाशन| location =गाजियाबाद| language =हिन्दी| pages =  | chapter = }}</ref>
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सिनेमा-टेलीविजन और तमाम अन्य मनोरंजन के साधनों के जरिए जहां सत्ता की संस्कृति जन संस्‍कृति के ख़िलाफ़ व्यापक रूप से सक्रिय हो रही थी और जनता के सरोकारों और सवालों से उन्हें भ्रमित करने में लगी थी,  तब समाज परिवर्तन के उद्देश्य से न सही,  महज एक देशव्यापी प्रतिरोध की संस्कृति को ज़िंदा रखने के लिए, तीसरे रंगमंच ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बादल सरकार और उनके तीसरे रंगमंच को आने वाले कल के पाठक उसी तरह तरह से अपने क़रीब पाएंगे- जितने क़रीब और आत्‍मीय सरकार आज हमारे हैं।<ref> {{cite book | last =भौमिक| first =अशोक| title =बादल सरकार : व्‍यक्ति और रंगमंच| edition = | publisher =अंतिका प्रकाशन| location =गाजियाबाद| language =हिन्दी| pages =  | chapter = }}</ref>
 
==रचनाएँ==
 
==रचनाएँ==
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[[चित्र:Badal Sarkar-book.jpg|thumb]]
 
#राम श्याम जोदू(1961)
 
#राम श्याम जोदू(1961)
 
#कवि कहानी (1964),  
 
#कवि कहानी (1964),  
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#मिछिल-जुलूस (1974) आदि।  
 
#मिछिल-जुलूस (1974) आदि।  
 
;पुस्तकें
 
;पुस्तकें
बादल सरकार बताते हैं- 'मैंने अपना काम कविताओं से शुरू किया। सन 1956 में मैंने अपना पहला नाटक सॉल्यूशन एक्स लिखा। फिर सन 1956 में 'बारो पिशीमा' आया।' अभी हाल ही में उनकी दो पुस्तकें 'पुरोनो कुशुन्डी और प्रोबोशेर हिज्जीबिज्जी आई हैं, जिनमें उनके नाटकों, अनुभवों और विदेश यात्राओं का विवरण है।
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बादल सरकार बताते हैं- 'मैंने अपना काम कविताओं से शुरू किया। सन् 1956 में मैंने अपना पहला नाटक सॉल्यूशन एक्स लिखा। फिर सन् 1956 में 'बारो पिशीमा' आया।' अभी हाल ही में उनकी दो पुस्तकें 'पुरोनो कुशुन्डी और प्रोबोशेर हिज्जीबिज्जी आई हैं, जिनमें उनके नाटकों, अनुभवों और विदेश यात्राओं का विवरण है।
 
;नुक्कड़ नाटक  
 
;नुक्कड़ नाटक  
सन 1961 में उनका तीसरा नाटक 'राम श्याम जोदू' आया जो एक विदेशी कहानी पर आधारित था। इस नाटक की सफलता ने उन्हें एक अलग किस्म के थिएटर का जनक बनाया, जिसे भारत में 'थर्ड थिएटर' और 'साइको फिजिकल थिएटर' (मनो-शारीरिक रंगमंच) के नामों से जाना गया। सन 1963 में उन्होंने दो नाटकों का निर्देशन किया। ये नाटक थे - एवम् इंद्रजीत और वल्लभपुर की रूपकथा । इन नाटकों के साथ ही बादल सरकार का नाम हर रंगकर्मी की जुबान पर छा गया। बादल सरकार ने अपने साथियों के साथ ‘परिक्रमा’ कार्यक्रम के साथ बंगाल के अनेक ज़िलों में गांव-गांव जा कर नाटक किए और बंगाल के ग्रामीण जनों से सीधा रंगसम्पर्क बनाया। नादिया, 24 परगना आदि ज़िलों में भी गांव-गांव घूम कर बादल सरकार ने रंगकर्म का संदेश दे कर अभिजात्य नाट्य जगत को चुनौती दी। उनके नाटकों में कलाकारों और दर्शकों के बीच कोई फर्क नहीं होता है। बादल सरकार ने आंगन, छत, नुक्कड़ और गांवों में नाटकों को पहुंचा कर नाटक को व्यापक बनाया।<ref>{{cite web |url=http://jabalpur-chaupal.blogspot.com/2009/04/blog-post_21.html|title=प्रतिरोध को थियेटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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सन 1961 में उनका तीसरा नाटक 'राम श्याम जोदू' आया जो एक विदेशी कहानी पर आधारित था। इस नाटक की सफलता ने उन्हें एक अलग किस्म के थिएटर का जनक बनाया, जिसे भारत में 'थर्ड थिएटर' और 'साइको फिजिकल थिएटर' (मनो-शारीरिक रंगमंच) के नामों से जाना गया। सन् 1963 में उन्होंने दो नाटकों का निर्देशन किया। ये नाटक थे - एवम् इंद्रजीत और वल्लभपुर की रूपकथा । इन नाटकों के साथ ही बादल सरकार का नाम हर रंगकर्मी की जुबान पर छा गया। बादल सरकार ने अपने साथियों के साथ ‘परिक्रमा’ कार्यक्रम के साथ बंगाल के अनेक ज़िलों में गांव-गांव जा कर नाटक किए और बंगाल के ग्रामीण जनों से सीधा रंगसम्पर्क बनाया। नादिया, 24 परगना आदि ज़िलों में भी गांव-गांव घूम कर बादल सरकार ने रंगकर्म का संदेश दे कर अभिजात्य नाट्य जगत् को चुनौती दी। उनके नाटकों में कलाकारों और दर्शकों के बीच कोई फ़र्क़ नहीं होता है। बादल सरकार ने आंगन, छत, नुक्कड़ और गांवों में नाटकों को पहुंचा कर नाटक को व्यापक बनाया।<ref name="JBC">{{cite web |url=http://jabalpur-chaupal.blogspot.com/2009/04/blog-post_21.html|title=प्रतिरोध को थियेटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जबलपुर चौपाल |language=हिन्दी}}</ref>
  
 
<blockquote>'मेरे नाटक संदेश मेरा संदेश देते हैं। परन्तु मैं महसूस करता हूं कि इन नाटकों को यदि मैं आज लिखता तो इनका फार्म और नेरेशन दूसरा होता। जिस पथ पर मैं अब तक चला और जो नवाचार मैंने भारतीय रंगमंच में किया, उस पर मुझे आज भी विश्वास है।' - बादल सरकार
 
<blockquote>'मेरे नाटक संदेश मेरा संदेश देते हैं। परन्तु मैं महसूस करता हूं कि इन नाटकों को यदि मैं आज लिखता तो इनका फार्म और नेरेशन दूसरा होता। जिस पथ पर मैं अब तक चला और जो नवाचार मैंने भारतीय रंगमंच में किया, उस पर मुझे आज भी विश्वास है।' - बादल सरकार
 
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बादल सरकार बताते हैं कि उन्होंने थिएटर अपने परिवार वालों के साथ मिल कर शुरू किया। घर से साड़ी-कपडे ले जा कर उसी से स्टेज बना कर पूरी लगन से नाटक तैयार करते थे। उन्होंने कई बार नाटकों में महिला पात्र का काम किया, हालांकि उनके माता-पिता को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। 'नुक्कड़ नाटक' के उनके मुहावरे को [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] तक में सम्मान मिला। बादल सरकार का रंगकर्म व्यवस्था के विरूद्ध उद्घोष है। उनकी ऊर्जा हर युवा को आकर्षित करती है, इसलिए बादल सरकार के नाटक पूरे देश में हर नाट्य दल द्वारा बार-बार खेले गए। बादल दा के नाटक समाज में अत्याचार और बिखरती समाज व्यवस्था के विरूद्ध तीखा प्रतिरोध करते हैं। समाज और राजनीति की विद्रूपताओं पर उनके नाटक गहरी चोट करते हैं। इस कारण से बादल सरकार के नाटक और वे स्वयं भी देश के रंगकर्मियों के चहेते हैं।<ref>{{cite web |url=http://jabalpur-chaupal.blogspot.com/2009/04/blog-post_21.html|title= प्रतिरोध को थियेटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार|accessmonthday=10 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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बादल सरकार बताते हैं कि उन्होंने थिएटर अपने परिवार वालों के साथ मिल कर शुरू किया। घर से साड़ी-कपडे ले जा कर उसी से स्टेज बना कर पूरी लगन से नाटक तैयार करते थे। उन्होंने कई बार नाटकों में महिला पात्र का काम किया, हालांकि उनके माता-पिता को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। 'नुक्कड़ नाटक' के उनके मुहावरे को [[राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय]] तक में सम्मान मिला। बादल सरकार का रंगकर्म व्यवस्था के विरुद्ध उद्घोष है। उनकी ऊर्जा हर युवा को आकर्षित करती है, इसलिए बादल सरकार के नाटक पूरे देश में हर नाट्य दल द्वारा बार-बार खेले गए। बादल दा के नाटक समाज में अत्याचार और बिखरती समाज व्यवस्था के विरुद्ध तीखा प्रतिरोध करते हैं। समाज और राजनीति की विद्रूपताओं पर उनके नाटक गहरी चोट करते हैं। इस कारण से बादल सरकार के नाटक और वे स्वयं भी देश के रंगकर्मियों के चहेते हैं।<ref name="JBC"/>
 
==सम्मान और पुरस्कार==
 
==सम्मान और पुरस्कार==
 
बादल सरकार को वर्ष 1968 में [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]], वर्ष 1972 में [[पद्मश्री]], वर्ष 1997 में संगीत नाटक अकादमी-रत्न सदस्य का पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा उन्हें [[पद्मभूषण]] सम्मान दिया गया जो उन्होंने लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि एक लेखक का सबसे बड़ा सम्मान [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार वह पहले ही पा चुके हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.jagranjosh.com/current-affairs/%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A3-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-1306929285-2 |title=तीसरा-रंगमंच-के-संस्थापक-और-भारतीय-ग्रामीण-पारंपरिक-रंगमंच-के-पुरोधा-बादल-सरकार-का-निधन |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
बादल सरकार को वर्ष 1968 में [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]], वर्ष 1972 में [[पद्मश्री]], वर्ष 1997 में संगीत नाटक अकादमी-रत्न सदस्य का पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा उन्हें [[पद्मभूषण]] सम्मान दिया गया जो उन्होंने लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि एक लेखक का सबसे बड़ा सम्मान [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार वह पहले ही पा चुके हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.jagranjosh.com/current-affairs/%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A3-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%A8-1306929285-2 |title=तीसरा-रंगमंच-के-संस्थापक-और-भारतीय-ग्रामीण-पारंपरिक-रंगमंच-के-पुरोधा-बादल-सरकार-का-निधन |accessmonthday=10 जून|accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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==योगदान==
 
==योगदान==
 
बादल सरकार के अनुसार शहरी [[रंगमंच]] पश्चिम से प्रभावित है और ग्रामीण रंगमंच पारंपरिक शैलियों से, और दोनों में ही अंतर्वस्तु की कमी है। शहरी रंगमंच अपने प्रोसिनियम दायरे में बंधा है और ग्रामीण या पारंपरिक रंगमंच अपनी पुरानी शैलियों में, जिसमें प्रखर राजनीतिक चेतना का अभाव है। बादल सरकार आधुनिक रंगमंच को प्रोसिनिमय दायरे से निकाल कर लोगों के बीच ले गए। गांवों और कस्बों में ले गए। बादल सरकार के नाटक जुलूस (बांग्ला में मिछिल) ने अखिल भारतीय स्तर पर 1974-75 के समय में जब [[जयप्रकाश नारायण]] के नेतृत्व में शुरू हुए छात्र आंदोलन का समय था, रंगकर्मिंयों और नाट्य प्रेमियों की कल्पनाशीलता को बेहद प्रभावित किया। नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
 
बादल सरकार के अनुसार शहरी [[रंगमंच]] पश्चिम से प्रभावित है और ग्रामीण रंगमंच पारंपरिक शैलियों से, और दोनों में ही अंतर्वस्तु की कमी है। शहरी रंगमंच अपने प्रोसिनियम दायरे में बंधा है और ग्रामीण या पारंपरिक रंगमंच अपनी पुरानी शैलियों में, जिसमें प्रखर राजनीतिक चेतना का अभाव है। बादल सरकार आधुनिक रंगमंच को प्रोसिनिमय दायरे से निकाल कर लोगों के बीच ले गए। गांवों और कस्बों में ले गए। बादल सरकार के नाटक जुलूस (बांग्ला में मिछिल) ने अखिल भारतीय स्तर पर 1974-75 के समय में जब [[जयप्रकाश नारायण]] के नेतृत्व में शुरू हुए छात्र आंदोलन का समय था, रंगकर्मिंयों और नाट्य प्रेमियों की कल्पनाशीलता को बेहद प्रभावित किया। नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
 
 
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{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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*[http://www.printsasia.com/book/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%95-%E0%A4%AD%E0%A5%8C%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-9380044062-9789380044064 बादल सरकार व्यक्ति और रंगमंच]
 
*[http://www.printsasia.com/book/%E0%A4%AC%E0%A4%A6%E0%A4%B2-%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A-%E0%A4%85%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%95-%E0%A4%AD%E0%A5%8C%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%95-9380044062-9789380044064 बादल सरकार व्यक्ति और रंगमंच]
 
*[http://mohallalive.com/2009/08/25/ashok-bhaumik-book-published-on-badal-sarkar/ बादल सरकार पर अशोक भौमिक की किताब प्रकाशित]
 
*[http://mohallalive.com/2009/08/25/ashok-bhaumik-book-published-on-badal-sarkar/ बादल सरकार पर अशोक भौमिक की किताब प्रकाशित]
*[http://bhadas4media.com/dukh-dard/11148-2011-05-15-07-54-00.html महान रंगद्रष्टा बादल सरकार को हमारी भाव भीनी श्रद्धांजलि!]
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*[http://bhadas4media.com/dukh-dard/11148-2011-05-15-07-54-00.html महान् रंगद्रष्टा बादल सरकार को हमारी भाव भीनी श्रद्धांजलि!]
 
*[http://www.antika-prakashan.com/2010/09/2008.html अंतिका प्रकाशन]
 
*[http://www.antika-prakashan.com/2010/09/2008.html अंतिका प्रकाशन]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
{{नाटककार}}
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[[Category:रंगमंच]]
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[[Category:नाटककार]]
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[[Category:चरित कोश]]
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[[Category:कला कोश]]
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:नाट्य और अभिनय]]
 
[[Category:पद्म श्री]]
 
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08:20, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

बादल सरकार
बादल सरकार
पूरा नाम सुधीन्द्र सरकार
अन्य नाम बादल सरकार
जन्म 15 जुलाई सन् 1925 ई.
जन्म भूमि कोलकाता
मृत्यु 13 मई , 2011
मृत्यु स्थान कोलकाता
अभिभावक पिता- महेन्द्रलाल सरकार, माता- सरलमना सरकार
कर्म-क्षेत्र कला और साहित्य
मुख्य रचनाएँ इन्द्रजित (1963), पगला घोड़ा (1967), राम श्याम जोदू (1961), कवि कहानी (1964), बाक़ी इतिहास (1965), तीसरी शताब्दी (1966) आदि।
शिक्षा बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डिप्‍लोमा
विद्यालय शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज, कोलकाता
प्रसिद्धि अभिनेता, नाटककार, निर्देशक
विशेष योगदान नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।
नागरिकता भारतीय
पहला नाटक सॉल्यूशन एक्स (1956)

बादल सरकार (अंग्रेज़ी: Badal Sarakar, जन्म: 15 जुलाई, 1925 - मृत्य: 13 मई , 2011) अभिनेता, नाटककार, निर्देशक और इन सबके अतिरिक्त रंगमंच के सिद्धांतकार थे। उन्होंने तीसरा रंगमंच का सैद्धांतिक प्रतिपादन किया, और उसे मंच पर भी उतारा। बादल सरकार ने 'बैचलर ऑफ इंजीनि‍यरिंग' तथा 'टाउन प्‍लानिंग' में डिप्‍लोमा की शिक्षा भारत और विदेशों में ली थी। वह भारत के बहुचर्चित नाटककारों में एक थे। सातवें दशक में पूरे देश में उनकी धूम मची थी। मोहन राकेश, विजय तेंडुलकर और गिरीश कर्नाड के साथ बादल सरकार को मिलाने के बाद ही उस दौर का रंगपरिवेश संपूर्ण होता था। उनके नाटक भारी संख्या में हिन्दी में और अन्‍य भारतीय भाषाओं में मंचित हुए और वे बांग्‍ला की परिधि से बाहर निकल समग्रता में भारत के नाटककार और भारतीय रंगमंच के अगुआ बने। उन्‍होंने रंगमंच को प्रेक्षागृह की परिधि से बाहर निकाला। आंगन मंच का सिद्धांत रचा। कम से कम खर्च में नाटक मंचित करना और आमजन के लिए नाटक को नि:शुल्‍क उपलब्‍ध कराना उनका लक्ष्‍य बना। सन् 1956 में बादल सरकार ने अपना पहला नाटक 'सॉल्‍यूशन एक्‍स' लिखा।[1]

जीवन परिचय

15 जुलाई, 1925 को कोलकाता के एक ईसाई परिवार में बादल उर्फ सुधीन्द्र सरकार का जन्म हुआ। पिता महेन्द्रलाल सरकार 'स्कॉटिश चर्च कॉलेज' में पढ़ाते थे और विदेशियों द्वारा संचालित इस संस्था के वे पहले भारतीय प्रधानाचार्य बने थे। मां, सरलमना सरकार से बादल सरकार को साहित्य की प्रेरणा मिली। 1941 में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास करने के बाद वे 'शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज' में भर्ती हुए और 1946 में वे सिविल इंजीनियर बने। इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते समय वे मार्क्‍सवादी विचारधारा और राजनीति से सघन रूप से जुड़ गए। कम्युनिस्ट पार्टी में सक्रिय रूप से कई वर्षों तक जुड़े रहने के बावजूद, बाद में वे पार्टी राजनीति से अलग हट गए।

नौकरी

बादल सरकार ने 1947 में नागपुर के पास एक निर्माण संस्‍था में पहली नौकरी की। बाद में वे फिर कोलकाता लौट आए जहां उन्होंने जादवपुर और कोलकाता विश्वविद्यालय में इंजीनियर की नौकरी की। वे उन दिनों नौकरी के साथ-साथ शिवपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में सायंकालीन कक्षाओं में 'टाउन प्‍लानिंग' डिप्‍लोमा के लिए पढ़ाई करते रहे। 1953 में दोमादर वैली कारपोरेशन की नौकरी लेकर माइथन गए। माइथन में बादल सरकार 1956 तक थे। इसी दौरान नाटक के प्रति उनका रुझान दिखने लगा। दफ़्तर के सहकर्मियों के साथ मिलकर एक अभिनव रिहर्सल क्‍लब की शुरुआत की जहां, बादल सरकार के शब्‍दों में 'रिहर्सल होगा पर नाटक का मंचन कभी नहीं होगा।' जैसा अभिनव नियम लागू किया गया था, पर बाद में सदस्यों के उत्साह से इस नियम में तोड़कर नाटकों के मंचन की शुरुआत हुई।

बचपन से ही बादल सरकार नाटकों के प्रति आकर्षित थे। उन्हें नाटकों में हास्य रस सबसे ज़्यादा पसंद था, लिहाज़ा यह स्वाभाविक ही था कि उनके प्रारंभिक नाटकों में हमें यह तत्व ज़्यादा मुखर दिखता है। वे इसे 'सिचुएशन कॉमेडी' कहते हैं। उनका 1956 में लिखा गया पहला नाटक 'सॉल्यूशन एक्स' था। यह नाटक एक विदेशी फ़िल्म, 'Monkey Business' की कहानी पर आधारित एक सिचुएशन कॉमेडी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

विदेशों में
बादल सरकार

1957 से 1958, इन दो वर्षों के दौरान उन्होंने इंग्लैंड में ‘टाउन-प्‍लानिंग’ का कोर्स करने के साथ-साथ नौकरी की। इसी समय उन्‍हें प्रसिद्ध अभिनेताओं का अभिनय देखने का मौक़ा मिला। विवयन ली, चार्ल्स लैटन, माइकल रॉडरेथ, मार्गरेट कॉलिन्‍स आदि के अभिनय और वहां के रंगकर्म से वे बेहद प्रभावित हुए। पर शायद उनके ‘तीसरे रंगमंच’ की नींव की पहली ईंट के रूप में फ्रेंच कवि रॉसिन की कृति ‘फ्रिड्रे’ नाटक को देखने का अनुभव था। 21 फ़रवरी, 1958 को देखे गए 'थिएटर-इन-राउण्‍ड' में इस प्रस्तुति के बारे में अपने अनुभवों को डायरी के पन्नों में दर्ज करते हुए उन्होंने लिखा था, 'आज जो देखा उसे कभी भुला न पाऊंगा।' मुक्त मंच के इस अनुभव को हम वर्षों बाद उनके तीसरे रंगमंच की अवधारणाओं में विकसित होते देख पाते हैं।

इंग्लैंड प्रवास के दिनों में ही उन्होंने 'बोड़ो पीशी मां' (बड़ी बूआजी) लिखा। इसी समय उन्‍होंने एक छोटा नाटक 'शनिवार' लिखा। यह नाटक जी.बी. प्रिस्‍टले के नाटक 'एन इन्स्पेक्टर कॉल्स' पर आधारित था। 1959 में वे इंग्लैंड से कोलकाता लौट आए और आते ही अपने उत्साही मित्रों के साथ 'चक्रगोष्ठी' नाम से एक 'नाट्य संस्था' की नींव रखी। हर शनिवार को इस गोष्ठी में नाटक के साथ-साथ संगीत, साहित्‍य, विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर चर्चा होती थी। इसी 'चक्रगोष्ठी' के प्रयास से उनके कई आरंभिक नाटकों से दर्शक परिचित हुए। 'बोड़ो पीशीमां', 'शोनिबार', 'समावृत', 'रामश्यामजदु' आदि जिनमें प्रमुख हैं।

इसके बाद बादल सरकार फ्रांस सरकार के आर्थिक अनुदान पर वहां गए और फिर तीन वर्षों तक नाइजीरिया में नौकरी की। इस विदेश प्रवास के दौरान उन्होंने 'एबों इन्द्रजित', 'सारा रात्तिर', 'बल्लभपुरेर रूपकथा', 'जोदी आर एकबार', 'त्रिंश शताब्दी', 'पागला घोड़ा', 'प्रलाप', 'पोरे कोनोदिन' जैसे महत्त्वपूर्ण नाटक लिखे।

भारत लौटने पर

देश में लौटने के पहले ही 'एबों इन्द्रजित' बहुरूपी नाट्य पत्रिका में (अंक: 22 जुलाई, 1965) प्रकाशित हुआ। इसके प्रकाशन के साथ ही बादल सरकार की ख्याति चारों ओर फैल गई। इसका पहला मंचन 'शौभनिक' नाट्यसंस्था ने 16 दिसंबर, 1965 को किया। नाटक के प्रकाशन और मंचन ने नाट्य जगत् में मानों धूम मचा दी। 1968 को उन्हें इस नाटक के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला। नाइज़ीरिया से भारत लौटने के तुरंत बाद उन्होंने 'बाकी इतिहास' लिखा। उन दिनों शंभु मित्र रंगमंच के शीर्षस्थ व्यक्तियों में थे। उनकी नाट्य संस्था 'बहुरूपी' ने 'बाकी इतिहास' का सफल मंचन किया। ये दोनों नाटक उनके 'सिचुएशनल कॉमेडी' वाले नाटकों से बिल्कुल भिन्न थे, जो भारतीय रंगमंच में एक नए युग का संकेत था।

'शताब्दी' नाट्य संस्था

1967 में उन्होंने अपने साथियों के साथ 'शताब्दी' नाट्य संस्था की स्थापना की। 18 मार्च, 1967 को 'रवीन्द्र सरोवर मंच' से 'शताब्दी' ने अपनी रंगयात्रा शुरू की। 1956 से लेकर 1967 तक के सभी नाटक बादल सरकार ने 'प्रोसेनियम मंच' के लिए लिखे थे। लिहाज़ा 'शताब्दी' की आरंभिक प्रस्तुतियां 'प्रोसेनियम' ही थीं। 1971 से रंगमंच को लेकर बादल सरकार की अवधारणाएं तेज़ीसे बदलने लगी थीं और वे निरंतर प्रयोग कर रहे थे। प्रयोगों के इस दौर से गुजरते हुए वे 'तीसरे रंगमंच' तक जल्द ही पहुंच सके। वे मानने लगे थे कि 'नाटक एक जीवंत कला माध्यम है- Live show ! लोगों का दो समूह - एक ही वक्‍त, एक ही स्‍थान पर इकट्ठे होकर एक कला माध्‍यम के साथ जुड़ रहे हैं - अभिनेताओं और दर्शकों के दो समूह के रूप में। यह एक मानवीय क्रिया है - मनुष्‍य का मनुष्‍य के साथ जुड़ाव। सिनेमा हमें ऐसे प्रत्‍यक्ष जुड़ाव का मौक़ा नहीं देता।' ऐसे ही विचारों से रंगमंच पर प्रयोग करते हुए, उन्‍होंने अन्‍तत: रंगमंच को सार्थक कला माध्‍यम के रूप में स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से, प्रोसेनियम रंगमंच को त्याग, तीसरे रंगमंच को आम जनता तक एक 'फ्री-थिएटर' के रूप में ले जाने में कामयाबी हासिल की।

1970 से 1993

1970 से 1993 तक बादल सरकार के सभी नाटक तीसरे या विकल्प के रंगमंच को ध्यान में रखकर लिखे गए। 'शताब्दी' के अलावा पूरे देश में इन नाटकों को विभिन्न भाषाओं में, छोटे-बडे़ शहरों - कस्‍बों में विभिन्‍न नाट्य संस्‍थाओं द्वारा खेला गया। बादल सरकार के तीसरे रंगमंच ने भारत की भाषाई, प्रांतीय और सांस्कृतिक दूरियों को खत्म कर पहली बार एक सार्थक भारतीय रंगमंच विकसित करने की दिशा में एक सफल प्रयास किया। मराठी, हिन्दी, पंजाबी, गुजराती, मलयाली, कन्नड़, ओडिय़ा आदि भारतीय भाषाओं में उनके नाटक मंचित हुए और किसी न किसी रूप में देश के सभी प्रांतों के रंगकर्मियों को तीसरे रंगमंच ने अपनी ओर आकर्षित किया।

साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा का कथन

प्रसिद्ध कला और साहित्य समीक्षक चिन्मय गुहा ने बादल सरकार के जीवन और कृतित्व पर चर्चा करते हुए 'आनंद बाज़ार पत्रिका' [2] में लिखा है, जो बेहद गौरतलब है - 'आज से सौ वर्ष बाद शायद इस बात पर बहस हो कि क्या बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के संधि काल में, एक ही साथ तीन-तीन बादल सरकार हुए थे जिनमें से एक ने सरस पर बौद्धक रूप से प्रखर संवादों से भरे, कॉमिक स्थितियों की बारीकियों पर अपनी पैनी नज़र साधे, बेहद प्रभावशाली हास्य नाटक लिखे थे। दूसरे, जिन्होंने समाज में हिंसा के, विश्व राजनीतिक खींचातानी के चलते युद्ध की काली परछाई के, परमाणु अस्त्रों के, आतंक के और समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ को अपने नाटकों में दर्ज किया था और तीसरे, जिन्होंने प्रेक्षागृहों के अंदर कैद मनोरंजन प्रधान रंगमंच को एक मुक्ताकाश के नीचे आम जनता तक पहुंचाने का सपना देखा था।'

भारतीय रंगमंच का विकास

आज से सौ वर्ष बाद के पाठकों को शायद इन तीनों बादल सरकार को एक ही व्यक्तित्व के रूप में चिह्नित करने में कठिनाई होगी। लेकिन राहत की बात कि भारतीय जनता के सुख-दुख, उनकी चिंताओं, उनकी समस्याओं और सत्ता द्वारा उनके शोषण की समानता के चलते उनकी जो एक विशिष्ट पहचान बनी थी- भाषा, प्रांत और संस्कृति के बीच की दीवारों को तोड़े कर बनी थी। इसी विशिष्ट पहचान को आधार मानकर भारतीय रंगमंच का विकास संभव हुआ था। सिनेमा-टेलीविजन और तमाम अन्य मनोरंजन के साधनों के जरिए जहां सत्ता की संस्कृति जन संस्‍कृति के ख़िलाफ़ व्यापक रूप से सक्रिय हो रही थी और जनता के सरोकारों और सवालों से उन्हें भ्रमित करने में लगी थी, तब समाज परिवर्तन के उद्देश्य से न सही, महज एक देशव्यापी प्रतिरोध की संस्कृति को ज़िंदा रखने के लिए, तीसरे रंगमंच ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बादल सरकार और उनके तीसरे रंगमंच को आने वाले कल के पाठक उसी तरह तरह से अपने क़रीब पाएंगे- जितने क़रीब और आत्‍मीय सरकार आज हमारे हैं।[3]

रचनाएँ

Badal Sarkar-book.jpg
  1. राम श्याम जोदू(1961)
  2. कवि कहानी (1964),
  3. बाक़ी इतिहास (1965),
  4. तीसरी शताब्दी (1966),
  5. यदि फिर एक बार (1966),
  6. पगला घोड़ा (1967),
  7. अंत नहीं (1970),
  8. सगीना मेहता (1970),
  9. अबू हसन (1971),
  10. मिछिल-जुलूस (1974) आदि।
पुस्तकें

बादल सरकार बताते हैं- 'मैंने अपना काम कविताओं से शुरू किया। सन् 1956 में मैंने अपना पहला नाटक सॉल्यूशन एक्स लिखा। फिर सन् 1956 में 'बारो पिशीमा' आया।' अभी हाल ही में उनकी दो पुस्तकें 'पुरोनो कुशुन्डी और प्रोबोशेर हिज्जीबिज्जी आई हैं, जिनमें उनके नाटकों, अनुभवों और विदेश यात्राओं का विवरण है।

नुक्कड़ नाटक

सन 1961 में उनका तीसरा नाटक 'राम श्याम जोदू' आया जो एक विदेशी कहानी पर आधारित था। इस नाटक की सफलता ने उन्हें एक अलग किस्म के थिएटर का जनक बनाया, जिसे भारत में 'थर्ड थिएटर' और 'साइको फिजिकल थिएटर' (मनो-शारीरिक रंगमंच) के नामों से जाना गया। सन् 1963 में उन्होंने दो नाटकों का निर्देशन किया। ये नाटक थे - एवम् इंद्रजीत और वल्लभपुर की रूपकथा । इन नाटकों के साथ ही बादल सरकार का नाम हर रंगकर्मी की जुबान पर छा गया। बादल सरकार ने अपने साथियों के साथ ‘परिक्रमा’ कार्यक्रम के साथ बंगाल के अनेक ज़िलों में गांव-गांव जा कर नाटक किए और बंगाल के ग्रामीण जनों से सीधा रंगसम्पर्क बनाया। नादिया, 24 परगना आदि ज़िलों में भी गांव-गांव घूम कर बादल सरकार ने रंगकर्म का संदेश दे कर अभिजात्य नाट्य जगत् को चुनौती दी। उनके नाटकों में कलाकारों और दर्शकों के बीच कोई फ़र्क़ नहीं होता है। बादल सरकार ने आंगन, छत, नुक्कड़ और गांवों में नाटकों को पहुंचा कर नाटक को व्यापक बनाया।[4]

'मेरे नाटक संदेश मेरा संदेश देते हैं। परन्तु मैं महसूस करता हूं कि इन नाटकों को यदि मैं आज लिखता तो इनका फार्म और नेरेशन दूसरा होता। जिस पथ पर मैं अब तक चला और जो नवाचार मैंने भारतीय रंगमंच में किया, उस पर मुझे आज भी विश्वास है।' - बादल सरकार

बादल सरकार बताते हैं कि उन्होंने थिएटर अपने परिवार वालों के साथ मिल कर शुरू किया। घर से साड़ी-कपडे ले जा कर उसी से स्टेज बना कर पूरी लगन से नाटक तैयार करते थे। उन्होंने कई बार नाटकों में महिला पात्र का काम किया, हालांकि उनके माता-पिता को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। 'नुक्कड़ नाटक' के उनके मुहावरे को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तक में सम्मान मिला। बादल सरकार का रंगकर्म व्यवस्था के विरुद्ध उद्घोष है। उनकी ऊर्जा हर युवा को आकर्षित करती है, इसलिए बादल सरकार के नाटक पूरे देश में हर नाट्य दल द्वारा बार-बार खेले गए। बादल दा के नाटक समाज में अत्याचार और बिखरती समाज व्यवस्था के विरुद्ध तीखा प्रतिरोध करते हैं। समाज और राजनीति की विद्रूपताओं पर उनके नाटक गहरी चोट करते हैं। इस कारण से बादल सरकार के नाटक और वे स्वयं भी देश के रंगकर्मियों के चहेते हैं।[4]

सम्मान और पुरस्कार

बादल सरकार को वर्ष 1968 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, वर्ष 1972 में पद्मश्री, वर्ष 1997 में संगीत नाटक अकादमी-रत्न सदस्य का पुरस्कार मिल चुका है। वर्ष 2010 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण सम्मान दिया गया जो उन्होंने लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि एक लेखक का सबसे बड़ा सम्मान साहित्य अकादमी पुरस्कार वह पहले ही पा चुके हैं।[5]

निधन

तीसरा रंगमंच के संस्थापक और भारतीय ग्रामीण पारंपरिक रंगमंच के पुरोधा बादल सरकार का पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में 13 मई 2011 को निधन हो गया। बादल सरकार कैंसर से पीड़ित थे।

योगदान

बादल सरकार के अनुसार शहरी रंगमंच पश्चिम से प्रभावित है और ग्रामीण रंगमंच पारंपरिक शैलियों से, और दोनों में ही अंतर्वस्तु की कमी है। शहरी रंगमंच अपने प्रोसिनियम दायरे में बंधा है और ग्रामीण या पारंपरिक रंगमंच अपनी पुरानी शैलियों में, जिसमें प्रखर राजनीतिक चेतना का अभाव है। बादल सरकार आधुनिक रंगमंच को प्रोसिनिमय दायरे से निकाल कर लोगों के बीच ले गए। गांवों और कस्बों में ले गए। बादल सरकार के नाटक जुलूस (बांग्ला में मिछिल) ने अखिल भारतीय स्तर पर 1974-75 के समय में जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में शुरू हुए छात्र आंदोलन का समय था, रंगकर्मिंयों और नाट्य प्रेमियों की कल्पनाशीलता को बेहद प्रभावित किया। नुक्कड़ नाटकों को लोकप्रिय बनाने, उसे रंगमंच की समकालीन बहस के बीच लाने में सबसे बड़ा योगदान बादल सरकार का ही है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जीवन की रूपकथा के नाटककार बादल सरकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जून, 2011।
  2. 18 जुलाई, 2008
  3. भौमिक, अशोक बादल सरकार : व्‍यक्ति और रंगमंच (हिन्दी)। गाजियाबाद: अंतिका प्रकाशन।
  4. 4.0 4.1 प्रतिरोध को थियेटर का माध्यम बनाने वाले रंगकर्मी बादल सरकार (हिन्दी) जबलपुर चौपाल। अभिगमन तिथि: 10 जून, 2011।
  5. तीसरा-रंगमंच-के-संस्थापक-और-भारतीय-ग्रामीण-पारंपरिक-रंगमंच-के-पुरोधा-बादल-सरकार-का-निधन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जून, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

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