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'''उपबर्हण''' [[नारद|देवर्षि नारद]] के पूर्वजन्म का नाम था। अपने पूर्वजन्म में उपबर्हण एक [[गन्धर्व]] थे।
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'''उपबर्हण''' [[नारद|देवर्षि नारद]] के पूर्वजन्म का नाम था। अपने पूर्वजन्म में उपबर्हण एक [[गन्धर्व]] थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=62|url=}}</ref>
  
 
*सुन्दर होने के कारण उपबर्हण सदा स्त्रियों के समाज में समय व्यतीत करते थे, जिससे रुष्ट होकर [[देवता|देवताओं]] ने इन्हें [[शूद्र]] होने का शाप दिया था।
 
*सुन्दर होने के कारण उपबर्हण सदा स्त्रियों के समाज में समय व्यतीत करते थे, जिससे रुष्ट होकर [[देवता|देवताओं]] ने इन्हें [[शूद्र]] होने का शाप दिया था।
*देवताओं के शाप के फलस्वरूप उपबर्हण दासी पुत्र हुए, किंतु ब्रह्माज्ञानी संत महात्माओं की सेवा तथा शुद्ध आचरण के बल पर अन्त में ब्रह्मापुत्र हुए।भागवतपुराण 7.15.69-73
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*देवताओं के शाप के फलस्वरूप उपबर्हण दासी पुत्र हुए, किंतु ब्रह्माज्ञानी संत महात्माओं की सेवा तथा शुद्ध आचरण के बल पर अन्त में ब्रह्मापुत्र हुए।<ref>भागवतपुराण 7.15.69-73</ref>
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==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==

08:56, 28 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण

उपबर्हण देवर्षि नारद के पूर्वजन्म का नाम था। अपने पूर्वजन्म में उपबर्हण एक गन्धर्व थे।[1]

  • सुन्दर होने के कारण उपबर्हण सदा स्त्रियों के समाज में समय व्यतीत करते थे, जिससे रुष्ट होकर देवताओं ने इन्हें शूद्र होने का शाप दिया था।
  • देवताओं के शाप के फलस्वरूप उपबर्हण दासी पुत्र हुए, किंतु ब्रह्माज्ञानी संत महात्माओं की सेवा तथा शुद्ध आचरण के बल पर अन्त में ब्रह्मापुत्र हुए।[2]
  • भागवतपुराण[3] के एक उल्लेख के अनुसार उपबर्हण क्रौंच द्वीप के सात प्रधान पर्वतों में से एक पर्वत का नाम है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 62 |
  2. भागवतपुराण 7.15.69-73
  3. भागवतपुराण 5.20.21

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