ऋषिकेश मुखर्जी

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{{सूचना बक्सा कलाकार |चित्र=Hrishikesh-mukherjee.jpg |चित्र का नाम=ऋषिकेश मुखर्जी |पूरा नाम=ऋषिकेश मुखर्जी |प्रसिद्ध नाम= |अन्य नाम=ऋषिकेश दा |जन्म=[[30 सितंबर, 1922 |जन्म भूमि=कोलकाता, पश्चिम बंगाल |मृत्यु=27 अगस्त, 2006 |मृत्यु स्थान=मुम्बई, महाराष्ट्र |अविभावक= |पति/पत्नी= |संतान= |कर्म भूमि=मुम्बई |कर्म-क्षेत्र=फ़िल्म निर्देशक |मुख्य रचनाएँ= |मुख्य फ़िल्में=अनुराधा, आनंद, अभिमान, चुपके चुपके आदि |विषय= |शिक्षा= |विद्यालय= |पुरस्कार-उपाधि=दादा साहब फाल्के पुरस्कार, “पद्म विभूषण”, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, फ़िल्मफेयर पुरस्कार |प्रसिद्धि= |विशेष योगदान= |नागरिकता= |संबंधित लेख= |शीर्षक 1= |पाठ 1= |शीर्षक 2= |पाठ 2= |अन्य जानकारी= |बाहरी कड़ियाँ= |अद्यतन= }} ऋषिकेश मुखर्जी (अंग्रेज़ी: Hrishikesh Mukherjee, जन्म: 30 सितंबर 1922 - मृत्यु: 27 अगस्त 2006) हिन्दी फिल्मों में एक ऐसे फिल्मकार के रूप में विख्यात हैं, जिन्होंने बेहद मामूली विषयों पर संजीदा फिल्में बनाने के बावजूद उनके मनोरंजन पक्ष को कभी अनदेखा नहीं किया। यही कारण है कि उनकी सत्यकाम, आशीर्वाद, चुपके-चुपके और आनंद जैसी फिल्में आज भी बेहद पसंद की जाती हैं। मुखर्जी की अधिकतर फिल्मों को पारिवारिक फिल्मों के दायरे में रखा जाता है क्योंकि उन्होंने मानवीय संबंधों की बारीकियों को बखूबी पेश किया। उनकी फिल्मों में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, शर्मीला टैगोर, जया भादुड़ी जैसे स्टार अभिनेता और अभिनेत्रियां भी अपना स्टारडम भूलकर पात्रों से बिल्कुल घुलमिल जाते हैं।

जीवन परिचय

30 सितंबर 1922 को कोलकाता में जन्मे ऋषिकेश मुखर्जी फिल्मों में आने से पूर्व गणित और विज्ञान का अध्यापन करते थे। उन्हें शतरंज खेलने का शौक था। फिल्म निर्माण के संस्कार उन्हें कोलकाता के न्यू थिएटर से मिले। उनकी प्रतिभा को सही आकार देने में प्रसिद्ध निर्देशक बिमल राय का भी बड़ा हाथ है।

फ़िल्मी सफर

ऋषिकेश मुखर्जी ने 1951 में फिल्म “दो बीघा जमीन” फिल्म में बिमल राय के सहायक के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया था। उनके साथ छह साल तक काम करने के बाद उन्होंने 1957 में “मुसाफिर” फिल्म से अपने निर्देशन के कॅरियर की शुरुआत की। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन तो नहीं किया लेकिन राजकपूर को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी अगली फिल्म “अनाड़ी” (1959) उनके साथ बनाई। ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म निर्माण की प्रतिभा का लोहा समीक्षकों ने उनकी दूसरी फिल्म अनाड़ी से ही मान लिया था। यह फिल्म राजकपूर के सधे हुए अभिनय और मुखर्जी के कसे हुए निर्देशन के कारण अपने दौर में काफी लोकप्रिय हुई। इसके बाद मुखर्जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, उन्होंने “अनुराधा”, “अनुपमा”, “आशीर्वाद” और “सत्यकाम” जैसी ऑफ बीट फिल्मों का भी निर्देशन किया। ऋषिकेश मुखर्जी ने चार दशक के अपने फिल्मी जीवन में हमेशा कुछ नया करने का प्रयास किया। ऋषिकेश मुखर्जी की अंतिम फिल्म 1998 की “झूठ बोले कौआ काटे” थी। उन्होंने टेलीविजन के लिए तलाश, हम हिंदुस्तानी, धूप छांव, रिश्ते और उजाले की ओर जैसे धारावाहिक भी बनाए।[1]

नायाब फ़िल्मकार

अभिनय ही नहीं, गानों के फिल्मांकन के मामले में भी ऋषिकेश मुखर्जी बेजोड़ थे। अनाड़ी फिल्म का गीत सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी.. आनंद फिल्म का गीत 'कहीं दूर जब दिन ढ़ल जाए.., अभिमान का गीत नदिया किनारे.., नमक हराम का गीत नदिया से दरिया, दरिया से सागर.., अनुराधा का गीत हाय वो दिन क्यों न आए.., गुड्डी का गीत हम को मन की शक्ति देना.. और गोलमाल का गीत आने वाला पल.. आज भी बेहद आकर्षित करते हैं।

ऋषिकेश मुखर्जी ने एक बार कहा था परदे पर किसी जटिल दृश्य के बजाय साधारण भाव को चित्रित करना कहीं अधिक मुश्किल कार्य है। इसलिए मैं इस तरह के विषय में अधिक रूचि रखता हूं। मैं अपनी फिल्मों में संदेश को मीठी चाशनी में पेश करता हूं, लेकिन हमेशा इस बात का ध्यान रखता हूं कि इसकी मिठास कहीं कड़वी न हो जाए।[2]

प्रमुख फ़िल्में

  • अनुराधा (1960)
  • आनंद (1972)
  • गोलमाल (1979)
  • बावर्ची (1972)
  • नमक हराम (1973)
  • अभिमान (1973)
  • बुड्ढा मिल गया (1971)
  • गुड्डी (1971)
  • मिली (1975)
  • चुपके चुपके (1975)
  • अनाड़ी (1959)

सम्मान और पुरस्कार

  • 1961 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म “अनुराधा” को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • 1972 में उनकी फिल्म “आनंद” को सर्वश्रेष्ट कहानी के फ़िल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • इसके अलावा उन्हें और उनकी फिल्म को तीन बार फिल्मफेयर बेस्ट एडिटिंग अवार्ड से सम्मानित किया गया जिसमें 1956 की फिल्म “नौकरी”, 1959 की “मधुमती” और “1972” की आनंद शामिल है।
  • उन्हें 1999 में भारतीय फिल्म जगत के शीर्ष सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया।
  • साल 2001 में उन्हें “पद्म विभूषण” से नवाजा गया।[1]

निधन

मुंबई में 27 अगस्त 2006 को हिन्दी फ़िल्मों के इस लोकप्रिय फिल्मकार ने इस संसार रूपी चित्रपट को विदा कह दिया। वर्तमान फिल्मों में जब हम कॉमेडी के नाम पर द्विअर्थी शब्दों का प्रयोग देखते हैं तो ऋषिकेश मुखर्जी की कमी बहुत खलती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मनोरंजक फिल्मों के जनक : ऋषिकेश मुखर्जी (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2012।
  2. मनोरंजक फिल्मों के नायाब फिल्मकार थे ऋषिकेश मुखर्जी (हिन्दी) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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