श्यामा

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श्यामा (अंग्रेज़ी: Shyama, मूल नाम- 'ख़ुर्शीद अख़्तर', जन्म- 12 जून, 1935, लाहौर) भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक थीं। सन 1950 के दशक की मशहूर अभिनेत्री श्यामा का नाम सुनते ही आज भी उस दौर के हिंदी सिनेमा के चाहने वालों के ज़हन में एक बेहद ख़ूबसूरत, चुलबुली और बेहतरीन अभिनेत्री का चेहरा कौंध उठता है; लेकिन ज़्यादातर लोग शायद ही इस बात से परिचित होंगे कि अभिनेत्री बनने से पहले श्यामा क़रीब 50 फ़िल्मों में बाल और अतिरिक्त कलाकार के तौर पर छोटे-मोटे रोल कर चुकी थीं।

परिचय

अभिनेत्री श्यामा का जन्म 12 जून सन 1935 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ख़ुर्शीद अख़्तर था। उनके अब्बा फलों के कारोबारी थे। श्यामा महज़ दो साल की थीं, जब उनके अब्बा कारोबार के सिलसिले में लाहौर छोड़कर परिवार के साथ मुंबई चले आए थे। नौ भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। एक मुलाक़ात के दौरान श्यामा ने बताया था कि फ़िल्में उन्हें आकर्षित तो करती थीं, लेकिन उस जमाने की सामाजिक सोच को देखते हुए फ़िल्मों में काम करने की बात वह सोच भी नहीं सकती थीं। इसके बावजूद उनका इस क्षेत्र में आना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था, जिसे लेकर घर में और ख़ासतौर से अब्बा की तरफ़ से थोड़ा-बहुत विरोध भी हुआ था। लेकिन वह विरोध ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाया।

फ़िल्मी शुरुआत

एक दिन श्यामा अपनी सहेलियों के साथ एक फ़िल्म की शूटिंग देखने गयीं। वह फ़िल्म थी ‘ईस्टर्न पिक्चर्स’ के बैनर में बनी ‘ज़ीनत’, जिसके निर्माता-निर्देशक, नूरजहां के शौहर सैयद शौक़त हुसैन रिज़वी थे। श्यामा के मुताबिक़ शौक़त हुसैन ने सेट पर मौजूद लड़कियों से पूछा कि- "क्या वह फ़िल्म में काम करना चाहेंगी", तो श्यामा और उनकी सहेलियों ने तुरंत हामी भर दी। साल 1945 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘ज़ीनत’ की क़व्वाली ‘आहें ना भरीं शिक़वे ना किए’ में श्यामा महज़ नौ साल की उम्र में पहली बार परदे पर नज़र आयी थीं। गीतकार ‘नख़्शब’ की लिखी, हफ़ीज़ ख़ां द्वारा संगीतबद्ध और नूरजहां, जोहराबाई अम्बालेवाली और कल्याणीबाई की गायी ये क़व्वाली अपने दौर में बेहद मशहूर हुई थी। परदे पर इस क़व्वाली में श्यामा का साथ शशिकला और शालिनी ने दिया था।

बेबी श्यामा

श्यामा ने 1946 में रिलीज़ हुई ‘घूंघट’, ‘नई मां’ और ‘निशाना’ जैसी कुछ शुरुआती फ़िल्मों में ख़ुर्शीद (जूनियर) और बेबी ख़ुर्शीद के नाम से काम किया। लेकिन चूंकि उस ज़माने में इसी नाम की एक बहुत बड़ी स्टार पहले से फ़िल्मों में काम कर रही थीं, इसलिए उन्हें अपना नाम बदलकर 'बेबी श्यामा' रख लेना पड़ा। अगले छह सालों में श्यामा ने ‘बीते दिन’, ‘मीराबाई’, मेहंदी’, ‘परवाना’, ‘रामबाण’, ‘अनमोल मोती’, ‘बेगुनाह’, ‘चार दिन’, जागृति’, ‘जलतरंग’, ‘जीत’, ‘नाच’, ‘नमूना’, ‘पतंगा’, ‘सावन भादों’, ‘शबनम’, ‘शायर’, ‘आहुति’, ‘नीली’, सबक’ ‘सरताज’, वफ़ा, ‘नज़राना’, सज़ा’, ‘तराना’, जैसी क़रीब 50 फ़िल्मों में छोटे-छोटे रोल किए और फिर साल 1952 में बनी फ़िल्म ‘श्रीमतीजी’ में वह पहली बार अभिनेत्री के तौर पर नज़र आयीं।

सफलता

‘फ़िल्मिस्तान’ के बैनर में, आई.एस.जौहर के निर्देशन में बनी और 1952 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘श्रीमतीजी’ में श्यामा के हीरो नासिर ख़ां थे। 1952 में ही नासिर ख़ां के साथ उनकी एक और फ़िल्म, निर्माता-निर्माता दलसुख पंचोली की ‘आसमान’ भी रिलीज़ हुई जो ओ.पी. नैयर की बतौर स्वतंत्र संगीतकार पहली फ़िल्म थी। ओ.पी. नैयर इससे पहले 1949 में बनी फ़िल्म ‘कनीज़’ का पार्श्वसंगीत तैयार कर चुके थे और इस फ़िल्म में भी श्यामा ने एक छोटा सा रोल किया था। 1950 का दशक श्यामा के कॅरियर का सबसे सुनहरा दौर था। उस दौर में उनकी व्यस्तता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 1952 से 1960 के बीच वह कुल 82 फ़िल्मों में अहम भूमिकाओं में नज़र आयीं। 1954 में उनकी 14 और 1955 में 13 फ़िल्में रिलीज़ हुई थीं, जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

प्रसिद्ध अभिनेताओं के साथ कार्य

श्यामा को उस दौर के तक़रीबन हर एक जानेमाने अभिनेता के साथ काम करने का मौक़ा मिला। श्यामा के अनुसार- "गुरुदत्त के साथ ‘आरपार’, राजकुमार के साथ ‘घमंड’, शम्मी कपूर के साथ ‘गुलसनोवर’ और ‘ठोकर’, करण दीवान के साथ ‘मुसाफ़िरखाना’ और ‘लाडला’, अशोक कुमार के साथ ‘भाईभाई’ और ‘बापबेटे’, किशोर कुमार के साथ ‘लहरें’ और ‘चंदन’, भारत भूषण के साथ ‘धूपछांव’ और ‘तीन भाई’, मोतीलाल के साथ ‘ख़ुशबू’ और ‘सावधान’, महिपाल के साथ ‘तातार का चोर’ और ‘ज़बक’, तलत महमूद के साथ ‘लालारूख’, सुरेश के साथ ‘मां’ और कमल कपूर के साथ ‘जग्गू’ मेरी कुछ ख़ास फ़िल्मों में से हैं। इसके अलावा जॉनी वॉकर के साथ मेरी ‘छूमंतर’, ‘दुनिया रंगरंगीली’, ‘जॉनी वॉकर’, ‘खोटा पैसा’ और ‘मिस्टर कार्टून एम.ए.’ जैसी फ़िल्में भी बेहद पसंद की गयीं। ये सभी संगीतप्रधान कॉमेडी फ़िल्में थीं। ‘खोटा पैसा’ के अलावा बाक़ी सभी में उस दौर के टॉप संगीतकार ओ.पी. नैयर का संगीत था, जिनकी बनाई धुनों पर डांस करना हमारे लिए बेहद आसान होता था।"

फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार

श्यामा के मुताबिक़ उन्होंने कभी भी अपने कॅरियर को प्लान नहीं किया। जो भी अच्छे रोल उन्हें मिलते रहे, वह उन्हें निभाती चली गयीं। 1957 में रिलीज़ हुई कुल 11 फ़िल्मों में से सात में वह नायिका थीं तो बाक़ी चार में सहनायिका और चरित्र अभिनेत्री। फ़िल्म ‘शारदा’ में उन्होंने अपनी हमउम्र मीना कुमारी की मां की भूमिका निभाने से भी परहेज़ नहीं किया। उस भूमिका के लिए श्यामा को 1957 का सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।

साल 1951 में बनी फ़िल्म ‘सज़ा’ की शूटिंग के दौरान श्यामा और फ़िल्म के कैमरामैन-निर्देशक फ़ली मिस्त्री की नज़दीकियां बढ़ीं और साल 1954 में उन्होंने शादी कर ली। श्यामा के मुताबिक़ क़रीब 10 सालों तक उन्होंने इस बात को छुपाए रखा क्योंकि शादीशुदा हिरोईन को उस ज़माने में भी लोग आसानी से स्वीकार नहीं करते थे। श्यामा कहती हैं, ‘शादी के 10 सालों बाद अपने बेटे फ़ारूख़ के जन्म के समय उन्होंने इस बात का ख़ुलासा किया। वैसे भी 1960 के दशक की शुरूआत में मैं पूरी तरह से चरित्र अभिनेत्री बन चुकी थी’।

साल 1961 से अगले 3 दशकों के दौरान श्यामा ने ‘दुनिया झुकती है’, ‘बहुरानी’, ‘गुमराह’, ‘जी चाहता है’, ‘जानवर’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘आग’, ‘मिलन’, ‘बालक’, ‘मस्ताना’, ‘सावन भादों’, ‘गोमती के किनारे’, ‘प्रभात’, ‘नया दिन नयी रात’, ‘चैताली’, ‘खेल खेल में’, ‘जिनी और जॉनी’, ‘खेल खिलाड़ी का’, ‘हक़दार’, ‘मोहब्बत’, ‘मेरा करम मेरा धरम’ और ‘प्यासे नैना’ जैसी कुल 60 फ़िल्मों में काम किया। वो कहती हैं, ‘बढ़ती उम्र के साथ साथ स्टैमिना ख़त्म होने लगा था। मैं बहुत जल्दी थकने लगी थी। इससे पहले कि लोग कहते, श्यामा से अब काम नहीं होता, मुझे रिटायर हो जाना बेहतर लगा। साल 1989 में रिलीज़ हुई जे.पी.दत्ता की फ़िल्म ‘हथियार’ मेरी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई’।

श्यामा दक्षिण मुंबई के मशहूर नेपियन सी रोड पर रहती हैं। उनका बड़ा बेटा फ़ारूख़ मिस्त्री विज्ञापन जगत का मशहूर कैमरामैन है तो छोटा बेटा इंग्लैंड में रहता है। बेटी की शादी हो चुकी है। नादिरा, निरूपा राय, सितारा देवी, निम्मी, शकीला और शशिकला से उनकी गाढ़ी दोस्ती थी और इन सभी का आपस में मिलना-जुलना होता रहता था। लेकिन नादिरा और निरूपा राय जो इनके घर के क़रीब ही रहती थीं, अब ज़िंदा नहीं हैं। सितारा देवी और निम्मी भी दक्षिण मुंबई छोड़कर जुहू और अंधेरी शिफ़्ट हो चुकी हैं। शकीला और शशिकला तो हमेशा से ही बांद्रा और अंधेरी में रहती आयी हैं, लेकिन बढ़ती उम्र के साथ साथ श्यामा के साथ उनका रिश्ता भी फ़ोन पर बातचीत तक सिमटकर रह गया है। श्यामा कहती हैं, फ़ली को गुज़रे क़रीब 40 बरस हो चुके हैं, बच्चे अपने घरों में रमे हुए हैं, सहेलियां दूर चली गयी हैं। मैं आज पूरी तरह अकेली हूं। लेकिन बदलते हालात से समझौता करते रहना मेरी आदत में शामिल रहा है इसलिए अकेलेपन का भी पूरा आनंद लेती हूं।


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