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'''श्रीप्रकाश''' ([[अंग्रेज़ी]]:Shriprakash; जन्म- [[3 अगस्त]], [[1890]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[23 जून]], [[1971]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता थे। वे [[पाकिस्तान]] में भारत के प्रथम उच्चायुक्त थे, जिन्होंने [[1947]] से [[1949]] तक देश की सेवा की। उन्हें एक अच्छे वक्ता और लेखक के रूप में भी जाना जाता था। वे सन 1949 से [[1950]] तक [[असम]], [[1952]] से [[1956]] तक मद्रास (आधुनिक [[चेन्नई]]) और [[1956]] से [[1962]] तक [[महाराष्ट्र]] के [[राज्यपाल]] रहे थे। देश सेवा और सच्ची निष्ठा के लिए भारत सरकार ने उन्हें [[1957]] में '[[पद्मविभूषण]]' से सम्मानित किया था।
==जीवन परिचय==
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==जीवन परिचय==  
देश के स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता श्रीप्रकाश का जन्म 3 अगस्त, 1890 को [[वाराणसी]] के एक धनी और प्रतिभाशाली अग्रवाल परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] '[[भारत रत्न]]' डॉ. भगवान दास विश्व विख्यात दार्शनिक थे। श्रीप्रकाश के छोटे भाई चंद्रभाल वर्षों तक [[उत्तर प्रदेश]] विधान परिषद के अध्यक्ष रहे थे।
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देश के स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता श्रीप्रकाश का जन्म 3 अगस्त, 1890 को [[वाराणसी]] के एक धनी और प्रतिभाशाली अग्रवाल परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] '[[भारत रत्न]]' [[डॉ. भगवान दास]] विश्व विख्यात दार्शनिक थे। श्रीप्रकाश के छोटे भाई चंद्रभाल वर्षों तक [[उत्तर प्रदेश]] विधान परिषद के अध्यक्ष रहे थे।
 
====शिक्षा====
 
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श्रीप्रकाश की शिक्षा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, [[लन्दन]] में हुई थी। यहीं से उन्होंने क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की। किंतु उन्होंने वकालत न करके वाराणसी के 'सेंट्रल हिन्दू कॉलेज' में और बाद में '[[काशी विद्यापीठ]]' में अध्यापन का कार्य किया। [[पत्रकारिता]] की ओर भी वे आकृष्ट हुए थे।
 
श्रीप्रकाश की शिक्षा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, [[लन्दन]] में हुई थी। यहीं से उन्होंने क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की। किंतु उन्होंने वकालत न करके वाराणसी के 'सेंट्रल हिन्दू कॉलेज' में और बाद में '[[काशी विद्यापीठ]]' में अध्यापन का कार्य किया। [[पत्रकारिता]] की ओर भी वे आकृष्ट हुए थे।
 
====राजनीति में प्रवेश====
 
====राजनीति में प्रवेश====
पहले [[सी. वाई. चिंतामणि]] के साथ 'लीडर' में और फिर [[मोतीलाल नेहरू]] के पत्र 'इंडिपेंडैट' में भी श्रीप्रकाश ने कार्य किया। [[एनी बेसेंट]] के प्रभाव से वे '[[थियोसोफ़िकल सोसाइटी]]' में भी सम्मिलित हुए और [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]], [[आचार्य कृपलानी]], [[आचार्य नरेंद्र देव]] और डॉ. सम्पूर्णानंद का सम्पर्क उन्हें राजनीति में ले आया।
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==देश के लिए योगदान==
 
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'[[होमरूल लीग आन्दोलन|होमरूल लीग]]' से श्रीप्रकाश का सार्वजनिक जीवन आरम्भ हुआ। [[1918]] से [[1945]] तक वे 'अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे। [[1934]]-[[1935]] में वे [[उत्तर प्रदेश]] में [[कांग्रेस]] के अध्यक्ष थे। सन [[1930]] के '[[नमक सत्याग्रह]]' में, [[1932]] के 'करबंदी आंदोलन' में और [[1942]] के '[[भारत छोड़ो आंदोलन]]' में उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं।
 
'[[होमरूल लीग आन्दोलन|होमरूल लीग]]' से श्रीप्रकाश का सार्वजनिक जीवन आरम्भ हुआ। [[1918]] से [[1945]] तक वे 'अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे। [[1934]]-[[1935]] में वे [[उत्तर प्रदेश]] में [[कांग्रेस]] के अध्यक्ष थे। सन [[1930]] के '[[नमक सत्याग्रह]]' में, [[1932]] के 'करबंदी आंदोलन' में और [[1942]] के '[[भारत छोड़ो आंदोलन]]' में उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं।
 
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श्रीप्रकाश
Sriprakash.jpg
पूरा नाम श्रीप्रकाश
जन्म 3 अगस्त, 1890
जन्म भूमि वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 23 जून, 1971
मृत्यु स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
अभिभावक पिता- डॉ. भगवान दास
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता
पार्टी कांग्रेस
पद महाराष्ट्र के राज्यपाल, असम के राज्यपाल, (1956 से 1962 तक)
शिक्षा बैचलर ऑफ़ लॉ
विद्यालय कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, लन्दन
जेल यात्रा सन 1930 के 'नमक सत्याग्रह' में, 1932 के 'करबंदी आंदोलन' में और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं।
पुरस्कार-उपाधि पद्मविभूषण
संपादन सी. वाई. चिंतामणि के साथ 'लीडर' में और फिर मोतीलाल नेहरू के पत्र 'इंडिपेंडैट' में भी श्रीप्रकाश ने कार्य किया।
विशेष अच्छे वक्ता, लेखक और देशभक्त श्रीप्रकाश की एक और विशेषता थी कि वे चाहे जिस पद पर रहे हों, लोगों के पत्रों का स्वयं उत्तर देते थे।
अन्य जानकारी भारत की स्वतंत्रता के बाद उन्हें 1947 में भारत का प्रथम उच्चायुक्त बना कर पाकिस्तान भेजा गया। 1949 में असम के राज्यपाल रहने के बाद वे कुछ समय तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे।

श्रीप्रकाश (अंग्रेज़ी:Shriprakash; जन्म- 3 अगस्त, 1890, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 23 जून, 1971) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता थे। वे पाकिस्तान में भारत के प्रथम उच्चायुक्त थे, जिन्होंने 1947 से 1949 तक देश की सेवा की। उन्हें एक अच्छे वक्ता और लेखक के रूप में भी जाना जाता था। वे सन 1949 से 1950 तक असम, 1952 से 1956 तक मद्रास (आधुनिक चेन्नई) और 1956 से 1962 तक महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे थे। देश सेवा और सच्ची निष्ठा के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1957 में 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किया था।

जीवन परिचय

देश के स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता श्रीप्रकाश का जन्म 3 अगस्त, 1890 को वाराणसी के एक धनी और प्रतिभाशाली अग्रवाल परिवार में हुआ था। उनके पिता 'भारत रत्न' डॉ. भगवान दास विश्व विख्यात दार्शनिक थे। श्रीप्रकाश के छोटे भाई चंद्रभाल वर्षों तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद के अध्यक्ष रहे थे।

शिक्षा

श्रीप्रकाश की शिक्षा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, लन्दन में हुई थी। यहीं से उन्होंने क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की। किंतु उन्होंने वकालत न करके वाराणसी के 'सेंट्रल हिन्दू कॉलेज' में और बाद में 'काशी विद्यापीठ' में अध्यापन का कार्य किया। पत्रकारिता की ओर भी वे आकृष्ट हुए थे।

राजनीति में प्रवेश

पहले सी. वाई. चिंतामणि के साथ 'लीडर' में और फिर मोतीलाल नेहरू के पत्र 'इंडिपेंडैट' में भी श्रीप्रकाश ने कार्य किया। एनी बेसेंट के प्रभाव से वे 'थियोसोफ़िकल सोसाइटी' में भी सम्मिलित हुए और पंडित जवाहरलाल नेहरू, आचार्य कृपलानी, आचार्य नरेंद्र देव और डॉ. सम्पूर्णानंद का सम्पर्क उन्हें राजनीति में ले आया।

देश के लिए योगदान

'होमरूल लीग' से श्रीप्रकाश का सार्वजनिक जीवन आरम्भ हुआ। 1918 से 1945 तक वे 'अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी' के सदस्य रहे। 1934-1935 में वे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अध्यक्ष थे। सन 1930 के 'नमक सत्याग्रह' में, 1932 के 'करबंदी आंदोलन' में और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में उन्होंने जेल की सजाएँ भोगीं।

उच्च पदों पर कार्य

वर्ष 1946 में श्रीप्रकाश संविधान परिषद के सदस्य बने और स्वतंत्रता के बाद उन्हें 1947 में भारत का प्रथम उच्चायुक्त बना कर पाकिस्तान भेजा गया। 1949 में असम के राज्यपाल रहने के बाद वे कुछ समय तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे। श्रीप्रकाश 1952 से 1956 तक मद्रास के और 1956 से 1962 तक महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे थे।

व्यक्तित्व

श्रीप्रकाश बड़े उदार विचारों के व्यक्ति थे। वे वचन के निर्वाह का सदा ध्यान रखते थे। इसमें उनके सामने छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं था। एक बार उन्होंने चपरासी की बेटी के विवाह का निमंत्रण स्वीकार कर लेने पर बनारस के महाराज का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया था। कराची से उच्चायुक्त का पद छोड़ते समय उन्हें दूतावास के ड्राइवरों ने इस कारण विदाई की दावत दी थी कि अपने हर समारोह में वे ड्राइवरों का विशेष ध्यान रखते थे, जो एक नई बात थी। अच्छे वक्ता, लेखक और देशभक्त श्रीप्रकाश की एक और विशेषता थी कि वे चाहे जिस पद पर रहे हों, लोगों के पत्रों का स्वयं उत्तर देते थे।

पुरस्कार व सम्मान

श्रीप्रकाश की राष्ट्र सेवा के सम्मान में भारत सरकार ने 1957 में उन्हें 'पद्मविभूषण' से विभूषित किया था।

निधन

देश की महान् सेवा करने वाले और अपने सादगी भरे आचरण से सदा सबके सम्मान के पात्र रहे श्रीप्रकाश का 23 जून, 1971 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में निधन हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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