एडमंड हैली
एडमंड हैली
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पूरा नाम | एडमंड हेली |
अन्य नाम | हेली |
जन्म | 8 नवम्बर, 1656 |
जन्म भूमि | शोरडिच, इंग्लैंड |
मृत्यु | 14 जनवरी, 1742 |
मृत्यु स्थान | ग्रीनविच, यूनाइटेड किंगडम |
कर्म-क्षेत्र | वैज्ञानिक |
विषय | खगोल विज्ञान |
विशेष योगदान | हैली ने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया। |
अन्य जानकारी | ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के क्वींस कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने सौरमंडल और सौर बिंदुओं के बारे लिखा। |
एडमंड हैली (अंग्रेज़ी: Edmond Halley, जन्म- 8 नवम्बर,1656, शोरडिच, इंग्लैंड; मृत्यु- 14 जनवरी, 1742, ग्रीनविच, यूनाइटेड किंगडम) प्रसिद्घ खगोलशास्त्री थे। हैली, न्यूटन के समकालीन थे। उन्होंने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया था।
जन्म तथा शिक्षा
एडमंड हैली का जन्म 8 नवम्बर, 1656 को शोरडिच, इंग्लैंड में हुआ था। यह एक प्रसिद्घ खगोलशास्त्री थे। हैली, न्यूटन के समकालीन थे। उनके पिता का साबुन का कारोबार था। बचपन से ही हेली की गणित में खास रुचि थी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के क्वींस कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई के दौरान भी उन्होंने सौरमंडल और सौर बिंदुओं के बारे लिखा। 1675 में वह ग्रीनविच ऑब्सरवेटरी में खगोलशास्त्री जॉन फ्लैमस्टीड के सहायक के रूप में काम करने लगे। 22 साल की उम्र में हेली ने ऑक्सफोर्ड से मास्टर की डिग्री हासिल की और रॉयल सोसाइटी में फेलो रिसर्चर के तौर पर चुने गए।[1]
धूमकेतु पर अध्ययन
हैली ने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया। उनका कहना था कि जो धूमकेतु सन 1682, में दिखायी दिया था यह वही धूमकेतु है जो सन् 1531 व 1607 तथा संभवत: सन 1465 में भी दिखायी पड़ा था। उन्होंने गणना द्वारा भविष्यवाणी की कि यह सन 1758 के अन्त के समय पुन: दिखायी पड़ेगा। ऎसा हुआ भी कि यह पुच्छल तारा 1758 के बड़े दिन की रात्रि[2] को दिखलायी दिया। तब से इसका नाम हैली का धूमकेतु पड़ गया।
मृत्यु
हैली की मृत्यु 14 जनवरी 1742 को हो गयी यानि उन्होंने अपनी भविष्यवाणी सच होते नहीं देखी। इसके बाद यह पुच्छल तारा नवम्बर 1835, अप्रैल 1910, और फ़रवरी 1986 में दिखायी पड़ा।
इन्हें भी देखें: हैली धूमकेतु
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एडमंड हेली का जीवन परिचय (हिंदी) डी डव्लू। अभिगमन तिथि: 12 दिसम्बर, 2016।
- ↑ क्रिसमस रात्रि
बाहरी कड़ियाँ
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