नवलपक्कम पार्थसारथी
नवलपक्कम पार्थसारथी
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जन्म | 8 अप्रॅल, 1900 |
मृत्यु | 4 जनवरी, 1993 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | गन्ना और चावल विशेषज्ञ |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी |
शिक्षा | बी.ए, पी.एच.डी, लंदन विश्वविद्यालय (1936) |
विद्यालय | मद्रास विश्वविद्यालय (भारत); लंदन विश्वविद्यालय, लंदन |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री (1958), ग्रामीण विकास एजेंसी से स्वर्ण पदक (कृषि, खाद्य और ग्रामीण मामलों के मंत्रालय, दक्षिण कोरिया)। |
प्रसिद्धि | वैज्ञानिक तथा इंडियन सोसायटी ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग के अध्यक्ष |
विशेष योगदान | गन्ने और चावल के कोशिका विज्ञान और आनुवांशिकी के क्षेत्र में व्यापक शोध में शामिल किया गया था और पहली बार एक्स-विकिरण में उत्परिवर्तन को शामिल करने का श्रेय। |
नागरिकता | भारतीय |
नवलपक्कम पार्थसारथी (अंग्रेज़ी: Navalpakkam Parthasarthy, जन्म: 8 अप्रॅल, 1900; मृत्यु: 4 जनवरी, 1993) एक भारतीय आनुवंशिकीविद्, अंतर्राष्ट्रीय चावल आयोग के कार्यकारी सचिव और लाइबेरिया और थाईलैंड की सरकार के चावल सलाहकार थे। भारत सरकार ने उन्हें 1958 में राष्ट्र के लिए उनकी सेवाओं के लिए चौथा सर्वोच्च भारतीय नागरिक 'पद्मश्री पुरस्कार' से सम्मानित किया।
परिचय
नवलपक्कम पार्थसारथी का जन्म 8 अप्रैल 1900 को हुआ था। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की और उसी विश्वविद्यालय से कृषि में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए पढ़ाई जारी रखी।
कॅरियर
नवलपक्कम पार्थसारथी ने कॅरियर की शुरुआत 1923 में कोयंबटूर के 'धान ब्रीडिंग स्टेशन' में राइस ब्रीडिंग असिस्टेंट के रूप में की और बाद में अदुथुराई और पट्टांबी में अन्य स्टेशनों पर काम किया। 1936 में लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के लिए वे लंदन चले गए और 1938 में अपने काम को फिर से शुरू करने के लिए भारत लौट आए।
उन्होंने भारत में राज्य और केंद्र सरकार के साथ विभिन्न रूपों में जेनेटिकिस्ट और द्वितीय गन्ना प्रजनन अधिकारी के रूप में काम किया। गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर में जो भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान केंद्र है, में नवलपक्कम पार्थसारथी ने 1940-1947 तक कार्य किया, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली के आनुवंशिक और प्रभाग प्रमुख के रूप में 1947-1952 तक और केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक के निदेशक के रूप में उन्होंने 1952–1958 तक कार्य किया, जहां से वह सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे।
1958 में नवलपक्कम पार्थसारथी ने चावल विशेषज्ञ के रूप में खाद्य और कृषि संगठन एफएओ (Food and Agriculture Organization) के लिए एक वर्ष काम किया जो इंडोनेशिया में स्थित है और 1959-1968 तक चावल सुधार विशेषज्ञ के रूप में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (International Rice Research Institute) Far East (the countries of East Asia) चले गए। उन्होंने IRRI के बोर्ड सदस्य के रूप में भी 1966-1969 तक काम किया। इसके बाद उन्हें अंतर्राष्ट्रीय चावल आयोग के कार्यकारी सचिव के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने लाइबेरिया सरकार और थाईलैंड सरकार के लिए चावल सलाहकार के रूप में काम किया।
उपलब्धि
नवलपक्कम पार्थसारथी को गन्ने और चावल के कोशिका विज्ञान और आनुवांशिकी के क्षेत्र में व्यापक शोध में शामिल किया गया और पहली बार एक्स-विकिरण में उत्परिवर्तन को शामिल करने का श्रेय उन्हें दिया गया। उनके नेतृत्व वाली टीम चावल में अगुणित और पॉलीप्लॉइड को अलग करने में सफल रही और उनके अध्ययन में विभिन्न गुणसूत्रों के साथ जुड़वा पौधों को प्राप्त करने की जानकारी मिली।
केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान में नवलपक्कम पार्थसारथी ने अंतःविषय अनुसंधान कार्यक्रमों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और खाद्य और कृषि संगठन से सहायता के साथ संस्थान में चावल प्रजनन सम्बन्धित दो पाठ्यक्रम संचालित किए। मूल सिद्धांत देने के लिए उन्होंने कई सेमिनार और सम्मेलन में भाग लिया और कई लेख प्रकाशित किए। वे भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और तमिलनाडु विज्ञान अकादमी के एक चुने हुए सदस्य थे और 1978-1979 तक भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी परिषद के सदस्य के रूप में कार्य किया। उन्होंने इंडियन सोसायटी ऑफ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग के अध्यक्ष के रूप में 1952 और 1970 में कार्य किया, भारतीय विज्ञान कांग्रेस 1953 और मद्रास साइंस फाउंडेशन के कृषि खंड के लिए भी कार्य किया।
पुरस्कार
कृषि, खाद्य और ग्रामीण मामलों के मंत्रालय, दक्षिण कोरिया के अंतर्गत ग्रामीण विकास एजेंसी से स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले पार्थसारथी को 1958 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री जो भारत सरकार का चौथा सर्वोच्च भारतीय नागरिक सम्मान है, से सम्मानित किया गया।
निधन
नवलपक्कम पार्थसारथी की मृत्यु 93 वर्ष की आयु में, 4 जनवरी, 1993 को हुई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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