कल्याणजी (संगीतकार)
कल्याणजी (संगीतकार)
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पूरा नाम | कल्याणजी वीरजी शाह |
प्रसिद्ध नाम | कल्याणजी |
जन्म | 30 जून, 1928 |
जन्म भूमि | कच्छ, गुजरात |
मृत्यु | 24 अगस्त, 2000 |
अभिभावक | पिता- वीरजी शाह |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय सिनेमा |
मुख्य रचनाएँ | 'उपकार', 'छलिया', 'हिमालय की गोद में', 'पूरब-पश्चिम', 'सट्टा बाज़ार', 'सच्चा झूठा' तथा 'जॉनी मेरा नाम' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | 1968 तथा 1974 में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' तथा 'फ़िल्म फेयर पुरस्कार', 'पद्मश्री' (1992) |
प्रसिद्धि | संगीतकार |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | कल्याणजी आनंदजी, हेमंत कुमार, सचिन देव बर्मन, मदन मोहन, नौशाद |
अन्य जानकारी | कल्याणजी ने हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था और वर्ष 1954 में आई फ़िल्म ‘नागिन’ के गीतों के कुछ छंद संगीतबद्ध किए थे। |
कल्याणजी वीरजी शाह (अंग्रेज़ी: Kalyanji Virji Shah, जन्म- 30 जून, 1928, कच्छ, गुजरात; मृत्यु- 24 अगस्त, 2000) हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार थे। वे भारतीय हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी 'कल्याणजी आनंदजी' में से एक थे। कल्याणजी ने हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था और वर्ष 1954 में आई फ़िल्म ‘नागिन’ के गीतों के कुछ छंद संगीतबद्ध किए थे। भारतीय फ़िल्मों में इलेक्ट्रॉनिक संगीत की शुरुआत करने का श्रेय कल्याणजी को ही जाता है। वर्ष 1992 में संगीत के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने 'पद्मश्री' से सम्मानित किया था।
जन्म
कल्याणजी का जन्म 30 जून, सन 1928 ई. में गुजरात के कच्छ ज़िले में कुण्डरोडी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम वीरजी शाह था। कल्याणजी बचपन से ही संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे; हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिये वे बाद में मुंबई आ गए थे।
संगीत की दुनिया से जुड़ाव
हिन्दी फ़िल्म जगत् की सफल संगीतकार जोड़ियों में से एक कल्याणजी आनंदजी अपनी किराने की दुकान पर नून तेल बेचते हुए ही जिंदगी गुजार देते, अगर एक तंगहाल ग्राहक ने उधारी चुकाने के बदले दोनों को संगीत की तालीम देने की पेशकश न की होती। वीरजी शाह का परिवार कच्छ से मुंबई आ गया था और आजीविका चलाने के लिए किराने की दुकान खोल ली। एक ग्राहक दुकान से सामान तो लेता था, लेकिन पैसे नहीं चुका पाता था।
वीरजी ने एक दिन जब उससे तकाजा किया तो उसने उधारी चुकाने के लिए वीरजी के दोनों बेटों कल्याणजी और आनंदजी को संगीत सिखाने का जिम्मा संभाला और इस तरह उधारी के पैसे से एक ऐसी संगीतकार जोड़ी की नींव पड़ी, जिसने अपने संगीत से हिन्दी फ़िल्म जगत् को हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया। हालाँकि उधारी के संगीत के उन गुरुजी को सुर और ताल की समझ कुछ खास नहीं थी, लेकिन उन्होंने वीरजी के पुत्रों कल्याणजी और आनंदजी में संगीत की बुनियादी समझ ज़रूर पैदा कर दी। इसके बाद संगीत में दोनों की रुचि बढ़ने लगी और दोनों भाई संगीत की दुनिया से जुड़ गए।[1]
हेमंत कुमार के सहायक
कल्याणजी ने हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था और वर्ष 1954 में आई फ़िल्म ‘नागिन’ के गीतों के कुछ छंद संगीतबद्ध किए थे। भारतीय फ़िल्मों में इलेक्ट्रॉनिक संगीत की शुरुआत करने का श्रेय भी कल्याणजी को ही जाता है। कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी ने लगातार तीन दशकों 1960, 1970 और 1980 तक हिन्दी सिनेमा पर राज किया।[1]
सफल संगीतकार
कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी के नाम से अपना ऑर्केस्ट्रा ग्रुप शुरू किया और मुंबई तथा उससे बाहर अपने संगीत शो आयोजित करने लगे। इसी दौरान वे फ़िल्म संगीतकारों के संपर्क में भी आए। इसके बाद दोनों भाई हिन्दी फ़िल्म जगत् के उस क्षेत्र में पहुँच गए, जहाँ सचिन देव बर्मन, मदन मोहन, हेमंत कुमार, नौशाद और रवि जैसे संगीतकारों के नाम की तूती बोलती थी। शुरू में कल्याणजी ने कल्याणजी वीरजी शाह के नाम से फ़िल्मों में संगीत देना शुरू किया और 'सम्राट चंद्रगुप्त' (1959) उनके संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी। इसी साल आनंदजी भी उनके साथ जुड़ गए और कल्याणजी आनंदजी नाम से एक अमर संगीतकार जोड़ी बनी। कल्याणजी आनंदजी ने 1959 में फ़िल्म ‘सट्टा बाज़ार’ और ‘मदारी’ का संगीत दिया, जबकि 1961 में ‘छलिया’ का संगीत दिया। फ़िल्म 'छलिया' में उनके संगीत से सजा गीत "डम डम डिगा डिगा" और "छलिया मेरा नाम" श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।
वर्ष 1965 में प्रदर्शित संगीतमय फ़िल्म 'हिमालय की गोद में' की सफलता के बाद कल्याणजी-आनंदजी शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। मनोज कुमार की फ़िल्म 'उपकार' में उन्होंने 'कसमे वादे प्यार वफा' जैसा दिल को छू लेने वाला संगीत देकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इसके अलावा मनोज कुमार की ही फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' के लिए भी कल्याणजी ने 'दुल्हन चली वो पहन चली तीन रंग की चोली' और 'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे' जैसा सदाबहार संगीत देकर अलग ही समां बांध दिया। 1970 में विजय आनंद निर्देशित फ़िल्म 'जॉनी मेरा नाम' में 'नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं' और 'पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले' जैसे गीतों के लिए रूमानी संगीत देकर कल्याणजी-आनंदजी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। मनमोहन देसाई के निर्देशन में फ़िल्म 'सच्चा झूठा' के लिये कल्याणजी-आनंदजी ने बेमिसाल संगीत दिया। 'मेरी प्यारी बहनियाँ बनेगी दुल्हनियाँ' को आज भी शहरों और देहातों में विवाह आदि के मौके पर सुना जा सकता है।[2]
पुरस्कार तथा सम्मान
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सरस्वती चंद्र' के लिए कल्याणजी आनंदजी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के 'राष्ट्रीय पुरस्कार' के साथ-साथ 'फ़िल्म फेयर पुरस्कार' भी दिया गया। इसके अलावा 1974 में प्रदर्शित फ़िल्म 'कोरा काग़ज़' के लिए भी कल्याणजी आनंदजी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का 'फ़िल्म फेयर पुरस्कार' मिला। कल्याणजी ने अपने सिने करियर में लगभग 250 फ़िल्मों में संगीत दिया। वर्ष 1992 में संगीत के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार ने 'पद्मश्री' से सम्मानित किया।
निधन
लगभग चार दशक तक अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले कल्याणजी 24 अगस्त, 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कल्याणजी- किराने की दुकान से संगीतकार बनने का सफर (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2015।
- ↑ हँसते हँसते जमाने से जाएँगे हम (हिन्दी) डीडबल्यू। अभिगमन तिथि: 20 जून, 2015।
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