केरल की कृषि

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केरल राज्य में कृषि की विशेषता है कि यहाँ व्‍यापारिक फ़सलें अधिक उगाई जाती हैं। राज्‍य के लगभग 50 प्रतिशत नागरिक कृषि पर निर्भर है। नारियल, रबड, काली मिर्च, अदरक, चाय, इलायची, काजू तथा कॉफी आदि का उत्पादन केरल में प्रमुख रूप से होता है। दूसरी फ़सलों में सुपारी, केला, अदरक तथा हल्‍दी आदि हैं। केरल राज्‍य में जायफल, दालचीनी, लौंग आदि मसालों के वृक्ष भी उगाए जाते हैं। चावल तथा टैपियोका केरल की मुख्‍य खाद्य फ़सलें हैं।

कृषि उत्पादन आँकड़े

  • आठवीं पंचवर्षीय योजना में चावल के क्षेत्र में वार्षिक कमी 22,000 हेक्‍टेयर थी।
  • नौवीं योजना में यह घटकर 13000 हेक्‍टेयर रह गई।
  • 2003 - 04 के 2.87 लाख हेक्‍टेयर की तुलना में यह बढकर 2004 - 05 में 2.90 लाख हेक्‍टेयर हो गई। यह वृद्वि 2,634 हेक्‍टेयर थी। चावल का उत्‍पादन 5.70 मीट्रिक टन से बढकर 6.67 लाख टन हो गया। यह वृद्धि 17 प्रतिशत थी।
  • सूखे की वजह से धान उत्‍पादन में 2003 से 2004 में कमी आई किंतु 2004 से 05 में उत्‍पादन में वृद्वि हुई। 2004 से 05 में चावल के उत्‍पादन में वृद्धि अल्‍लपुज्‍जा (75 प्रतिशत), पलक्‍कड (37 प्रतिशत) में दर्ज की गई।
  • आय और रोज़गार में नारियल केरल की ग्रामीण अर्थव्यवस्‍था का मुख्‍य आधार है। नारियल का फ़सल क्षेत्र नौ लाख हेक्‍टेयर तक है, जो कुल फ़सल क्षेत्र का लगभग 41 प्रतिशत है। केरल में नारियल 35 लाख लोगों की आय का साधन है।
  • मुख्‍य निर्यात काली मिर्च का है जिसमें केरल अन्‍य राज्‍यों में सदैव से ही सर्वश्रेष्‍ठ है। देश भर में काली मिर्च के उत्‍पादन का 98 प्रतिशत केरल में होता है और इस प्रकार काली मिर्च के क्षेत्र में केरल का एकाधिकार बना हुआ है।
  • केरल की अर्थ्व्यवस्था में चाय बागानी फ़सलों, रबड, कॉफी, चाय और इलायची का विशेष योगदान है। इन चार फ़सलों की लगभग 6.53 लाख हेक्‍टेयर में खेती होती है। यह राज्‍य के कुल कृषि क्षेत्र का 29 प्रतिशत है और राज्‍य में इन फ़सलों के अधीन क्षेत्र का 43 प्रतिशत है।
  • केरल में कुल रबड़ क्षेत्र (देश भर) का 83 प्रतिशत क्षेत्र है। वर्ष 2004 - 05 में रबड़ का कुल फ़सल क्षेत्र लगभग 4.81 लाख हेक्‍टेयर था, जो पिछले वर्ष से 2141 हेक्‍टेयर अधिक रहा। केरल में रबड़ का उत्‍पादन 6.91 लाख टन रहा जो पिछले वर्ष से 5 प्रतिशत अधिक था। उत्‍पादकता में वृद्धि 2004 - 05 में भी बनी रही।
  • वर्ष 2004 - 05 में देश में कॉफी का उत्‍पादन क्षेत्र 3.28 लाख हेक्‍टेयर था जिसमें से 0.846 लाख हेक्‍टेयर केरल में है जो कुल क्षेत्र का 26 प्रतिशत है। वर्ष 2004 - 05 में केरल की हिस्‍सेदारी 19.7 प्रतिशत रही। देश के कुल 2.75 लाख मीट्रिक टन कॉफी उत्‍पादन के मुक़ाबले केरल का उत्‍पादन 0.54 लाख मीट्रिक टन था, देश में 5.11 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्रफल में चाय के कुल बागानों की तुलना में केरल में केवल 0.37 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में चाय की खेती की गई। चाय उत्‍पादन में केरल की हिस्‍सेदारी 2004 में पिछले वर्ष के 7 प्रतिशत से गिरकर 6 प्रतिशत रह गई। पिछले तीन वर्षों से उत्‍पादन में गिरावट चल रही है। बड़ी कंपनियों के चाय बागानों में संगठित क्षेत्र के 84,000 से ज्‍यादा मज़दूर काम करते हैं।
  • इलायची एक अन्‍य बागानी फ़सल है जिसका उत्‍पादन 2004 - 05 में 28 प्रतिशत से बढ़कर 76 प्रतिशत हो गया।

सिंचाई

  • केरल भी जलापूर्ति के लिए भूतल जल सिंचाई प्रणाली पर निर्भर है, जो गुरुत्‍वाकर्षण बल के द्वारा संचालित होती है। बहुत बड़ा भूखंड बड़ी और मंझोली सिंचाई परियोजनाओं के लिए नियत है। मार्च 2005 तक कुल 3572.40 करोड़ के निवेश में से 2,462.51 करोड़ रुपए का निवेश (69 प्रतिशत) बड़ी और मंझोली सिंचाई परियोजनाओं के लिए था।
  • केरल में सिंचाई व्‍यवस्‍था बड़ी, मंझोली और लघु सिंचाई परियोजनाओं का भूजल विकास कार्यक्रमों के माध्‍यम से होती है। पूरी की गई प्रमुख परियोजनाएं- मलमपूजहा, चलाकुड्डी, पीची, पंपा, पेरियार, चित्तूरपूजा, कुट्टियाडी, नेय्यर और चिम्‍मनी, पझारी, कांजरापूजा तथा कल्‍लाड हैं। पोथुड़ी, गायत्री, वलयार वज़ानी, मंगलम और चीरा कुझी मंझोली परियोजनाएं हैं। चार बड़ी परियोजनाओं- मुवात्तुपूजा, इदमलयार, करापूज़ा तथा कुटियार कुट्टी - कारापारा तथा कारापूजा तथा वाणासुर सागर, तिरथाला में पुल तथा जल नियामक तथा चामारावत्तोम में मंझोली योजनाओं पर काम चल रहा है।
  • दसवीं योजना में सिंचाई पर निवेश 930 करोड़ रुपए निर्धारित था। इसमें से प्रमुख निवेश बड़ी तथा मध्‍यम सिंचाई योजनाओं पर 600 करोड़ रुपए तथा उसके बाद लघु सिंचाई योजनाओं पर 205 करोड़ रुपए तथा बाढ़ नियंत्रण और समुद्र क्षरण अवरोधी योजनाओं पर 50 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए। पहले तीन वर्षों में 435.95 करोड़ रुपए बजट में आवंटित थे और 494.63 करोड़ रुपए व्‍यय हुए। इसमें से अधिकांश बड़ी और मंझोली सिंचाई के लिए था।
  • 'कमांड क्षेत्र विकास कार्यक्रम' मुख्‍य रूप से इस उद्देश्‍य से शुरू किया गया था कि अर्जित सिंचाई क्षमता और उपयोग में लाई गई क्षमता के अंतराल को कम किया जा सके। 2003 - 04 में कार्यक्रम की पुनर्रचना की गई और इसे एक नया नाम दिया गया - 'कमान क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन कार्यक्रम'।
  • कमांड क्षेत्र विकास कार्यक्रम प्राधिकरण का मुख्‍य कार्य नालियां, नाले बनवाना और बाड़ाबंदी लागू करना है। प्राधिकरण की प्रमुख गति‍विधियां 16 पूरी हो चुकी सिंचाई परियोजनओं में हुई, जैसे- 2.03 लाख हेक्‍टेयर के कुल क्षेत्रफल में मलमपुझा, मंगलम, पोथुंडी, वालयार, चीराकुझी, वाझानी, पीची, चालाकुडी, नैयार, गायत्री, पंपा, पेरियार घाटी, चित्तरपुझा, कुट्टीयाडी, पझाची और कांजिरपुझा। कमांड क्षेत्र विकास के कार्यक्रम भारत सरकार की वित्तीय सहायता से चलाए जाते हैं। *2004-05 की उपलब्धियों में 1998 हेक्‍टेयर में नहरें, 6156 हेक्‍टेयर क्षेत्र के लिए नालियां, 10 हेक्‍टेयर में इस प्रणाली की परख करना तथा 2302 हेक्‍टेयर में 83 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना शामिल है। पानी को, रोके गए क्षेत्रों के पुन: उद्धार के लिए 1033 हेक्‍टेयर संचित जल को उपयोगी बनाया गया और 3 मूल्‍यांकन रिपोर्ट प्रकाशित की गईं।


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