कौसानी
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विवरण | कौसानी उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा शहर से 53 किमी उत्तर में स्थित है। |
राज्य | उत्तराखंड |
ज़िला | बागेश्वर |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 29°50, पूर्व- 79°36 |
मार्ग स्थिति | कौसानी अल्मोड़ा से 53 किमी, रानीखेत से 62 किमी, नैनीताल से 117 किमी, दिल्ली से 410 किमी की दूरी पर स्थित है। |
प्रसिद्धि | कौसानी को 'भारत का स्विट्जरलैंड' कहा जाता है। |
कब जाएँ | अप्रैल-जून और सितंबर-नवंबर |
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है। |
पंतनगर हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है। | |
काठगोदाम रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। | |
बस, टैक्सी आदि | |
क्या देखें | अनासक्ति आश्रम, लक्ष्मी आश्रम, चाय के बागान |
कहाँ ठहरें | होटल, गेस्ट हाउस |
क्या ख़रीदें | कुमाऊं शॉल, चाय |
एस.टी.डी. कोड | 05969 |
ए.टी.एम | लगभग सभी |
गूगल मानचित्र, पंतनगर हवाई अड्डा | |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी और कुमायूँनी |
अद्यतन | 14:47, 25 सितम्बर 2011 (IST)
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कौसानी (अंग्रेज़ी: Kausani) उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले से 53 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह भारत का ख़ूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है। कौसानी हिमालय की ख़ूबसूरती के दर्शन कराता पिंगनाथ चोटी पर बसा है। यहाँ से बर्फ़ से ढके नंदा देवी पर्वत की चोटी का नज़ारा बडा भव्य दिखाई देता है। कोसी नदी और गोमती नदी के बीच बसे कौसानी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 'भारत का स्विट्जरलैंड' कहा था। यहाँ के ख़ूबसूरत प्राकृतिक नज़ारे, खेल और धार्मिक स्थल पर्यटकों को ख़ास तौर पर अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
स्थिति तथा इतिहास
समुद्र के तल से लगभग 6075 फीट की ऊंचाई पर बसा कौसानी एक खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है। विशाल हिमालय के अलावा यहाँ से नंदाकोट, त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत का भव्य नज़ारा देखने को मिलता है। यह पर्वतीय शहर चीड़ के घने पेड़ों के बीच एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहाँ से सोमेश्वर, गरुड़ और बैजनाथ कत्यूरी की सुंदर घाटियों का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। काफ़ी समय पहले कासौनी अल्मोड़ा ज़िले का हिस्सा था और वलना के नाम से जाना जाता था। उस समय अल्मोड़ा ज़िला कत्यूरी के राजा बैचलदेव के क्षेत्राधिकार में आता था। बाद में राजा ने इसका काफ़ी बड़ा हिस्सा गुजरात के एक ब्राह्मण श्री चंद तिवारी को दे दिया। महात्मा गांधी ने यहाँ की भव्यता से प्रभावित होकर इस जगह को भारत का स्विट्जरलैंड कहा था। वर्तमान में कौसानी एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है और हर साल यहाँ पूरे विश्व से सैलानी आते हैं।[1]
पर्यटन स्थल
पर्यटकों के लिए कौसानी में घूमने के लिए कई जगहें और हैं, जहाँ पर्यटक आसानी से जा सकते है। एक तो वह घर जहाँ सुमित्रानंदन पंत का जन्म हुआ था, जिसे अब संग्रहालय में बदल दिया गया है। दूसरा है लक्ष्मी आश्रम, जिसे गांधी जी की शिष्या सरला देवी ने बनवाया था। कौसानी से आप ग्वालदम भी जा सकते हैं। ग्वालदम वह जगह है, जहाँ कुमाऊँ और गढ़वाल आपस में मिलते हैं। यहाँ बहुत से सेब के बागान हैं। स्वर्ग से भी सुंदर कहे जाने वाले बेदनी बुग्याल तक जाने का रास्ता यहीं से शुरू होता है। और अगर आप कहीं नहीं जाना चाहते, सिर्फ कुदरत की गोद में आराम करना चाहते हैं तो कौसानी से बेहतर शायद कोई और जगह नहीं है।
यातायात और परिवहन
कौसानी जाने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग को अपनी सुविधानुसार अपनाया जा सकता है।
- वायु मार्ग
कौसानी का नज़दीकी हवाई अड्डा पंतनगर में है, जो कौसानी से 178 किलोमीटर है। जैग्सन और किंगफिशर रेड की नियमित उड़ानें हैं।
- रेल मार्ग
कौसानी का नज़दीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो कौसानी से 141 किलोमीटर की दूरी पर है। उत्तराखंड संपर्क क्रांति और रानीखेत एक्सप्रेस से काठगोदाम तक पहुँच सकते हैं। काठगोदाम से स्थानीय बस या टैक्सी की सेवा ली जा सकती है।
- सड़क मार्ग
दिल्ली से कौसानी की दूरी लगभग 431 किलोमीटर है। दिल्ली के आनन्द विहार बस अड्डे से उत्तराखंड रोडवेज की बसें कौसानी के लिए दिन भर चलती रहती हैं। आप इसी बस अड्डे से वॉल्वो भी ले सकते हैं, जिसे हल्द्वानी में छोड़ना पड़ेगा।
अनासक्ति आश्रम
यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य की मिसाल इस तथ्य से समझी जा सकती है कि वर्ष 1929 में जब पूज्य बापू भारत के दौरे पर निकले थे तब अपनी थकान मिटाने के उद्देश्य से यहां के चाय बागान के मालिक के अतिथि गृह में दो दिवसीय विश्राम हेतु यहाँ आये परन्तु यहाँ आने के बाद कौसानी के उस पार हिममंडित पर्वतमालाओं पर पड़ती सूर्य की स्वर्णमयी किरणों को देखकर इतना मुग्ध हो गये कि अपने दो दिन के प्रवास को भूलकर लगातार चौदह दिन तक यहाँ रुके रहे। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने गीता पर आधारित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘अनासक्ति योग’ की रचना का प्रारंभिक चरण पूरा कर डाला।
लक्ष्मी आश्रम
कौसानी में एक लक्ष्मी आश्रम (सरला देवी आश्रम) भी है। जो कौसानी के बस स्टेशन से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह आश्रम एक अंग्रेज़ औरत ने बनाया था जो लन्दन की मूल निवासी थी। जिस का नाम 'कैथरीन मेरी हेल्वमन' था। वह जब 1948 में हिन्दुस्तान घूमने आई तो गाँधी जी से प्रभावित होकर हिन्दुस्तान में ही रह गयी। कौसानी को उन्होंने अपने कर्म स्थली के रूप में चुना। यहाँ उन्होंने लक्ष्मी आश्रम के नाम से एक बोर्डिंग स्कूल चलाया जिस में लड़कियों को सिलाई कढ़ाई बुनाई आदि सिखाया जाता है। लक्ष्मी आश्रम में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को बहुत भारी मेला लगता है।
चाय के बागान
कौसानी और आसपास के क्षेत्र में चाय के बागान भी ऐसी हरियाली का आनन्द देते हैं, मानो ईश्वर ने हरा कालीन बिछा दिया हो। चाय बागानों में घूमने के साथ-साथ फैक्ट्रियों में चाय को तैयार होते देख सकते हैं।
यात्राएँ
कौसानी की ख़ूबसूरती ने तो यहाँ आने वालों को आकर्षित किया ही, राष्ट्रपति महात्मा गांधी से जुड़ी ऐतिहासिकता ने भी बड़ी-बड़ी हस्तियों को यहाँ आने पर मजबूर किया। इन हस्तियों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्ण सिंह और अरुण शौरी प्रमुख हैं। डॉ. सिंह और अरुण शौरी को यह जगह इतनी पसंद आई कि वे अक़्सर आकर यहाँ रहा करते हैं। प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा को भी कौसानी पसंद थी। उन्होंने कई बार यहाँ की यात्राएँ कीं।
कौसानी के बारे में
कौसानी का परिचय पंडित नरेंद्र शर्मा की इन पक्तियों से होता है:-
यह नई धरा, आकाश नया,
यह नया लोक मिल गया मुझे।
थी आत्मा जिसके हित अशांत,
वह शांत लोक मिल गया मुझे।
- कौसानी का दूसरा परिचय भी साहित्यिक ही था। धर्मवीर भारती ने अपने एक प्रसिद्ध निबंध ‘ठेले पर हिमालय’ में इसके बारे में काफ़ी कुछ लिखा है।
- हिन्दी के मशहूर कवि सुमित्रानन्दन पंत की जन्म स्थली भी कौसानी है, जहाँ पर कवि ने अपना बचपन व्यतीत किया था। पंत जी यहाँ जिस घर में पैदा हुए थे, अब उस घर का संग्रहालय बना दिया गया है। सुमित्रानन्दन पंत जिस स्कूल में पढ़ते थे, वह आज भी उसी तरह चल रहा है।
- कौसानी में एक चाय का बागान भी है, जो यहाँ से लगभग छ: किलोमीटर की दूरी पर बैजनाथ की तरफ़ है। यहाँ की चाय बहुत ही खुशबूदार और स्वादिष्ट होती है। बड़ी मात्रा में यहाँ की चाय विदेशों को भेजी जाती है, जिसकी विदेशों में काफ़ी मांग है। आम चाय की तुलना में यहाँ की चाय की कीमत उसकी बेहतर गुणवत्ता के कारण बहुत ज़्यादा है।
गांधी जी
कौसानी की सुन्दरता को देख कर गांधी जी कहते है, 'इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाज़ी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है। मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूँ कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता। अल्मोड़ा के पहाड़ों में क़रीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज़्यादा आश्चर्यचकित हूँ कि हमारे यहाँ के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं।'
जन्म स्थली
कौसानी को महान् साहित्यकारों की जन्म भूमि के रूप में भी जाना जाता है। कौसानी का एक और साहित्यिक परिचय यह भी है कि कौसानी प्रकृति के सुकुमार गुमानी पंत, शैलेश मटियानी, सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली है। महाकवि सुमित्रानंदन पंत को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित इस स्थल पर महाकवि की मूर्ति स्थापित है। वर्ष 1990 में स्थापित इस मूर्ति का का अनावरण वयोवृद्ध साहित्यकार तथा इतिहासवेत्ता पंडित नित्यनंद मिश्र द्वारा उनके जन्म दिवस 20 मई को किया गया था।[2] इस मूर्ति की स्थापना को इक्कीस वर्ष हुए जिसमें से ग्यारह वर्ष उत्तराखण्ड को पृथक् राज्य बनने के बाद हो चुके है परन्तु खुले आसमान के नीचे स्थापित इस मूर्ति के उपर कैनोपी लगाकर उसे वर्षा आदि से बचाने का विचार अब तक क्यों नहीं आया यह समझ से परे है। महाकवि का पैत्रक ग्राम यहां से कुछ ही दूरी पर है परन्तु वह आज भी अनजाना तथा तिरस्कृत है। संग्रहालय में महाकवि द्वारा उपयोग में लायी गयी दैनिक वस्तुयें यथा शॉल, दीपक, पुस्तकों की अलमारी तथा महाकवि को समर्पित कुछ ऐक सम्मान-पत्र एवं पुस्तकें तथा हस्तलिपि सुरक्षित हैं। कौसानी सिर्फ साहित्य के लिए ही महत्त्वपूर्ण जगह नहीं है, कौसानी की गिनती कुमाऊँ के सबसे सुंदर पर्यटन स्थलों में होती है।[3]
इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाजी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है। मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूँ कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता। अल्मोड़ा के पहाड़ों में क़रीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज़्यादा आश्चर्यचकित हूँ कि हमारे यहाँ के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं।
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रमेश कौशिक (कवि)
कौसानी की अद्भुत सुन्दरता से प्रभावित होकर कवियों ने भी कौसानी की सुन्दरता को अपनी कविता के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। हिन्दी के कवि रमेश कौशिक ने कौसानी की सुन्दरता को देखकर एक कविता कह डाली।
पर्वत की पेशानी
चीड़, बुराँस, अखरोट, अलूचा
देवदार, मीठा पागर औ खूबानी
दो-चार घरों की
छिटपुट-सी बस्ती--
यह कौसानी
तासीर हवा में ऐसी
अपने आप लोग बन जाते इसमें
कवि, वैरागी, सेनानी
बाक़ी सब बातें बेमानी[4]
कब जाएँ
कौसानी अब एक स्थापित प्रसिद्ध सैलानी स्थल है और यहाँ पर ठहरने के लिए भी कई अच्छे विकल्प हैं। दिसंबर से फ़रवरी के मध्य तक कौसानी में खूब बर्फ गिरती है। वैसे यात्री यहाँ पूरे साल भर आ सकते हैं। मार्च-अप्रैल और फिर सितंबर-अक्टूबर के महीने खुले आसमान वाले होते हैं, जिनमें हिमालय के शानदार नज़ारों का खूबसूरती से अवलोकन किया जा सकता है। आज कौसानी ने विश्व पर्यटन के क्षेत्र में एक ख़ास स्थान बना लिया है। यहाँ आने वाले पर्यटक फिर से यहाँ आने का सपना लिये जाते हैं।
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विथिका
कौसानी
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कौसानी, भारत का स्विट्जरलैंड (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 सितम्बर, 2013।
- ↑ महाकवि पन्त की जन्मभूमि कौसानी से... (हिन्दी) गद्य कोश। अभिगमन तिथि: 10 सितम्बर, 2012।
- ↑ लासानी है कौसानी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) लाइव हिन्दुस्तान। अभिगमन तिथि: 25 सितम्बर, 2011।
- ↑ कविता कोश (हिन्दी) रमेश कौशिक। अभिगमन तिथि: 25 सितम्बर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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