दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
कितनी अतृप्ति है...
कितनी अतृप्ति है जीवन में?
मधु के अगणित प्याले पीकर,
कहता जग तृप्त हुआ जीवन,
मुखरित हो पड़ता है सहसा,
मादकता से कण-कण प्रतिक्षण,
पर फिर विष पीने की इच्छा क्यों जागृत होती है मन में?
कवि का विह्वल अंतर कहता, पागल, अतृप्ति है जीवन में।