जूडो

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जूडो

जूडो (अंग्रेज़ी: Judo) एक ऐसा मार्शल आर्ट है जिसे आमतौर पर आत्मरक्षा के लिए सीखा जाता है। इस खेल की शुरुआत जापान से हुई; हालांकि अब यह खेल ओलिंपिक का भी हिस्सा है। भारत में भी इस खेल को पसंद करने वाले लोगों की संख्या काफी ज्यादा है। भारत में जूडो संघ की स्थापना 1964 में हुई और इसके दो साल बाद पहली जूडो चैंपियनशिप आयोजित हुई। भारत ने साल 1986 में हुए एशियाड गेम्स में चार काँस्य पदक हासिल किए थे और पहली बार साल 1992 में ओलिंपिक में हिस्सा लिया था।

जूडो क्या है?

जूडो वास्तव में एक मार्शल आर्ट है जो एक युद्ध कला के साथ साथ एक खेल के रूप में भी जाना जाता है। मार्शल आर्ट की जूडो शैली का जनक जापान के जिगोरो कानो को माना जाता है जिन्होंने शारीरिक, मानसिक और नैतिक शिक्षाशास्त्र के रूप में इसका विकास सन 1882 में किया था। जूडो की सबसे ख़ास बात इसकी प्रतिस्पर्धिता होती है जिसमे प्रतिद्वंदी को जमीन पर फेंकना या उसे जमीन पर गिराना होता है। जूडो में प्रतिद्वंदी को जमीन पर पटक कर उसे गतिहीन कर दिया जाता है। इसके साथ ही कुश्ती की चालों द्वारा अपने प्रतिद्वंदी पर हावी होकर या फिर जोड़ों को उलझकर या गला घोंटकर या किसी अन्य तकनीक द्वारा प्रतिद्वंदी को समर्पण करने के लिए मजबूर करना होता है। इसके साथ ही हथियारों से बचाव के लिए आक्रमण भी जूडो का एक हिस्सा है। जूडो में हाथों से और पैरों से तीव्र प्रहार किया जाता है।[1]

विकास

जूडो कला के पीछे इसके संस्थापक जिगोरो कानो का दर्शन जुड़ा हुआ था जिसमे इस कला को विकसित करने के पीछे मार्शल आर्ट की बहादुरी के अलावा युवाओं के शरीर, दिमाग और चरित्र का भी विकास करना था। उन्होंने मई 1882 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में अपनी स्नातक की उपाधि लेने के बाद आईकुबो के स्कूल के नौ छात्रों को कामकुरा के ऐईशो जी नाम के एक बौद्ध मंदिर में जूजूत्सु का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया जो जूडो की एक तरह से शुरुवात माना जाता है। जल्दी ही जूडो पूरे जापान में लोकप्रिय हो गया। जापान के साथ साथ इसकी लोकप्रियता पुरे विश्व में हो गयी। इसके साथ ही जूडो ओलम्पिक खेलों में भी शामिल हो गया। जूडो के अभ्यासकर्ता को 'जूडोका' कहा जाता है। वहीं जूडो ट्रेनर को 'सेंसेई' कहा जाता है। जूडो का अभ्यास करने वाले सफ़ेद रंग की वर्दी पहनते हैं जिसे 'जूडोगी' कहा जाता है।

गेम बेल्ट

जूडो

जूडो खेल में बेल्ट के अनुसार खिलाड़ी का ग्रेड निधारित होता है। वह किस स्तर और कितना मास्टर है यह उसके बेल्ट के रंग से पता चलता है। शुरुआती तौर पर सभी को सफ़ेद बेल्ट दी जाती है। इसके बाद हर परीक्षा के साथ नीली बेल्ट, पीली बेल्ट, हरी बेल्ट, कत्थई बेल्ट और काली बेल्ट दी जाती है। यह सभी क्यू ग्रेड की बेल्ट हैं। इसके बाद टोक्यो 1964 खेलों में जूडो को पुरुषों के लिए एक ओलंपिक खेल के रूप में पेश किया गया था।[2]

जूडो और कराटे में अंतर

  1. जूडो जहाँ एक नरम मार्शल आर्ट है वहीं कराटे एक कठिन मार्शल आर्ट है।
  2. जूडो में प्रतिद्वंदी को गिराने, गला घोंटने और प्रतिद्वंदी को समर्पण पर मजबूर कर दिया जाता है। वहीं कराटे में हाथों, पैरों, कुहनियों आदि के प्रयोग से प्रतिद्वंदी पर वार किया जाता है और उस पर हावी हुआ जाता है।
  3. जूडो कुश्ती की तरह की शैली है वहीं कराटे मुक्केबाज़ी की तरह का मार्शल आर्ट है।
  4. जूडो एक रक्षात्मक मार्शल आर्ट है। वहीं कराटे आक्रामक और मारक मार्शल आर्ट है।
  5. जूडो के खेल में प्रतिद्वंदी को फेंकने और पटकने पर नम्बर मिलते हैं। वहीं कराटे में किक और पंचिंग पर पॉइंट्स मिलते हैं।

इस प्रकार जूडो और कराटे दोनों ही जापान से विकसित आत्मरक्षा की कलाएं हैं जो आज पूरे विश्व में लोकप्रिय हो चुकी हैं। जूडो और कराटे व्यक्ति को अनुशासित, मजबूत और चरित्रवान के उद्देश्य से रचित कलाएं हैं, जो दुश्मनों से उसकी रक्षा करने में उसे सक्षम बनाती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जूडो और कराटे में क्या अंतर है (हिंदी) kyaantarhai.com। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2020।
  2. जापान का वह खेल जो कमजोर को भी देता है आत्मरक्षा की ताकत (हिंदी) news18.com। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2020।

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