ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर
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पूरा नाम | ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर |
जन्म | 15 जनवरी, 1899 |
जन्म भूमि | ग्राम अधवल[1], पंजाब |
मृत्यु | 18 जनवरी, 1976 |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल |
पद | भूतपूर्व मुख्यमंत्री, पंजाब |
कार्य काल | मुख्यमंत्री-1 नवंबर, 1966 से 8 मार्च, 1967 तक |
अन्य जानकारी | ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर 1930 में अकाल तख्त के जत्थेदार और बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मंत्री बने। |
ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर (अंग्रेजी: Giani Gurmukh Singh Musafir, जन्म- 15 जनवरी, 1899; मृत्यु- 18 जनवरी, 1976) भारतीय राजनीतिज्ञ और पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। उनके द्वारा रचित एक कहानी संग्रह 'उरवरपार' के लिये उन्हें मरणोपरान्त सन् 1978 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर का सम्बंध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से था। वह 1 नवंबर, 1966 से 8 मार्च, 1967 तक पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे।
परिचय
कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख नेता ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर का जन्म 15 जनवरी, 1899 ई. को ज़िला कैम्पबैलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 4 वर्ष तक शिक्षक का काम किया, तभी से 'ज्ञानी' कहलाने लगे थे। 1919 के जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का उन पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वे ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधी बन गए।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
उन्हीं दिनों गुरुद्वारों का प्रबंध सिक्ख समुदाय को सौंपने और उसमें सुधार के लिए पंजाब में व्यापक आंदोलन चला था। गुरमुख सिंह ने अपनी पंजाबी भाषा की कविताओं से उसमें और जान डाल दी। उन्होंने इसके लिए अध्यापन कार्य भी छोड़ दिया। बाद में अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें गिरप्तार कर लिया।
गुरुद्वारा आंदोलन के नेता
अब ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर गुरुद्बारा आंदोलन के प्रमुख नेता थे। 1930 में वे अकाल तख्त के जत्थेदार और बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मंत्री बने। उनका जवाहरलाल नेहरू से निकट का परिचय था और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल यात्राएँ कीं।
दृढ़ इच्छा शक्ति
भारत छोड़ो आंदोलन में वे जिस समय जेल में बंद थे, उनके पिता, एक पुत्र और एक पुत्री की मृत्यु हो गई। निजी संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने 'पैरोल' पर जेल से बाहर आना स्वीकार नहीं किया। यह सब उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का ही प्रमाण था।
पंजाब के मुख्यमंत्री
स्वतंत्रता के बाद ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य चुने गए। वे संविधान सभा के सदस्य थे और 1952 में लोकसभा के सदस्य चुने गए। बाद में वे पंजाब की विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए और पंजाब के मुख्यमंत्री बने। ज्ञानी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में पंजाब की चतुर्दिक उन्नति हुई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अधवल ग्राम अब रावलपिण्डी, पाकिस्तान का हिस्सा है।
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