नागरिकता

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भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है। नागरिकता के सम्बन्ध में भारतीय संविधान के भाग-2 तथा अनुच्छेद 5-11 में प्रावधान किया गया है। इन अनुच्छेदों में केवल यह प्रावधान किया गया है कि भारत का नागरिक कौन है और किसे भारत का नागरिक माना जाए। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 11 द्वारा संसद को भविष्य में नागरिकता के सम्बन्ध में क़ानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस अधिकार का प्रयोग करके संसद ने नागरिकता के सम्बन्ध में अधिनियम, 1955 बनाया है। जिसमें अब तक कई बार संशोधन किया जा चुका है।

भारतीय संविधान में प्रावधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से 9 तक में नागरिकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं–

संविधान के प्रारम्भ पर नागरिकता

अनुच्छेद 5 के अनुसार भारतीय संविधान के प्रारम्भ पर जिस व्यक्ति का भारत में अधिवास हो और

  1. जो भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा था, या
  2. जिसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्मा था, या
  3. जो संविधान के प्रारम्भ के ठीक पहले कम से कम पाँच वर्ष तक मामूली तौर से भारत में निवासी रहा है, वह भारत का नागरिक होगा। इस स्थिति में व्यक्ति के माता-पिता की राष्ट्रीयता का कोई महत्त्व नहीं है।

भारतीय नागरिकता

पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्ति को भारतीय नागरिक माना जाएगा (अनुच्छेद 6), यदि–

  1. वह या उसके माता-पिता में से कोई उसके पितामह या पितामही अथवा मातामह या मातामही में से कोई भारत में जन्मा था।
  2. वह 19 जुलाई, 1948 से पहले भारत में चला आया था तथा इस तिथि से भारत का निवासी रहा है।
  3. वह 19 जुलाई, 1948 के पश्चात् भारत में आया है, तो भारत सरकार द्वारा नागरिक के रूप में पंजीकृत कर लिया गया है।

ऐसे व्यक्ति को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाएगा, जो भारत में अपने निवास की अवधि के छह माह के अंतर्गत नागरिक के रूप में पंजीकृत किये जाने का आवेदन करता है, अर्थात् नागरिक के रूप में केवल उसी व्यक्ति को पंजीकृत किया जाएगा, जो कि भारत में अपने निवास की अवधि के 6 माह पश्चात् पंजीकरण के लिए आवेदन करता है।

पाकिस्तान को आव्रजन करने वालों नागरिकता

संविधान का अनुच्छेद 7 यह उपबन्ध करता है कि अनुच्छेद 5 या 6 में किसी बात के होते हुए भी जो व्यक्ति 1 मार्च, 1947 के पश्चात् भारत से पाकिस्तान का आव्रजन कर गया है वह भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा। किन्तु यह नियम उस व्यक्ति पर लागू नहीं होगा जो पाकिस्तान को आव्रजन करने के पश्चात् किसी अनुज्ञा के अधीन भारत लौट आया है। प्रत्येक ऐसा व्यक्ति अनुच्छेद 9 के खण्ड (ख) के प्रयोजनाओं के लिए 19 जुलाई, 1948 के पश्चात् भारत क्षेत्र में आव्रजन करने वाला समझा जाएगा और यदि वह अनुच्छेद 6 के अधीन दी गई सभी शर्तों को पूरा करता है, जो 1948 के बाद पाकिस्तान से भारत आने वाले प्रवासियों के लिए आवश्यक है, तो वह भारत का नागरिक बनने का हकदार है।

भारत के बाहर भारतीय उत्पत्ति वाले व्यक्ति की नागरिकता

अनुच्छेद 8 भारत में जन्मे किन्तु विदेश में रहने वाले कुछ व्यक्तियों को कुछ शर्तों को पूरा करने पर नागरिकता का अधिकार प्रदान करता है। इसके अंतर्गत पाकिस्तान जाने वाले लोग सम्मिलित नहीं हैं। अनुच्छेद 8 के अनुसार कोई भी व्यक्ति या उसके माता-पिता में से कोई जो भारत सरकार अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत के बाहर किसी देश में रह रहा है, यदि वह निम्नलिखित शर्तें पूरी कर ले तो वह भारत का नागरिक समझा जाएगा–

  1. वह भारत का नागरिक के रूप में पंजीकृत कर लिया गया हो।
  2. वह पंजीकरण भारत के राजनयिक या कौंशलर प्रतिनिधि, जहाँ वह उस समय निवास कर रहा हो, द्वारा किया गया हो।
  3. उस आशय का आवेदन पत्र उपर्युक्त राजनयिक अथवा कौंशलर प्रतिनिधि जहाँ वह उस समय निवास कर रहा हो, द्वारा किया गया हो।
  4. यह आवेदन संविधान लागू होने के पहले या बाद में किया गया हो।
  5. आवेदन पत्र डोमिनियन सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा विहित प्रपत्र पर और रीति से किया गया हो।

विदेशी नागरिकता अर्जित करने पर भारत की नागरिकता की समाप्ति

अनुच्छेद 9 यह उपबन्धित करता है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता अर्जित कर लेता है तो उसकी भारत की नागरिकता समाप्त हो जाएगी और वह अनुच्छेद 5, 6 या 8 के आधार पर नागरिकता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। यह प्रावधान केवल उन लोगों के सम्बन्ध में है, जिन्होंने संविधान प्रारम्भ होने के पहले स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर ली थी। संविधान लागू होने के बाद नागरिकता के सम्बन्ध में पूर्ण व्यवस्था नागरिकता अधिनियम द्वारा निर्धारित की जाती है। ==भारतीय नागरिकता का अर्जन==  संसद द्वारा निर्मित नागरिकता अधिनियम 1955 के अधीन भारतीय नागरिकता का अर्जन निम्न प्रकार से किया जाता है-

जन्म द्वारा नागरिकता

26 जनवरी, 1950 के बाद तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986 के पूर्व भारत में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भारत की नागरिकता प्राप्त होगी, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रवर्तन के बाद भारत के राज्यक्षेत्र में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति तब भारत का नागरिक होगा, जब उसके माता-पिता में से कोई भारत का नागरिक हो।

देशीयकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति

कोई भी विदेशी व्यक्ति जो वयस्क हो चुका है और प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों का नागरिक नहीं है, भारत सरकार से निर्धारित प्रपत्र पर देशीयकरण के लिए आवेदन पत्र दे सकता है। कुछ निर्धारित शर्तों के आधार पर केन्द्रीय सरकार द्वारा संतुष्ट होने के पश्चात् आवेदन कर्ता को देशीकरण का प्रमाणपत्र दिया जा सकता है। इस रीति से नागरिकता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है–

  1. वह किसी ऐसे देश का नागरिक न हो जहाँ भारतीय देशीकरण द्वारा नागरिक बनने से रोक दिये जाते हों।
  2. उसने अपने देश की नागरिकता का परित्याग कर दिया हो, और केन्द्रीय सरकार को इस बात की सूचना दे दी हो।
  3. वह देशीयकरण के लिए आवेदन करने की तिथि से पहले 12 वर्ष तक या तो भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में रहा हो, इस सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार यदि उचित समझे तो उस अवधि को घटा सकती है।
  4. उक्त 12 वर्ष के पहले को कुल 7 वर्षों में से कम से कम 4 वर्ष तक उसने भारत में निवास किया हो या भारत सरकार की नौकरी में रहा हो,
  5. वह एक अच्छे चरित्र का व्यक्ति हो।
  6. वह राज्यनिष्ठा की शपथ ग्रहण करे।
  7. उसे भारतीय संविधान द्वारा मान्य भाषा का सम्यक ज्ञान हो।
  8. देशीयकरण के प्रमाणपत्र की प्राप्ति के उपरान्त उसका भारत में निवास करने या भारत सरकार की नौकरी करने का इरादा हो।

वंश परम्परा के द्वारा नागरिकता

भारत के बाहर अन्य देश में 26 जनवरी, 1950 के पश्चात् जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई भारत का नागरिक हो। माता की नागरिकता के आधार पर विदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा किया गया है।

पंजीकरण के द्वारा नागरिकता

जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, वह पंजीकरण द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। पंजीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को इसके लिए नियुक्त अधिकारी के समक्ष विहित प्रारूप में आवेदन करना होता है।

अर्जित भू-भाग के विलयन द्वारा नागरिकता

यदि किसी नये भू-भाग को भारत में शामिल किया जाता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। गोवा, दमन और दीव, पाण्डिचेरी तथा सिक्किम के राज्य क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को इनके भारत में विलयन पर इसी प्रकार से नागरिकता प्राप्त हुई थी।

संशोधन अधिनियम, 2003

प्रवासी भारतीयों की नागरिकता सम्बन्धी नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003- प्रवासी भारतीयों व विदेश में बसे भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से संसद द्वारा अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है। इसके लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2003 को सर्वसम्मति से पारित किया गया है। यह विधेयक लक्ष्मीमल सिंधवी की अध्यक्षता वाली समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर तैयार किया गया था।

भारतीय मूल के लोग

नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करके 16 देशों में बसे भारतीय मूल के लोगों को उनकी विदेशी नागरिकता के साथ भारत की ओवरसीज नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। इन 16 देशों में स्विट्जरलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इस्रायल, पुर्तग़ाल, फ़्राँस, स्वीडन, न्यूजीलैण्ड, यूनान, साइप्रस, इटली, फिनलैण्ड, आयरलैण्ड, नीदरलैण्ड, ब्रिटेनसंयुक्त राज्य अमरीका शामिल हैं। देशों की इस सूची का बाद में विस्तार किया जाएगा। ऐसी दोहरी नागरिकता प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों को भारत में आने-जाने की स्वतंत्रता होगी, किन्तु भारत में उन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं होगा। साथ ही उन्हें भारत में किसी संवैधानिक पद को प्राप्त करने का भी अधिकार नहीं होगा। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक नौकरियों के लिए संविधान के अनुच्छेद 16 में प्रदत्त अवसर की समानता का अधिकार भी इन्हें प्राप्त नहीं होगा।

अध्यादेश 2005 की उदघोषणा

बाद में 28 जून, 2005 को नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश, 2005 की उदघोषणा की गई। यह संशोधन नागरिकता अधिनियम, 1955 की चौथी अनुसूची को हटाने सम्बन्धी प्रावधानों से युक्त है। इसके अनुसार भारतीय मूल के लोग, जो अथवा जिनके माता/पिता या दादा/दादी 26 जनवरी, 1950 के बाद प्रवासित हुए हों अथवा 26 जनवरी, 1950 को भारतीय नागरिकता की योग्यता उनके पास रही हो अथवा ऐसे क्षेत्र में हों जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का अंग बन गया हो, उनके उस समय के छोटे बच्चे जो अब ऐसे देश में रह रहे हों, जहाँ पर दोहरी नागरिकता का किसी भी प्रकार का प्रावधान उपलब्ध हो, ओवरसीज (सीमा पारीय) भारतीय नागरिकता (ओसीआई) प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार पाकिस्तान तथा बांग्लादेश को छोड़कर अन्य सभी देशों के नागरिकों को इस प्रावधान के अंतर्गत ओवरसीज भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सकती है। नागरिकता (संशोधन) अध्यादेश, 2005 के द्वारा ओसीआई जिनका पंजीकरण 5 वर्ष के लिए हुआ है कि भारत में ठहरने/रुकने की अवधि दो वर्ष से घटाकर 1 वर्ष कर दी जाएगी।

विशेष अधिकार

केवल नागरिकों को प्राप्त कुछ विशेष अधिकार इस प्रकार है-

  1. अनुच्छेद 15, 16, 19 और 29 के द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार।
  2. विदेशी राज्य से उपाधि स्वीकार करने पर प्रतिबन्ध।
  3. कुछ महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद, यथा- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश, उच्च न्यायालय का न्यायधीश, राज्यपाल, महान्यायवादी, महाधिवक्ता आदि पर नियुक्ति का अधिकार।
  4. लोकसभा और राज्य विधानसभा के लिए मतदान की पात्रता।
  5. संसद या राज्य विधानमण्डल के सदस्य होने के लिए अर्हता।

भारतीय नागरिकता की समाप्ति

भारतीय नागरिकता निम्नलिखित प्रकार से समाप्त होती है–

  1. अन्य देश की नागरिकता स्वीकार करने पर।
  2. नागरिकता का परित्याग करने पर।
  3. सरकार के द्वारा नागरिकता छीनने पर।

लाभ

किसी राज्य में स्थाई निवास के आधार पर लाभ- भारत में एकल नागरिकता है और नागरिकों के किसी राज्य में निवास के आधार पर नागरिकों के सम्बन्ध में कोई भेद नहीं किया जा सकता है, लेकिन किसी राज्य में स्थाई निवास के कुछ मामलों में लाभ हो सकता है। यह दो प्रकार से प्रदान किया जा सकता है–

संसद के द्वारा क़ानून बनाकर

संविधान के अनुच्छेद 16 (3) के अधीन संसद को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह किसी राज्य या संघ राज्य के क्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के सम्बन्ध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के भीतर निवास सम्बन्धी योग्यता की अपेक्षा नियत कर सकती है। इस अधिकार के प्रयोग में संसद ने लोक नियोजन (निवास की अपेक्षा) अधिनियम, 1957 पारित करके केन्द्र सरकार को आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर तथा त्रिपुरा में अराजपत्रित पदों में नियुक्ति के लिए अधिवास की अपेक्षाएँ विहित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति दी थी। बाद में 1974 में इस अधिनियम को संसद द्वारा निरस्त कर दिया गया। संसद ने इस अधिकार का प्रयोग करके कोई नियम नहीं बनाया। इसलिए वर्तमान स्थिति यह है कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी राज्य में इस आधार पर नियोजन से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह उस राज्य का निवासी नहीं है।

राज्य विधानमण्डल द्वारा क़ानून बनाकर

कोई राज्य अपने राज्य के निवासियों के लाभ के लिए कोई क़ानून बना सकता है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 15 (1) में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद को प्रतिषिद्ध किया गया है। इसमें निवास स्थान का उल्लेख नहीं है। इस प्रकार संविधान भी यह अनुमति देता है कि राज्य संविधान के द्वारा प्रदत्त अधिकारों से भिन्न विषयों में अपने निवासियों को लाभ प्रदान कर सकता है। उच्चतम न्यायालय ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा है कि अनुच्छेद 15 में निवास स्थान के आधार पर विभेद को प्रतिषिद्ध नहीं किया गया है। इसलिए राज्य अपने राज्य के शिक्षण संस्थानों में फ़ीस आदि के सम्बन्ध में अपने निवासियों को रियायत दे सकता है।

जम्मू-कश्मीर राज्य के अधिकार

जम्मू-कश्मीर राज्य को अपने निवासियों को अधिकार तथा विशेषाधिकार प्रदान करने की शक्ति-जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान मण्डल को निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में राज्य में स्थायी रूप से निवास करने वाले व्यक्तियों को अधिकार तथा विशेषाधिकार प्रदान करने की शक्ति प्रदान की गयी है–

  1. राज्य के अधीन नियोजन के सम्बन्ध में।
  2. राज्य में अचल सम्पत्ति के अर्जन के सम्बन्ध में।
  3. राज्य में स्थायी रूप से बस जाने के सम्बन्ध में।
  4. छात्रवृत्तियों अथवा इसी प्रकार की सहायता, जो राज्य सरकार प्रदान करे, के सम्बन्ध में।


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