वायु के मिस भर भरकर आह। ओस मिस बहा नयन जलधार। इधर रोती रहती है रात। छिन गये मणि मुक्ता का हार।।1।। उधर रवि आ पसार कर कांत। उषा का करता है श्रृंगार। प्रकृति है कितनी करुणा मूर्ति। देख लो कैसा है संसार।।2।।