पंचसखा सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव उस समय हुआ था, जब चैतन्य महाप्रभु बंगाल में भक्ति की मन्दाकिनी प्रवाहित कर रहे थे। 'बलरामदास', 'जगन्नाथदास', 'अच्युतानन्ददास', 'यशोवन्तदास' तथा 'अनन्तदास' की गणना पंचसखा सम्प्रदाय के अन्तर्गत की जाती है। ये रागानुराग भक्ति के प्रचारक तथा योग साधना के समर्थक थे।
इष्टदेव
इन पाँचों के ऊपर बौद्ध धर्म का भी प्रभाव पड़ा था। यद्यपि ये श्रीकृष्ण की उपासना करते थे, किन्तु उन्हें निर्गुण तथा निराकार का पर्याय भी मान लेते थे। उन्होंने सगुण ब्रह्मा की विविध लीलाओं का मान भी किया है। अत: इस सम्प्रदाय के कतिपय कवियों को शुद्धाभक्ति के कवि और अन्य को ज्ञानमिश्रा भक्ति के कवि माना जा सकता है।
- साधना पद्धति
इन विवेचनाओं से स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न सम्प्रदायों में विविध साधना पद्धतियों को महत्त्व मिलता था, तथा कभी ज्ञानमूलक भावना, कभी शुद्ध रागानुगा भक्ति, कभी योगामिश्रित अभ्यास और कभी तन्त्रोपचारमयी उपासना को प्रश्रय मिलता रहा। कुछ संत ऐसे भी थे, जिनका सम्बन्ध किसी सम्प्रदाय विरोध से नहीं था। ऐसे संतों में जयदेव, संत साधना, संत लालदेव, संत वेशी, संत नामदेव और संत त्रिलोचन जैसों की गणना की जा सकती है।
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