पश्चिमी हिन्दी

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पश्चिमी हिन्दी में कन्नौजी, बुंदेली, खड़ी बोली, बांगरू तथा ब्रज बोली को सम्मिलित किया जाता है। खड़ी बोली अपने मूल रूप में मेरठ, बिजनौर के आसपास बोली जाती है। इसी के आधार पर आधुनिक हिन्दी और उर्दू का रूप खड़ा हुआ है।

  • बांगरू को 'जाटू' या 'हरियाणवी' भी कहते हैं। यह पंजाब के दक्षिण पूर्व भाग में विशेषतौर पर बोली जाती है। कुछ विद्वानों के अनुसार बांगरू खड़ी बोली का ही एक रूप है, जिसमें पंजाबी और राजस्थानी का मिश्रण है।
  • ब्रजभाषा मथुरा के आसपास ब्रजमंडल में बोली जाती है। हिन्दी साहित्य के मध्ययुग में ब्रजभाषा में उच्च कोटि का काव्य निर्मित हुआ था। इसलिए इसे बोली न कहकर आदरपूर्वक 'भाषा' कहा गया।
  • मध्य काल में ब्रज बोली संपूर्ण हिन्दी प्रदेश की साहित्यिक भाषा के रूप में मान्य हो गई थी, किन्तु साहित्यिक ब्रजभाषा में ब्रज के ठेठ शब्दों के साथ अन्य प्रांतों के शब्दों और प्रयोगों का भी ग्रहण है।
  • कन्नौजी गंगा के मध्य दोआब में बोली जाने वाली बोली है। इसके एक ओर ब्रजमंडल है और दूसरी ओर अवधी का क्षेत्र। यह ब्रजभाषा से इतनी मिलती जुलती है कि इसमें रचा गया जो थोड़ा बहुत साहित्य है, वह ब्रजभाषा का ही माना जाता है।
  • बुंदेली बुंदेलखंड की उपभाषा है। बुंदेलखंड में समय-समय ब्रजभाषा के कई अच्छे कवि हुए, जिनकी काव्यभाषा पर बुंदेली भाषा का प्रभाव साफ देखा जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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