पाखण्डमत

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पाखण्डमत प्राय: वेद विरोधी कापालिकप्रभृति मतों को कहा जाता है और इनके अनुयायी 'पाखण्डी' कहलाते हैं। बुद्ध अपने द्वारा उपदिष्ट सम्प्रदाय के अतिरिक्त अन्य मत वालों को 'पाखण्डी' अथवा 'पाषण्डी' कहते थे।

  • पद्मपुराण के 'पाषण्डोत्पत्ति' अध्याय में लिखा है कि लोगों को भ्रष्ट करने के लिए शिव की दुहाई देकर पाखण्डियों ने अपना मत प्रचलित किया है।
  • इस पुराण में जिसको 'पाखण्डीमत' कहा गया है, तंत्र में उसी को शिवोक्त आदेश कहा गया है।
  • प्राचीन धर्मशास्त्र के ग्रन्थों में इसका अर्थ बौद्ध और जैन सम्प्रदाय है।
  • न्याय और शासन के कर्तव्य निर्देशार्थ जहाँ कुछ विधान विधर्मी प्रजाओं के लिए किया गया है, वहाँ उन्हें पाखण्डी, पाखण्डधर्मी कहा गया है।
  • इसमें निन्दा का भाव नहीं, वेदमार्ग से भिन्न पथ या उसका अनुयायी होने का अर्थ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 393 |


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